बस यूं ही
भिलाई से बीकानेर
आने के बाद सबसे पहले मैंने घर पर इंटनरेट कनेक्शन के लिए प्रयास शुरू किए।
ऐसा करना जरूरी भी था, क्योंकि मुझे भली भांति मालूम था कि बच्चे आते ही
सबसे पहले कम्प्यूटर ही तलाशेंगे। वैसे कनेक्शन के लिए पहली प्राथमिकता
बीएसएनएल ही थी लेकिन इसमें निजी फोन कंपनियों के बरक्श औपचारिकता कुछ
ज्यादा थी। मैं धीरे-धीरे उनको पूरी कर ही रहा था कि अचानक एक परिचित से
मैंने इसकी चर्चा कर दी। उन्होंने एमटीएस का कनेक्शन लेने का सुझाव दिया।
बस फिर क्या था मैंने तत्काल फोन कंपनी के प्रतिनिधि को फोन लगाया। वह भी
लगभग तैयार ही था। थोड़ी ही देर बाद वह कार्यालय में हाजिर हो गया। खैर,
मैंने वाई फाई कनेक्शन का डोंगल ले लिया। शुरुआती दौर में स्पीड वगैरह ठीक
मिली लेकिन जैसे-जैसे माह पूर्ण होने को आया स्पीड घटने लगी। उसी प्रतिनिधि
से फिर पूछा तो जवाब दिया गया कि माह के आखिरी में अक्सर ऐसा ही होता है,
आप बिल जमा करवा देंगे तो स्पीड ठीक हो जाएगी। ऐसा हुआ भी। वैसे बिल जमा
करवाने की अंतिम तिथि माह की १८ तारीख होती है। मैं कभी भी आखिरी बॉल पर
छक्का लगाने का पक्षधर नहीं रहा, लिहाजा समय से पहले ही बिल जमा करवाता रहा
हूं। चाहे घर का बिजली बिल रहा हो या मोबाइल का। इतना ही नहीं एलआईसी एवं
अन्य पॉलिसीज भी निर्धारित तिथि से पूर्व ही जमा करवाता हूं। दो चार दिन
पहले करवाने के पीछे मंशा यही रहती है कि आखिरी दिन लम्बी लाइन में ना लगने
पड़े तथा किसी प्रकार की अनावश्यक परेशानी भी न हो।
इस बार व्यस्तता
ज्यादा थी। ना चाहते हुए भी इस बार बिल निर्धारित तिथि से पहले जमा नहंी हो
पाया। आखिरी दिन 18 सितम्बर को बिल जमा करवा दिया गया, लेकिन कंपनी से बिल
जमा होने का कोई मैसेज मोबाइल पर नहीं आया। मेरे पास बिल जमा करवाने का
प्रमाण था। मैं आश्वस्त था कि मैसेज नहीं आया तो कोई बात नहीं यह कंपनी का
सिरदर्द है, जो होगा देखा जाएगा। 19 सितम्बर को मोबाइल पर कम्पनी के दो
मैसेज आए। मैसेज बिना पढ़े ही सेंडर का नाम देखकर मैंने अंदाजा लगाया कि
शायद बिल राशि जमा होने के बारे में आए हैं। लेकिन मेरा ऐसा सोचना गलत था।
मैसेज में लिखा था कि आपका बिल अभी ड्यू है, इससे तत्काल जमा करवाएं।
संयोग देखिए इसके ठीक अगले दिन इंटरनेट सेवा ठप हो गई। तीन दिन तक यही
सिलसिला चलता रहा। कार्यालय से घर जाता तो धर्मपत्नी उलाहना देनी लगी।
कहती तीन दिन से नेट नहीं चल रहा है, इसको ठीक क्यों नहीं करवाते?। इधर,
मेरे जेहन में यही चल रहा था कि हो न हो बिल सही तरीके से जमा न होने
(मोबाइल पर मैसेज नहीं आया था ) के कारण नेट का कनेक्शन विच्छेद कर दिया
गया है। मन में गुस्सा भी था कि सब कुछ समय पर करने के बाद भी ऐसा क्यों हो
रहा है। कुछ आक्रोश कंपनी की सेवा को लेकर भी था। कई बार कस्टयूमर केयर
