Saturday, December 16, 2017

इक बंजारा गाए-13

भलाई की भी मार्केटिंग !
दान और भलाई, कोई गुपचुप करता है तो कोई ढोल के साथ इनका प्रचार करता है। कम करके ज्यादा प्रचारित करने वालों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है। श्रीगंगानगर में भी प्रचार के भूखे कई लोग हैं। फिलवक्त एक संस्था भलाई कार्यों में जुटी है। इसे प्रचारित करने के लिए बाकायदा मीडिया मैनेजमेंट भी किया गया है। माह में बीस दिन से ज्यादा दिन तक भलाई की मार्केटिंग की जाती है। हाल ही में हुई 'घर' वापसी के बाद मुखिया जी के भलाई कार्यों का ढोल और बुलंद हो गया है। वैसे इस मार्केटिंग के पर्दे के पीछे का सच जानकारों की नजर में हैं। भलाई कार्यों में पैसा पल्ले से लग रहा है या सरकारी योजनाओं के चलते लिया जा रहा है, यह तो अप्रचारित विषय है, लेकिन सच यह भी है कि भलाई की मार्केटिंग में प्रचार करने तथा करवाने वाले दोनों ही पक्षों के हित जुड़े हैं, तभी तो गठजोड़ जारी है।
समय-समय की बात
खाकी में इन दिनों कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। शहर व जिले में लगातार हुई आपराधिक वारदातों ने सर्द मौसम में खाकी के अंदर गर्माहट पैदा कर रखी है। दूसरी गर्माहट एक थानाधिकारी के बदलने की भी। बड़ी मुद्दत के बाद इनको शहर में लाया गया था, लेकिन पता नहीं अंदरखाने क्या उठक पटक हुई कि थानेदार जी का न केवल थाना बदला बल्कि जिला ही बदल गया। महकमे में यह तबादला इन दिनों अच्छी खासी चर्चा का विषय बना हुआ है। लोग 'एक दिन के थानेदार जी' कह कर मजे ले रहे हैं। मामला किस्मत व पहुंच का भी है। शहर में ही एक ऐसे थानेदार जी भी हैं, जिनको हटाने का हिम्मत जिले के आला अधिकारी ही नहीं, रेंज के अधिकारी भी नहीं जुटा पा रहे हैं। खैर, सेटिंग बनने व बिगडऩे के ये दो जीते जागते उदाहरण हैं।
कौन सच्चा, कौन झूठा?
पिछले दिनों पड़ोसी प्रदेश पंजाब में श्रीगंगानगर इसे लगते इलाके में पुलिस चौकी का उद्घाटन हुआ। इस दौरान ग्रामीणों ने खुलेआम कहा कि नशा राजस्थान से आ रहा है। ग्रामीणों ने बाकायदा नशे के कारोबार के लिए साधुवाली व सादुलशहर का नाम भी बताया। यह भी संयोग है कि जिस दिन इस चौकी का उद्घाटन हुआ, उसी दिन श्रीगंगानगर में राजस्थान व पंजाब पुलिस के अधिकारी कानून की समीक्षा कर रहे थे और सब कुछ ठीक बता रहे थे। ऐसे में सवाल यह खदबदा रहा है कि पुलिस सच्ची है या वो ग्रामीण? यकीनन इस मामले में एक पक्ष तो झूठा है। नशे के कारोबार के रंग-ढंग देखने से तो यही प्रतीत होता है कि ग्रामीणों की बातों में दम ज्यादा है। पुलिस का क्या, उसने तो जब सब कुछ ठीक बताया था, उसी दिन एक युवक की गोली मारकर हत्या तक कर दी गई थी।
प्रधान जी को ग्रुप का खौफ
सोशल मीडिया के जितने फायदे हैं, उससे कम नुकसान भी नहीं हैं। वह भी तब जब सोशल मीडिया से जुडऩे वाले को तकनीक रूप से ज्यादा जानकारी नहीं हो। जानकारी का अभाव कभी-कभी मुसीबत भी खड़ी कर देता है। दरअसल, यहां जो भूमिका है वह एक शिक्षक संस्थान के प्रधान से संबंधित है। मामला थोड़ा पुराना जरूर है, लेकिन रोचक है। प्रधानजी विभाग के ही एक व्हाट्सएप गु्रप से जुड़े थे। एक दिन ग्रुप में उनसे कथित आपत्तिजनक वीडियो पोस्ट हो गया। हालांकि यह जांच का विषय है कि यह सब जानबूझकर हुआ या भूलवश, लेकिन मामला ऊपर तक पहुंच गया और आनन-फानन में प्रधान जी की सजा मुकर्रर कर दी गई। गाहे-बगाहे अनुशासन का पाठ पढ़ाने वाले प्रधान जी सोशल मीडिया के फेर में ऐसे फंसे कि अब तो ग्रुप का नाम ही उनको डराने लगा है।
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 राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 14 दिसंबर 17 के अंक में.प्रकाशित

लाइलाज खिलवाड़!

