Tuesday, May 22, 2018

स्वास्थ्य से खिलवाड़ कब तक?

टिप्पणी
पड़ोसी प्रदेश पंजाब की व्यास नदी में शुगर मिल का लाखों टन शीरा तथा अन्य अपशिष्ट मिलने के कारण राजस्थान आने वाली तीनों नहरों इंदिरा गांधी नहर, गंगनहर एवं भाखड़ा नहर का पानी प्रदूषित हो गया है। प्रदूषित पानी के कारण नहरों में बड़ी संख्या में मछलियां व जलीय जीव काल का ग्रास बन गए। इस पानी का रंग काला व बदबूदार है। पंजाब में हरिके बैराज से दो बड़ी नहरें फिरोजपुर फीडर और राजस्थान फीडर निकलती हैं। फिरोजपुर फीडर से गंगनहर को पानी की आपूर्ति होती है जबकि राजस्थान फीडर का पानी इंदिरागाधी नहर और भाखड़ा नहर को मिलता है गंगनहर व भाखड़ा नहर का पानी श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ तक सीमित है जबकि इंदिरा गांधी नहर के पानी का उपयोग प्रदेश के दस जिलों में होता है। इस प्रदूषित पानी के सेवन से महामारी फैलने की आशंका है, लिहाजा जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की सभी जलदाय योजनाओं की डिग्गियों में पानी की आपूर्ति रोक दी है। पानी में प्रदूषण का स्तर जांचने के लिए दोनों जिलों में नमूने भी लिए गए हैं। इनकी जांच रिपोर्ट आने के बाद ही डिग्गियों में पानी आपूर्ति का निर्णय लिया जाएगा। प्रदूषित पानी की खपत में कम से कम दस दिन लगेंगे। इंदिरा गाधी नहर में अभी 35 दिन की बंदी के बाद पानी छोड़ा गया है जबकि गंगनहर व भाखड़ा नहर की पेजयल डिग्गियां भी सूखने की कगार पर हैं। ऐसी स्थिति में अगर दस दिन तक नहरों में प्रदूषित पानी आया तो प्रदेश के दस जिलों में पेयजल का गंभीर संकट खड़ा हो सकता है।
वैसे भी नहरों में प्रदूषित पानी आने का यह कोई पहला मामला नहीं हैं। राजस्थान आने वाली सभी नहरों में पंजाब से कभी सीवरेज का पानी का छोड़ दिया जाता है तो कभी फेक्ट्रियों का अपशिष्ट बहा दिया जाता है। बड़ी बात है कि ऐसा करने वालों पर आज तक किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हुई। कई जांच रिपोर्टों में यह साबित भी हो चुका है कि पानी घरेलू उपयोग के लिए भी खतरनाक है। वैसे भी वर्तमान में पानी का सेंपल लेने का जो तरीका है उससे पूरी तरह से पता नहीं चल पाता है कि स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक अवयव कौन कौन से हैं। श्रीगंगानगर में पेयजल की जांच के लिए विशेष प्रयोगशाला की मांग लंबे समय की जा रही है। विडम्बना देखिए नहरों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन पानी शुद्ध व स्वच्छ मिले इसके लिए गंभीरता से प्रयास नहीं हो रहे हैं। बड़ा सवाल तो यह भी है कि श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिलों में कैंसर रोगियों के बढ़ते आंकड़ों को देखकर भी सरकार जाग नहीं रही है। अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं खोजा गया तो प्रदेश के दस जिलों के करीब तीन करोड़ लोगों की नस्ल विकृत होने का खतरा भी सिर पर मंडरा रहा है। स्वास्थ्य से सरेआम हो रहा यह खिलवाड़ अब स्थायी समाधान चाहता है। सहन करने की भी आखिर कोई सीमा होती है।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 22 मई 18 अंक में प्रकाशित 

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