Monday, March 4, 2019

खेत से खेल तक कहीं नहीं हैं खौफ लेकिन चौपालों में चर्चाओं का विषय बदला

श्रीगंगानगर। पहले पुलवामा में आतंकी हमला। इसके बाद हिन्दुमलकोट क्षेत्र में फायरिंग और उसी दिन देर रात अनूपगढ़-रायसिंहनगर क्षेत्र में पाक की तरफ से आसमान में दो तेज धमाकों के साथ विमान की गडग़ड़ाहट सुनाई देना। पड़ोसी मुल्क की इन तीन हरकतों के बावजूद श्रीगंगानगर जिले की सीमा से लगते गांवों में किसी तरह का कोई खौफ नहीं है। पत्रिका टीम ने हिन्दुमलकोट से लेकर घड़साना तक सरहद से सटे छह गांवों में जाकर मौके के हाल जाने। सरहदी गांवों का माहौल, मौके के हालात भी समान दिखाई दिए। ग्रामीणों की भावनाओं को कुरेदा गया तो कमोबेश हर गांव की कहानी एक जैसी मिली। किसान खेतों में पहले की तरह की काम में जुटे हैं, वहीं गांव के युवा शाम को खेलने में मशगूल हो जाते हैं। कहीं कबड्डी खेली जा रही है तो वॉलीबाल। ग्रामीणों में चौपाल में कहीं हुक्के के सुट्टे हैं तो कहीं ताशपत्ती से मनोरंजन किया जा रहा है। लब्बोलुआब यह है कि सरहद क्षेत्र में सब कुछ सामान्य ही है। सब कुछ पहले जैसा ही है। हां भावना लगभग सभी की समान ही है। सभी चाहते हैं पाकिस्तान को इस बार सबक ठीक से सिखाना चाहिए ताकि भविष्य में कभी लड़ाई की सोचे ही नहीं।

१. मिर्जेवाला (हिन्दुमलकोट) क्षेत्र के गांव दौलतपुरा से लाइव
माहौल- जनजीवन सामान्य है। कामकाज पहले की तरह ही चल रहा है। चौपाल से खेत तक सब सामान्य।
मौके के हालात- चौपाल में ग्रामीण ताजा घटनाक्रमों की चर्चा करते मिले। किसान खेतों में व्यस्त दिखाई दिए।
ग्रामीणों की भावना- सेना का साथ पहले भी दिया था। इस बार भी सेना बदला लेगी इसका पूरा भरोसा है।

२. केसरीङ्क्षसहपुर क्षेत्र के गांव ७ एस द्वितीय से लाइव
माहौल- तारबंदी के पार खेती वाले किसान जरूर आशंकित हैं। बाकी सब सामान्य। दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं।
मौके के हालात- पाकिस्तान की धोखे से हरकत करने की बात की चर्चा। डर व भय नहीं, कहते हैं 'अठै कीं कोनी Ó।
ग्रामीणों की भावना- युद्ध हुआ तो गांव खाली नहीं करेंगे। सेना का सहयोग करेंगे, साथ देंगे।

श्रीकरणपुर क्षेत्र के गांव शेखसरपाल से लाइव
माहौल- जनजीवन सामान्य। दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं। ग्रामीणों में किसी तरह का भय या खौफ नहीं।
मौके के हालात- रोजमर्रा के काम करते मिलते ग्रामीण। गांव के युवा वॉलीबाल खेलते हुए मिले।
ग्रामीणों की भावना- जवानों का साथ देना चाहते हैं। पाकिस्तान को फिर से पटकनी देने की हसरत है।

रायसिंहनगर क्षेत्र के गांव काकूसिंह वाला से लाइव
माहौल- सब सामान्य है। खेत खलिहान से चौपाल तक पड़ोसी मुल्क से बदला लेने के चर्चा है।
मौके के हालात- बिना किसी भय के गांव की चौपाल पर ताशपत्ती खेलने में मशगूल मिले।
ग्रामीणों की भावना-आर पार की लड़ाई चाहते हैं। देश सेवा के लिए हर पल तैयार।

अनूपगढ़ क्षेत्र के गांव 27 से लाइव
माहौल- सब कुछ पहले जैसा। किसी तरह का कोई तनाव नहीं। ग्रामीण अपने अपने कामों में व्यस्त।
मौके के हालात- गांव में चल रही कबड्डी प्रतियोगिता देखकर उत्साहित थे ग्रामीण। हूटिंग भी कर रहे थे।
ग्रामीणों की भावना- इस बार नापाक हरकत का मुंह तोड़ जवाब दिया जाए ताकि दुबारा हिमाकत ही ना करे।

घड़साना क्षेत्र के गांव 8 केएसएम से लाइव
माहौल- सब कुछ सामान्य है। ग्रामीणों के उत्साह में किसी तरह की कोई कोई कमी नहीं। दिनचर्या में बदलाव नहीं।
मौके के हालात- ग्रामीण हीं ताशपत्ती खेलते तो कहीं हथाई करते मिले। युवाओं में खेल में व्यस्त नजर आए।
ग्रामीणों की भावना- कायरना हरकतों को पाकिस्तान को करारा जवाब मिलना चाहिए। सेना का सहयोग करने का तैयार।
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राजस्थान पत्रिका के 27 फरवरी 19 के अंक में तमाम संस्करणों में प्रकाशित।

सावधान! फोन पर मांगी जा रही सेना से जुड़ी जानकारी!

