Sunday, November 27, 2011

मैं और मेरी तन्हाई.....4


छब्बीस नवम्बर
राहत में है दिल, मौसम जुदाई का गुजार के,
आने ही वाले हैं फिर से दिन अब बहार के।
खुशी मनाओ, झूमो, नाचो, गाओ जोर से,
कट गए हैं देखो 'निर्मल', दिन सभी इंतजार के।

सत्ताईस नवम्बर
मायके पहुंच गई तुम 'निर्मल', छोड़ आज ससुराल,
उस घर से इस घर आने में देखो, बदल गई है चाल।
तुम सब से थी रौनक जहां, वहां आज उदासी छाई,
बच्चों के बिन पूछे कौन अब, दादा-दादी के हाल।

अठाईस नवम्बर
दोनों में है खुलापन खूब, नहीं है कोई राज,
पर तुम बिन सूना है, इस दिल का हर साज।
पता नहीं क्यों मूड मेरा, कर ना रहा शायरी,
सूझ नहीं रहा मुझे 'निर्मल',  लिखूं तुझे क्या आज।

उनतीस नवम्बर
तन्हाई की सब बातें देखो, अब पुरानी हो जाएगी,
दिन कटेंगे मस्ती में, हर शाम सुहानी हो जाएगी।
क्या खूब नजारा होगा, दो दिन के बाद 'निर्मल',
अपने मिलन की जब, एक नई कहानी बन जाएगी।

तीस नवम्बर
बातों-बातों में गुजरे, देखो दिन तन्हाई के,
यादों में खो जाएंगे, किस्से सभी जुदाई के।
अपने मिलन की खुशियों में तो निर्मल,
दिल झूम झूम के गाएगा, गीत अब पुरवाई के।


24 नवम्बर को  धर्मपत्नी ने भी  काउंटर मार दिया और मुझे लिखा कि....
अपना ही अंदाज लिए हम चले जमाने में,
अपने को बांध लिया पैमाने में
कट रही जिंदगी, हंसने-रो जाने में,
सुख-दुख बांट लिया हमने जाने-अनजाने में।

इसके जवाब में मैंने उसे लिखा....

गमों की बात ना करो फसाने में,
मस्त रहने के भी हैं रास्ते जमाने में।
हंसने से ही तो संवरती है जिंदगी 'निर्मल'
आजाद पंछी बनो, ना बांधों खुद को पैमाने में।

26 नवम्बर को धर्मपत्नी को भेजा गया मैसेज मैंने फेसबुक पर लगाया तो  पत्रकार साथी कुंअर अंकुर ने उस पर कमेंट किया कि...
दूर रहने से कोई दूर नहीं हुआ करते हैं,
दूर तो वो रहते हैं जो मजबूर हुआ करते हैं।

इसके जवाब में मैंने लिखा कि....

यह सच है जो मजबूर है, वो नजरों से दूर है,
जालिम जमाने का मगर यही तो दस्तूर है।
यह दुनिया बहुत छोटी है कुंअर साहब लेकिन
यहां फासले दिलों के नहीं, जगहों के जरूर है।

क्रमशः........

मैं और मेरी तन्हाई-3

अठारह नवम्बर
दिलासाओं के सहारे आजकल बहल रहा यह दिल,
इंतजार में तो एक पल गुजारना भी है मुश्किल।
पर किसी ने सच ही तो कहा है 'निर्मल'
हौसला रखने वालों को ही तो मिलती है मंजिल।

उन्नीस नवम्बर
ज्यादा बीत गए, दिन कम रहे अब शेष,
मिलन का वो दिन, होगा कितना विशेष।
सोच-सोच के मन में मेरे फूट रहे हैं लड्‌डू,
तन्हाई के दिन छोड़ जाएंगे अब अपने अवशेष।

बीस नवम्बर
मिलने को दिल अब हो चहा है बेकरार,
पर दस दिन बाद ही आएगा इसको करार।
क्या खूबसूरत वो दिन होगा 'निर्मल' जब
आंखों से आंखों की बातें होंगी हजार।

इक्कीस नवम्बर
कभी तो आंखों में कोई सपना आता ही होगा,
कभी तो सपने में कोई अपना आता ही होगा।
माना थक कर सौ जाती हो तुम अक्सर 'निर्मल',
पर सांसों को मेरा नाम जपना आता ही होगा।

बाइस नवम्बर
सपनों की बात, उम्मीदों से संवरती है,
जैसे काली रात, चांदनी से निखरती है।
गुजर जाता है दिन तो जैसे-तैसे 'निर्मल'
पर तन्हाई की रात मुश्किल से गुजरती है।

तेईस नवम्बर
मिलन की रात बेहद रंगीन होती है,
पर यादों की बारात भी हसीन होती है।
बिन तुम्हारे इस सर्द मौसम में 'निर्मल'
प्यार की बात भी कितनी संगीन होती है।

चौबीस नवम्बर
दुनिया की महफिल में, क्या अपने क्या बेगाने,
सब रिश्तों के किरदार जो हमको हैं निभाने।
दो दिन की जिंदगी में लगता है प्यार थोड़ा,
गाओ खुशी के नगमे 'निर्मल' देखो सपने सुहाने।

पच्चीस नवम्बर
मिलने को दिल जब बेकरार होता है,
तब लम्हा प्यार का यादगार होता है।
गिले शिकवे करना है फितरत है सभी की,
कटे प्यार से 'निर्मल', सफर वो शानदार होता है।

क्रमशः........

