Monday, May 28, 2018

सरासर नाइंसाफी


टिप्पणी
राजस्थान रोडवेज के घाटे में होने के कारणों की पड़ताल की जाए तो इसमें बड़ी वजह तो प्राइवेट बस सर्विस की तुलना में ज्यादा किराया ही सामने आता है। समय और यात्रियों के लिए बसों में कम्फर्ट जोन भी घाटे के बड़े कारणों में शुमार हैं। रोडवेज बसों की हालत किसी से छिपी नहीं है। कहीं सीट फटी, तो कहीं खिड़कियों की आवाज। प्राइवेट बसें कम किराये में तथा रोडवेज से कम समय में गंतव्य पर पहुंचाती हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि सुरक्षा की दृष्टि से रोडवेज बसों में की जाने वाली यात्रा ज्यादा सुरक्षित रहती है। फिर भी किसी भी रूट पर चले जाओ, प्राइवेट बसों में सवारियों की संख्या रोडवेज के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है।  कम किराया लेकर भी प्राइवेट बस वाले कमाई कर रहे हैं जबकि अधिक किराया लेकर और लंबा-चौड़ा स्टाफ होते हुए भी रोडवेज घाटे में हैं। एेसा नहीं है कि घाटे के प्रमुख कारण रोडवेज प्रबंधन की जानकारी में न हो। सब कुछ पता होने के बावजूद रोडवेज प्रबंधन इस तरह के फैसले ले रहा है जो यात्रियों को रोडवेज से दूर करते हैं। छोटी दूरी के यात्रियों के लालच में रोडवेज प्रबंधन लंबी दूरी के यात्रियों को दूर कर रहा है। राजस्थान रोडवेज में श्रीगंगानगर से जयपुर की यात्रा करने वालों के साथ तो लंबे समय से नाइंसाफी हो रही है। इस मार्ग पर यत्रियों से किराया तो एक्सप्रेस सेवा का वसूला जा रहा है, लेकिन सेवा लोकल की उपलब्ध करवाई जा रही है। हनुमानगढ़ जिले के पल्लू से चूरू जिले के सरदारशहर के बीच जितने भी स्टॉपेज हैं, उन सभी पर रोडवेज की एक्सप्रेस बसें रुकती हैं। करीब 65 किलोमीटर की इस दूरी में 11 स्टॉपेज हैं। इस मार्ग पर लोकल बसें भी संचालित होती हैं, लेकिन ज्यादा सवारियों का हवाला देकर रोडवेज प्रबंधन एक्सप्रेस बसों को भी लोकल की तरह ही चला रहा है। सभी बसों को एक जैसा बनाने की व्यवस्था से इस रूट के लोग जरूर खुश हो सकते हैं, लेकिन एक्सप्रेस सेवा का किराया देने वालों के साथ यह नाइंसाफी है। ज्यादा किराया देने के बावजूद समय ज्यादा लगता है, फिर एक्सप्रेस सेवा में यात्रा करने का मतलब ही क्या रहा जाता है? एक्सप्रेस सेवा को लोकल बनाने का संभवत: इस तरह का प्रयोग कहीं नहीं होता होगा। अगर रोडवेज प्रबंधन को उम्मीद है कि इस मार्ग पर ज्यादा सवारियां मिलती हैं तो वह लोकल बसों के फेरे बढ़ा सकता है, लेकिन एक्सप्रेस सेवा को ही लोकल बना देना हास्यापस्द फैसला है।
वैसे भी श्रीगंगानगर-जयपुर मार्ग पर सरदारशहर, रतनगढ़, फतेहपुर आदि बस स्टैंड शहर के अंदर होने के कारण रोडवेज बसों को ज्यादा समय लगता है। प्राइवेट बस ऑपरेटरर्स से रोडवेज प्रबंधन किराये के मामले में मुकाबला नहीं कर सकता तो इस तरह के रास्ते तो खोजने चाहिए जिससे पैसे की तो नहीं, कम से कम समय की बचत तो हो। रोडवेज को यात्रियों को बेहतर सेवा देने के प्रयास होने चाहिए न कि यात्रियों को प्राइवेट की तरफ जाने को मजबूर करना चाहिए।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 27 मई 18 के अंक में प्रकाशित

ठोस हो समाधान


प्रसंगवश
पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में प्रदूषित पानी प्रवाहित हो रहा है। इसके विरोध में जिस तरह से जनसमुदाय एकजुट हुआ और मुखरता के साथ अपनी बात रखी उसी का नतीजा है कि केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय इस मुद्दे को लेकर गंभीर हुआ है। नदी जल के प्रदूषण को लेकर गठित कमेटी की अगले माह चंडीगढ़ में बैठक होने वाली है। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में लाइलाज बनती जा रही इस समस्या का कोई ठोस और स्थायी समाधान निकल कर आएगा। वैसे नहरों व नदियों में औद्योगिक इकाइयों अपशिष्ट पानी छोडऩे का इतिहास पुराना है। देश भर की नदियां प्रदूषित पानी की समस्या से ग्रस्त हैं। विडम्बना देखिए, सरकारी स्तर पर नहरों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों, अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं। सरकार हर बार ठोस हो समाधान नहरों की सफाई का दावा करती है। लेकिन पानी की शुद्धता व स्वच्छता के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं हो रहे। नहरों का पानी न केवल प्रदेश के नहरी क्षेत्रों के लिए सिंचाई का साधन है बल्कि राजस्थान के दस जिलों में तो नहरी पानी लोगों केे हलक भी तर कर रहा है। ऐसे में दूषित पानी बीमारियों को न्यौता दे रहा है। प्रदूषित पानी को लेकर इस बार विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने जो एकजुटता दिखाई उससे यकीनन सरकारों पर दबाव बनेगा। दबाव बनाने के साथ-साथ लोग कोर्ट की शरण में भी जा रहे हैं। श्रीगंगानगर में पंजाब सरकार के मुख्य सचिव कई अधिकारियों के खिलाफ इस्तगासा दायर हुआ है। राजस्थान हाइकोर्ट में भी इस मामले में जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें 29 मई तक पंजाब सरकार को जवाब देने को कहा गया है। इतना ही नहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी केन्द्र, राजस्थान व पंजाब सरकारों को तलब किया है। इन सबसे पहली बार यह उम्मीद बंध रही है कि इस समस्या का शायद कोई ठोस समाधान निकल जाए। स्वच्छ पानी मिलना लोगों का हक है। समय की मांग भी यही है कि इस समस्या का स्थायी समाधान हो ताकि लोगों का शुद्ध व स्वच्छ जल पीने का सपना पूरा हो सके।
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राजस्थान पत्रिका के राजस्थान के सभी संस्करणों में 26 मई 18 के अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित 

Friday, May 25, 2018

दोहरा मापदण्ड

टिप्पणी
आबकारी विभाग व पुलिस ने बुधवार को संयुक्त कार्रवाई करते हुए रावला क्षेत्र में हथकढ़ शराब का कारोबार करने वालों के ठिकानों पर छापे मारे। इस दौरान हथकढ़ शराब व लाहन भी नष्ट किया गया। इसी तरह की कार्रवाई पिछले हिन्दुमलकोट क्षेत्र में भी की गई थी। अवैध काम के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई होनी भी चाहिए बल्कि लगातार होनी चाहिए ताकि अवैध कारोबार पर अंकुश लगे। साथ ही इस कारोबार से जुड़े लोगों में भय व्याप्त हो, लेकिन ऐसा होता नहीं है। समय-समय पर कार्रवाई होती ही नहीं है और जो कार्रवाई होती है, उसके पीछे भी कुछ निहितार्थ छिपे हुए होते हैं। शराब मामले से जुड़ा एक दूसरा पहलू हैं, लेकिन यहां आबकारी विभाग व पुलिस दोनों ही खामोश हैं। दोनों के पास इसका कोई ठोस जवाब नहीं हैं हां, इस बात से बचने के खूबसूरत बहाने जरूर हैं। दोनों विभागों में से कौन यह बताएगा कि रात आठ बजे बाद शहर व जिले के लगभग तमाम ठेकों पर बिकने वाली शराब अवैध नहीं है? निर्धारित से ज्यादा कीमत वसूलना अवैध नहीं है? ठेके के बाहर रेट लिस्ट चस्पा न करना अवैध नहीं है? यह ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब दोनों विभागों के पास हैं, लेकिन आबकारी विभाग ने तो टारगेट पूरा करने के चक्कर में ठेकेदारों को मनमर्जी करने की अघोषित छूट दे रखी है तो पुलिस भी कानून व्यवस्था भंग नहीं होने तक कार्रवाई नहीं करती। इस तरह के हालात से कभी-कभी यह भी
शक भी होता है कि इस मसले पर दोनों विभागों के बीच अंदरखाने कोई गुप्त समझौता है, क्योंकि हथकढ़ व लाहन के खिलाफ कार्रवाई के दौरान जो सहयोग व सामंजस्य दोनों विभागों के बीच होता है, वैसा अंग्रेजी शराब को लेकर क्यों नहीं हैं? क्या यह दोहरा रवैया नहीं? क्या यह दोहरा मापदंड नहीं है? आबकारी विभाग की पिछले दिनों ओवररेट मामले में कुछ दुकानों पर गई कथित कार्रवाई भी चर्चा का विषय बनी है। इस मामले में किस दुकानदारों को सजा मिली, कितना जुर्माना लगा, यह आज भी अपने आप में राज ही है, अलबत्ता आबकारी ने इस कार्रवाई को प्रचारित कर तात्कालिक रूप से वाहवाही जरूर बटोर ली।
बहरहाल, वैसे दोनों ही विभागों को इस मामले में इस कदर आंखें नहीं मूंदनी चाहिए। अवैध काम अवैध ही होता है। अवैध के मामले में कोई भेद नहीं होता है। वह चाहे हथकढ़ शराब हो या शराब की देर रात तक या निर्धारित मूल्य से बिक्री हो। दोनों विभागों का तालमेल व सामंजस्य भी वैसा ही दिखना चाहिए जैसा हथकढ़ के मामले में दिखाई देता है।  हथकढ़ के खिलाफ कार्रवाई भी प्रायोजित किसी खास प्रयोजन के लिए ही की जाती है। यहां भी मूल बात ठेकेदारों को हथकढ़ से हो रहे नुकसान से बचाना ही है। मतलब दोनों ही विभाग दोनों की जगह केवल ठेकेदारों का ही ख्याल रख रहे हैं। उपभोक्ताओं व कानून व्यवस्था से भी इनको सरोकार होना चाहिए।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 25 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