टिप्पणी
बंदर के हाथ अगर उस्तरा लग जाए तो फिर क्या होगा, सहज ही अंदाजा लगाया सकता है। कुछ इसी तरह का अनुभव सीवरेज लाइन बिछाने के दौरान हो रहा है। हालात यह हैं कि लाइन बिछाने के नाम पर रोजाना नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। एक तरह से शहर को प्रयोगशाला बना रखा है। ठेका कंपनी की ब्रांडिंग करती पीली टोपी और हाफ जैकेट पहने कंपनी के नुमाइंदों में कौन मजदूर है और कौन इंजीनियर, शहरवासी आज तक इस पहेली को नहीं सुलझा सके। 'नौसिखिए' कभी गली को दायीं तरफ से खोद देते हैं तो कभी बायीं तरफ से। कहीं किसी गली में गड्ढे लंबे समय से खुदे ही पड़े हैं तो कहीं मिट्टी के गुबार लोगों का जीना हराम कर रहे हैं। कहीं चैंबर नालियों के बीच आ गए हैं तो कहीं अचानक ही खुदाई शुरू कर दी जाती है। इन तमाम हालात को देखकर लगता है कि ये महत्वपूर्ण काम न तो किसी कार्य योजना के तहत हो रहा है और न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी इसे देखने वाला है। कुछ दिन पहले प्रशासन ने खुद स्वीकार किया कि सीवरेज लाइन बिछा रही कंपनी के इंजीनियरों का अनुभव कम है। वे जानते हैं कि जोड़-तोड़ के काम का खामियाजा भविष्य में शहरवासी भुगतेंगे, इसके बावजूद प्रयोगों के नाम पर लोगों को हो रही परेशानी का स्थायी हल नहीं खोजा जा रहा। सीवरेज काम में जुटे अमले की बेतरतीब कार्यशैली को देखकर लगता है जैसे शहर में 'अनाडिय़ों का कुनबा' इकट्ठा हो गया हो।
अकेले मॉडल टाउन में काम काज की बानगी देखिए। जिस सड़क को सबसे पहले तोड़ा गया, वहां आज तक सड़क नहीं बनी, जबकि जिनको बाद में तोड़ा गया वहां सभी काम हो गए और सड़क भी बन गई। खुदाई की गई कई जगहों पर हाथो-हाथ कंकरीट बिछा दी गई, तो कहीं पर मिट्टी डाल दी गई। यह मिट्टी तीन माह से वाहनों की आवाजाही से उड़ती रही। कंपनी की मर्जी हुई तब पानी छिड़कवा दिया अन्यथा लोग धूल फांकते रहे। काम में अनाड़ीपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मॉडल टाउन की एक गली में पहले चैंबर बना दिए गए। बाद में नाली बनाई तो चैंबर नाली के बीच में आ गए। ऐसे में नाली निर्माण अधूरा छोड़ दिया गया है। अब चैंबर्स को उखाड़कर फिर से लगाया जाएगा तभी नाली का काम पूरा होगा। समूचे कामकाज में एक बात यह भी है कि इसे चरणबद्ध तरीके से होना बताया जा रहा है, लेकिन काम का प्रबंधन सही नहीं है। एक जगह काम पूरा होता नहीं है उससे पहले अगली गली में शुरू कर दिया जाता है।
बहरहाल, सीवरेज लाइन बिछाने वाली कंपनी मनमर्जी से काम कर रही है। मौजूदा हालात व परिस्थितियां देखते हुए उसकी मनमर्जी पर अंकुश लगाने की हिम्मत प्रशासन में भी दिखाई नहीं देती। प्रशासन के हाथ क्यों बंधे हैं, इसकी वजह जानने की भी जरूरत है। लोग परेशान हैं। धूल फांक रहे हैं। जन सेवकों ने जनता को उसके हाल पर छोड़ रखा है। 'अंधेर नगरी चौपट राजा' के हालात बने हुए हैं। व्यवस्था में लग रहा जंग समय रहते हटाना बेहद जरूरी है। काम कैसा भी हो, पूरा होते ही कंपनी को भुगतान कर दिया जाएगा। सरकारी टेंडरों में परम्परागत तय हिस्सा पाने के लिए स्थानीय कार्यकारी एजेंसी के अधिकारी भी चुप्पी साधे काम पूरा होने की राह देख रहे हैं। शांति बनाए रखने के लिए शुभचिंतकों को भी कंपनी की ओर से 'धन्यवाद' किया जाएगा, लेकिन इस 'खिलवाड़' के खिलाफ शहरवासियों को तो जागना चाहिए। समय रहते जख्म का इलाज हो जाए तो अच्छा, अन्यथा वह नासूर बन जाता है। काम व्यवस्था के हिसाब से हो और प्रबंधन प्रभावी तरीके से हो। प्रशासन को भी समय-समय पर निरीक्षण कर कंपनी की कार्यकुशलता को जांच लेना चाहिए।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 10 दिसंबर 17 के अंक में प्रकाशित