मैं और मेरी तन्हाई...2

दस नवम्बर
दिल में मोहब्बत लेकिन दिमाग में तनाव है,
दोनों का मुझसे आजकल अजीब सा जुड़ाव है।
तालमेल बैठाने की तो आदत सी हो गई है 'निर्मल'
क्योंकि मुझे तुम दोनों से ही गहरा लगाव है।

ग्यारह नवम्बर
बड़ी मुश्किल से कटते हैं दिन इंतजार के,
रह-रह के याद आते हैं लम्हे वो प्यार के।
गिन-गिन के कट रहे हैं दिन जुदाई के,
मेरे नैना भी प्यासे हैं तुम्हारे दीदार के।

बारह नवम्बर
काम की फिक्र में आई ना तेरी याद,
इसलिए तो देरी से कर रहा फरियाद। 
दिवस दस बीते, बाकी हैं अब बीस,
फिर मेरी तन्हाई भी हो जाएगी आबाद।

तेरह नवम्बर
ना रहो उदास ना उदास करो मन को,
रो-रोकर ना कमजोर किया करो तन को।
खुशियों की बारात जल्द लौटेगी 'निर्मल'
हंसी की खिलखिलाहठ से महकाया करो आंगन को।

चौदह नवम्बर
करो सेवा बड़ों की, भले हो कोई त्रस्त,
कोई बोले कुछ करे, तुम रहो हमेशा मस्त।
जैसे बीते आधे दिन बाकी भी गुजर जाएंगे,
जीतो दन सभी का, मत करो हौसले पस्त।

पन्द्रह नवम्बर
छोटी बात पर ही देखो मचा है यह बवाल,
कैसे बताऊं तुमको 'निर्मल' कैसा है मेरा हाल।
पता नहीं क्या होगा आगे, रस्ता भी मालूम नहीं,
काम के बोझ और तन्हाई ने कर दिया बदहाल।

सोलह नवम्बर
मिली खुशी अपार मुझे, दूर हुआ तनाव,
प्रबंधन की नजरों में बढ़ा गया मेरा भाव।
सोच-सोचकर जिसको था, मन मेरा व्याकुल,
उसी काम के प्रति दिखा उनका गहरा लगाव।

सत्रह नवम्बर
यह जन्म-जन्म का नाता है,
कोई किस्मत वाल ही पाता है।
तुम जैसा साथी पाकर तो,
दिल प्यार के नगमे के गाता है।




क्रमशः........

मैं और मेरी तन्हाई....1

दो नवम्बर
तुम बिन यह रात अधूरी है,
नहीं हो दिल से दूर फिर भी दूरी है।
नहीं रह सकते हम जुदा होकर,
पर क्या करूं 'निर्मल' मजबूरी है।

तीन नवम्बर
मैं हूं और जालिम यह तन्हाई है,
होगा मिलन पर अभी तो जुदाई है।
नहीं हो दिल से कभी दूर लेकिन
इस बार याद कुछ ज्यादा आई है।

चार नवम्बर
कभी-कभी जुदाई में भी बढ़ता है प्यार,
सजा ही नहीं मजा भी देता है इंतजार।
दो दिन बीते बाकी भी यूं ही गुजर जाएंगे,
सुख-दुख ही तो हैं 'निर्मल' जीवन के आधार।

पांच नवम्बर
बिन पीए चढ़े वो सुरुर तुम हो,
हमदम मेरी आंखों का नूर तुम हो।
हर पल महसूस करता हूं पांस अपने,
आजकल दिल के करीब मगर नजरों से दूर तुम हो।

छह नवम्बर
जिंदगी से कोई शिकायत नहीं रही,
तुम जब से हमसफर बनकर आई हो।
अकेले ही कट रही थी उम्र बेमजा,
तुम ही हो जो बहार बनकर छाई हो।

सात नवम्बर
यूं ही कट जाएगा यह यादों का सफर,
मिलेगी मंजिल चलते चलो इसी डगर।
बातें तो फोन रोज हो रही हैं आजकल,
चैन तब आएगा जब तुमको देखेगी नजर।

आठ नवम्बर
बच्चों को मत डांटा करो, यह तो हैं नादान,
माना तुमको करते हैं, बात-बात पर परेशान।
जीतो दिल सभी का बने अलग पहचान,
हंसते-हंसते हो जाएगी, हर मुश्किल आसान।

नौ नवम्बर
ख्याबों में तुम, विचारों में भी तुम ही हो,
नजर में तुम नजारों में भी तुम ही हो।
आंखों में तुम, इशारों में भी तुम ही हो,
एक दो ही नहीं, हजारों में भी तुम ही हो।


क्रमशः........