इक बंजारा गाए-32

अंदर की बात
कई बार जो वास्तव में होता है वह दिखाई नहीं देता। और जो दिखाई देता है वह पूरा सच नहीं होता। ऐसा सभी मामलों में नहीं होता है लेकिन कभी-कभार हो जाता है। श्रीगंगानगर के गोलबाजार स्थित एक होटल का मामला जिस तेजी से उछला उसी गति से शांत भी हो गया। लोगों के समझ नहीं आ रहा है कि आखिर बिना कोई कार्रवाई हुए यह मामला यकायक ठंडा कैसे पड़ गया। आखिर इसके पीछे का राज क्या है। दबे स्वर में चर्चा हो रही है कि इस मामले में शिकायत करने वाले ही बैकफुट पर आ गए। इतना ही नहीं कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि दोनों ही पक्षों में अंदरखाने समझौता हो गया। लिहाजा अब होटल के टूटने या हटने का खतरा फिलहाल तो टल गया बताते हैं। वैसे बताया जा रहा है कि गोलबाजार में ही एक अन्य मल्टी स्टोरी बिल्डिंग को लेकर भी शिकायतें खूब हो रही हैं लेकिन प्रशासन इस पर कार्रवाई करने से हिचकिचा रहा है। इस बिल्डिंग के बेनामी मालिक शहर के प्रभावशाली लोग बताए जा रहे हैं।
राजनीति का चस्का
राजनीति का चस्का जिसको लग जाए फिर उसका तो फिर भगवान ही मालिक है। इन दोनों श्रीगंगानगर के सूरतगढ़ की दो महिलाओं पर राजनीति का जबरदस्त चस्का लगा है। शराब बंदी के बहाने दोनों सियासत में आना चाहती हैं। दोनों रिश्ते में देवरानी-जेठानी लगती हैं लेकिन दोनों में प्रतिद्वंद्विता इस कदर है कि एक ने तो दूसरी को पहचाने से ही इनकार कर दिया। भला यह कैसे संभव हो सकता कि देवरानी अपनी जेठानी को ही न जाने, लेकिन राजनीति पता नहीं क्या-क्या करवा देती है। दोनों ही महिलाओं का खुद का कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है लेकिन फिर भी दोनों जुटी हुई हैं। दबे स्वर में चर्चा है कि इन दोनों महिलाओं के पीछे कोई दूसरी ताकत काम कर रही है। जेठानी के तामझाम देखकर तो लोग माथा पकड़ लेते हैं। लग्जरी गाड़ी, सुरक्षाकर्मी और पीआरओ की टीम। इस तरह के जलवे देखकर कहा जा रहा है कि जरूर पर्दे के पीछे कोई है जो इनका समर्थन कर रहा है।
सीएम का सपना
सपने दिखाने और बड़े-बड़े वादे करने वाले सेठजी का एक बयान इन दिनों अच्छी खासी चर्चा में है। हुआ यूं कि कभी सेठजी की पार्टी से चुनाव जीतकर विधानसभा में जाने वाले एक महिला नेत्री का अचानक सेठजी की पार्टी से मोह भंग हो गया। इतना ही नहीं महिला नेत्री ने उस पार्टी का दामन थाम लिया, जिससे इन दिनों सेठजी का वास्ता कम ही पड़ा है। खैर, चर्चा व चटखारे की बात तो यह है कि महिला नेत्री के जाने के बाद सेठजी प्रचारित कर रहे हैं कि वो तो उसको सीएम तक बनाना चाह रहे थे। अब सीएम का सपना उन्होंने दिखाया या नहीं यह तो सेठजी या महिला नेत्री ही जाने लेकिन इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में हंसी के फव्वारे छूट रहे हैं। हंस-हंस के लोगों के पेट में बल पड़ रहे हैं। महिला नेत्री ने तो पुराने पार्टी को छोटा कह कर अपनी बात पूरी कर दी अब तो सेठजी ही बता पाएंगे कि वो महिला नेत्री को सीएम बनाने का सपना आखिरकार कैसे पूरा करके दिखाते।
पानी की कहानी
श्रीगंगानगर में इन दिनों प्रदूषित पानी का मामला गहराया हुआ है। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से पानी को लेकर धरना प्रदर्शन आदि कर रहे हैं। कई संगठन भी इस मामले में सक्रिय है। सभी अपने अपने स्तर पर पानी को दूषित बता रहे हैं। इसके लिए आरोप-प्रत्यारोप तक भी लग रहे हैं। एक दल दूसरे दल को जिम्मेदार बता रहा है, जबकि हकीकत में यह मसला पुराना है। कोई भी दल इस मसले से अछूता नहीं है। सभी ने इस मसले को देखा और जाना है लेकिन समाधान के मामले में आंख मूंद ली है। वैसे भी सरकारें आमजन को स्वच्छ व शुद्ध पानी पिलाने का दावा तो जरूर करती हैं लेकिन दावा शायद ही कभी पूरा हो पाता है। कल केन्द्रीय मंत्री के घेराव में भी उनकी पार्टी के कम और दूसरे दल के लोग ज्यादा थे, जबकि दूषित पानी की समस्या सबकी है। इस मसले को तो दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना चाहिए लेकिन फिर भी सब अपनी-अपनी ढपली अलग-अलग तरीके से बजाने से बाज नहीं आ रहे।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 24 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

पड़ोसी धर्म निभाए पंजाब

टिप्पणी
एक अच्छे पड़ोसी का दायित्व होता है कि वह दुख-दर्द में काम आए, लेकिन राजस्थान के पड़ोसी प्रदेश पंजाब ने पड़ोसी धर्म शायद ही निभाया हो। बात चाहे नहरों में प्रदू्िरषत पानी की हो या फिर गाहे-बगाहे पानी रोकने या कम करने की। पंजाब ने हमेशा मनमानी कर अपनी बात ही ऊपर रखी है। ताजा मामला नहरों में काला व बदबूदार पाने आने का है। यह पानी इतना जहरीला है कि जलदाय विभाग ने इसके डिग्गियों मंे भंडारण तक रोक लगा रखी है। वैसे पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में प्रदूषित पानी आने का यह कोई पहला मामला नहीं है। पंजाब की औद्योगिक इकाइयों व शहरों का रासायनिक अपशिष्ट सतलुज और व्यास नदियों में डाला जाता रहा है। नहरों में दूषित पानी आने का यह सिलसिला सदियों से चल रहा है लेकिन आज तक न तो किसी के खिलाफ कार्रवाई हुई और न ही इस समस्या का समाधान हुआ। इस नहरी का पानी का उपयोग खेती के साथ-साथ पीने के लिए भी किया जाता है। इस नहरी पर पानी श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ सहित प्रदेश के दस जिले निर्भर हैं। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि श्रीगंगानगर में दूषित पानी की जांच करने वाली प्रयोगशाला में पूरी एवं सघन जांच नहीं हो पाती। क्षेत्र के लोग लंबे समय से यहां विशेष प्रयोगशाला की मांग करते आ रहे हैं लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही। नहरों की मरम्मत के नाम पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन पानी शुद्ध व स्वच्छ मिले इसके लिए गंभीरता से प्रयास नहीं हो रहे हैं। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में कैंसर रोगियों के बढ़ते आंकड़ों के बावजूद सरकार जाग नहीं रही है। जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं खोजा गया तो प्रदेश के दस जिलों के करीब तीन करोड़ लोगों की नस्ल विकृत हो सकती है। इसलिए स्वास्थ्य से सरेआम हो रहा यह खिलवाड़ अब स्थायी समाधान चाहता है। वरना परिणाम भयावह हो सकते हैं।
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 राजस्थान पत्रिका के जयपुर संस्करण में 23 मई 18 के अंक में प्रकाशित

Tuesday, May 22, 2018

सोशल मीडिया पर था सक्रिय, फेसबुक पर हैं कई अकाउंट

जॉर्डन क्लब मोहरसिंह चौक के नाम से है एक पेज
श्रीगंगानगर। मंगलवार सुबह जिम में मारा गया हिस्ट्रीशीटर जॉर्डन सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय था। आलम यह है कि जॉर्डन चौधरी के नाम से फेसबुक पर कोई आधा दर्जन अकाउंट हैं। फिर भी तीन अकाउंट में जॉर्डन की फोटो लगी है, इससे जाहिर है यह पेज उसी के हैं। इसके लिए जॉर्डन क्लब मोहर सिहं चौक के नाम से भी फेसबुक पर एक पेज बनाया गया है।
जॉर्डन के फेसबुक अकाउंट व फेसबुक पेज पर फालोअर व मित्रों की संख्या भी अच्छी खासी है। उसके एक अकाउंट में मित्रों की संख्या चार हजार से ऊपर हैं तथा फालोवर 28 सौ के करीब हैं। उसके दूसरे अकाउंट में मित्र 713 हैं। तीसरे अकाउंट में उसके मित्रों की संख्या दिखाई नहीं देती है लेकिन इस अकाउंट के साढ़े छह हजार से ज्यादा फालोअर हैं। इसी तरह से जॉर्डन क्लब मोहरसिंह चौक नामक पेज को छह हजार से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं तथा इतने ही लोगों ने लाइक किया हुआ है। इस पेज पर शहर की राजनीति व शहर के नेताओं को लेकर चर्चा की हुई है। मसलन, शहर का संभावित व बेहतरीन उम्मीदवार कौन हो सकता है। इसके लिए बाकायदा नाम देकर सर्वे टाइप भी किया हुआ है।
वो सब देख रहा है
जॉर्डन के एक फेसबुक अकाउंट का कवर फोटो पर शिव जी की फोटो लगी है। इस पर लिखा है वो सब देख रहा है। इसी फोटो के साथ जॉर्डन का कमेंट भी लगा है जिसमें उसने कहा है 'हे महाकाल तुझे पता है, मैं सही हूं, बस सिर पर हाथ रखना, यह दुनिया का टेम और वहम मैं आपे काढ देऊं।' हालांकि यह पोस्ट पिछले साल की है। हिन्दी भी ठीक से नहीं लिखी हुई है।
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www.patrika.com  पर 22 मई 18 को प्रकाशित........................https://goo.gl/ijDbjF

स्टाइलिस्ट अंदाज में रहता था हिस्ट्रीशीटर जॉर्डन

उल्टी टोपी एवं पठानी कुर्ता पायजामा थे पसंदीदा
श्रीगंगानगर। जिम में मारा गया हिस्ट्रीशीटर विनोद चौधरी उर्फ जॉर्डन को स्टाइलिस्ट अंदाज में रहना पसंद था। विशेषकर उल्टी टोपी उसकी पहचान थी। उसकी फेसबुक प्रोफाइल से जाहिर होता है कि जॉर्डन को हुलिया बदलना भी अच्छा लगता था। कभी उसने दाढ़ी रखी तो कभी क्लीन शेव हुआ। कभी सिर पर बाल रखे तो कभी साफ करवा लिए। इतना ही नहीं जॉर्डन सुंदर दिखना चाहता था तथा खुद को फ रखने रखने के लिए जिम जाकर कसरत करना उसका आदत में शुमार था। जॉर्डन विशेषकर स्पोट्र्स जूते तथा टोपी लगाना भी पसंद करता था। इसके टोपी लगाने का अंदाज भी कुछ अलग ही था। अधिकतर बार वह टोपी उल्टी ही लगाता था। इसके अलावा टोपी वाली टीर्शट पहनना भी उसे पसंद था। जॉर्डन को कपड़ों में कुर्ता पायजामा को ज्यादा तरजीह देता था। विशेषकर पठानी शूट से अच्छा खासा लगाव था। जॉर्डन का फ्रेंड सर्किल भी काफी बड़ा था। विशेषकर छात्रसंघ चुनाव में वह बढ ़चढ़कर हिस्सा लेता तथा अपने पक्ष के उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार भी करता है। जॉर्डन के फेसबुक पेज पर उसकी व्यक्तिगत फोटो के बजाय ग्रुप फोटो ज्यादा हैं, इससे जाहिर होता है कि उसका युवाओं से अच्छा सपंर्क था।
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www.patrika.com  पर 22 मई 18 को प्रकाशित....https://goo.gl/6sYkEK

