Sunday, November 27, 2011

मैं और मेरी तन्हाई-3

अठारह नवम्बर
दिलासाओं के सहारे आजकल बहल रहा यह दिल,
इंतजार में तो एक पल गुजारना भी है मुश्किल।
पर किसी ने सच ही तो कहा है 'निर्मल'
हौसला रखने वालों को ही तो मिलती है मंजिल।

उन्नीस नवम्बर
ज्यादा बीत गए, दिन कम रहे अब शेष,
मिलन का वो दिन, होगा कितना विशेष।
सोच-सोच के मन में मेरे फूट रहे हैं लड्‌डू,
तन्हाई के दिन छोड़ जाएंगे अब अपने अवशेष।

बीस नवम्बर
मिलने को दिल अब हो चहा है बेकरार,
पर दस दिन बाद ही आएगा इसको करार।
क्या खूबसूरत वो दिन होगा 'निर्मल' जब
आंखों से आंखों की बातें होंगी हजार।

इक्कीस नवम्बर
कभी तो आंखों में कोई सपना आता ही होगा,
कभी तो सपने में कोई अपना आता ही होगा।
माना थक कर सौ जाती हो तुम अक्सर 'निर्मल',
पर सांसों को मेरा नाम जपना आता ही होगा।

बाइस नवम्बर
सपनों की बात, उम्मीदों से संवरती है,
जैसे काली रात, चांदनी से निखरती है।
गुजर जाता है दिन तो जैसे-तैसे 'निर्मल'
पर तन्हाई की रात मुश्किल से गुजरती है।

तेईस नवम्बर
मिलन की रात बेहद रंगीन होती है,
पर यादों की बारात भी हसीन होती है।
बिन तुम्हारे इस सर्द मौसम में 'निर्मल'
प्यार की बात भी कितनी संगीन होती है।

चौबीस नवम्बर
दुनिया की महफिल में, क्या अपने क्या बेगाने,
सब रिश्तों के किरदार जो हमको हैं निभाने।
दो दिन की जिंदगी में लगता है प्यार थोड़ा,
गाओ खुशी के नगमे 'निर्मल' देखो सपने सुहाने।

पच्चीस नवम्बर
मिलने को दिल जब बेकरार होता है,
तब लम्हा प्यार का यादगार होता है।
गिले शिकवे करना है फितरत है सभी की,
कटे प्यार से 'निर्मल', सफर वो शानदार होता है।

क्रमशः........

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