फिर जिंदा हुआ शौक...


कॉलेज लाइफ में मुझे शेरो-शायरी का शौक खूब रहा है। हालत यह थी कि बाहर कहीं पर भी जाता तो रास्ते में पढ़ने के लिए बुक स्टॉल से शेरो-शायरी की किताबें ही खरीदता। इसके अलावा समाचार-पत्रों में प्रकाशित गजलों एवं रुबाइयों की कतरन काट कर सहेज कर रख लेता। इन्हीं कतरनों को याद कर अपने सहपाठियों को सुना दिया करता और बदले में उनकी वाहवाही बटोर लेता। मेरे इसी शौक के चलते मुझे कॉलेज में सभी शायर कहने लगे थे। बीए फाइनल ईयर के छात्रों को जब विदाई दी जा रही थी तो प्रत्येक छात्र को एक टाइटल दिया गया था। मुझे भी कभी-कभी फिल्म के चर्चित गीत, मैं पल दो पल का शायर हूं... का टाइटल दिया गया। कॉलेज छूटने के साथ ही शेरो-शायरी का शौक धीरे-धीरे कम होता है। क्योंकि डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया। करीब तीन साल मशक्कत करने के बाद भी जब कहीं सफलता नहीं मिली तो पत्रकारिता में भाग्य आजमाया। किस्मत से पत्रकारिता में प्रवेश की परीक्षा में पास हो गया। इतना ही नहीं परीक्षा के बाद लिए गए दोनों साक्षात्कार में सफलता हाथ लग गई। इसके बाद मेरा पत्रकारिता के क्षेत्र में आना तय हो गया। नया-नया काम था, इसलिए सीखने का जुनून कुछ ज्यादा ही था। रोजाना 15-16 घंटे तो काम करता ही। कभी-कभी तो 18-18, 20-20 घंटे भी काम किया। इस प्रकार पत्रकारिता में आने के बाद शेरो-शायरी का शौक लगभग छूट गया। करीब पांच साल बाद होली पर पत्रकाार साथियों को टाइटल देने का ख्याल आया, फिर क्या था, सभी पर तुकबंदी कर चार-चार लाइन लिख डाली। इसके बाद तो यह एक तरह की परम्परा सी बन गई। हर होली पर यही कहानी दोहराई जाने लगी। बाद में स्थानांतरण दूसरी जगह होने के कारण इस काम पर फिर विराम लग गया।
अभी दीपावली पर पत्नी एवं बच्चों के साथ गांव गया था। मां एवं पापा ने बताया कि आंखों से धुंधला दिखाई देता है। इस पर मैंने दोनों का नेत्र विशेषज्ञ के यहां चैकअप कराया। चिकित्सक ने बताया कि दोनों की आंखों का ऑपरेशन करना जरूरी है। अब धर्मसंकट खड़ा हो गया क्या किया जाए। आखिरकार धर्मपत्नी ने हिम्मत करके कहा कि वह एक माह के लिए गांव ही रुक जाएगी। मैंने भी उसके निर्णय पर हां भरकर मोहर लगा दी। अब मामला बच्चों की पढ़ाई पर अटका था कि आखिर एक माह तक बच्चे क्या करेंगे। इस पर धर्मपत्नी ने ही सुझाव दिया कि बच्चे अभी छोटी कक्षाओं में हैं, एक माह में कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। मैं धर्मपत्नी की बात मानकर ड्‌यूटी पर अकेला ही चला आया। एक नवम्बर को घर से रवाना हुआ तथा दो नवम्बर को गंतव्य पर पहुंच गया। पहले ही दिन मैंने धर्मपत्नी को तुकबंदी करके चार लाइन की रुबाई लिखी। दूसरे दिन उसने रुबाई की प्रशंसा कर दी। फिर क्या था, बड़ाई सुनकर अंदर का शायर फिर जाग उठा और निर्णय किया कि हर रात को एक रुबाई बनाकर मोबाइल पर कम्पोज कर धर्मपत्नी को मैसेज करूंगा। यह सिलसिला चल पड़ा। दिन-प्रतिदिन तुकबंदी में सुधार आने लगा। पति-पत्नी के बीच बातें बेहद गोपनीय होती हैं लेकिन मैं इतनी अंतरंगता से भी बातें नहीं करता कि किसी को बताने में संकोच हो। तभी तो धर्मपत्नी को लिखी गई वे तमाम रुबाइयां मैं ब्लॉग के माध्यम से आप सभी से साझा कर रहा हूं। मेरा यह प्रयास आपको कैसा लगा, मुझे आपके कीमती सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।  हालांकि मेरा गांव पहुंचना दो दिसम्बर को प्रस्तावित है। मैं यहां से एक दिसम्बर को रवाना होऊंगा। मतलब साफ है दो नवम्बर से शुरू हुए सिलसिले पर एक दिसम्बर को विराम लग जाएगा, हालांकि धर्मपत्नी ने यह काम जारी रखने का सुझाव दिया है। खैर, अब तक लिखी गई सारी रुबाइयां सार्वजनिक कर रहा हूं।

क्रमश.........