अपने तो यह समझ नहीं आया

बस यूं ही
जीएसटी को लेकर समूचे देश में बवाल मचा था। अब भी गाहे-बगाहे कोई कोई न कोई मामला सामने आ ही जाता है। वैसे हकीकत यह है कि संबंधित विभाग भी इसके नियम-कायदों को समझ नहीं पाया है। सही बात तो यह है कि अपने को भी समझ नहीं आया है। दरअसल कल बाजार से वेटिंग मशीन (वजन तौलने की मशीन) खरीदने गया। पहली दुकान पर माथापच्ची करने के बाद दूसरी दुकान से आखिरकार मशीन खरीद ली। अब विस्तार से बताता हूं। श्रीगंगानगर के गोलबाजार पब्लिक पार्क स्थित खेल के सामान की दुकान है। सिल्वर स्पोटर्स। यहां भाव ताव कम ही होता है। मतलब फीक्स रेट है। लेना है तो लेओ अन्यथा दूसरी दुकान देखो वाला मामला है। मैंने यहा वेटिंग मशीन दिखाने को कहा। सेल्समैन मशीन लाया। प्रिंट रेट 25 सौ रुपए से अधिक थी। मैंने कीमत पूछी तो बताया कि 790 की पड़ेगी। मैंने कहा कोई गारंटी-वारंटी है क्या तो दुकानदार ने साफ तौर पर मना कर दिया। इस के बाद पैकेट से मशीन निकालकर देखी तो उसमें वारंटी कार्ड निकला। मैंने दुकानदार को कहा कि आप तो मना रहे थे, यह क्या है? तो उसने कहा कि सर्विस श्रीगंगानगर में तो होती नहीं है। मशीन को जालंधर भेजना होता है। भेजने का खर्चा ही इतना हो जाता है कि इससे अच्छा तो नई खरीद लो। मैंने फिर सवाल दागा फिर एेसी मशीन बेचते ही क्यों हो? बिना वारंटी वाली ही बेचा करो। इस पर उसने दलील दी कि हम प्रिंट रेट से कम ले रहे हैं, यह क्या कम है। आप दूसरे बाजार में जाआेगे तो आपको प्रिंट रेट ही देनी पड़ेगी। यहां मामला जमा नहीं तो मैं पड़ोस की दूसरी दुकान पर आ गया। इसका नाम है न्यू सिल्वर स्पोटर्स। यहां मशीन देखी तो उसने 550 रुपए बताए। प्रिंट रेट 1370 रुपए लिखे थे। आखिरकार मशीन ले ली गई। उसने बाकायदा कम्प्यूटर में डाटा फीड करके प्रिंटर से प्रिंट निकाला। उसने अपने हस्ताक्षर किए और बिल दे दिया। मैंने बिल पर देखा तो मशीन का मूल्य 466 रुपए दस पैसे लिखा था। इसके बाद नौ प्रतिशत सीजीएसटी के 41 रुपए 95 पैसे तथा नौ प्रतिशत ही एसजीएसटी के 41 रुपए 95 पैसे काटे गए थे। दोनों को मिलाकर 83 रुपए 90 पैसे हो गए। बस बिल देखने के बाद सवालों का सिलसिला शुरू हो गया। मैं समझ नहीं पाया कि यह कटौती कैसे व कौनसे मूल्य को आधार मानकर की गई? जीएसटी का नाम तो सुना पर यह सीजीएसटी व एसजीएसटी क्या हैं? प्रिंट रेट व वास्तविक मूल्य में अंतर क्यों व कैसे आ रहा है। टैक्स कितना कटता है? कैसे कटता है? प्रिंट रेट पर कटता है? या दुकानदार अपनी मर्जी से मूल्य मानकर अंदाजे से काटता है? क्या वाकई उसने एक नंबर में सामान बेचा? क्या कोई कर चोरी नहीं की? सवाल जेहन में आए तो फिर आते ही चले गए लेकिन जवाब नहीं मिला। यह सब इसलिए लिख रहा हूं ताकि कोई जानकार यह बताए कि यह कैसे होता है। इसका तरीका क्या है।

