Friday, December 7, 2012

आप शुरुआत तो कीजिए...


टिप्पणी 


माननीय, पुलिस अधीक्षक, दुर्ग
काफी समय से आप दुर्ग जिले की कमान संभाल रहे हैं। इस दौरान दुर्ग एवं भिलाई की यातायात व्यवस्था का तो आपको अच्छा-खासा अनुभव हो गया होगा। दोनों शहरों की हालत कमोबेश एक जैसी ही है। सड़कों पर न तो कहीं यातायात नियमों का पालन होता है और न ही आपके मातहत नियमों के प

ालन के प्रति गंभीर नजर आते हैं। आलम यह है कि दोनों शहरों की सड़कों पर पैदल चलना भी खतरे से खाली नहीं है। शायद ही ऐसा कोई दिन नहीं बीतता है जब इन शहरों के अंदरुनी इलाकों से हादसों की खबरें न आती हों। वाहनों चालकों में यातायात पुलिस का जरा भी खौफ नजर ही नहीं आता। यह डर क्यों, कब एवं कैसे गायब हुआ, आपको भी पता है। डर होता तो क्या दुपहिया वाहन चालक बिना हेलमेट चलते? क्या दुपहिया पर तीन-तीन, चार-चार लोग सवारी करते? क्या स्कूली बच्चे बिना लाइसेंस वाहन दौड़ाते? इतना ही नहीं, चलते वाहन पर मोबाइल फोन पर बात करना, सीट बेल्ट न लगना, नम्बर की जगह संगठन और खुद का नाम, कारों के शीशों पर काली फिल्म और सरकारी वाहनों की तर्ज पर लाल पट्टी बनवा लेना भी यातायात नियमों से खिलवाड़ है। लेकिन दुर्ग-भिलाई में यह सब आम है। यह सब रोकने की जिम्मेदारी जिन पर है, वे कहते हैं- कार्रवाई हो रही है। सोचिए, अगर कार्रवाई होती तो क्या इस प्रकार यातायात नियमों का मजाक बनता?
दुर्ग-भिलाई के ऑटो चालकों को तो मानो आपके मातहतों ने मनमानी का अघोषित परमिट दे दिया है। क्षमता से अधिक सवारी बैठाना, जहां मर्जी ब्रेक लगाना, मर्जी से ही रूट बदल देना मनमानी नहीं तो और क्या है? किसी वीआईपी के आगमन के दौरान यातायात पुलिस एवं परिवहन विभाग के बीच गजब का तालमेल दिखता है? सड़कों से पशु गायब हो जाते हैं। फोरलेन की सर्विस लेन पर भी कोई वाहन खड़ा नजर नहीं आता। ऐसे चौराहों पर भी यातायात पुलिसकर्मी मुस्तैद नजर आते हैं, जहां सामान्य दिनों में कभी उनको देखा तक नहीं जाता। क्या ऐसा रोजाना नहीं हो सकता? ऐसा कभी होता भी है तो वसूली पर ध्यान 'यादा होता है। येन-केन-प्रकारेण लक्ष्य हासिल हो जाए। उसके बाद व्यवस्था फिर पुराने ढर्रे पर लौट आती है। अगर आप यातायात नियमों की कड़ाई से पालना करवाएंगे तो यह जनहित का बड़ा काम होगा। और फिर आपको न तो लक्ष्य हासिल करने के लिए विशेष अभियान चलाने की जरूरत पड़ेगी और न ही न्यायालय के दिशा-निर्देश पर दिन-रात एक करना पड़ेगा। लोग व्यवस्था बनाने में सहयोग को तैयार बैठे हैं, बस जरूरत शुरुआत करने की है।



साभार : पत्रिका भिलाई के 5 दिसम्बर 12  के अंक में प्रकाशित।