इंटनेट के माध्यम से किए जा रहे हैं फोन, पाक की करतूत का अंदेशा
श्रीगंगानगर. भारत-पाक के मध्य बढ़े तनाव के बीच एक नए तरीके का मामला सामने आया है। सरहद से सटे गांव के लोगों के पास तेरह डिजिट के नंबर से फोन आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि यह फोन इंटरनेट की मदद से किए जा रहे हैं। फोन करने वाला भारतीय सेना की लोकेशन संबंधी जानकारी मांगता है। एेसे में यह पड़ोसी मुल्क की करतूत भी हो सकती है। एेसा ही एक फोन सोमासर सरपंच पति तथा टिब्बा क्षेत्र संघर्ष समिति का संयोजक राकेश बिश्नोई के पास आया । राकेश बिश्नोई अभी एटा सिंगरासर माइनर निर्माण के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के कारण चर्चा में रहे हैं। राकेश बिश्नोई ने बताया कि बुधवार सुबह साढ़े दस बजे के करीब उनके पास तेरह डिजिट वाले नंबरों से फोन आया। फोन करने वाले ने उससे सीमा पर भारतीय सेना है या नहीं? है तो कब से है? तथा क्या कर रही है ? आदि सवाल दागे लेकिन राकेश बिश्नोई ने इनका जवाब देने में असमर्थता जताते हुए पुलिस थाने में संपर्क करने को कहा। सवाल करने वाले ने सैन्य वाहनों व टैंकों की संख्या भी पूछी लेकिन उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी। फोन +3444172258965 नंबर से आया और दो मिनट चौबीस सेकंड तक बातचीत हुई लेकिन बिश्नोई ने उसको कोई जवाब नहीं दिया। बिश्नोई ने कहा कि इस तरह का फोन किसी के पास आ सकता है, इसलिए सेना से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी शेयर नहीं करें।
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राजस्थान पत्रिका के 28 फरवरी 19 के अंक में प्रकाशित।

पहली बार आए भारत, 100 अरब डॉलर के निवेश की खुली राह


सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान 90 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक
पुलवामा आतंकी हमले के बीच अगर कोई चर्चा में रहा है तो उनमें सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान का नाम भी आता है। सलमान चर्चा में इसीलिए भी क्योंकि पुलवामा आतंकी हमले के बाद उन्होंने पाक की यात्रा की। सलमान के पाक से सीधे भारत आने पर जब भारत सरकार ने आपत्ति दर्ज कराई, तो वह पाक से पहले रियाद लौटे और फिर वहां से भारत आए। सलमान की यह पहली यात्रा थी। सलमान को एमबीएस नाम से भी जाना जाता है। वे अथाह संपत्ति के मालिक हैं तथा शाही जीवन शैली के लिए अक्सर चर्चा में रहते हैं।
सलमान का जन्म 31 अगस्त 1985 को हुआ था। एक रिपोर्ट के मुताबिक सलमान 90 हजार करोड़ रुपए की संपत्ति के मालिक हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रिंस सलमान ने 3200 करोड़ रुपए की यॉट, 2,936 करोड़ रुपए की द विंची की पेंटिंग और 1,957 करोड़ रुपए में फ्रांसीसी महल खरीदे थे। इसके कारण वे सुर्खियों में रहे।
सलमान को सऊदी अरब की आतंकवाद निरोधक इकाई के प्रमुख के तौर पर साल 2003-06 में आतंकवादी संगठन अलकायदा के ठिकाने पर बमबारी करने के लिए भी जाना जाता है।
भले ही उनके भारत व पाक दौरे पर कई तरह की बातें की गई हों लेकिन उन्होंने पाकिस्तान के साथ 20 अरब डॉलर के करार किए जबकि भारत व सऊदी अरब के बीच पांच करार हुए। सऊदी अरब, भारत में 100 अरब डॉलर (करीब 7.1 लाख करोड़ रु) का निवेश करेगा।
प्रिंस ने 850 भारतीय कैदियों को रिहा करने के आदेश भी दिए। एक अन्य रिपोर्ट के हिसाब से सलमान ने भारतीय हज यात्रियों की संख्या को बढ़ाकर 2 लाख कर दिया है। विदित रहे कि सऊदी अरब ने भारत के लिए आवंटित हज कोटे में करीब 25 हजार की बढ़ोतरी की है। इस कारण यह कोटा अब दो लाख हो गया है।
पिछले साल 1,75,025 लोग हज पर गए थे। काबिलगौर है कि सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है। सऊदी अरब भारत की कुल जरूरत का 17 प्रतिशत कच्चा तेल और 32 प्रतिशत एलपीजी मुहैया करा रहा है। ऐसे में कालांतर में इस यात्रा के परिणाम भी दिखाई देंगे।
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  राजस्थान पत्रिका के संपादकीय पेज पर 25 फरवरी 19 के अंक में तमाम संस्करणों में प्रकाशित। 