इक बंजारा गाए-12

दिल है कि मानता नहीं
राजनीति में उम्र मायने नहीं रखती और इसमें आदमी कभी रिटायर भी नहीं होता। जैसे ही कोई चुनाव आने को होते हैं, लोग पिछला 'दर्दÓ भुलाकर नए सिरे से जुट जाते हैं। इस काम में बड़ा योगदान होता है शक्ति प्रदर्शन का, ताकि पार्टी के आकाओं को यह पता चल सके है कि अमुक आदमी का कितना बड़ा जनाधार है। खैर, कौन कितने पानी में है यह तो सबको पता ही होता है, फिर भी जोर आजमाइश जरूरी है। यह भी सभी जानते हैं कि शक्ति प्रदर्शन स्वयं स्फूर्त कितना होता है और कितना प्रायोजित? फिर भी टिकट के जुगाड़ के लिए यह सब करना पड़ता है। श्रीगंगानगर में भी राजनीति के पुराने खिलाड़ी चुनाव नजदीक देख फिर सक्रिय हो गए हैं। अब चुनाव लडऩे की इच्छा खुद की है, लेकिन यह बात सीधे न कहकर कार्यकताओं का आग्रह बताकर प्रचारित करवाई जा रही है। वाकई राजनीति में भी कई तरह के पापड़ बेलने होते हैं।
निर्दलीय का ही सहारा
नगर परिषद में सियासी घालमेल इस कदर है कि पार्टी का टिकट भी मायने नहीं रखता। मामला परिषद के एक वार्ड में हो रहे उप चुनाव का है। यहां कांग्रेस ने प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा। योग्य प्रत्याशी मिला नहीं है या यह चुनावी रणनीति का हिस्सा है, ये तो पार्टी पदाधिकारी ही बेहतर जानते हैं, लेकिन इसके कई कयास लगाए जा रहे हैं। उधर, भाजपा ने अपना प्रत्याशी जरूर घोषित किया है। विधानसभा चुनाव नजदीक होने के बावजूद कांग्रेस का बैकफुट पर आना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। राजनीतिक जानकार इस उप चुनाव को सभापति से जोड़कर भी देख रहे हैं, जो कि सर्वदलीय सभापति बने हुए हैं। वार्ड में एक जाति समुदाय के वोट ज्यादा होने तथा भाजपा द्वारा उसी समुदाय की महिला को टिकट देने के कारण कांग्रेस की रणनीति असफल हो गई। पार्टी अब निर्दलीय को समर्थन कर रही है। निर्दलीय भी उसी समुदाय से है। अब देखना है कि ऊंट किस करवट बैठता है?
केवल खानापूर्ति
श्रीगंगानगर में सफाई व्यवस्था संतोषजनक क्यों नहीं है? इसकी बड़ी वजह यह भी है कि जिम्मेदार लोग जो व्यवस्था बनाते हैं उसकी गंभीरता से पालना तो कतई नहीं होती। दिखावे के तौर पर हलचल जरूर होती है। ऐसा ही इन दिनों नगर परिषद कर रही है। परिषद के अधिकारी व जन प्रतिनिधि स्वच्छता को लेकर कार्यक्रम कर रहे हैं। अब मामला स्वच्छता से जुड़ा है तो उसके लिए धरातल पर काम भी करना होगा। सिर्फ जागरुकता विषयक कार्यक्रम से ही शहर साफ होता तो कब का हो चुका होता। हास्यास्पद हालात तो तब पैदा होते हैं जब स्वच्छता पर जोर दिया जाता है, लेकिन हकीकत को नजर अंदाज किया जाता है। मंगलवार को जहां स्वच्छता विषयक कार्यक्रम हुआ, उसी पार्क के आसपास नालियां ओवरफ्लो थीं, जबकि कचरा पात्र कचरे से अटे थे। ऐसे में यह कार्यक्रम महज औपचारिक ही नजर आते हैं।
प्रयोगशाला बना शहर
अक्सर प्रयोग वहां किए जाते हैं जहां परिणाम को लेकर कोई आश्वस्त नहीं होता। इसलिए बार-बार प्रयोग करके चैक किया जाता है ताकि बाद में कोई दिक्कत न आए। शहर में इन दिनों सीवरेज व पेयजल पाइप लाइन बिछाने का काम चल रहा है। इस काम की आड़ में शहर को प्रयोगशाला बना दिया गया है। एक ही रास्ते को कभी आड़ा तो कभी तिरछा खोद दिया जाता है। कभी एक तरफ से तो कभी दूसरी तरफ से। आमजन परेशान होता है तो होता रहे हैं, लेकिन प्रयोग लगातार जारी है। यह सब जानते हुए भी कि काम करने वाले योग्यता तो रखते हैं, लेकिन अनुभवहीन हैं। अब इन नौसिखियों ने हालात इस कदर खराब कर दिए हैं कि एक भी रास्ता पैदल चलने लायक नहीं बचा। इनके कामकाज एवं तौर-तरीकों से साफ लगता है कि इनको मनमर्जी से काम करने की छूट मिली हुई है। लगता नहीं कि कोई उनके काम को चैक करता है या समीक्षा करता है। इस चुप्पी के पीछे कोई रहस्य तो जरूर है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 8 दिसम्बर 17 के अंक में प्रकाशित 

