Wednesday, June 15, 2011

खुदकुशी का सीधा प्रसारण...

यह मात्र संयोग ही है कि दो दिन से लिखने का विषय टीवी चैनल ही बन रहे हैं। वैसे देखा जाए तो इसमें किसी तरह का कोई पूर्वाग्रह भी नहीं है। बस जो देखा और सोचने पर मजबूर कर गया उसी पर कुछ लिखा है। कल शाम यानी मंगलवार 14  जून की ही तो बात है। रिमोट हाथ में लिए टीवी के चैनल आगे-पीछे कर रहा था अचानक एक ब्रेकिंग न्यूज पर नजर पड़ी तो चौंक गया। चैनल किसी खुदकुशी का सीधा प्रसारण दिखा रहा था। यकायक विश्वास नहीं हुआ, भला खुदकुशी का सीधा प्रसारण? अब तक संसदीय कार्यवाही या किसी खेल का ही सीधा प्रसारण देखता आया हूं लिहाजा, खुदकुशी का सीधा प्रसारण देखने के लिए टीवी पर नजरें तल्लीनता एवं उत्सुकता के साथ गड़ा दी। 
खबर छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले से थी, जहां एक प्रेमी युगल ने पानी में कूद कर आत्महत्या करनी चाही। बदकिस्मती कहिए या खुशकिस्मती युवक की डूबने से मौत हो गई लेकिन युवती किसी तरह से बच गई। जैसा कि प्रेम कहानियों में होता आया है। मरने से बची युवती खुद को बचाने का उपक्रम करते हुए पानी में बिछड़े साथी को तलाशने लगी। बस, इसी दौरान सूचना पाकर कुछ चैनल वाले भी वहां पहुंच गए। कवरेज के लिए इससे बढ़िया नजारा और खबर भला और क्या हो सकते थे। देखते- देखते खुदकुशी का सीधा प्रसारण शुरू हो गया। साथ में सीन पर एक्सक्लूसिव... और ओनली ऑन... आदि भी बार-बार लिखा आ रहा था। हैरत तो तब हुई जब किसी कॉमिक्स की तरह युवती के मुंह के आगे घेरा बनाकर बचाओ... बचाओ... लिख दिया गया। भले ही मुंह से वह कुछ और बोल रही हो।
पांच मिनट तक मैं अपलक इस खबर को हैरानी एवं विस्मय के साथ देखता रहा। एक पल सोचा कहीं यह स्वप्न तो नहीं, आंखें जो देख रही थी, उस पर यकायक यकीन नहीं हो रहा था। सिर को थोड़ा झटका देकर मैं यथार्थ की दुनिया में तो लौट आया लेकिन बार-बार यही सवाल मेरे मन मस्तिष्क में कौंध रहा था कि आखिरकार चैनलों की इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा का अंतहीन सिलसिला कब थमेगा। प्रतिस्पर्धा के इस युग में क्या मानवीय संवेदनाएं इसी तरह दम तोड़ती रहेंगी। क्या उस डूबती युवती के दृश्य को फिल्माने वाला कोई इंसान नहीं था। क्या उसके सीने में कोई दिल नहीं था। अगर हकीकत में वह बचाओ... बचाओ... चिल्ला रही थी तो मानवीयता के नाते क्यों उसको दया नहीं आई।
खैर, बाद में इस मामले का क्या हुआ मैं फालोअप नहीं कर पाया। अति व्यस्तता के चलते मैं दूसरे कामों में लग गया।  लेकिन खबर को याद कर सोचने पर विवश हो जाता हूं। खुदकुशी के सीधे प्रसारणों से चैनलों की टीआरपी तो भले ही बढ़ जाए लेकिन दिलों में जगह नहीं बन सकती। बेहतर होता खुदकुशी का दृश्य फिल्माने वाला कैमरामैन अपना कैमरा अपने किसी दूसरे साथी के हाथ में सौंप कर जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रही युवती की मदद को आगे आता। अगर चैनल पर युवती की मदद करने का दृश्य  दिखाया जाता तो शायद दर्शकों की दाद ज्यादा मिलती। अपने मुंह बड़ाई वाली बात नहीं है अगर उस जगह मैं होता तो मेरी पहली प्राथमिकता  युवती को बचाना ही होती।