पाक जा रहा पानी रुके तो 30 % बढ़ जाएगा फसलों का उत्पादन

श्रीगंगानगर. आतंकी धमाके से निकली पानी की सियासत कोई नई नहीं है। पिछले तीन दशक में सतलुज और व्यास नदियों का 15 से 20 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) से ज्यादा पानी पाकिस्तान जा चुका है।
यह इतना पानी है कि इससे इंदिरा गांधी नहर को लगातार तीन साल तक चलाया जा सकता है। केन्द्र सरकार भारत के हिस्से का पानी रोकने की दिशा में गंभीरता से अमल करे तो देश के कई इलाकों की तस्वीर बदल जाएगी। अकेले राजस्थान को पाकिस्तान बहकर जाने वाले सतलुज और व्यास नदी के पानी का बीस प्रतिशत हिस्सा ही मिले तो इंदिरा गांधी नहर के साथ-साथ भाखड़ा और गंगनहर के किसानों को सिंचाई के लिए साल भर पानी की कमी नहीं रहेगी।
इस पानी का असर सीधे तौर पर खरीफ व रबी दोनों फसलों के उत्पादन पर पड़ेगा। इससे फसलों का उत्पादन तीस प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
रावी पर बांध निर्माण का काम धीमा
रावी के पानी को पाक जाने से रोकने के लिए शाहपुर कंडी बांध के निर्माण का काम पंजाब और जम्मू कश्मीर के बीच विवाद और केन्द्र से पर्याप्त राशि नहीं मिलने के कारण समय पर नहीं हो पाया। इसका निर्माण होने से रावी के पाक जाने वाले पानी का उपयोग पंजाब—राजस्थान कर सकेंगे।
नहर की मरम्मत हो तो हमारे 10 जिलों को लाभ
इंदिरा गांधी नहर: 10 से 11 हजार क्यूसेक पानी मिल रहा। क्षमता 18500 क्यूसेक, क्षतिग्रस्त होने के कारण नहीं ले सकती 12 हजार क्यूसेक से अधिक पानी। पुनर्निर्माण हो और पानी पाक न जाए तो मिलने लगेगा 1000 से 2000 क्यूसेक तक अतिरिक्त पानी। राजस्थान के 10 जिलों को मिलेगा लाभ।
गंगनहर : 2000 क्यूसेक पानी मिल रहा। क्षमता 3000 क्यूसेक। फिरोजपुर फीडर नहर का पुनर्निर्माण हो और पानी पाक न जाए तो 2500 से 3000 क्यूसेक तक पानी मिलने लगेगा।
भाखड़ा नहर : 1200 क्यूसेक पानी इंदिरा गांधी नहर से मिल रहा है। इस नहर का पुनर्निर्माण हो जाए और पानी पाक जाना रुक जाए तो 400-500 क्यूसेक पानी और मिलने लगेगा।
दोनों नहरें जर्जर हालत में
30 हजार से घटकर 20 हजार क्यूसेक रह गई है जलग्रहण क्षमता।
अगर बांधों से पानी की आवक 25 से 30 हजार क्यूसेक होगी तो 5 से 10 हजार क्यूसेक पानी पाक चला जाएगा।
बरसात के दिनों में हरिके हैडवक्र्स पर पानी की आवक 50 हजार से 1 लाख क्यूसेक प्रतिदिन हो जाती है तब अथाह जल राशि पाक जाती है।
इन पर हो काम तब देश में रुकेगा पानी
1. राजस्थान फीडर और फिरोजपुर फीडर का जीर्णोद्धार।
2. हुसैनीवाला हैडवक्र्स के गेटों की मरम्मत।
3. पाक जाने वाले पानी के उपयोग के लिए नहरी तंत्र को मजबूत और नई नहरों का निर्माण।
4. रोपड़ बांध के अलावा हरिके और हुसैनीवाला हैडवक्र्स का नियंत्रण भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड को
दिया जाए।
ऐसे समझिए पानी
का गणित
पिछले आठ वर्षों में हरिके हैडवक्र्स से 63 लाख 984 क्यूसेक डेज पानी पाकिस्तान जा चुका है। वर्ष 2009-10 में 16 हजार, 2011-12 में 11 लाख 30 हजार, 2011-12
में 22 लाख 8 हजार, 2012-13 में 51 हजार 500, 2013-14 में 16 लाख 27 हजार 500, वर्ष 2014-15 में 4 लाख, 2015-16 में पांच लाख तथा वर्ष 2016-17 में लगभग 8 लाख क्यूसेक डेज पानी पाकिस्तान गया।
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राजस्थान पत्रिका के 25 फरवरी 19 के अंक में राजस्थान के लगभग सभी संस्करणों में  प्रकाशित ।

मंत्रीजी झुंझुनूं आए क्यों थे!