भाई से बात करवाओ

बस यूं ही
समय यही कोई सवा एक बजे के करीब होगा। मेरे मोबाइल पर दिल्ली के लैंडलाइन नंबर से कॉल आई। थोड़ी देर में ट्रयू कॉलर पर नाम आया कोटक। मैंने कॉल उठाया तो सामने वाला पूछता है आप महेन्द्र शेखावत बोल रहे हैं । मैंने हां कह दिया इसके बाद का वार्तालाप सुनिए।
सही में महेन्द्र शेखावत ही बोल रहे हैं ना?
हां भई हां महेन्द्र शेखावत ही बोल रहा हूं।
क्या नरेन्द्र शेखावत आपका भाई है?
कौन नरेन्द्र शेखावत। इस नाम का मेरा कोई भाई नहंी है।
अरे नरेन्द्र शेखावत आपका भाई है ना।
अरे भाई हम तीन भाई हैं। बड़े का केशरसिंह, बीच वाले का सत्यवीरसिंह और मेरा महेन्द्र नाम है।
नहीं-नहीं आप झूठ बोले रहे हैं। आप नरेन्द्र शेखावत से बात करवाओ।
मैंने थोड़ी तल्ख आवाज में कहा, आप कहां से बोल रहे हैं?
कोटक से बोल रहे हैं।
अरे कहां से पूछ रहा हूं।
बताया ना कोटक से।
कोई शहर का नाम भी होगा?
हम नोएडा दिल्ली से बोल रहे हैं।
हां तो बताएं क्या काम है?
आपका नंबर रेफरेंन्स में लिखा हुआ है। नरेन्द्र शेखावत आपकी जान पहचान का है।
अरे भई कहा ना मैं किसी नरेन्द्र शेखावत को नहीं जानता।
तो फिर आपके नंबर क्यों दिए?
यह मुझे क्या पता। आपने फार्म लिया तब मुझसे कन्फर्म किया था क्या?
अरे आप झूठ बोल रहे हैं। बात कराओ ना नरेन्द्र शेखावत से।
भाई आपके समझ क्यों नहीं आता है। मैं मेरे आफिस से बोल रहा हूं।
मैं उसको बार-बार समझाता रहा लेकिन वो मानने को तैयार ही नहीं। मैंने थोड़े से तल्ख लहजे में उसको कहा कि भाईसाहब आप ख्वामखाह क्यों परेशान कर रहे हैं। मैं सच कह रहा हूं नरेन्द्र शेखावत नाम का शख्स कोई मेरा भाई नहंी है। आखिरकार झुंझलाते हुए उसने फोन रख दिया। करीब दो मिनट तेरह सेकंड का यह वार्तालाप हुआ। उसने अपना परिचय शायद महेन्द्रा बैंक या फायनेंस दिया था। यकीनन किसी ने कोई लोन उठाया होगा। मैं सोच में डूबा था कि कोई इस तरह भी नंबर का इस्तेमाल कर सकता है। करने वाले ने लाभ उठा लिया लेकिन उसका खामियाजा मेरे को नाहक ही भुगतना पड़ा। सच में मैं दिनभर यही सोचता रहा कि लोग क्या-क्या करने लगे हैं। मेरे से भूल यह हो गई कि मैं उससे नरेन्द्र शेखावत के पिता का नाम व एड्रेस नहीं पूछ पाया। वरना मैं भी मेरी तफ्तीश के घोड़े तो दौड़ाता। हां जिस नंबर से फोन आया था वह नंबर 01147035415 थे।

