Monday, September 23, 2013

बच्चों की बात


बस यूं ही

 
अभी दो दिन पहले की ही बात है। सुबह घर से कार्यालय पहुंचा ही था कि श्रीमती का फोन आ गया। मोबाइल पर श्रीमती के नम्बर देखकर चौंक गया। रिसीव करने से पहले ख्याल आया कि आखिरकार ऐसा क्या हो गया, अभी तो घर से आया था और पीछे-पीछे फोन आ गया। खैर,फोन अटेण्ड किया तो श्रीमती की आवाज सुनकर लगा कि वह बड़ी उत्साहित है। मैंने पूछा बोलो, क्या काम आ गया, तो बोली मैंने वो अखबार की रद्दी बेच दी है। मैंने कहा ठीक है लेकिन इसमें बताने की बात क्या है। इस वह बोली बात तो बताने वाली ही है, इसलिए तो फोन किया है। मैंने कहा कि अब बता दो कि आखिर ऐसा क्या है। उसने कहा कि आपने रद्दी आठ रुपए किलो के हिसाब से बेची थी जबकि उसने दस रुपए किलो के हिसाब से बेची है। मैंने उसको धन्यवाद दिया और अच्छा किया कहकर फोन काट दिया।
इसके बाद कार्यालय से दैनिक काम निबटाकर बच्चों को लेकर घर पहुंचा। बस्ता सोफे पर फेंकने के बाद योगराज कमरे की ओर दौड़ा। अंदर जाते ही वह जोर से बोला, 'अरे, मम्मा, अपने कमरे के अखबार कौन ले गया।' श्रीमती रसोई में व्यस्त थी, लिहाजा योगराज ने यही सवाल मेरे से पूछा। चूंकि मैं तो समूचे घटनाक्रम से वाकिफ था, इसलिए जानबूझाकर अनजान बना रहा है। जवाब ना पाकर योगराज की बेचैनी स्वाभाविक थी। वह मेरे पास आया और फिर बोला, 'अरे पापा कब से पूछ रहा हूं, बताओ ना, अखबार कहां गए? ' मैंने कहा बेटे अखबार तो आज चोरी हो गए। जवाब सुनकर वह छोटे भाई एकलव्य (चीकू) के पास गया और बोला 'चीकू, देख अपने अखबार चोरी हो गए।'
चीकू ने यह सुना तो वह भी दौड़कर कमरे में गया। इसके बाद दोनों भाई सोचने वाले अंदाज में बाहर आए। दोनों सोच में डूबे थे कि आखिर यह सब कैसे हो गया। अचानक योगराज बोला 'अरे, पापा अखबार चोरी हो गए,यह तो ठीक है लेकिन चोरों ने अपने को बताया क्यों नहीं?' मैं योगराज के भोलेपन पर मंद मंद मुस्कुरा ही रहा था कि हाजिरजवाब चीकू जल्दी से बोला.. 'अरे भाई, चोर कोई बताकर चोरी थोड़े ही करेगा।' चीकू का जवाब सुनते ही मैं हंस पड़ा। श्रीमती भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सकी। सचमुच बच्चों का अपना संसार है। वे बड़े ही जिज्ञासु होते हैं। उनके सवाल जितने अजीब व रोचक होते हैं तो जवाब उतने ही दिलचस्प। और एक बात और पोस्ट के साथ लगाई यह गई इस फोटो की कहानी भी बड़ी रोचक है। एक दिन स्कूल से आने के बाद दोनों भाई बाथरुम में जाकर खेलने लगे। इसी दौरान श्रीमती ने चुपके से आकर मेरे कान में कहा कि देखो बच्चे क्या कर रहे हैं। मैंने जाकर देखा तो हंसे बिना नहीं रह सका। दोनों अपने स्कूल के सफेद जूतों को धोने में जूटे थे। दोनों की यह गतिविधि मैंने मोबाइल मैं कैद कर ली। आज बच्चों के बारे में लिखने का ख्याल आया तो इस फोटो की भी याद आ गई।

कमाल का धमाल


बस यूं ही

लालों का कमाल,
मचा रहे धमाल,
पार्टी है बदहाल,
विपक्ष तो खुशहाल।

जी का जंजाल,
सब कुछ निढाल,
बुरा हुआ हाल,
चुनावी है साल।

हो गए हलाल,
रह गया मलाल,
समय का काल,
छोड़ गया सवाल।

थमता नहीं बवाल,
सियासत में उबाल,
तोड़ कोई निकाल,
काली लगती दाल।