Tuesday, August 30, 2011

सद्‌भाव की सरिता

टिप्पणी
न्याय की नगरी बिलासपुर अपने आप में कई विशेषताओं को समेटे हुए है। शहर में विभिन्न संस्कृतियों का समागम तो है ही यहां का साम्प्रदायिक सद्‌भाव भी गजब का है। गंगा-जमुनी संस्कृति के संवाहक यहां के लोग इतने संजीदा एवं जिंदादिल हैं कि सम्प्रदाय विशेष की मानसिकता से ऊपर उठकर सामूहिक रूप से त्योहार मनाते हैं। तभी तो यहां के सद्‌भाव की अक्सर मिसाल दी जाती है। यह यहां के सद्‌भाव एवं कौमी एकता का ही कमाल है कि जो यहां एक बार आया तो फिर यहीं का होकर रह गया। वैसे तो बिलासपुर में साल भर विभिन्न राज्यों की संस्कृतियों के दर्शन वहां के स्थानीय पर्वों के रूप में होते रहते हैं, लेकिन इस बार एक सुखद संयोग भी जुड़ा है। संयोग यह है कि ईद व गणेश चतुर्थी  एक दूसरे केआगे-पीछे ही आ रहे हैं। वैसे माना जा रहा है कि 30 अगस्त को चांद दिखा तो ईद  31 अगस्त को और नहीं दिखा तो फिर एक सितम्बर को मनेगी। अगर ईद एक को हुई तो दोनों त्योहार एक ही दिन भी मनाए जा सकते हैं। ऐसे में शहर के साम्प्रदायिक सद्‌भाव में एक अध्याय और जुड़ जाएगा।
दोनों त्योहारों की अहमियत इसलिए भी है, क्योंकि इनमें न केवल दोनों संस्कृतियों के रंग मिलते हैं बल्कि 'राम' और 'रहमान' की सहभागिता भी बराबर रहती है। पुलिस लाइन में मनाया जान वाला गणेश उत्सव तो अपने आप में ही अनूठा है। सुनकर खुशी मिश्रित आश्चर्य होता है कि यहां कि गणेशोत्सव समिति में जमुनी तहजीब के डेढ़ दर्जन लोग सरंक्षक से लेकर कार्यकर्ता की भूमिका में है। शहर के अन्य कई गणेशोत्सव में इसी प्रकार की सहभागिता दिखाई देती है। खास बात यह है शहर में यह परम्परा लम्बे समय से चली आ रही है। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि कई सियासी उलटफेर एवं साम्प्रदायिक झंझावत भी शहर की इस साझी विरासत का बाल तक बांका नहीं कर पाए। विषम परिस्थितियों में भी यहां के लोग एक-दूसरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नजर आए। समय के साथ कदमताल करती शहर की यह साझा विरासत दिन दूनी रात चौगुनी और भी मजबूत व प्रगाढ़ हो रही है। सद्‌भाव व एकता का जज्बा यहां के जर्रे-जर्रे में है। शायद यहां के पानी की तासीर ही ऐसी है। तभी तो यहां इस प्रकार के सद्‌भाव की सरिता बहती है।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 30 अगस्त11 के अंक में प्रकाशित।