इस तरह बच गई जिंदगी

बस यूं ही
सोमवार सुबह जयपुर से रवाना हुआ। दोपहर बाद सरदारशहर पहुंचा तो श्रीमती का फोन आ गया। कहने लगी आज तो घर के सामने एक बड़ा मामला हो गया। बडे़ मामले का नाम सुनकर मैं थोड़ा सकपकाया और पूछा क्या हुआ? इसके बाद उसने जो बताया उसे सुनकर खुशी भी हुई और मन में कई तरह के ख्याल भी आए। दरअसल, सुबह 11 बजे तेज आवाज आई। बाहर जाकर देखा तो एक युवक घायलावस्था में कराह रहा था। पूरा शरीर लहूलुहान हो गया था। उसको टक्कर मारने वाला दूसरा मोटरसाइकिल सवार वहां से जा चुका था। इसके बाद हमारे मकान मालिक श्री अंबालाल भाटी ने तत्काल उस युवक को संभाला। हमारी श्रीमती निर्मल कंवर ने अपनी ओढ़णी (लूगड़ी ) दी ताकि युवक के सिर से बहते खून को रोका जा सके। तत्काल ओढ़णी को सिर पर लपेटा। अब युवक इस हालत में था कि उसको बाइक पर ले जाना संभव नहीं था। भाटी अंकल ने तत्काल श्रीमती से मेरी कार की चाबी मांगी। श्रीमती ने मौके की नजाकत देखते हुए तत्काल कार की चॉबी अंकल को सौंप दी। बिना वक्त गंवाए अंकल उसको तत्काल अस्पताल लेकर चले गए। बताया कि हादसे में युवक के सिर में फ्रेक्चर हुआ बताया। परिजन बाद में उसको निजी अस्पताल ले गए बताए, जहां उसकी हालत खतरे से बाहर बताई गई है। युवक श्रीगंगानगर जिले के रत्तेवाला गांव का बताया गया है तथा श्रीगंगानगर में किसी मेडिकल दुकान पर काम करता है।
कौन करता है एेसे मदद
शाम को दो युवक घर आए, जो उस युवक के परिजन थे। दोनों ने हाथ जोड़ते हुए कहा कि मतलब व स्वार्थ के इस दौर में कौन इस तरह मदद करता है। लोग तो पुलिस के चक्कर में इस तरह के मामलों में मदद ही नहीं करना चाहते।। युवक मदद के लिए बार-बार धन्यवाद ज्ञापित कर रहे थे। इसके बाद श्रीमती ने घायल युवक का हेलमेट, रुपए व पैन इन युवकों को सौंप दिया। सच में इस तरह के काम से जो आत्मिक सुख मिलता है, उसको शब्दों में बयां करना मुश्किल हो जाता है। यह नेक व पुनीत काम है इसका कोई मोल नहीं होता है। काश, इस तरह की सेवा का जज्बा सबके मन में हो।