दो साल पहले भी जिम में इसी तरह हुआ था मर्डर

तब भी गोली मारकर की थी युवक की हत्या
श्रीगंगानगर। जिम एक एेसी जगह है, जहां लोग खुद को तरोताजा एवं फिट रखने के लिए जाते हैं, लेकिन श्रीगंगानगर की जिमों में झगड़े आदि की खबरें भी आने लगी हैं। इतना ही नहीं शहर की दो जिम तो खून से लाल तक हो गईं। जिम में सरेआम गोली मारकर हत्या करने की यह दूसरी वारदात है। दो साल पहले कमोबेश इसी तरह एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। तब पांच हमलावरों ने वारदात को अंजाम दिया था जबकि मंगलवार की घटना में तीन हमलावर होने की जानकारी सामने आई है। दोनों मामलों में समानता यह है कि दोनों मृतक श्रीगंगानगर की पुरानी आबादी के वाशिंदे थे। तब हत्या की वजह पुरानी रंजिश सामने आई थी। यहां भी प्रथम दृष्टया रंजिश का मामला ही सामने आया है। पहला मर्डर हुआ वह जिम पुरानी आबादी में थी जबकि ताजा मर्डर वाली जिम इंदिरा वाटिका के पास है। मतलब शहर के पुराने व नए दोनों ही इलाकों की जिम में गोलियां चली हैं। तब भी कसरत करते हुए युवक को गोली मारी गई थी और मंगलवार को भी कुछ एेसा ही हुआ।
दो साल पहले 17 अगस्त 2016 को सुबह पुरानी आबादी में टावर रोड स्थित जिम में कसरत रहे युवक बिट्टू शर्मा की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। यहां पर हमलावरों की संख्या पांच थी, वारदात को अंजाम देने के बाद हमलावर दो बाइक पर सवार होकर फरार हो गए थे। बिट्टू की मां की रिपोर्ट पर नामजद मामला दर्ज हुआ था। मंगलवार को इंदिरा वाटिका के पास स्थित जिम की घटना सुबह साढ़े छह बजे के करीब है। यहां भी तीन युवक थे जो वारदात को अंजाम देकर फरार हो गए। युवक किस साधन से आए तथा गए, इसकी अभी जानकारी नहीं मिल पाई है।
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 www.patrika.com  पर 22 मई 18 को प्रकाशित  ....https://goo.gl/thFZCy

तीन हमलावर के हाथ में थे पांच पिस्तौल

मात्र एक मिनट में दिया वारदात को अंजाम
श्रीगंगानगर। शहर की इंदिरा वाटिका के पास स्थित जिम में हिस्ट्रीशीटर जॉर्डन की हत्या करने वाले तीन हमलावर थे। तीनों के पास पांच पिस्तौल थे। हत्या की वारदात को मात्र एक मिनट से भी कम समय में अंजाम दिया गया। सीसीटीवी कैमरे की जो फुटेज जारी हुए इसमें यह सब कैद हैं। फुटेज के अनुसार तीन युवक जिम के काउंटर पर आते हैं। इनमें से एक युवक जिम का दरवाजा खोलने का प्रयास करता है। अंगूठे से इंट्री का सिस्टम होने के कारण वह जिम में प्रवेश नहीं कर पाता है। तभी तीनों हमलावरों की नजर बगल में सोए एक युवक पर पड़ती है। वे उस युवक को खड़ा करते हैं और जिम का दरवाजा खुलवाते हैं। इसके बाद दो युवक जिनके दोनों हाथों में पिस्तौल दिखाई दे रही है जिम के अंदर प्रवेश करते हैं। एक हमलावर जिम के काउंटर पर जिम वाले युवक के सामने पिस्तौल तानकर खड़ा रहता है। अचानक ही हमलावर जिम वाले युवक के हाथ से मोबाइल लेता है और उसे जमीन पर पटकर तोड़ देता है। इसी बीच सीसी कैमरे की स्क्रीन काली होती है। संभवत: हमलावरों ने गोली सीसीटीवी कैमरे पर भी मारी। इसके बाद बाहर वाला युवक भी अंदर जाता है। इसके बाद तीनों बाहर आ जाते हैं। यह घटनाक्रम एक मिनट से भी कम समय का है।
तीनों हमलावर जीन्स में
पहनावे से तीनों हमलावर संभ्रांत परिवार से नजर आते हैं। तीनों हमलावर जीन्स पहले हुए हैं। जूते भी ब्रांडेड नजर आते हैं। दो युवक टी शर्ट में है जबकि एक शर्ट में है। एक युवक ने टोपी पहन रखी है। तीनों ही युवक कद काठी में मजबूत नजर आते हैं।

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www.patrika.com  पर 22 मई 18 को प्रकाशित ...https://goo.gl/bctk9v

स्वास्थ्य से खिलवाड़ कब तक?

टिप्पणी
पड़ोसी प्रदेश पंजाब की व्यास नदी में शुगर मिल का लाखों टन शीरा तथा अन्य अपशिष्ट मिलने के कारण राजस्थान आने वाली तीनों नहरों इंदिरा गांधी नहर, गंगनहर एवं भाखड़ा नहर का पानी प्रदूषित हो गया है। प्रदूषित पानी के कारण नहरों में बड़ी संख्या में मछलियां व जलीय जीव काल का ग्रास बन गए। इस पानी का रंग काला व बदबूदार है। पंजाब में हरिके बैराज से दो बड़ी नहरें फिरोजपुर फीडर और राजस्थान फीडर निकलती हैं। फिरोजपुर फीडर से गंगनहर को पानी की आपूर्ति होती है जबकि राजस्थान फीडर का पानी इंदिरागाधी नहर और भाखड़ा नहर को मिलता है गंगनहर व भाखड़ा नहर का पानी श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ तक सीमित है जबकि इंदिरा गांधी नहर के पानी का उपयोग प्रदेश के दस जिलों में होता है। इस प्रदूषित पानी के सेवन से महामारी फैलने की आशंका है, लिहाजा जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की सभी जलदाय योजनाओं की डिग्गियों में पानी की आपूर्ति रोक दी है। पानी में प्रदूषण का स्तर जांचने के लिए दोनों जिलों में नमूने भी लिए गए हैं। इनकी जांच रिपोर्ट आने के बाद ही डिग्गियों में पानी आपूर्ति का निर्णय लिया जाएगा। प्रदूषित पानी की खपत में कम से कम दस दिन लगेंगे। इंदिरा गाधी नहर में अभी 35 दिन की बंदी के बाद पानी छोड़ा गया है जबकि गंगनहर व भाखड़ा नहर की पेजयल डिग्गियां भी सूखने की कगार पर हैं। ऐसी स्थिति में अगर दस दिन तक नहरों में प्रदूषित पानी आया तो प्रदेश के दस जिलों में पेयजल का गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
वैसे भी नहरों में प्रदूषित पानी आने का यह कोई पहला मामला नहीं हैं। राजस्थान आने वाली सभी नहरों में पंजाब से कभी सीवरेज का पानी का छोड़ दिया जाता है तो कभी फेक्ट्रियों का अपशिष्ट बहा दिया जाता है। बड़ी बात है कि ऐसा करने वालों पर आज तक किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हुई। कई जांच रिपोर्टों में यह साबित भी हो चुका है कि पानी घरेलू उपयोग के लिए भी खतरनाक है। वैसे भी वर्तमान में पानी का सेंपल लेने का जो तरीका है उससे पूरी तरह से पता नहीं चल पाता है कि स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक अवयव कौन कौन से हैं। श्रीगंगानगर में पेयजल की जांच के लिए विशेष प्रयोगशाला की मांग लंबे समय की जा रही है। विडम्बना देखिए नहरों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन पानी शुद्ध व स्वच्छ मिले इसके लिए गंभीरता से प्रयास नहीं हो रहे हैं। बड़ा सवाल तो यह भी है कि श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में कैंसर रोगियों के बढ़ते आंकड़ों को देखकर भी सरकार जाग नहीं रही है। अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं खोजा गया तो प्रदेश के दस जिलों के करीब तीन करोड़ लोगों की नस्ल विकृत होने का खतरा भी सिर पर मंडरा रहा है। स्वास्थ्य से सरेआम हो रहा यह खिलवाड़ अब स्थायी समाधान चाहता है। सहन करने की भी आखिर कोई सीमा होती है।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 22 मई 18 अंक में प्रकाशित 

लंपट या लंपटगिरी का अर्थ

बस यूं ही
झुंझुनूं से संचालित होने वाले बगड़ के एक प्रतिष्ठित स्कूल के संस्था प्रधान ने कल मेरी एक पोस्ट पर कमेंट किया था। उनके कमेंट में एक जगह लंपटगिरी शब्द का प्रयोग आया था, जो उन्होंने मेरे लिए प्रयुक्त किया। हालांकि उनके कमेंट पर आपत्ति जताते हुए मैंने जवाब दे दिया। साथ में उन गुरुजी से लंपट या लंपटगिरी का अर्थ भी पूछ लिया। हालांकि अर्थ मुझे तब भी मालूम था और अब भी है। मैं इंतजार कर रहा था कि शायद गुरुजी जवाब देंगे या अपना कमेंट हटा लेंगे, लेकिन दोनों ही बातें नहीं हुई। न तो कमेंट हटा, न संशोधित हुआ और न ही लंपट या लंपटगिरी का अर्थ बताया गया। इसके पीछे भी दो कारण हो सकते हैं या तो गुरुजी बताना नहीं चाह रहे हों। न बताने की भी कई वजह हो सकती हैं। और दूसरा यह है कि गुरुजी को इसका अर्थ ही न मालूम हो। खैर, मैं कैसा हूं.. मेरा चरित्र कैसा है.. मेरा स्वभाव कैसा है... मेरी आदतें कैसी हैं.. मेरा व्यवहार कैसा है। मुझे यह बताने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जो मुझे जानते हैं उनको पता है और जो नहीं जानते उनको बताने का कोई फायदा नहीं है। बगड़ वाले गुरुजी से भी परिचय चंद मुलाकातों का हैं, लिहाजा उनको बताने का कोई फायदा नहीं है।
हां लंपट/ लंपटगिरी का अर्थ आप सब से जरूर साझा कर रहा हूं ताकि आप जान सकें कि एक प्रतिष्ठित संस्थान से जुड़े शख्स के विचार कैसे हैं। इस शब्द के अर्थ क्या-क्या हैं आप भी जानें। लंपट का मतलब होता है कामुक, निरर्थक समय बर्बाद करने वाला, नैतिक सत्य से भटकने वाला, ठरकी, बांका, अनियंत्रित, चंचल, विलासी रूप से लिप्त, शोहदा, छिछोरा, अनुशासनहीन, अनियंत्रित आदि आदि।
इसी तरह आजकल गिरी शब्द भी प्रचलन खूब है। जैसे दादा से दादागिरी, गांधी से गांधीगिरी टाइप। इस तरह से लंपट को भी लंपटगिरी बना दिया गया है। इस शब्द का अर्थ तलाशन केे मैंने बहुत प्रयास किए तब जाकर एक जगह नया जमाना नामक ब्लॉग मिला। इस ब्लॉग के लेखक कोलकात्ता विवि में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर हैं। उन्होंने फेसबुक पर लंपटगिरी की व्याख्या की है। थोड़े से संशोधन के साथ साझा कर रहा हूं।
कुंठा और छद्म में जीनेवाला व्यक्ति बेहद कमजोर और आत्मपीड़क होता है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो फेसबुक लंपट आत्मपीड़ा से भी गुजरते हैं। ऐसे आत्मपीडकों के लिए इंटरनेट विष की तरह है। फेसबुक लंपट की विशेषता है कि वह छद्म में जीता है, छद्मभाषा लिखता है, पहचान छिपाता है। फेसबुक पर लंपटगिरी करने वाले लोग वस्तुत: बीमार मन के कुण्ठित लोग हैं। स्त्री के साथ अपमान या हेय या उसे कम करके देखने वाली भाषा वस्तुत:कुण्ठा की उपज है। इन लोगों को किसी मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए। फेसबुक लंपटों में एक लक्षण यह भी देखा गया है कि जो लड़की मित्रता के प्रस्ताव का जबाव नहीं देती तो उसके मैसेज बॉक्स को अश्लील तस्वीरों, गालियों और सेक्सुअल भाषा से भर देते हैं।
फेसबुक लंपट बेहद डरपोक होता है। वह गलती करता है और फिर दुम दबाकर भागता है।
बहरहाल, मैंने हमेशा अपने गुरुजनों का सम्मान किया है। आज भी मेरे मन में जीवन में मिले तमाम गुरुजनों के प्रति अगाध श्रद्धा व सम्मान है। इसके बावजूद एक शिक्षक के मेरे प्रति एेसे विचार हो सकते हैं, मैं यह सोच सोच कर हैरान हूं। एक शिक्षक को भविष्य का निर्माता कहा जाता है। मेरे प्रति सार्वजनिक रूप से इस तरह की सोच प्रदर्शित करने वाले तथा लंपटगिरी से नवाजने वाले शिक्षक भावी पीढ़ी को किस तरह की शिक्षा दे रहे हैं यह चिंतन व मनन करने का विषय है। सोचिएगा जरूर ।
नोट - मेरा उद्देश्य शिक्षक व संस्था को बदनाम करना नहीं बल्कि उस शिक्षक को एहसास करवाना है ताकि वह भविष्य में किसी के प्रति इस तरह के अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करने से पहले दो बार सोचे जरूर।

