Wednesday, December 5, 2012

अतीत से सीख लें


टिप्पणी 

 
वक्त फिर अपने आप को दोहरा रहा है। ठीक वैसे ही हालात अब दुबारा बन रहे हैं। जिला भी वही और विभाग भी। अधिकारी और कर्मचारी भी लगभग वही हैं। तकरीबन जिन कमियों की वजह से दुर्ग के हाथों से ट्रोमा यूनिट निकली थी, कमोबेश वैसी ही परिस्थितियां मेटरनिटी चाइल्ड हेल्थ यूनिट को लेकर बन रही हैं। यूनिसेफ की

ओर से मेटरनिटी चाइल्ड हेल्थ यूनिट के लिए दुर्ग जिला अस्पताल एवं लाल बहादुर अस्तपाल सुपेला को पांच करोड़ रुपए देने का प्रस्ताव तैयार किया गया था। यूनिट के तहत दुर्ग में 60 और सुपेला में 40 बिस्तर की व्यवस्था प्रस्तावित है। इस काम के लिए यूनिसेफ ने अस्पताल प्रबंधन को बाकायदा आठ माह का समय भी दिया था, लेकिन समय पर उचित फैसला न लेने की कमी यहां भी दिखाई दी और आठ माह में भी कार्ययोजना तैयार नहीं हो पाई। कहने को अस्पताल प्रबंधन, जीवनदीप समिति एवं जिला प्रशासन के बीच इस संबंध में चार बार बैठकें भी हुई, लेकिन उनका कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला। इतना नहीं इन बैठकों में अतीत में हुई भूलों से भी कोई सबक नहीं लिया गया। आठ माह में सिर्फ जगह की तलाश पूरी की गई। निर्धारित समय सीमा में काम न होने के कारण यूनिट के प्रस्ताव पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। यूनिट के लिए ठोस कार्ययोजना न बन पाने तथा प्रस्ताव की प्रगति की रिपोर्ट देखकर यूनिसेफ के प्रतिनिधियों ने हाल ही में रायपुर में हुई बैठक में न केवल नाराजगी जाहिर की, बल्कि प्रस्ताव निरस्त करने की बात तक डाली। तभी तो सीएमएचओ ने सिविल सर्जन को पत्र लिखकर यूनिट के लिए तत्काल कार्ययोजना तैयार करने को कहा है।
बहरहाल, ट्रोमा यूनिट के मामले में गंभीरता न बरतने वाले अगर इस मामले में भी गंभीर नहीं हुए तो यकीनन यह काम फिर घोर लापरवाही की श्रेणी में आ जाएगा। दुर्ग जिले की बदहाल एवं बेपटरी चिकित्सा व्यवस्था को पटरी पर लाने की दिशा में उम्मीद की कोई हल्की सी किरण दिखाई देती है तो विभाग को उस पर तत्परता एवं सजगता से काम करना चाहिए, ताकि पीडि़त लोगों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिले। अगर दुर्ग व सुपेला में यूनिट स्थापित होती है तो सामान्य व गंभीर मरीजों के लिए अलग से वार्ड बनेगा, साथ ही नवजात एवं प्रसुताओं को भी विशेष सुविधाएं मिलना तय है। जिले के प्रशासनिक एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को अतीत से सीख लेकर मेटरनिटी चाइल्ड हेल्थ यूनिट से संबंधित तमाम औपचारिकताओं को जितना जल्दी हो पूर्ण करना चाहिए। समय की मांग भी यही है।
 
 साभार : पत्रिका भिलाई के 5 दिसम्बर 12  के अंक में प्रकाशित।