मनमर्जी का निर्णय

टिप्पणी
श्रीगंगानगर से अंबाला के बीच चलने वाली अंबाला इंटरसिटी ट्रेन को शुक्रवार को बंद कर दिया गया। इस ट्रेन का आगामी ढाई माह तक संचालन नहीं होगा। इसी तरह श्रीगंगानगर से हावड़ा के बीच चलने वाली उद्यान आभा तूफान एक्सप्रेस को तीन दिसम्बर से बंद कर दिया जाएगा। यह ट्रेन 18 फरवरी तक रद्द रहेगी। इस अवधि में उद्यान आभा का संचालन आगरा से हावड़ा के बीच होता रहेगा। श्रीगंगानगर से आगरा के बीच इस ट्रेन का संचालन नहीं होगा। बीकानेर मंडल की इन दोनों ट्रेन को रेलवे बोर्ड की ओर से रद्द किया गया है। इसके पीछे कारण कोहरा व ठंड को बताया गया है। कोहरे व ठंड के कारण इन रेलों को हर साल इसी तरह से रद्द किया जा रहा है। ऐसा करते हुए दस साल से अधिक समय हो गया है। बीच में एक बार जनाक्रोश को देखते हुए रेलवे ने संचालन शुरू कर दिया था, बाकी हर साल रेलों का संचालन इसी समय रद्द किया जाता है। फिलहाल श्रीगंगानगर और आसपास के क्षेत्र में न कोहरा है न ही ठंड, फिर भी ट्रेन का संचालन बंद कर दिया गया है। अजीब बात यह है कि इसी मार्ग पर बीकानेर-से दिल्ली वाया श्रीगंगानगर चलने वाली बीकानेर-सरायरोहिल्ला एक्सप्रेस का संचालन यथावत है।
इस तरह कहा जा सकता है कि तूफान एक्सप्रेस को बंद करना रेलवे का मनमर्जी का फैसला है। सर्दी और कोहरा हो तब हादसे की आशंका रहती है। ट्रेन समय पर भी नहीं पहुंचती है। तब इस तरह का फैसला लिया भी जाना चाहिए लेकिन वर्तमान में मौसम एकदम साफ है। ट्रेन का संचालन शुरू हो इसके लिए स्थानीय सांसद ने रेलवे बोर्ड के चैयरमैन से मुलाकात की बताई लेकिन वहां बात नहीं बनी। इस बात को सांसद ने खुद स्वीकार किया है। सांसद का कहना है कि अब वे इस बाबत रेल मंत्री से मिलेंगे। खैर, सांसद की बात पर रेल मंत्री कितना गौर करेंगे यह अभी भविष्य की बात है लेकिन रेलों का संचालन बंद होने से यात्रियों को यकीनन परेशानी होगी। अकेली उद्यान आभा से पांच सौ से अधिक यात्री प्रतिदिन यात्रा करते हैं। सेना के जवान भी बड़ी संख्या में इस गाड़ी में आवाजाही करते हैं। अब हावड़ा या उत्तरप्रदेश, बिहार जाने वालों को यह ट्रेन आगरा से पकडऩी होगी। ऐसे में सोचा जा सकता है कि इन यात्रियों को आगरा पहुंचने में कितने पापड़ बेलने होंगे। जेब पर अतिरिक्त खर्चा बढ़ेगा सो अलग।
विडम्बना देखिए गाहे-बगाहे रेलवे संवेदनशील होने के उदाहरण पेश करता हैं। कभी किसी को एक फोन पर ही मदद मिल जाती है तो कभी कोई ट्वीट करके रेल मंत्री से सहायता पा लेता है लेकिन श्रीगंगानगर में लोगों की पुरजोर मांग व सांसद के कहने के बावजूद रेल बोर्ड सुनवाई नहीं कर रहा है। इस मामले में रेलवे की संवदेनशीलता कहां चली जाती है। रेलवे एक फैसले को लेकर लकीर का फकीर क्यों बना हुआ है। मौसम साफ हो तथा रेल संचालन किसी तरह से प्रभावित न हो तो फिर क्या पुराने फैसलों की नए सिरे से समीक्षा नहीं की जानी चाहिए? बिना कोहरे के ही रेलों का संचालन रद्द करना एक तरह की मनमर्जी ही है। स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी इस मामले में और अधिक गंभीरता के साथ प्रयास करने चाहिए।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 03 दिसंबर 17 के अंक में.प्रकाशित