में स्पीड की शिकायत दर्ज करवा चुका था। आखिरकार उसी प्रतिनिधि को फोन
लगाया, जिससे डोंगल लिया। पहले तो उसने कार्यालय के किसी अधिकारी के नम्बर
दिए और कहा कि आप इनसे सुबह दस बजे के बाद बात करना। चूंकि मैं सुबह बात
करना भूल गया। दोपहर को याद आया तो मैंने उनको करीब 10 से 15 बार तक फोन
लगाया लेकिन उन्होंने अटेण्ड नहीं किया। मैंने फिर प्रतिनिधि को फोन लगाया
और झल्लाते हुए अपनी पीड़ा बताई। वह बोला कि शाम छह बजे आफिस जाऊंगा तब
आपकी बात करवा दूंगा। मैंने छह बजे फिर फोन लगाया तो उसने बात नहीं करवाई
लेकिन कहा, कि अपने नम्बर मैसेज कर दो। मैं मन ही मन फिर झल्लाया और खुद से
कहा कि.. भाई यह काम तो तू सुबह ही करवा सकता था, तेरे को यह नेक ख्याल
आने में आठ से दस घंटे क्यों लग गए। खैर, मैंने उसको मैसेज किया तो उसका
कहना था कि भाईसाहब आपका नेट चालू है। आपके कम्प्यूटर में कोई दिक्कत है,
उसको चैक करवा लें।
उसकी सलाह पर मैने सीपीयू चैक करवाया लेकिन कोई
गड़बड़ नहीं मिली तो। उसको इस संबंध में बताया तो कहने लगा कि आप डोंगल
लेकर कार्यालय आ जाना। वहां दिखाने के बाद डोंगल ठीक हो गया। कम्प्यूटर पर
नेट भी चलने लगा। थोड़ा दिलासा हुआ कि भले ही मैसेज नहीं आया लेकिन नेट तो
चालू है। मतलब बिल संबंधी दिक्कत दूर हो गई है। लेकिन मेरा यह भरोसा दूसरे
ही दिन टूट गया। जब बीकानेर के स्थानीय कार्यालय से फोन आया और पूछा गया कि
आप बिल जमा कब करवा रहे हो? मैं हतप्रभ था। कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या
जवाब दूं। मन में हल्का सा आक्रोश भी था। फिर भी संयमित होकर मैंने जवाब
दिया कि भाईसाहब बिल तो मैं जमा करवा चुका हूं, मेरे पास बाकायद रसीद भी
है। उसने रसीद को कार्यालय में आकर चैक करवाने की बात कहकर फोन काट दिया।
पिछले रविवार दोपहर तीन बजे फिर फोन आया। अटेण्ड किया तो फिर वही
चिर-परिचित डायलॉग, आप बिल जमा कब करवा रहे हो। अब मेरा धैर्य जवाब दे चुका
था। मैंने बिना कोई जवाब दिए सीधे ही कह दिया.. यार, मैंने एमटीएस का
कनेक्शन का लेकर गुनाह कर दिया क्या?। मेरा इस प्रकार का जवाब सुनकर वह
सकपका गया। पूछा भाईसाहब कैसे? मैंने कहा कि मैं कितनी बार बताऊं कि बिल
जमा हो चुका है। मैं 18 सितम्बर को बिल जमा करवा चुका हूं। बिल 891 रु का
आया था और मैंने 900 रुपए जमा करवाया है। मैं पिछले पांच माह से एमटीएस का
ग्राहक हूं और हमेशा बिल समय से पहले ही जमा करवाया है। मेरी बात सुनकर वह
बोला भाईसाहब मैं चैक करवा लेता हूं। हो सकता है बिल की जानकारी अपडेट ना
की गई हो। मैने फिर कहा कि यह आपका मामला है लेकिन मैं कब तक जवाब देता
रहूं। यकीन ना हो तो रसीद लेकर आपके कार्यालय आ जाऊं। संभवत: वह मेरा मिजाज
भांप चुका था, लिहाजा वह थोड़ा नम्र होते हुए बोला, भाईसाहब भविष्य में
आपको हमारे कार्यालय आने की जरूरत नहीं है। हम आपके पास आकर ही बिल की राशि