बस यूं ही
रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा गुरुवार को झुंझुनूं आए थे। उनके जाने के बाद लोगों के जेहन में अब एक ही सवाल है कि मंत्रीजी झुंझुनूं आए क्यों थे? हालांकि मंत्रीजी के आने से पहले यह उम्मीद थी कि शायद वो कोई बड़ी सौगात देकर जाएंगे। खैर, मंत्रीजी आए और चले गए लेकिन न माया मिली न राम वाली कहावत चरितार्थ जरूर कर गए। हां आए थे सो कुछ तो करना बनता ही था, लिहाजा सीकर- दिल्ली के बीच केवल तीन दिन चलने वाली ट्रेन का नाम जरूर सैनिक एक्सप्रेस रख गए, वह भी झुंझुनूं सांसद के आग्रह पर। नामकरण शायद इसलिए कि यह सैनिक बाहुल्य इलाका है। सेना व सैनिकों के प्रति यहां के लोगों में श्रद्धा है। सम्मान है। यहां सेना के नाम से ही लोग खुश हो जाते हैं। रेल सैनिकों के नाम से चलेगी तो लोगों की भावनाएं खुद ब खुद जुड़ जाएंगी। और जब भावनाएं ही जुड़ जाएंगी तो और कुछ करने की जरूरत भी कहां रह जाती है। शायद इसी फीडबैक/ सुझाव के आधार पर मंत्रीजी इस ट्रेन का नाम सैनिक एक्सप्रेस करने की घोषणा कर गए, लेकिन भूल भी गए। यह नाम तो 25 साल पहले ही रखा जा चुका है। 1992 में तत्कालीन रेल मंत्री जाफर शरीफ इस रेल का नाम सैनिक एक्सप्रेस रख चुके हैं। तब भी यह सीकर-दिल्ली के बीच चलती थी, लेकिन नियमित थी। मीटर गेज लाइन हटी तो यह ट्रेन बंद हो गई। आमान परिवर्तन के बाद इस ट्रेन का संचालन फिर शुरू हुआ, वह भी सप्ताह में तीन दिन। स्थान वो ही सीकर से दिल्ली। लाइन नई तो रेल भी नई। शायद यही सोचकर सैनिक बाहुल्य इलाके को नामकरण की यह सौगात दी गई है। फिर भी कितना अच्छा होता वो इस ट्रेन को नियमित करने की घोषणा कर के जाते, पर वो एेसा कर न सके। करें भी क्यों? जब लोग नाम से ही खुश हो रहे हैं तो मंत्रीजी और ज्यादा देवे भी क्यों?
खैर, मंत्रीजी का दौरा था। इस कारण सीकर व झुंझुनूं के सांसद भी जुटे थे तो। एेसे में कुछ तो होना ही था। और नहीं तो मंत्रीजी डिस्प्ले बोर्ड ( नेशनल ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम) का उद्घाटन ही कर गए। यह बात अलग है कि इस ट्रेक पर रेलों की संख्या ज्यादा नहीं है, लिहाजा इस बोर्ड का हाल फिलहाल ज्यादा उपयोग होगा भी नहीं। वैसे मंत्रीजी इस रेल को अगले माह से रींगस तक बढ़ाने तथा मई तक जयपुर तक करने की कहकर गए हैं। देखने की बात यह है कि मंत्रीजी की बात सच साबित होती है या नहीं। काश! उनकी यह घोषणा सच ही साबित हो क्योंकि समय की पालना पहले भी नहीं हुई।

जब ग्रामीणों ने ट्रैक्ट्ररों को बना दिया था 'टैंक'