हार के बहाने

बस यूं ही
जैसा कि मैंने कहा था कि शाम होते-होते सन्नाटा टूटेगा। पस्त पार्टी की आईटी विंग हार को सम्मानजनक व खूबसूरत मोड़ देने के लिए कोई न कोई जुमले जरूर लाएगी। शाम होते-होते एेसा हो भी गया। पोस्ट आई कि 'यह कनार्टक का दुर्भाग्य है। फस्र्ट डिवीजन विपक्ष में बैठेगा जबकि थर्ड डिवीजन सरकार चलाएगा। इसके नीचे लिखा है , कांग्रेस को अब लोकतंत्र खतरे में नजर नहीं आएगा।' खैर यह तो बानगी भर है। अभी तो हार के गम को कम करने को कई जुमले ईजाद होंगे। कई उदाहरण दिए जाएंगे तो कई तुलनाएं भी होने लगेंगी। कुछ अति उत्साही भक्तों ने तो येदियुरप्पा की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से करने में भी गुरेज नहीं किया। फ्लोर टेस्ट में संभावित हार देखते हुए येदि को वाजपेयी की तरह प्रचारित करना भी संभवत: पहले से तय हो चुका था। तभी तो वैसा ही भावुकता भरा भाषण और सहानुभूति की लहर पर सवार.होकर त्यागपत्र। प्रयास पूरा था कि दो दिन की नौटंकी की इतिश्री पर भरपूर सहानुभूति बटोरी जाए। हालांकि येद्दि व वाजपेयी में तुलना या समानता केवल इस की बात की जरूर हो सकती है कि दोनों भाजपा के हैं, बाकी किसी भी स्तर पर येदि, वाजपेयी के समकक्ष नहीं हैं। कद, पद, योग्यता, व्यक्तित्व, खासियत के मामले में येद्दि ही क्या वर्तमान दौर के किसी भी नेता में अटल जी का अक्स नजर नहीं आता। अटल जी के साथ तुलना करना एक तरह से हार के गम को कम करने का नायाब तरीका ही है।
खैर, कर्नाटक के सियासी ड्रामे पर समूचे देश की नजर लगी थी। उत्सुकता इस बात की थी कि इस राजनीतिक नौटंकी का समापन कैसे होगा। भक्तों को इस बात का अंदेशा कतई नहीं था कि येद्दि की विदाई इस अंदाज में होगी। वैसे राज्यपाल के भाजपा को मौका देने के फैसले को लेकर कांग्रेस ने आपत्ति भी जताई। इतना ही नहीं कांग्रेस ने कर्नाटक फार्मूले की तर्ज पर बिहार, गोवा, मणिपुर व मेघालय में सरकार बनाने का मौका भी मांगा। कांग्रेस का एेसा करना गलत भी नहीं था, क्योंकि बिहार को छोड़कर तीन राज्यों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन भाजपा ने दूसरे दलों से गठबंधन कर कांग्रेस को सत्ता से पदच्युत कर दिया। तीन चार बार भाजपा की रणनीति से पिटी कांग्रेस ने भी इस बार भाजपा को भाजपा के ही अंदाज में जवाब दिया। उसने जेडीएस को आगे कर दिया। लेकिन इस बार राज्यपाल ने पूर्व के फैसलों से इतर सबसे बड़े दल को न्यौतने की परंपरा निभाते हुए भाजपा को मौका दे दिया। यही विरोधाभास कांग्रेस को अखरा और वह कोर्ट चली गई। देर रात कोर्ट बैठा। साढ़े तीन घंटे तक सुनवाई हुई लेकिन फैसला मिला जुला आया। कांग्रेस दरअसल शपथ ग्रहण को ही रुकवाना चाह रही थी लेकिन कोर्ट ने शपथ ग्रहण समारेाह पर रोक नहीं लगाई। इतना ही नहीं बहुमत का फैसला जब कोर्ट ने विधानसभा में करने को कहा तो इसे प्रचारित किया गया कि कोर्ट में मुंह की खाने वाले विधानसभा में भी मात खाएंगे, लेकिन एेसा हुआ नहीं। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया मौटे तौर.पर वही भाजपा सरकार की विदाई का कारण बना। यह सही है कि कोर्ट के फैसले ने पहले भाजपा को खुशी दी जब उसने राज्यपाल के शपथ ग्रहण के निर्णय को यथावत रखा। दूसरा निर्णय जरूर खिलाफ जाता दिखाई दिया। कोर्ट ने दो दिन में फ्लोर टेस्ट करने तथा इसका प्रसारण लाइव करने को कहा जबकि राज्यपाल ने बहुमत सिद्ध करने के लिए पन्द्रह दिन का समय दिया था। प्रसारण लाइव तथा बहुमत का समय कम होने के कारण भाजपा खेमे में हलचल जरूर दिखाई दी। फिर भी जोड़तोड़ व खरीद फरोख्त की चर्चाओं के चलते इस बात की उत्सुकता जरूर थी कि आखिर कर्नाटक में होगा क्या?
कांग्रेस के दो विधायक शुरूआती सत्र में अनुपस्थित रहे तो लगा भी कि शायद जोड़तोड़ का गणित कारगर बैठ जाए लेकिन जब खबरें आने लगी कि वाजपेयी की तर्ज पर कुछ होगा तो यह लगने लगा था कि भाजपा अब बैकफुट पर है। हुआ भी वही येदि ने अपना भाषण पढऩे के बाद फ्लोर टेस्ट होने से पहले ही इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। उनको संभावित हार का एहसास हो चुका था। जैसे ही समीकरण बदले कांग्रेसी खेमी में खुशी की लहर दौड़ गई। गोवा, मणिपुर, मेघालय में ज्यादा सीटें हासिल करने के बाद सरकार न बना पाने के कारण कांग्रेस में जो निराशा का माहौल था, उसको भी इस फैसले ने निसंदेह कम किया है। गठजोड़ की सरकार कैसे चलेगी, यह अभी देखना बाकी है। चर्चा इस बात की है कि जिस तरह से जेडीएस व कांग्रेस ने दो दिन के लिए विधायकों की मजबूत किलेबंदी की वैसी कब तक रखेंगे। मतलब साफ जाहिर है कि बाजार खुला है। भाव लगने व बिकने के विकल्प बरकरार है। गठबंधन अगर मजबूती के साथ डटा रहा तो बात अलग है वरना खरीद फरोख्त की आशंकाएं व चर्चाएं थोड़ी बहुत भी सही साबित हुई तो गठबंधन सरकार का कार्यकाल पूरा करना मुश्किल होगा। मतलब तय है कर्नाटक में सियासी कमशकश खत्म नहीं होने वाली...। चुनौती दोनों तरफ है। देखना है शह व मात के इस खेल में बाजी किसके हाथ लगेगी। हार से तमतमाई भाजपा चुप नहीं बैठने वाली...वह पलटवार जरूर करेगी इतना तय है।