ले जाएंगे। खैर, उसने कुछ संतोषजनक जवाब जरूर दिया लेकिन मन में शंका
बरकरार थी।
खैर, मंगलवार को फिर वही घटनाक्रम दोहराया गया। सबसे पहले
जयपुर से फोन आया। सामने से कोई मोहरतमा बिलकुल रिकॉर्डेड आवाज तरह बोले जा
रहे थी। मैंने कहा कि आप अपनी ही सुनाएंगी या मेरी भी सुनेंगी। तो बोली आप
को जो कहना है हमारे कार्यालय में जाकर बताइए, मैं कुछ नहीं जानती, आपको
तो बिल जमा करवाना ही पड़ेगा। मैं बिलकुल अवाक था। मोहतरमा की इस तरह के
व्यवहार पर गुस्सा आना लाजिमी थी। मैंने कहा कि मैडम, आपके आफिस मैं क्यों
जाऊं। उसने कहा, आपकी मर्जी और फोन रख दिया। इसके बाद रविवार को एमटीएस के
जिस नम्बर से मेरे पास फोन आया था, उस पर डायल किया तो जवाब आया अरे सर,
आपका बिल जमा है लेकिन एक बार आफिस आ जाओ। मैंने वजह जानी तो बताया कि
सीनियर से मिल लो। मैंने कहा कि आप सीनियर के नम्बर दे दो। उसने नम्बर दिए,
तो मैं चौंक गया।
यह उसी शख्स के नम्बर थे, जिनको मैं पूर्व में कई
बार फोन लगा चुका था लेकिन उन्होंने उठाया नहीं था। महोदय के फोन पर
हैंगओवर की हेलो टून बज रही थी। मैंने मैसेज भी छोड़ा लेकिन कोई जवाब नहीं
आया। इसके बाद मैंने लैंडलाइन से लगाया। संयोग से इस बार फोन उठा लिया गया।
मैंने कहा, अरे सर, आप तो बहुत बिजी हैं। आप तो फोन अटेण्ड ही नहीं करते।
बड़े इंतजार के बाद आपने फोन उठाया है। सामने वाले सज्जन पता नहीं किस बात
पर भन्नाए हुए थे, तपाक से बोले.. बाद में बात करना। बाजार में हूं, बाइक
चला रहा हूं। मैंने कहा सर, आपका शुभनाम क्या है। बोले मेरा नाम ललित है,
आप आधा घंटे बाद कार्यालय में आकर मिलना। मैं आगे कुछ कहता इससे पहले
उन्होंने फोन काट दिया। मैं एमटीएस के नुमाइंदों के व्यवहार एवं
कार्यप्रणाली से बेहद उकता गया था। मन ही मन सोच रहा था कि रात को एमटीएस
का नेट धीमा क्यों हो जाता है? क्यों इतनी बड़ी कंपनी की सेवा संतोषजनक
नहीं है? कर्मचारियों के साथ हुए वार्तालाप के बाद मुझे अपने सवालों के
जवाब कुछ हद तक मिल चुके थे। फिर भी अपनी बात कहने के लिए मैं शाम को
एमटीएस कार्यालय पहुंचा। सबसे पहले बिल जमा करवाने वाले काउंटर पर पहुंचा
और रसीद दिखाते हुए और कुछ अनजान बनते हुए पूछा क्या यह आपने ही दी है?।
पर्ची को देखकर युवक ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी। चूंकि मैं गुस्से में
था और खरी-खोटी सुनाने के पूरे मूड में था। युवक से पूछा कि यह मिस्टर ललित
कौन हैं और कहां मिलेंगे। उसने बगल में इशारा कर दिया कि इस आफिस में
मिलेंगे।
वहां से निकल कर मैं वह बगल वाले कक्ष में घुसा तो वहां बैठे
सुरक्षाकर्मी ने मेरा परिचय पूछा तो मैं बिना कोई भूमिका बनाते हुए सीधे
मिस्टर ललित से मिलने की इच्छा जताई। उसने कहा वो तो बाहर हैं, अभी नहीं
मिल सकते। मैंने कहा कि उनके बाद कोई दूसरा जिम्मेदार तो होगा, जिसको मैं