दो दिन तक रोके रखा था पाक सेना को
श्रीगंगानगर/ श्रीकरणपुर.
यह कहानी जिले के श्रीकरणपुर उपखंड के सीमा से सटे गांव नग्गी की है। बात करीब 47 साल पुरानी है, जब ग्रामीणों ने दो दिन तक अपने दम पर पाक सैनिकों को आगे बढऩे से रोक दिया था। दरअसल, भारत-पाक के मध्य 1971 में हुए युद्ध को समाप्त हुए दस दिन बीत चुके थे। सीमा पर तैनात भारतीय सेना लौट चुकी थी। सरहद पर सब कुछ सामान्य हो गया था, लेकिन सीमा के उस पार धोखे से हमला करने की साजिश रची गई। इसके बाद पाक सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए और करीब एक किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना को जब पाक की इस नापाक करतूत की जानकारी मिली तो चार पैरा बटालियन को क्षेत्र मुक्त करवाने की जिम्मेदारी सौंपी गई। भारतीय सेना को मौके पर पहुंचने पर कुछ विलम्ब हुआ। सीमा पर पाक सैनिकों व टैंकों का जमावड़ा देख नग्गी के ग्रामीण चिंतित तो हुए लेकिन उन्होंने दिमाग से काम लिया। आसपास के गांवों से ट्रैक्टर एकत्रित कर उनके साइलेंसर निकाल लिए गए। इसके बाद तेज आवाज में उनको गांव में घुमाया गया। बिना साइलेंसर के ट्रैक्टरों की आवाज को पाक सैनिकों ने टैंकों की आवाज समझा और दो दिन तक वह आगे नहीं बढ़ पाए। इसके बाद भारतीय सेना ने आकर मोर्चा संभाल लिया था। क्षेत्रवासियों की ओर से सेना को दी मदद का आज भी सैन्य अधिकारी आभार जताते हैं। वहीं इस घटना के साक्षी जो कि अब उम्रदराज हो चुके हैं, वे इसे अपना फर्ज मानते हैं।
मात्र दो घंटे में खदेड़ दिया था पाक सेना को
आदेश मिलने के बाद 4 पैरा बटालियन ने 28 दिसम्बर की सुबह चार बजे पाक सैनिकों पर हमला बोला।मात्र दो घंटे की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना को फिर पराजय का मुंह देखना पड़ा और उसके सैनिक भाग खड़े हुए। भारतीय सेना के आक्रमण को विफल करने के लिए पाकिस्तानी सेना ने तोप से 72 गोले बरसाए जिससे 4 पैरा बटालियन के 4 अधिकारी व 21 जवान शहीद हो गए। युद्ध में शहीद रणबांकुरों की स्मृति में उसी जगह पर एक स्मारक बनाया गया। भारत पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज पांच सौ फीट दूर यह स्मारक आज भी उन वीरों की याद दिलाता है। यह लड़ाई भारतीय सेना के इतिहास में 'सैंड ड्यूनÓ के नाम से दर्ज है।
आज भी तैयार हैं ग्रामीण
नग्गी के ग्रामीण 1971 की तरह सेना की मदद को तैयार हैं। बुजुर्ग ग्रामीणों योगराज मेघवाल व अर्जुन राम ने आतंकी हमले की निंदा करते हुए कड़े कदम उठाकर की बात कही। उन्होंने 1971 के युद्ध का जिक्र करते हुए बताया कि उस समय पाक ने गांव नग्गी में कई बम गिराए गए लेकिन वे गांव छोड़कर नहीं भागे और सेना का सहयोग किया। यही वजह थी कि कुछ ही देर में दुश्मनों को घर का रास्ता दिखा दिया गया। वार्ड पंच शिवभगवान मेघवाल, राजकुमार शर्मा, रामप्रताप मेघवाल, सतपाल डूडी, भानीराम ने कहा कि पाक को करारा जवाब देने के लिए वे आज भी सेना का हरसंभव सहयोग करने को तैयार हैं।
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राजस्थान पत्रिका के तमाम संस्करणों में 21 फरवरी 19 के अंक में प्रकाशित