इक बंजारा गाए-31

मेरे साप्ताहिक कॉलम  की अगली कड़ी....।
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जनसंपर्क का मौका
नेता हो या नेता बनने की हसरत देखने वाला हो। दोनों में एक बात की समानता विशेष रूप से देखने को मिल जाती है। भीड़ देखते ही यह लोग हाल चाल पूछने और मेल मिलाप करने जरूर लग जाते हैं। मौका चाहे खुशी का हो या गम का इससे इनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। कोई कैसा भी सोचे, यह लोग तो अपना जनसंपर्क अभियान जारी रखते हैं। अब नगर परिषद सभापति की माताजी के निधन की ही बात करें। अंतिम संस्कार पर मुक्ति धाम ठसाठस भरा था। इतनी भीड़ अमूनन अंतिम संस्कारों में जुटती नहीं है। इतने भीड़ देखकर छुटभैयों को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई। इधर, लोग सभापति व उनके परिजनों को सांत्वना दे रहे थे, वहीं यह छुटभैये नेता मुक्तिधाम में घूम-घूमकर लोगों से मिल रहे थे। हंस-हंस के बतिया रहे थे। यहां तक कि गर्मजोशी से हाथ भी मिला रहे थे। इतने सारे लोग एक जगह कभी मिल नहीं सकते, इसलिए मौके का फायदा उठाने से छुटभैये चूके नहीं। खैर, फायदा कितना मिला या मिलेगा यह तो समय बताएगा।
चुनावी मौसम
चुनावी मौसम का अपना ही आनंद है। यह मौसम आते ही न जाने कितने ही नेता चुनाव लडऩे का सपना पाल बैठते हैं। हार-जीत अलग विषय है। टिकट मिलना न मिलना भी कोई मायने नहीं रखता। हां यह बात दीगर है कि चुनाव आते-आते सपना देखने वालों की संख्या कम हो जाती है। श्रीगंगानगर में एक पार्टी के नेताजी ने तो बकायदा चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया है। परिणाम चाहे कुछ भी कैसा भी हो, टिकट मिले न मिले लेकिन उन्होंने कह दिया है चुनाव लड़ेंगे। खैर, इसी तरह पार्षद का चुनाव न जीतने वाले शख्स भी विधानसभा चुनाव के नाम पर जीभ लपलपा रहे हैं। हैरत की बात तो है कि यह शख्स हर किसी से पूछते फिर रहे हैं कि उनको लेकर मतदाताओं की क्या राय है? यह बात सुनकर सलाह देने वाले अपना माथा पीटने के अलावा करें भी तो क्या। लोग इस छुटभैये को कैसे बताएं कि मतदाताओं की राय क्या है। वैसे कोई राय हो तब तो बने भी। जानने वाले जानते हैं यह छुटभैया समय-समय पर शहर में अपने होर्डिंग्स टांग कर खुद को विधानसभा का दावेदार बताता रहता है।
घेराव की कहानी
श्रीगंगानगर में मेडिकल कॉलेज खुलने का सपना फिलहाल तो सपना ही बना हुआ है। हां इस सपने को साकार करने के लिए प्रयास कई बार हुए हैं। अब भी हो रहे हैं लेकिन सपना अभी सच हुआ नहीं है। इधर, इस सपने को सच करने के लिए कई तरह के आंदोलन भी हुए हैं। पिछले दिनों इसी विषय को लेकर विधायक का घेराव करने तक घोषणा की कर दी गई। सोशल मीडिया पर पोस्टें वायरल की गई। समाचार पत्रों तक में भी प्रेस नोट भिजवाए गए। इतना होने के बावजूद घेराव स्थगित हो गया। दानदाता ने घेराव करने वालों से चर्चा की और उनको वस्तुस्थिति से अवगत कराया। अब जो बातें सामने आई उनमें ऐसी कोई नई नहीं थी। अब लोगों के समझ में यह नहीं आ रहा कि यह घेराव की रणनीति बनी ही क्यों थी। और बनी भी थी तो ऐसा क्या मिल गया तो टाल दी गई। वैसे यह सवाल कइयों के जेहन में घूम रहा है और जवाब न मिलने के कारण परेशान कर रहा है सो अलग। वैसे घेराव की घोषणा व स्थगित होने की कहानी शायद ही सामने आए।
दावे हैं दावों का क्या
कसमें, वादे, प्यार वफा सब बातें हैं बातों का क्या.. यह चर्चित फिल्मी गाना तो कमोबेश हर किसी ने सुना ही होगा। श्रीगंगानगर पुलिस के संदर्भ हो याद रखते हुए अगर गीत के बोल में बातों की जगह दावा जोड़ दिया तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। विशेषकर सरकारी विभागों की तरफ से किसी बात को लेकर दावे तो खूब होते हैं लेकिन कुछ समय बाद दावों की हवा निकल जाती है। लोक परिवहन बसों से जुड़े दावे का हश्र भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक हादसे के बाद पुलिस ने आनन-फानन में लोक परिवहन बसों के खिलाफ खूब कार्रवाई की। और साथ में यह दावा भी किया कि इन बसों की लगातार चैकिंग की जाएगी। खैर, जैसे-जैसे हादसे की खबर शांत हुई पुलिस का चैकिंग का अभियान भी सुस्ती पकड़ गया। कई बसें फिर से परंपरागत तरीके से संचालित होने लगी है। शायद फिर कोई हादसा ही खाकी की इस सुस्ती को तोड़ेगा। वैसे भी सुस्ती हादसे के बाद ही टूटती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 17 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

कलक्टर साहब! यह सड़क ठीक करवाओ

श्रीमान, जिला कलक्टर
श्रीगंगानगर।
इन दिनों आप शिव चौक होते हुए जिला अस्पताल गए हैं तो यकीनन आपको हालात की जानकारी होगी। अगर नहीं गए हैं तो आप एक बार इस सड़क से जरूर गुजरें। पखवाड़े भर से ज्यादा समय से इस सड़क पर इंटरलॉकिंग का काम बंद पड़ा है। एक तरफ तो सड़क के किनारे कहीं पर खोद कर तो कहीं पर कंकरीट डाल कर छोड़ दिया गया है, जबकि दूसरी तरफ इंटरलॉकिंग का काम भी आधा अधूरा ही हुआ है। यूआईटी ने पता नहीं क्या सोच कर इस बीच के टुकड़े की इंटरलॉकिंग करवाने का तय किया? जबकि इस जगह पर जबरदस्त अतिक्रमण हैं। वैसे तो अतिक्रमण की मार से समूचा श्रीगंगानगर शहर ही प्रभावित है, लेकिन इस मार्ग पर तो रेत व बजरी का कारोबार खुलेआम सड़क पर होता है। रेत व बजरी से भरे ट्रकों के कारण इस मार्ग पर रोज जाम लगता है। वैसे भी यह अति व्यस्त मार्ग है जो श्रीगंगानगर को सूरतगढ़ और बीकानेर से जोड़ता है। हिसाब से तो यूआईटी को इस मार्ग से अतिक्रमण हटाने तथा तमाम औपचारिकताएं पूरी करने के बाद ही यह काम शुरू करवाना था, लेकिन पता नहीं न्यास का क्या मकसद रहा कि आनन-फानन में यह काम शुरू करवा दिया गया। इस जल्दबाजी का अंजाम यह हुआ कि वन विभाग की आपत्ति के बाद यह काम रुक गया। अब यूआईटी के अधिकारी बीकानेर व जयपुर के बीच एनओसी लेने के लिए चक्कर लगा रहे हैं। नियमानुसार इंटरलॉकिंग करवाने का काम यूआईटी का है ही नहीं। फिर भी उसने करवाना तय किया तो पूरी तैयारी करनी चाहिए थी। खैर, यूआईटी की इस नासमझी का खमियाजा आमजन व वाहन चालकों को भुगतना पड़ रहा है।
इतना ही नहीं इंटरलॉकिंग और सड़क के बीच जो डिवाइडर बनाया जा रहा है, जानकारों के अनुसार वह किसी का काम नहीं है। इससे सड़क और संकरी हो गई है तथा इंटरलॉकिंग की जगह अतिक्रमण फिर पसरने लगा है। यह डिवाइडर अतिक्रमण करने वालों के लिए एक तरह से सुरक्षा दीवार बन गया है। इसने सड़क व अतिक्रमण प्रभावित क्षेत्र को दो भागों में बांटने का काम किया है। इस डिवाइडर के कारण सड़क सिकुड़ गई है, जिससे राहत की बजाय यह काम और ज्यादा बिगड़ गया है। यदि डिवाइडर नहीं बनाया जाता तो सड़क और इंटरलोकिंग टाइल्स का मिलान हो जाता, जिससे सड़क की चौड़ाई बढ़ जाती और वाहन चालकों को सुविधा होती। अभी पिछले दिनों आई मामूली बरसात से डिवाइडर की वजह से सड़क पर पानी भी भरा। वैसे देखा जाए तो इस मार्ग पर इंटरलॉकिंग के काम व डिवाइडर की जरूरत ही नहंी थी। इस मार्ग पर अतिक्रमण हटाना सबसे जरूरी काम था, लेकिन यूआईटी ने इस मामले में आंखें क्यों मूंद रखी हैं, यह सवाल भी खड़ा हो रहा है। यह बिना जरूरत का काम करवाकर यूआईटी ने आमजन को तकलीफ में डाला है। एक तरह से यह राजकीय राशि का दुरुपयोग भी है।
आप इस मार्ग का न केवल निरीक्षण करें, बल्कि विशेषज्ञों से रिपोर्ट भी बनवाएं ताकि पता चले कि यह अनुपयोगी डिवाइडर भविष्य में कितना परेशानी भरा होगा? यह हादसों का वाहक बनेगा। बरसाती पानी की निकासी कैसे व कहां से होगी? लगता नहीं कि यूआईटी ने इन परेशानियों के बारे में सोचा भी होगा। जो विभाग निर्माण कार्य संबंधी औपचारिकता पूरी नहीं कर रहा है, लगता नहीं है कि उसने आगे की बात सोची होगी। आपसे आग्रह है कि इस सड़क को अतिक्रमण मुक्त कर बंद पड़े काम को शुरू करवाएं। रोजाना इस मार्ग से गुजरने वाले तथा व्यवस्था को कोसने वाले लोग यकीनन आपको दुआ देंगे। आप संजीदा शख्स हैं तथा समस्या का समाधान करवाने शिद्दत से करवाने की सोच रखते हैं। उम्मीद है इस मामले में भी आपका संजीदापन दिखाई देगा।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 14 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

Sunday, May 13, 2018

मनमर्जी की बधाई

टिप्पणी
पुलिस की बीकानेर रेंज की तीन दिवसीय प्रतियोगिता शुक्रवार को श्रीगंगानगर पुलिस लाइन संपन्न हुई। बीकानेर रेंज में चार जिले हनुमानगढ़, चूरू, बीकानेर व श्रीगंगानगर आते हैं। चारों जिलों के खिलाडिय़ों ने तीन दिन तक खूब दम दिखाया। तेज धूप में पसीना बहाया, लेकिन ऑवरआल चैम्पियन का खिताब मेजबान श्रीगंगानगर के नाम रहा। जीत तो जीत होती है और उसकी खुशी भी बड़ी होती है। इतनी बड़ी कि उसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं है, लेकिन इस खुशी का ढिंढोरा चौक चौराहों पर बड़े-बड़े होर्डिंग्स लगाकर पीटा जा रहा है। वैसे तो गाहे-बगाहे शहर को बदरंग में करने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता, लेकिन संभवत: यह पहला मामला है जब नेताओं व छुटभैयों की तर्ज पर पुलिस की जीत पर बधाई के होर्डिंग्स लगे हैं। सुखाडिय़ा सर्किल पर लगा बधाई का होर्डिंग तो नियमों को सरेआम ठेंगा दिखा रहा है। भारतीय सैनिकों की वीरता व बहादुरी की बदौलत जीता गया पाक टैंक इस होर्डिंग की आड़ में छिप गया है। खास बात देखिए इस होर्डिंग के संबंध में नगर परिषद से किसी प्रकार की अनुमति नहीं ली गई है। इधर पुलिस भी इस तरह के होर्डिंग्स लगाने से इनकार कर रही है। बधाई देने वालों में किसी का नाम नहीं है, होर्डिंग के नीचे केवल बधाई लिखकर नीचे 'श्रीगंगानगर पुलिस का सदस्य होने पर गौरवान्वित है' , लिखा हुआ है। अगर यह होर्डिंग पुलिस की जानकारी में लाए बिना ही लगा है तो पुलिस को पड़ताल कर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। इधर नगर परिषद को भी इस तरह बिना अनुमति के लगने वाले होर्डिंग्स पर कार्रवाई करनी चाहिए। होर्डिग्स लगने के पीछे कहीं न कहीं परिषद की भूमिका भी संदिग्ध है। इतने समय से बिना अनुमति के होर्डिंग्स लगते आ रहे हैं तो कार्रवाई क्यों न हो रही है?
बहरहाल, पुलिस को बधाई देने वाला यह होर्डिंग विशेष रूप से पुलिस के लिए जांच का विषय है। पुलिस दिवस जैसे बड़े कार्यक्रमों पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने संबंधी कोई होर्डिंग्स नहीं लगे तो खेल प्रतियोगिता में चैम्पियनशिप हासिल करने की बधाई चौराहों पर देने की जरूरत कहां रह जाती है? भले ही पुलिस होर्डिंग के लगाने से इनकार कर रही है, लेकिन कोई सरेआम चाटूकारिता का प्रदर्शन कर होर्डिंग्स लगा रहा है तो वह लोभ संवरण भी कैसे कर पाएगी? फिर भी पुलिस को इस मामले में कड़ा कदम उठाना चििाहए और न केवल यह होर्डिंग हटवाए बल्कि लगवाने वाले के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए। नगर परिषद को भी अब सुस्ती का आलम छोड़कर शहर को बदरंग करने वालों के खिलाफ सख्ती से पेश आना चाहिए। अगर इस काम में परिषद के लोग ही बाधक हैं या उनकी भूमिका संदिग्ध है तो उन पर भी अब लगाम कसने की जरूरत है।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 13 मई 18 के अंक में प्रकाशित

