Sunday, November 27, 2011

मैं और मेरी तन्हाई...2

दस नवम्बर
दिल में मोहब्बत लेकिन दिमाग में तनाव है,
दोनों का मुझसे आजकल अजीब सा जुड़ाव है।
तालमेल बैठाने की तो आदत सी हो गई है 'निर्मल'
क्योंकि मुझे तुम दोनों से ही गहरा लगाव है।

ग्यारह नवम्बर
बड़ी मुश्किल से कटते हैं दिन इंतजार के,
रह-रह के याद आते हैं लम्हे वो प्यार के।
गिन-गिन के कट रहे हैं दिन जुदाई के,
मेरे नैना भी प्यासे हैं तुम्हारे दीदार के।

बारह नवम्बर
काम की फिक्र में आई ना तेरी याद,
इसलिए तो देरी से कर रहा फरियाद। 
दिवस दस बीते, बाकी हैं अब बीस,
फिर मेरी तन्हाई भी हो जाएगी आबाद।

तेरह नवम्बर
ना रहो उदास ना उदास करो मन को,
रो-रोकर ना कमजोर किया करो तन को।
खुशियों की बारात जल्द लौटेगी 'निर्मल'
हंसी की खिलखिलाहठ से महकाया करो आंगन को।

चौदह नवम्बर
करो सेवा बड़ों की, भले हो कोई त्रस्त,
कोई बोले कुछ करे, तुम रहो हमेशा मस्त।
जैसे बीते आधे दिन बाकी भी गुजर जाएंगे,
जीतो दन सभी का, मत करो हौसले पस्त।

पन्द्रह नवम्बर
छोटी बात पर ही देखो मचा है यह बवाल,
कैसे बताऊं तुमको 'निर्मल' कैसा है मेरा हाल।
पता नहीं क्या होगा आगे, रस्ता भी मालूम नहीं,
काम के बोझ और तन्हाई ने कर दिया बदहाल।

सोलह नवम्बर
मिली खुशी अपार मुझे, दूर हुआ तनाव,
प्रबंधन की नजरों में बढ़ा गया मेरा भाव।
सोच-सोचकर जिसको था, मन मेरा व्याकुल,
उसी काम के प्रति दिखा उनका गहरा लगाव।

सत्रह नवम्बर
यह जन्म-जन्म का नाता है,
कोई किस्मत वाल ही पाता है।
तुम जैसा साथी पाकर तो,
दिल प्यार के नगमे के गाता है।




क्रमशः........

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