अपनी बात कह सकूं। तभी एक युवक आया, मैंने उसको अपनी पीड़ा बताई तो वह अंदर
गया। कम्प्यूटर पर कुछ चैक करने के बाद वापस आया और कहने लगा कि आपका बिल
जमा है, आपने तो उल्टे नौ रुपए ज्यादा जमा करवा रखे हैं। मैंने कहा कि जब
यह सब कर रखा तो पिछले दस-बारह दिन से यह नौटंकी क्यों? वह बोला आपका बिल
19 सितम्बर को जमा हुआ है, लेकिन कुछ तकनीकी गड़बड़ की वजह से कम्प्यूटर पर
शो नहीं कर रहा है। इसके बाद उस युवक ने मिस्टर ललित को फोन लगाया और सारी
वस्तुस्थिति से अवगत कराया। मैं तो इस जिद पर अड़ा था कि मुझे एमटीएस के
किसी बड़े पदाधिकारी के नम्बर मिल जाएं ताकि बीकानेर के कर्मचारियों की
कार्यकुशलता की बड़ाई मैं उसके सामने कर सकूं। मैं कोई नम्बर या आईडी मांग
रहा था, लेकिन सामने वाला युवक थोड़ा व्यवहार कुशल लगा। वह भी अपने साथी के
व्यवहार पर अफसोस जताते हुए मेरे से पूछ बैठा भाईसाहब आप कहां के हो। जब
मैंने झुंझुनूं का नाम लिया तो वह झट से पूछ बैठा झुुंझुनूं में कहां के तो
मैंने चिड़ावा तहसील में अपना गांव बता दिया। मेरा इतना कहते ही वह बोला
चिड़ावा में हमारे परिजन भी रहते हैं। मैंने युवक से पूछा तो उसने कहा कि
वह भी झुंझुनूं के मलसीसर का रहने वाला है। उसने अपना नाम प्रदीप खेमका
बताया।
फिर तो वह मेरे से खुलकर बातें करने लगा। उसने बताया कि जयपुर
से जो फोन आ रहा है वह एमटीएस का न होकर एक एजेंसी का है। हम जो बिल जमा
नहीं होते हैं, वह नम्बर एजेंसी को दे देते हैं। वहां से संबंधित उपभोक्ता
के पास फोन आते रहते हैं। आपके पास दुबारा फोन नहीं आएगा। आखिरकार मैं उनके
ऑफिस से बाहर आने लगा और फिर से नम्बर और मेल आईडी मांगी तो वह मुस्कुरा
दिया, मानो कह रहा हो, अब रहने भी दो, इतना कुछ तो सुना चुके। उसने मेरे से
मोबाइल नम्बर लिए, उसके बाद एक मिस्ड कॉल दी और बोला, यह मेरे नम्बर हैं
आप इसे सेव कर लो। खैर, मिस्टर ललित से मिलने की अधूरी हसरत के साथ मैं
वहां से घर लौट आया। आश्वासन तो मिल गया लेकिन मन में यह बात अभी भी घर किए
हुए है क्योंकि मोबाइल पर मैसेज फिर भी नहंी आया है। वैसे मेरे पास उन सभी
कर्मचारियों के मोबाइल नम्बर भी हैं, जिनके साथ मेरा वार्तालाप हुआ। मुझे
सर्वाधिक पीड़ा तो उस ललित गौड़ नामक शख्स से है जो जिम्मेदार पोस्ट पर
होने के बाद भी बचकानी हरकतें करने से बाज नहीं आया। एमटीएस को ऐसे
नौसिखुओं की बजाय किसी व्यवहार कुशल व्यक्ति को जिम्मेदारी देनी चाहिए ताकि
वे उपभोक्ताओं को कम से कम बातों से तो संतुष्ट कर सकें। बहरहाल, मैं इसे
कर्मचारियों की लापरवाही कहूं या तकनीकी दिक्कत लेकिन मामला गंभीर तो है
ही। मैं वह रसीद भी इस पोस्ट के साथ चस्पा कर रहा हूं। बस इसी उम्मीद के
साथ के एमटीएस प्रबंधन के संज्ञान में यह मामला आए ताकि और किसी के साथ ऐसा
अनुभव ना हो।