केवल दस सेकंड में मां से दूर हो गई माही

श्रीगंगानगर. मात्र दस सेकंड से भी कम का समय रहा होगा जब मासूम माही अपनी मां की गोद से छिटकी और फिर सदा के लिए दूर हो गई। शुक्रवार को सोशल मीडिया पर वायरल हुए मात्र एक मिनट चौबीस सेकंड की फुटेज में यह समूचा दर्दनाक घटनाक्रम कैद है। विदित रहे कि श्रीगंगानगर के चहल चौक स्थित सीजीआर मॉल में गुरुवार को स्वचालित सीढियों से एक मासूम बालिका अपनी मां की गोद से छिटक कर गंभीर रूप से घायल हो गई। बाद में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। श्रीगंगानगर में स्वचालित सीढियों से गिरकर मौत होने का यह अपने आप में पहला मामला है। सोशल मीडिया पर वायरल सीसी टीवी फुटेज देखने से जाहिर होता है कि महिला ने संभवत: पहली बार ही स्वाचालित सीढियों का प्रयोग किया। वह सीढियों की अभ्यस्त नहीं दिखाई दे रही। इस कारण यह हादसा हुआ। फुटेज में साफ तौर पर दिखाया दे रहा है कि रायसिंहनगर का यह दपंती मॉल में आता है। आते ही युवक राहुल अपने मोबाइल से सेल्फी लेता है। इसके बाद पति-पत्नी एक चक्कर लगाकर सीढियों की तरफ आते हैं। इस दौरान भी राहुल अपने बालों में हाथ फेरता दिखाई देता है। सीढियों पर आकर महिला कुछ ठिठकती है। वह डरती-डरती सीढियों की तरफ बढ़ती है। वह बच्ची को गोद में ठीक से लेती भी है। इसके बाद संभलते हुए वह सीढि़यों की तरफ कदम बढ़ाती है। जिस हाथ से उसने बच्ची को थाम रखा है, उसी हाथ की कुहनी वह स्वचालित सीढियों की रेलिंग पर रख देती है। चूंकि, रेलिंग सीढि़यों के साथ-साथ नहीं चलती। सीढियां आगे बढऩे और डर के मारे कोहनी जोर से टिकाए रहने के कारण उसका हाथ शरीर से दूर होता जाता है और बालिका उसके हाथ से छिटकर रेलिंग के नीचे गिर जाती है। यह हादसा दूसरे फ्लोर से तीसरे फ्लोर पर जाते वक्त होता है। मात्र दस सेकंड के इस घटनाक्रम के बाद समूचे मॉल में हड़कंप मच जाता है। दंपती बदहवाश होकर इधर-उधर दौड़ते दिखाई देता है। वहां मौजूद लोगों में भी अफरा-तफरा मच जाती है।
गमगीन माहौल में अत्येष्टि
सीढियों से गिरकर घायल हुई तथा बाद में इलाज के दौरान दम तोडऩे वाली मासूम माही का शुक्रवार को रायसिंहनगर में अंतिम संस्कार कर दिया गया। गुरुवार को उसकी मां बेसुध हो गई थी। विदित रहे रायसिंहनगर का राहुल अपनी पत्नी मीरा को दवा दिलाने शुक्रवार को श्रीगंगानगर आया था। साथ में मासूम माही भी थी। पत्नी को दवा दिलाने के बाद यह दंपती सीजीआर मॉल आ गया और यह हादसा हो गया। मासूम माही की उम्र को लेकर जरूर असमंजस रहा। श्रीगंगानगर पुलिस कंट्रोल रूम के अनुसार उसकी आयु दस माह है जबकि परिजनों ने उसकी आयु दो साल से तीन साल के बीच बताई।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 12 मई 18 के अंक में प्रकाशित

इक बंजारा गाए-30


विदाई पार्टी
तबादला होने पर विदाई देने की परम्परा पुरानी है। वैसे तो विदाई सहकर्मी ही देते आए हैं लेकिन समय के साथ अब वाहर वाले भी विदाई देने लगे हैं। विशेषकर खाकी वाले महकमे के प्रति बाहरी लोग ज्यादा सहानुभूति दिखाते हैं। इस सहानुभूति की वजह भी लोग अच्छी तरह से जानते हैं। अब यातायात वाले साहब की विदाई की चर्चे इन दिनों दबे स्वर में सुनाई दे रहे हैं। विदाई भी कोई सामान्य नहीं थी। शहर के एक सबसे बड़े मॉल में इस विदाई पार्टी का आयोजन किया गया। विदाई देने वाले भी वही लोग थे, जिनके पीछे पिछले दिनों खाकी हाथ धोकर पड़ी थी। बकायदा अभियान भी चलाया। अभियान की मार झेलने के बाद भी विदाई देने का राज हर किसी के समझ नहीं आ रहा। विशेषकर अब नए साहब क्या करेंगे। वो पुराने साहब के संबंधों को कायम रखेंगे या संबंधों से ऊपर जाकर कोई नजीर पेश करेंगे, यह तो खैर आने वाला वक्त ही बताएगा।
गजब की एकता
श्रीगंगानगर शहर के हालात से कोई अनजान नहीं हैं। कहीं सीवरेज लाइन की खुदाई के कारण लोग परेशान हैं तो कहीं अधूरे निर्माण ने दुविधा में डाल रखा है। कहीं सफाई व्यवस्था चौपट है तो कहीं यातायात व्यवस्था चरमराई हुई है। गंगनहर में दूषित पानी आने का मामला भी लगातार चर्चा में है लेकिन शहर के नेताओं और छुटभैयों को यह सब दिखाई नहीं देता। उनकी नजर थोक के वोट बैंक पर लगी रहती है। विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही इन नेताओं व छुटभैयों में सही-गलत में अंतर करना भी छोड़ दिया लगता है। हालात यह है कि कोई नाजायज मांग करता है तो शहर के नेता व छुटभैये उसके समर्थन में तत्काल खड़े हो जाते हैं। न्यायसंगत बात के लिए एकजुट होने की बात तो समझ आती है लेकिन गैरवाजिब बातों के लिए ताल इसलिए भी ठोकी जा रही है कि ताकि इस बहाने थोक में वोट बैंक बढ़ जाए। हालांकि इन नेताओं में टिकट किसको मिलेगी और किसकी कटेगी यह तय नहीं है। फिलहाल इनका काम हां में हां मिलाना ही है।
नाका प्रेम
देखा गया है कि खाकी को कोई जगह पसंद आ जाती है तो उस पर भले ही लाख सवाल उठे, पर वह उस जगह को नहीं छोड़ती, उस पर कायम रहती है। अब साधुवाली छावनी के रास्ते पर सैनिक अस्पताल के पास जांच अभियान तथा उससे थोड़ा आगे साधुवाली गांव में नाका लगाने के मामले चर्चा में आने के बावजूद यथावत हैं। सैनिक अस्पताल के पास वैसे भी यातायात व्यवस्था इतनी चरमराई हुई नहीं है फिर भी खाकी का इस जगह से खास लगाव संशय तो पैदा करता है। आखिर शहर से दूर इस मार्ग पर खाकी को इस तरह एकांत तलाशने की जरूरत ही क्या थी। वैसे दो चार रोज पूर्व साधुवाली नाके का एक वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। लेकिन खाकी के अधिकारियों ने मामले में दम न बताकर इसको खारिज कर दिया। खैर, यह तो सब जानते ही हैं कि बिना आग के कभी धुआं नहीं उठता। वैसे भी जब मामला गरम है तो अधिकारियों को इस बात की पड़ताल तो करवा ही लेनी चाहिए कि इस जगह से इतने लगाव की वजह आखिर है क्या?
जिन्न का जलवा
श्रीगंगानगर में मेडिकल कॉलेज का जिन्न विशेषकर चुनावी सीजन के आसपास ज्यादा प्रकट होता है। इस जिन्न का जलवा ऐसा है इसके आभा मंडल के इर्द गिर्द सब घूमने लगते हैं। चाहे कोई समर्थन में हो या फिर खिलाफ। अब विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही मेडिकल कॉलेज का मामला फिर चर्चा में हैं। वैसे मेडिकल कॉलेज के साथ-साथ चर्चा इस बात की भी हो रही है कि श्रीगंगानगर में रात को तो मेडिकल स्टोर नहीं खुलता। वैसे भी मेडिकल कॉलेज कब खुलेगा कब नहीं, इसका कोई अता पता नहीं है। हां, मेडिकल कॉलेज खुलवाने की मांग करवाने वाले पहले अगर एक मेडिकल स्टोर खुलवाने की व्यवस्था भी करवा दें तो यह भी जनता पर एक तरह का उपकार ही होगा। पता नहीं क्यों आंदोलन करने वालों को यह बात समझ नहीं आती। हो सकता है समझ आती भी हो लेकिन गरम लोहे पर चोट करने का अवसर भला कौन चूकना चाहेगा, इसलिए सब मेडिकल कॉलेज का राग ही अलाप रहे हैं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 10 मई 18 के अंक में प्रकाशित