शहीद की परिभाषा नहीं-3


बस यूं ही
सेनाओं में भारतीय सेना, वायुसेना व नौसेना शामिल हैं। सेना युद्ध के वक्त की मोर्चा संभालती है। युद्ध न होने या सामान्य दिनों में सेना के जवान छावनी में रहते हैं। वैसे सेना, वायुसेना व नौ सेना के लिए अलग-अलग रिहायशी क्षेत्र बनाए गए हैं। युद्ध नहीं होता है, तो सेनाएं वहीं रहती हैं हालांकि नौसेना का काम थोड़ा अलग है। उसका काम समुद्री सीमाओं की सुरक्षा का है। एेसे में शांति के समय भी नौ सैनिकों को समुद्री सीमाओं पर तैनात रहना पड़ता है। यह तीनों सेनाएं रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करती है। सेना में लेफ्टिनेंट, मेजर, कनज़्ल, ब्रिगेडियर, मेजर जनरल आदि रैंक होती हैं. सैनिकों को रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलती है। तीनों सेनाओं में करीब साढ़े तेरह लाख सैनिक हैं।
अब बात करते हैं अद्र्धसैनिक बलों की। इनमें सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसफ, असम राइफल्स व एसएसबी शामिल हैं। वर्तमान में अद्र्धसैनिक बलों के जवानों की संख्या नौ लाख से ज्यादा बताई जाती है। इनमें भी सिविल पुलिस की तरह कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, एएसआई, असिस्टेंट कमांडेंट और कमांडेंट, डीआईजी, आईजी और डीजी की पोस्ट होती है। अद्र्धसैनिक बलों को सेवानिवृत्ति के बाद सेना की तरह पेंशन नहीं मिलती है। अद्र्धसैनिक बल गृह मंत्रालय के अधीन हैं। कौनसे बल को कहां तैनात किया जाता है तथा उसकी क्या भूमिका होती है। इसको हम इस तरह से समझ सकते हैं। सीआरपीएफ को आतंकवाद व नक्सल प्रभावित इलाकों में तैनात किया जाता है। इसको केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल भी कहा जाता है। इसी तरह बीएसएफ जिसे सीमा सुरक्षा बल भी कहते हैं। इसके जवानों को बांग्लादेश व पाकिस्तान से सटी सीमा पर तैनात किया जाता है। एक तरह से बीएसएफ शांति के समय सरहद की निगरानी रखती है। युद्ध काल में बीएसएफ की जगह सेना के जवान मोर्चा संभालते हैं। इसी तरह आईटीबीपी जिसे भारत-तिब्बत सीमा पुलिस भी कहा जाता है, इसके जवानों को भारत-तिब्ब्त सीमा पर लगाया जाता है। केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल अर्थात सीआईएसएफ पर सरकारी उपक्रमों की सुरक्षा की जिम्मा रहता है। असम राइफल्स के जवानों को असम के उग्रवाद प्रभावित इलाकों में तैनात किया जाता है तो एसएसबी मतलब सशस्त्र सीमा बल को भारत-नेपाल सीमा लगाया जाता है।
बहरहाल, सबसे ज्वलंत मसला अद्र्धसैनिकों बलों द्वारा सेना जैसी सुविधाओं व सहुलियतों की मांग करना है। अद्र्धसैनिक बलों की शिकायत यह है कि वह भी लगभग सेना जैसी परिस्थितियों में ही काम करते हैं। इतना ही नहीं देश के भीतर तथा सीमाओं पर तैनात रहते हैं, इसलिए उनको भी सेना की तरह सेवा शर्तें व सम्मान मिलना चाहिए।
अक्सर आम लोग भी लोग सेना और अद्र्धसैनिक बलों को एक मानने या समझने की भूल कर बैठते हैं। पुलवामा हमले के बाद तो इस बात ने ज्यादा जोर पकड़ा है। फिर भी सेना व अद्र्धसैनिक बलों का काम और सेवा शर्ते अलग-अलग होती हैं। अद्र्धसैनिक बलों की पेंशन संबंधी मांग को कॉन्‍फेडरेशन ऑफ रिटायर्ड पैरा मिलिट्री एसोसिएशन के महासचिव रणवीर सिंह के बयान से समझा जा सकता है। यह बयान उन्होंने एक वेबसाइट को दिया था। उनका कहना था कि 'सातवें वेतन आयोग में अद्र्धसैनिक बलों को सिविलयन मान लिया गया है। उनको वन रैंक वन पेंशन की बात तो दूर, सातवें वेतन आयोग में उनको भत्ता तक नहीं दिया। अद्र्धसैनिकों की न केवल पेंशन बंद कर दी गई है, बल्कि सैनिकों की तरह एमएसपी (सैन्य सेवा वेतन) भी नहीं दिया जाता है। उन्होंने बताया कि सेना के जवानों को कैंटीन में जीएसटी की छूट दी गई है, लेकिन अद्र्धसैनिक बलों के जवानों को कैंटीन में जीएसटी से कोई छूट नहीं मिली है। Ó फिर भी निष्कर्ष के रूप में यह जरूर कहा जा सकता है कि अद्र्धसैनिक बल भी सेना के साथ मिलकर देश और देश के नागरिकों सुरक्षा करते हैं, इसलिए उनकी सेवा को भी कम नहीं आंका जा सकता है।
-इति

सेना के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध को तैयार

श्रीगंगानगर . पाक सीमा से सटे श्रीगंगानगर जिले के ग्रामीण अब आरपार की लड़ाई के मूड में हैं। सरहदी गांवों के लोग कहते हैं कि इस बार वो सेना के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध करने को तैयार हैं। युद्ध हुआ तो पीछे नहीं हटेंगे। हिन्दुमलकोट में इसी बात की चर्चा है कि पाक को जवाब कैसे दें? अनूपगढ़ क्षेत्र में सीमा से ढाई किमी दूर आबाद गांव 27 ए और 32 ए में ग्रामीणों की चौपाल में अब चर्चा फसल-पानी की न होकर पुलवामा के शहीदों और केन्द्र सरकार की ओर से सेना को दी गई छूट की है। 1971 का युद्ध देख चुके गांव नग्गी के मामराज ने कहा कि उस समय पाक ने नग्गी में कई बम गिराए, लेकिन गांव छोड़कर नहीं भागे। पूर्व सरपंच रणजीत कहते हैं कि पाक सीमा पर नजर रखने के लिए कई ग्रामीण रात को पानी की बारी लगवा रहे हैं।

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.राजस्थान पत्रिका के लगभग सभी संस्करणों में 20 फरवरी 19 के अंक में प्रकाशित 

