Friday, January 6, 2012

शहर हित में निर्णय लेना जरूरी


खुला पत्र


यशवंत कुमार,
आयुक्त,नगर निगम,
बिलासपुर।

सड़क निर्माण के मामले में आखिरकार माननीय हाईकोर्ट की फटकार के बाद आपको भी इस बात का अहसास तो हो ही गया कि शहरवासी लम्बे समय से यूं ही शिकायत नहीं कर रहे थे।  बावजूद इसके सिम्पलेक्स कंपनी के नुमाइंदों तथा आपके मातहतों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। पता नहीं किस नींद में गाफिल थे। अब गड़बड़ी करने पर एफआईआर दर्ज होने लगी है तथा माननीय हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए निर्देश दिए हैं तो होश ठिकाने आ रहे हैं। सीवरेज मामले में आप भले ही नए सिरे से फटकार लगाएं, जुर्माना करें या नोटिस दें, लेकिन सिम्पलेक्स कंपनी ने पता नहीं क्यों, आपको कभी गंभीरता से नहीं लिया। नोटिस एवं जुर्माना तो आप पहले भी लगा चुके हैं, लेकिन उनका परिणाम क्या हुआ, आप भी जानते हैं। मौजूदा हालत से तो यही लगता है कि सिम्पलेक्स कंपनी के नुमाइंदों के साथ-साथ आपके मातहतों ने भी अपनी भूमिका का निर्वहन सही तरीके से नहीं किया। जिस निरीक्षण की बात आप अब कर रहे हैं, क्या वह पहले नहीं हुआ? अगर हुआ तो फिर गड़बड़ क्यों हुई? और निरीक्षण नहीं हुआ तो आपके मातहत किस काम में मशगूल थे। उनको अभयदान क्यों दे दिया गया। यह आपके मातहतों की उदासीनता का ही परिणाम है कि सीवरेज परियोजना का काम किसी भी स्तर पर व्यवस्थित दिखाई नहीं देता है। सारा काम बिखरा पड़ा है। निर्धारित के बाद अतिरिक्त समय भी गुजर गया लेकिन कंपनी के पास ठोस कार्ययोजना दिखाई नहीं देती। आलम यह है कि कहीं जरूरत से ज्यादा तत्परता दिखाई जा रही है तो कहीं पर सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है।
इस मामले में यह अच्छी बात है कि आपने माननीय हाईकोर्ट की फटकार के बाद संबंधित कंपनी एवं अपने मातहतों को सड़कों की गुणवत्ता पर ज्यादा ध्यान देने को कहा है। वैसे यह काम भी शुरू से ही हो जाना चाहिए था, लेकिन आपके मातहत शहरवासियों की पीड़ा सुनने की जगह सिम्पलेक्स की हां में हां मिलाते ज्यादा दिखाई दिए। कई बार तो आपके मातहतों की भूमिका से ऐसा लगा जैसे वे जनसेवक न होकर सिम्पलेक्स के लिए काम कर रहे हैं। सड़कों में घटिया निर्माण सामग्री की जांच करवाई गई लेकिन जांच रिपोर्ट आने तक सड़कें बनने का काम बदस्तूर जारी रहा। जांच रिपोर्ट में गड़बड़ी की आशंका थी (जो बाद में उजागर भी हुई) लेकिन आपके मातहतों ने काम बंद होने नहीं दिया।  सिम्पलेक्स कंपनी के प्रति आपके मातहतों का यही विशेष लगाव तो मामले को संदिग्ध बनाता है। दूध का दूध और पानी का पानी करने के लिए जरूरी है आप इसकी अपने स्तर पर जांच करवाएं।
सड़कों की गुणवत्ता के बाद सबसे गंभीर एवं बड़ी समस्या काम धीमी गति से होना भी है। शहर में कई जगह ऐसी हैं, जहां गड्‌ढे खोदने के बाद उनकी खैर-खबर नहीं ली गई। ज्यादा नहीं तो आप लम्बे समय से खुदे गड्‌ढों को बिना किसी राजनीति व हस्तक्षेप के प्राथमिकता के साथ तत्काल भरवाने का काम करवा दीजिए। यकीन मानिए शहरवासी आपके  आभारी रहेंगे।  काम की निगरानी भी आप स्वयं करें ताकि संबंधित कंपनी के साथ-साथ आपके मातहतों में भी भय रहे। आप अगर वातानुकूलित कक्ष में बैठकर मातहतों के भरोसे रहे तो फिर अनुकूल परिणामों की आशा भी  न करें। क्योंकि  भविष्य में कुछ गड़बड़ होती है तो अधिकारी होने के नाते जिम्मेदारी भी आप पर आएगी। उम्मीद की जानी चाहिए आप सीवरेज मामले के 'घालमेल'  और 'तालमेल' को समझते हुए अपने विवेक से शहर हित में निर्णय लेंगे।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 06  जनवरी 12  के अंक में प्रकाशित।