मीडिया और तूफान राग

बस यूं ही 
करीब दो साल पहले मानसून और मीडिया राग पर कुछ लिखा था। इन दिनों तूफान राग चर्चा में हैं। हालांकि तूफान दो दिन से कुछ ठंडा पड़ा है लेकिन इसका राग इस बार इतना खतरनाक तरीके से गाया गया गोया तूफान ही पहली बार आया हो। बचपन में इस तरह की न जाने कितनी ही आंधियों से वास्ता से पड़ा है लेकिन इस बार आंधी का नाम तूफान हो गया। हालांकि गांवों में आंधी का स्वरूप थोड़ा बड़ा होता है तो उसे सूंटा कहते हैं। खैर, तूफान नाम बड़ा है और इसमें डर समाहित हो जाता है। और ये जो डर है ना यह आजकल बहुत बिकता है। डाक्टर बीमारी का डर, मरीज की तबीयत बिगडऩे का डर, प्रसूता की मौत का डर दिखाकर जेब ढीली करते हैं तो मीडिया डरा डरा कर टीआरपी बटोरता है। यह डर बिकता भी इसीलिए है क्योंकि डर को परिभाषित भी इसी तरह से किया जाता है कि अगला शर्तिया डरे ही। मौसम विभाग और उसकी भविष्यवाणियों का सटीक उदाहरण पिछली पोस्ट में दे चुका हूं। मौसम विभाग अपने सिर पर कोई इल्जाम नहीं लेना चाहता। मौसम दगा या न दे यह उसका सिरदर्द है। मौसम विभाग तो भविष्यवाणी करके गंगा नहाया हो जाता है। हां एक तूफान से जनहानि होने के बाद तो मौसम विभाग को हल्का सा बादल या हल्की सी हवा भी तूफान नजर आने लगे हैं। मौसम विभाग के इस डर को मीडिया ने जबरदस्त ने भुनाया। खतरनाक तरीके से। मौसम विभाग की भविष्यवाणी पर मीडिया की मुहर लगने के बाद प्रशासन की क्या मजाल, लिहाजा उसने भी व्यापक प्रबंध करने तथा कई जगह स्कूलों में अवकाश तक की घोषणा करने में गुरेज नहीं किया। अब आसमान में बादल थोड़े से ही गहराएं या हवा थोड़ी सी तेज हो, मौसम विभाग व मीडिया भविष्यवाणी सच साबित हुई यह मानकर अपनी पीठ थपथपाने में भी संकोच नहीं करते।
बहरहाल, आशंका व अनजाने भय से सहमे लोग रफ्ता-रफ्ता भविष्यवाणियों से उबर रहे हैं। दिलोदिमाग से डर कुछ निकला है तो अब जुमले और चुटकले भी याद आ रहे हैं। इस निगोडे़ तूफान पर न जाने कितने ही जुमले बन गए। वैसे भी देश में जुमले बनते आजकल जरा सी भी देर नहीं लगती। कुछ तूफानी जुमलों पर गौर फरमाएं।
1.अभी अभी तूफान पंजाब से हरियाणा की और बढ रहा है और हरियाणा पंजाब बार्डर पर हरियाणा वालों ने टोल टैक्स पर रोक रखा है। कह रहे हैं पर्ची कटेगी। नहीं तो लट्ठ बाजेंगे।
2. तूफान का इंतजार ना करें.. बीवी के साथ बाहर डिनर का प्रोग्राम बनाएं... बीवी के तैयार होने के बाद केंसिल कर दें... तूफान अपने आप आ जाएगा।
3. सासू फोन कर के दामाद नं पूछ्यो:- तूफान का के हाल चाल है?
दामाद- बस बढिय़ा है। कूलर चला की सूती है आराम ऊं , बात करवाऊं के!!!
4. यूपी व बिहार में लोग मन्दिरों में बैठे हैं कि तूफान न आवे लेकिन हरियाणा आले छात पे खड़े है कि क़द आवैगा।
5. इतनी बाट तो ब्याह मैं भातियाँ की कोनया होती, जितनी आज हरियाणा वालों नै 2 दिन की छुट्टी कराण आले तूफान की होरी सै।
इस तरह चुटकुलों की फेहरिस्त बेहद लंबी हैं। कहीं एक अंडरवियर पर बहुत सारी चिटकनी लगाकर तूफान से बचाव प्रचारित किया जा रहा है। खैर, तूफान भी मौसम का ही अंग है। तो इस कथित तूफानी मौसम में पोस्ट पढऩे के साथ धर्मेन्द्र के मौसम को बेईमान बताने वाले गाने का आनंद लीजिए। साथ में अमिताभ अभिनीत फिल्म तूफान का भी थोड़ा स्मरण कर लेवें।

Tuesday, May 8, 2018

तो क्या बगड़वासियों को जियो फ्री में मिलेगा?

बस यूं ही
मेरे स्कूली जीवन का शहर। मेरी किशोरावस्था से जवानी की दहलीज पर कदम रखने का शहर। गांव के बाद मेरी दूसरी पसंदीदा जगह। जीवन के आठ सुनहरे साल जहां बीते वो शहर। जी हां यह शहर है। बगड़। शिक्षा नगरी बगड़। झुंझुनूं जिला मुख्यालय से मात्र चौदह किमी की दूर पर आबाद बगड़ दो दिन से जबरदस्त चर्चा में हैं। यह चर्चा बगड़ में शिक्षा की अलख जगाने वाले सेठ पीरामल के पड़पौत्र आनंद पीरामल की है। आनंद की देश के सर्वाधिक धनवान मुकेश अंबानी की पुत्री ईशा अंबानी से शादी होने की खबरें आ रही हैं। यह शादी दिसंबर में प्रस्तावित हैं। बस इस खबर को लेकर बगड़वासी बेहद खुश हैं। पीरामल ट्रस्ट की ओर से संचालित संस्थाओं में तो बाकायदा मिठाई का वितरण भी हो गया है। बगड़ में आजादी से पहले सेठ पीरामल की आेर से प्राइमरी स्कूल के रूप में रोपा गया पौधा आज विशाल वट वृक्ष बना हुआ है। बड़े भाईसाहब केशरसिंह जी ने गोपीकृष्ण पीरामल शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय से बीएड की थी। बीच वाले भाईसाहब सत्यवीरसिंह जी ने भी पीरामल सीनियर सैकंडरी स्कूल से ही कक्षा नौ से बारहवीं तक की तालीम ली। मैंने भी 11वीं और बारहवीं की शिक्षा इसी स्कूल से प्राप्त की है। इतना ही नहीं बगड़ में जब कॉलेज में अध्ययनरत था तब कई कई बार पीरामल हवेली में भी ठहर चुका हूं। मौसाजी इस हवेली में बतौर केयर टेकर रह चुके हैं। इसके बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में आया तो पीरामल बालिका स्कूल में बतौर अतिथि भी शिरकत कर चुका। यह सब बताने का मकसद यह है सेठ पीरामल की दूरदर्शी सोच ने झुंझुनूं जिले को शिक्षा के मामले में अग्रणी करने में प्रमुख भूमिका निभाई। वह भी बिना किसी लाभ के। बीएल माहेश्वरी व रूंगटा भी कुछ एेसे ही नाम हैं। इन सेठों की बदौलत हम सब ने कम खर्च में संस्कार युक्त पढ़ाई की। आज के दौर में यह सब संभव नहीं लगता।
खैर, अब मूल विषय पर लौटता हूं। कल आनंद व ईशा की खबरें जैसे ही आई, सोशल मीडिया पर जुमले बनने लगे। लोग खुशियां मनाने लगे। एक दूसरे को बधाई देने लगे। सोशल मीडिया पर भी मेरे सर्वाधिक मित्र बगड़ से ही हैं, लिहाजा वहां की अपडेट खबर मिल ही जाती है। अब इस जुमले पर गौर फरमाएं ' अब यह अफवाह कौन फैला रहा है कि अंबानी बगड़वासियों को दहेज में जियो आजीवन फ्री देंगे।' बगड़ नगर पालिका के पूर्व चैयरमैन आदरणीय बड़े भाईसाहब राजेन्द्र जी शर्मा के फेसबुक वॉल पर लगी इस पोस्ट के नीचे रोचक कमेंट आने का दौर जारी है। एक खुशखबर ने वाकई बगड़वासियों को खुशी की वजह दे दी है। 33 वर्षीय आनंद की 27 वर्षीया ईशा से शादी के बाद बगड़ को क्या मिलेगा, क्या नहीं यह सब भविष्य की बातें हैं लेकिन खुशी तो खुशी है जनाब। आप भी हंस सकते हैं क्योंकि हंसी का कोई मोल नहीं होता। 

प्रताडऩा की पराकाष्ठा


टिप्पणी
यह हकीकत वाकई हैरान करने वाली है। मौके के हैरतअंगेज हालात तो रोंगटे तक खड़े कर देते हैं। यह बेरहमी की भयावह तस्वीर है। मासूमों की मजदूरी की यह तस्वीर डराती है, चौंकाती है, विचलित करती है और शर्मसार भी। यह अपनों की उपेक्षा तो है ही, अभावों की वजह भी लगती है। पापी पेट के लिए परिजनों ने कलेजे पर पत्थर रख मासूमों पर जिम्मेदारियों का बोझ तो लादा ही, कारखाने के कारिंदों ने इन कोमल कलियों से कठोर काम करवा कर इनके सपनों का कत्ल करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी।
यह यातनाओं के दुर्लभ उदाहरणों में से एक है। यह हैवानियत की हद है तो प्रताडऩा की पराकाष्ठा भी है। इसे अमानवीयता की अति भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं। श्रीगंगानगर की एक चूड़ा फैक्ट्री से गुरुवार दोपहर को मुक्त करवाए गए 23 बाल श्रमिकों की दर्दनाक दशा देखकर हर कोई स्तब्ध है। सात से चौदह साल की उम्र तो पढऩे तथा खेलने खाने की उम्र होती है। दुनियादारी से दूर मौजमस्ती करने की उम्र। कमाई या पेट की चिंता से बेफिक्र रहने की उम्र। सपने देखने की उम्र। पंख फैलाने की उम्र।
अफसोसजनक बात यह है कि बच्चों के बचपन को बिसरा कर इनके अरमानों का गला घोंट दिया गया। उनके सपनों को तोड़ दिया गया। हमदर्दी, इंसानियत, संवेदनशीलता जैसे मानवीय गुण यहां गौण हो गए। दया की जगह एक तरह की 'दरिदंगी' ने ले ली। पत्थरदिल कारिंदों की यह करतूत अक्षम्य है। मासूमों पर मुसीबतों का पहाड़ लगातार टूटता रहा, लेकिन कारिंदों ने कभी भी रहमदिली नहीं दिखाई। इन कारिंदों ने कभी प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाने या समझने की जहमत तक नहीं उठाई।
बहरहाल, मासूमों को कारखाने रूपी काल कोठरी में कैद करके रखना भी अपने में आप बड़ा सवाल है। बाल श्रमिकों को बंधक बनाना यह साबित करता है कि उनसे यह काम जबरन करवाया जा रहा था। खैर, मासूमों से की गई कठोर यातनाओं की भरपाई तभी संभव है जब इस समूचे प्रकरण की ईमानदार जांच हो और दोषियों को सजा मिले, ताकि इस तरह की विचलित करने वाली व हृदय विदारक घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 4 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