इक बंजारा गाए-11

🔺रेहडिय़ों का राज
शहर में वैसे तो रेहडिय़ां (हाथ ठेले) कई जगह खड़े होते हैं। दिन ढलने के साथ ही रेहड़ीवाले अपनी दुकानदारी समेटकर घर चले जाते हैं लेकिन इन दिनों शिव चौक व अग्रसेन चौक के पास तथा चहल चौक से आगे हनुमानगढ़ रोड पर देर रात कई रेहडिय़ां खड़ी रहती हैं। अधिकतर रेहडिय़ों पर आमलेट व नमकीन आदि की बिक्री होती है। कई बार तो पुलिस की गाड़ी भी इन रेहडिय़ों के पास से गुजर जाती है, लेकिन इतनी देर रात को बिक्री करने तथा उन पर आने वाले ग्राहकों के बारे में पड़ताल नहीं होती है। वैसे रेहड़ी खड़ी होने की मूल वजह वालों पर ही जब कोई कार्रवाई नहंी होती है तो इन पर कार्रवाई कैसे हो भला। देखा जाए तो श्रीगंगानगर जिले में हर जगह मंथली का शोर सुनाई देता है। देर रात रेहड़ी खड़े होने के पीछे भी कहीं कोई मंथली का चक्कर तो नहीं?
🔺सम्मान की चिंता
इसे मानवीय कमजोरी भी कहा जा सकता है, क्योंकि सम्मान की भूख पात्र व अपात्र सभी लोगों में होती है। कुछ करके सम्मान पाने की बात तो समझ में आती है, लेकिन बिना कोई काम किए या मुकाम हासिल किए ही सम्मान की घोषणा कर दी जाए तो कैसा लगेगा। जिले में कन्या भू्रण हत्या की रोकथाम व जनजागृति विषयक कार्यक्रमों के लिए हाल में नियुक्त किए लोगों ने अभी ठीक से प्रशिक्षण भी नहीं लिया था लेकिन विभाग प्रमुख ने बाकायदा प्रेस नोट भी जारी कर दिया कि सभी का सम्मान किया जाएगा। बाकायदा सम्मानित होने वालों की सूची भी जारी कर दी। लाडो बचेगी या नहीं, परिणाम आशानुकूल आएंगे या नहीं, यह तय नहीं है लेकिन सम्मान होगा, यह तय हो गया। सम्मान के लिए जुगाड़ करने या सिफारिश करवाने के उदाहरण तो कई मिल जाएंगे लेकिन बिना कुछ किए ही सम्मान की घोषणा अपने आप में अनूठी है।
🔺इनकार की वजह
श्रीगंगानगर जिले में डेंगू फैला हुआ है। यह बात जगजाहिर है। बाकायदा इसके आंकड़े भी दर्ज हैं। रोगियों के नाम भी नोट किए जा रहे हैं। रोज नए रोगी भी आ रहे हैं। जहां डेंगू के रोगी मिलते हैं, वहां फोगिंग, स्प्रे आदि का काम भी किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग डेंगू होने की बात को मान रहा है लेकिन डेंगू से कथित मौतों पर साफ इनकार कर रहा है। जिला प्रशासन व ऊपर जो रिपोर्ट भेजी जा रही है, इसमें बाकायदा हर स्तर पर यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है कि एक भी मौत डेंगू से नहीं हुई। अब विभाग को कौन समझाए कि क्या रोग फैलना शर्मनाक नहीं है। वह भी हर साल। जितनी कवायद इन कथित मौतों से इनकार करने में की जा रही है, जितनी ऊर्जा यह आंकड़े जुटाने में खर्च हो रही है, उतनी अगर रोकथाम के लिए कर ली जाए तो इस तरह के रोग फैले ही नहीं।
🔺वाह रे इंजीनियरों
बड़े बुजुर्ग अक्सर यह कहते मिल जाएंगे कि आप पढ़े हो अभी गुणे नहीं हो। मतलब अभी केवल पढ़ाई की है, अनुभव की कमी है। वैसे हकीकत में पढ़ाई और अनुभव हैं भी तो अलग-अलग बातें। कई बार अनुभव के आगे पढ़ाई भी फैल हो जाती है। श्रीगंगानगर शहर के कई हिस्सों में इन दिनों नई पेजयल पाइप लाइन बिछाई जा रही है। संबंधित निर्माण कंपनी ने इसमें पानी के प्रेशर को चैक करने के लिए बाकायदा इंजीनियर नियुक्त किए हैं। यह नए नवेले इंजीनियर पाइप लाइन देखने तो आ गए लेकिन मर्ज का इलाज ठीक से नहीं कर पाए हैं। यूआईटी की बगल वाली गली में बिछाई गई पाइप लाइन का लीकेज इन इंजीनियरों को छठी का दूध याद दिला रहा है। वह एक लीकेज ठीक करते नहीं हैं, उससे पहले नया लीकेज हो जाता है। बहरहाल, अनुभवहीन इंजीनियरों की इस कार्यप्रणाली का खमियाजा आमजन भुगत रहे हैं।

राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 30 नवंबर 17 के अंक में प्रकाशित