शहीद की परिभाषा नहीं-2

बस यूं ही
दरअसल शहीद के दर्जे की मांग से तात्पर्य उस सुविधा व पैकेज से भी जुड़ा है, जिसमें कइयों को ज्यादा भत्ता व पैकेज मिलता है तो कइयों को कम। वैसे तो यह सरकारों की इच्छा शक्ति तथा शहीद होने परिस्थितियों पर निर्भर होता है कि जवान ने किस हालात में प्राण गंवाए लेकिन इसको भी देश सेवा ही जोड़ा जाता है। वैसे नैतिक दृष्टि से शहीद को लेकर कोई विवाद नहीं है। जो सीमा, मजहब या सरोकार की रक्षार्थ प्राणोत्सर्ग करे वह शहीद है। खैर, इनके सबके बावजूद एक सवाल लोगों के जेहन में और तैरता है, वह यह कि जब शहीद का दर्जा होता ही नहीं है तो अखबार व टीवी उनको शहीद क्यों पुकारते व प्रचारित करते हैं? वैसे मेरा मानना है कि शहीद को और कोई नाम देना बेमानी है। शहीद वही है जो देशहित में किसी खास उद्देश्य के लिए लड़ता हुआ प्राण त्याग दे। अगर कोई भागते हुए मारा जाता है तो वह शहीद नहीं हो सकता है। कई बार नेताओं को भी शहीद पुकारा जाता है, विशेषकर किसी बड़े पद पर रहते हुए जिनकी हत्या हो जाती है। यह बात दीगर है कि हताहत नेता देश सेवा से जुड़े थे लेकिन किसी युद्ध के मोर्चे पर नहीं थे। वैसे प्राणोत्सर्ग करने के बाद किसको क्या मिलना यह मिलना है यह तो भर्ती के समय ही तय हो जाता है। इतना होने के बावजूद युद्ध या ऑपरेशन में प्राणोत्सर्ग करने वालों के लिए शहीद की बजाय दो नाम जरूर तय किए गए हैं। एक है बैटल कैजुअल्टी तो दूसरा है ऑपरेशन केजुअल्टी। बैटल कैजुअल्टी मतलब लड़ाई में प्राण त्यागना और ऑपरेशन केजुअल्ट का अर्थ है कि किसी कार्रवाई में प्राण त्यागना। हां शहादत को सम्मान किस तरह का देना है? आर्थिक लाभ मसलन पेट्रोल पंप या पुरस्कार राशि यह सरकारों पर भी निर्भर होता है। इसके लिए सर्व सामान्य या सर्व स्वीकृत नियम भी नहीं है। अक्सर विवाद या बहस की वजह भी यही विषय बनते हैं कि फलां शहीद को इतना पैकेज मिला तो और फलां को इतना। भत्तों या पैकेज में अंतर भी बड़े असंतोष का बड़ा कारण भी बन जाता है।
बहरहाल, अद्र्धसैनिकों को शहीद का दर्जा देने के साथ-साथ उनकी पेंशन बंद का मामला भी गरमाया हुआ है। पेंशन के पीछे न मिलने के क्या कारण हैं तथा अद्र्धसैनिकों में कौनसी फोर्सेज शामिल हैं, पहले यह जानना भी जरूरी है।
क्रमश:

शहीद की परिभाषा ही नहीं-1

बस यूं ही
आजकल शहीद शब्द प्रासंगिक हैं। विशेषकर पुलवामा में जवानों के काफिले पर आतंकी हमले के बाद यह शब्द जबरदस्त प्रचलन में है। इसके साथ ही कई तरह के सवाल भी हैं, मसलन, शहीद कौन होता है? शहीद किसे कहते हैं? यह दर्जा कौन देता है? सैनिकों को शहीद तो अर्ध्दसैनिकों को शहीद का दर्जा क्यों नहीं? इस तरह के सवालों को लेकर सोशल मीडिया पर भी अच्छी खासी बहस चल रही है। कुछ इसी तरह के मामले में मेरा खुद का वास्ता भी आज पड़ा, लिहाजा मन किया कि इस विषय में लोगों की जो शंकाएं हैं, उनको दूर किया जाए। एक व्हाट्सएप ग्रुप में आज सुबह-सुबह ही एक मैसेज देखा। मैसेज क्या वह एक सवाल ही था, सीआरपीएफ के जवानों को शहीद का दर्जा दिया है या नहीं? कृपया अवगत कराएं। उसी के नीचे दूसरा संदेश था, अभी तक तो कोई आदेश नहीं हुआ शायद। फिर तीसरे साथी ने लिखा, फिर मीडिया इस शब्द का प्रयोग कर रही है, शायद चांस है? चौथे का मैसेज आया। यह मैसेज भी उन्हीं का था जिन्होंने पहला संदेश लिखा था। ना पेंशन मिलती है ना शहीद का दर्जा है, फिर हम इसके लिए मांग क्यों नहीं करते? फिर बहस लंबी चली। और इसी बहस का हिस्सा मैं था तो लगा इस तरह के सवाल और भी कई लोगों के होंगे। जरूर उनके जेहन में सवाल खड़ा होगा कि आखिर शहीद किसको माना जाता है और किसको नहीं?
दरअसल, लंबे समय से इस बात का जवाब मिला ही नहीं है कि शहीद किसको माना जाए। देश हित के लिए युद्ध में प्राणोत्सर्ग करने वाला शहीद है या आजादी की लड़ाई में संघर्ष कर प्राण न्योछावर करने वाले शहीद हैं। या एेसे राजनेता जिनकी देश के लिए कार्य करते समय हत्या हो गई वो शहीद हैं? सेना व अर्ध्दसैनिक बलों में अप्राकृतिक मौत पर भी लोग आजकल शहीद का दर्जा चाहते हैं। इतना ही नहीं युद्ध के अलावा छोटी मोटी सैन्य कार्रवाई में जान गंवाने वालों को भी शहीद का दर्जा देने की मांग उठती है। पाक समर्थित आंतकी हमलों में शिकार जवानों को भी शहीद प्रचारित किया जाता है।
खैर, इन सबके बीच महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे देश में शहीद की कोई स्पष्ट परिभाषा ही नहीं है। करीब तीन साल पहले देश के गृह राज्य मंत्री किरण रिजीजु ने लोकसभा में कहा था कि शहीद की कोई परिभाषा नहीं है। इतना ही नहीं सशस्त्र सेना और रक्षा मंत्रालय ने भी शहीद की कोई व्याख्या नहीं की है। अब फिर सवाल उठता है कि जब परिभाषा ही नहीं है तो फिर शहीद कहा क्यों जाता है? एेसे में साधारण रूप से मानकर चला जाता है कि सरकार के आदेश पर देश व जनता की सुरक्षा के लिए सेना जब देश के बाहर के दुश्मनों से लड़ती है। और इस दौरान जो सैनिक काल कवलित हो जाता है, उनको शहीद कहा जाता है। यही कारण है भारत की सुरक्षा करते हुए चीन व पाकिस्तान की लड़ाई में प्राणोत्सर्ग करने वाले सैनिकों को शहीद कहा जाता है।
क्रमश:

अब और नहीं #AbAurNahi

हो जाए आर या पार
शायद यह पहला मौका था जब देश में शुक्रवार सुबह न सुप्रभात हुई और ना ही गुड मोर्निंग। सुबह से ही सबके मोबाइल पर संवेदनाओं का सैलाब था। सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों पर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि देने की होड़ सी लगी थी तो गम और गुस्से में डूबा देश एक सुर में इस नापाक हरकत का मुंह तोड़ जवाब देने को उठ खड़ा हुआ। आक्रोश की आग में जल रहे देशवासियों की जुबां पर महज दो बातें, अब और नहीं, आर या पार ही थी। निहत्थे जवानों पर धोखे से किए शर्मनाक व कायराना हमले के खिलाफ देशवासियों को खून खौल रहा है। सब्र का बांध सीमाएं तोड़कर बदला लेने को आमादा हैं। आंसू तो अब आक्रोश में तब्दील हो चुके हैं। पानी नाक से ऊपर आ चुका है, सियासी बयानों से विश्वास उठने लगा है। देशवासियों को अब कुछ कहने या सुनने में यकीन नहीं है। वो अब कुछ कर गुजरने के अलावा और कुछ चाहते ही नहीं हैं। यह बात दीगर है कि हमारा देश हमेशा शांति का पक्षधर रहा है लेकिन इसका यह भी मतलब नहीं है कि शराफत का नाजायज फायदा ही उठा लिया जाए। सोचिए, शेर अगर दहाडऩा व शिकार करना छोड़ दे तो फिर गीदड़ भी आंख दिखाने की हिमाकत करने लगते हैं। सांप काटना छोड़ दे तो लोग खिलौना न बना लें। समय का तकाजा यही है कि मौका मिलने पर अपनी शक्ति दिखा देनी चाहिए। इस बार एेसी शक्ति दिखानी चाहिए कि पड़ोसी मुल्क की सात पुश्तें भी इस शक्ति को याद कर कर के कांप उठे।
यह सब करना इसीलिए भी जरूरी है कि ताकि सुरक्षा बलों का मनोबल ऊंचा बना रहे। आज समूचे देश ने एक सुर में जो संदेश दिया है यकीनन वह सेना का हौसला बढ़ाने वाला है, लेकिन इस तरह के हमलों के जवाब में कोई कार्रवाई होती रहे तो जवानों को यह भी लगता रहे कि उन्होंने अपने निहत्थे साथियों की मौत का बदला ले लिया। आज देश ही नहीं जवान भी बदले की आग में झुलस रहे हैं। उनको दुश्मन को नेस्तनाबूद करने को कह दिया गया है। यकीनन हमारे रणबांकुरे यह सब करके इतिहास रचेंगे। बात चाहे 1948 की हो, 1965 की हो, 1971 की हो या फिर करगिल युद्ध की। हमारे बहादुर सैनिकों ने हमेशा ही फतह हासिल की है लेकिन इस बार दिल कुछ एेसा चाहता है कि भविष्य में फिर कभी युद्ध जैसी नौबत आए ही नहीं। मतलब आर या पार....#AbAurNahi