इक बंजारा गाए-29


खूबसूरत बहाना
नेता और अभिनेता दोनों में एक बात समान होती है। दोनों अभिनय बड़ी खूबसूरती से करते हैं। ऐसा अभिनय कि लोग हकीकत समझ बैठते हैं, तभी तो इनकी बातों में जल्दी आ जाते हैं, प्रभावित हो जाते हैं। अब देखिए न अपने परिषद वाले नेताजी वैसे तो चर्चा में बन रहते हैं। एक संभवत: प्रदेश के इकलौते नेता हैं, जो सर्वदलीय हैं। सभी दलों के समर्थन इनकी कुर्सी टिकी हुई है। नगर परिषद का विपक्ष भी कहा जाए तो कोइ अतिश्योक्ति नहीं होगी। अब गोल बाजार के एक होटल को सीज करने की कार्रवाई को भी बड़ा ही खूबसूरत बहाना बनाकर टाल दिया गया है। दलील दी गई कि शादी समारोहों का मौसम है। होटल पर कार्रवाई हुई तो जनता को परेशानी होगी। एक होटल से जनता को कैसी व कितनी परेशानी होगी यह बात लोगों के हजम नहीं हो रही। नेताजी की हमदर्दी होटल मालिक के प्रति है या जनता के यह राज भी शहरवासी जानने लगे हैं। बीच रास्ते में बस खराब हो जाए या कोई ट्रेन रद्द हो जाए तो क्या यात्री रुक जाएंगे? जिनको जाना है वो किसी दूसरे साधन से निकल लेंगे। पर नेताजी को अब कौन समझाए। सारे ही एक जैसे हैं।
खामोशी तो टूटी
दारू वाला महकमा लंबे समय से लंबी तान के सोया था। शराब ठेकेदार व उनके कारिंदे दोनों हाथों से सुराप्रेमियों को लुटने में लगे रहे। न दिन देख रहे थे न रात। ऊपर से धमकी-चमकी अलग। अब जो तलबगार है, उसको तो सब सहन करना ही पड़ता है। यहां तक कि खाकी के हाथ भी मंथली लेते रंगे गए। विभाग की सुस्ती व खाकी की शह के कारण शराब ठेकेदारों की मनमर्जी चरम पर पहुंच गई। मुंहमांगे दाम और ठेके खुलने व बंद होने का कोई समय ही नहीं। शिकायत करने वालों कहीं पर भी कर ले, कोई इन शराब ठेकेदारों का बाल बांका करने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाता। नफरी और स्टाफ की कमी का बहाना बनाकर अब तक कार्रवाई करने से बचते रहे आबकारी विभाग का अचानक हरकत में आना किसी आश्चर्य से कम नहीं हैं। आखिर ऐसा क्या हुआ कि विभाग को आनन-फानन में बोगस ग्राहक बनाने पड़े। विभाग ठेकेदारों की मनमर्जी से क्या वाकिफ नहीं हैं। जरूर कहीं न कहीं कोई शेर को सवा शेर मिला है। जिसके निर्देशों पर आबकारी विभाग ने यह हलचल दिखाई बाकी हकीकत तो जगजाहिर है ही।
न खाते बने न निगलते
गले की हड्डी बने जाने संबंधी मुहावरे से कौन परिचित नहीं हैं। गले में हड्डी अटक जाए तो न तो ठीक से खाते बने और न ही निगलते। शिव चौक से जिला अस्पताल बन रहा इंटरलॉकिंग का काम यूआईटी के लिए गले की हड्डी बन चुका है। पता नहीं ऐसी क्या जल्दबाजी थी या मजबूरी थी जिसके चलते यूआईटी ने इस टुकड़े का चयन किया। काम शुरू होने से पहले ही विरोध होना था। नजीता यह निकला कि इस काम की हवा तभी निकल गई। आवाश्सन की रेवडिय़ां बांटने के बाद काम फिर शुरू हुआ। काम की रफ्तार भले ही धीमी रहे हो लेकिन डिवाइडर बनाने तथा मिट्टी खुदाई का काम युद्धस्तर पर हुआ। पर अचानक वन विभाग ने ऐसा पेच फंसाया कि यूआईटी के पास अब बगलें झांकने और विकल्प खोजने के लिए अलावा कोई चारा नहीं हैं। वैसे भी लोगों को फायदा तो इस इंटरलॉकिंग बनने के बाद भी नहीं होने वाला। बहरहाल, उड़ती धूल व खोदी गई सड़कें परेशानी का सबब बन रहे हैं। इंटरलॉकिंग के बहाने नाम चमकाने वाले नेताजी भी मौजूदा हालात के आगे पस्त नजर आते हैं।
गिफ्ट का चक्कर
शादी समारोहों व मांगलिक कार्यों का सिलसिला वैसे तो साल भर चलता ही रहा है। इनके साथ ही उपहार आदि देने का काम भी होता है। लेकिन मौसम चुनावी हो तो उपहारों की संख्या बढ़ जाती है। ऐसे उपहार बिन बुलाए मेहमान देकर जाते हैं। सब जगह खुद नहीं पहुंच पाते लिहाजा समर्थकों के माध्यम से भी यह काम करवाया जाता है। हां उपहार पर संबंधित मेहमान की नाम की स्लिप जरूर चस्पा होती है। चुनावी फसल तैयार करने का वैसे तो यह तरीका काफी पुराना है लेकिन समय के साथ अब यह हाइटेक हो गया है। पहले तो शादी समाराहों आदि में लिफाफे से काम चल जाया करता था लेकिन अब लिफाफे की जगह महंगा गिफ्ट आ गया है। यह गिफ्ट मतदाताओं का मानस बदलने में कितने मददगार होंगे यह तो समय ही बताएगा लेकिन शादी वाले परिवारों में बिन बुलाए मेहमानों के गिफ्ट ने उनको सोचने पर मजबूर कर दिया है। धर्मसंकट तो वहां पर है जहां दावेदार कई हैं और सभी के गिफ्ट के पहुंच जाते हैं। धर्मसंकट यह है कि कल वह मतदाता की भूमिका में होगा तो कौनसे गिफ्ट का बदला ईमानदारी से चुका पाएगा।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 3 मई 18 के अंक में प्रकाशित 

कमर दर्द

लघु कथा
सुंदर नयननक्श की मां - बेटी बस में एक ही सीट पर बैठी थी। तभी बेटी उठी और आराम का कहकर सिंगल स्लीपर में सोने चली गई। अब मां के बगल वाली सीट खाली थी। खाली सीट देख काफी समय से खड़े एक बुजुर्ग के चेहरे पर चमक आ गई। वो फौरन सीट की तरफ लपके लेकिन निराशा ही हाथ लगी। वह महिला बोली, जी यह हमारी सीट है। हमने इसको बुक करवा रखा है। स्लीपर भी हमने ही बुक करवाया है। मेरी कमर में दर्द रहता है, इसीलिए बीच-बीच में जाकर आराम करती हूं। हालांकि यह सब कहा तब तक महिला स्लीपर में एक बार भी नहीं गई थी। अगले स्टॉप पर एक परिवार और चढ़ा। सीट पर बैठी महिला खिसकी और एक बालिका को अपनी बगल में बैठा लिया। बस अपनी रफ्तार से दौड़े जा रही थी। रात का एक बजने को था। लगभग सभी यात्री नींद में आगोश में समा चुके थे। अचानक परिचालक आया और बालिका को एक तरफ कर महिला के बगल में बैठ गया और फिर महिला व.परिचालक के बीच खुसर-पुसर होती रही। तीन घंटे बाद महिला सीट से उठी और बेटी स्लीपर से नीचे उतरीं। दोनों का मुकाम जो आ गया था। बस से नीचे उतरने के बाद महिला के चेहरे पर एक बड़ी मुस्कान थी और हाथ अभिवादन में हिल रहा था। बस चल पड़ी पर सवाल खड़ा रह गया, वो कमर दर्द? वो आराम?

सोच

लघुकथा
तेज रफ्तार दौड़ती रोडवेज बस के आगे दो युवकों ने अचानक हाथ किया तो बस के टायर चरमरा उठे। दोनों युवक बैठे और बस चल पड़ी। इसी के साथ दोनों का आपसी संवाद शुरू हुआ।
पहला युवक 'यार मैं उस माहौल से परेशान हो गया था। मकान चेंज न करता तो क्या करता।'
दूसरा युवक 'अरे एेसा क्या हो गया। कुछ दिन पहले तो आपने सब ठीक बताया था, अब अचानक कैसे?'
सवाल सुनकर पहला युवक थोड़ा सकपकाया, होठों पर जीभ फेरते हुए बोला ' आपको बताया था कि हम वहां सभी लड़के-लड़के ही रहते थे। फिर हमारे बीच एक महिला भी आकर रहने लगी।'
महिला का जिक्र आते ही दूसरा युवक थोड़ा संभलकर सीट पर बैठते हुए बोला ' फिर?'
'अरे फिर क्या, महिला मेरे कमरे में आती है। वैसे ही वह दूसरे लड़कों के कमरों में भी जाती। हमेशा बात करने का प्रयास करती है। खुद चलाकर बात करती हमेशा।'
दूसरे युवक की जिज्ञासा और बढ़ गई कंधे उचका कर उसने पूछा ' फिर? तूने कभी बात की क्या?'
'नहीं, वह शादीशुदा महिला है। उसके पन्द्रह साल का एक बच्चा भी है। तू तो समझता है कि महिला से कौन बात करें। हां, कोई लड़की हो तो फिर भी सोचा जा सकता है। '
दूसरे युवक ने भी हां में हां मिलाई ' हां लड़की हो तो सोचा जा सकता है। महिला से कौन बात करे।'
बस करीब चालीस किलोमीटर का सफर तय कर चुकी थी लेकिन दोनों युवकों की बात का विषय अभी बदला नहीं था। एक उत्सुकतावश सवाल पूछे जा रहा था तो दूसरा जवाब देकर ही आनंदित हो रहा था। दोनों युवकों की आगे की सीट पर बैठा मैं यह समूचा वार्तालाप सुनकर तथा महिला व लड़की को लेकर उनकी अलग अलग सोच पर हैरान था।

नमूनों की नौटंकी कब तक?

टिप्पणी
सात सुखों में से पहला सुख निरोगी काया को माना गया है, लेकिन श्रीगंगानगर में आकर यह बात बेमानी हो जाती है। इसकी बड़ी वजह है शासन- प्रशासन का लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध न करा पाना। गंगनहर में पखवाड़े भर से ज्यादा समय से काले रंग का पानी का आ रहा है। विभिन्न संगठन व राजनीति दल लगातार प्रशासन को ज्ञापन देकर इस मामले में कारगर कार्रवाई की गुहार लगा रहे हैं। कुछ किसान संगठन तो मौका भी देख आए लेकिन जिला प्रशासन अभी जांच करवाने के आश्वासन से आगे नहीं बढ़ पाया है। ऐसा कोई पहली बार नहीं है, बल्कि ऐसा हर बार ही होता है। लोग शिकायत करतें हैं और प्रशासन आश्वासन का कहकर टरका देता है। ज्यादा से ज्यादा पानी के नमूने लेने की बात भी कह दी जाती है। बड़ी हैरत की बात है कि नमूनों में पानी दूषित साबित होने के बावजूद इसकी रोकथाम के लिए कोई ठोस या प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते। विडम्बना यह है भी है कि पानी की कमी या दूषित पानी को लेकर श्रीगंगानगर जिले में हर साल आंदोलन होते हैं। बस फर्क इतना है कि सरकारें बदलने के साथ आंदोलन करने वालों के चेहरे बदल जाते हैं, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता। दूषित पानी बेचना खुलेआम स्वास्थ्य से खिलवाड़ है। लोग जेब ढीली करके खुद के लिए बीमारियां व मौत खरीदें तो इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या होगी? तीन दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद स्वच्छ पेयजल मुहैया न कर पाना शासन व प्रशासन दोनों को कटघरे में खड़ा करता है। बड़ा सवाल तो यह है कि कि बात आश्वासनों व नमूनों की जांच से आगे बढ़ी क्यों नहीं? नहरी पानी में दूषित या केमिकल पानी छोडऩा एक तरह का धीमा जहर है। कैंसर, पेट संबंधी व चर्म रोगियों की बढ़ती संख्या के पीछे के कारणों में दूषित पानी भी एक बड़ा कारण है।
बहरहाल, आश्वासन की रेवडिय़ों व नमूनों की नौटंकी से लोगों को शुद्ध पेयजल नहीं मिलने वाला। इन पर विराम लगाकर तुरंत प्रभाव से ठोस, कारगर व प्रभावी कार्रवाई होनी चाहिए। जो पानी को दूषित करता है, उस पर मुकदमे दर्ज हों, क्योंकि स्वास्थ्य से खिलवाड़ का सिलसिला अब थमना चाहिए। अगर शासन-प्रशासन की आंख अब भी नहीं खुली तो बीमारियों से पीडि़त मरीजों का आंकड़ा मौतों में तब्दील होते ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 27 अप्रेल 18 के अंक में प्रकाशित