Friday, February 24, 2012

चेतावनी से नहीं बनेगी बात

टिप्पणी

बिलासपुर की बदहाल यातायात व्यवस्था पर माननीय हाईकोर्टकी ओर से लगाई गई फटकार के बाद यातायात पुलिस एवं जिला परिवाहन अधिकारी इन दिनों हरकत में आए हुए हैं। यातायात पुलिस का जोर जहां वाहनों की जब्ती पर है, वहीं जिला परिवहन अधिकारी अभी भी कागजी घोड़े ही दौड़ा रहे हैं। कार्रवाई के नाम पर रोजाना प्रेस विज्ञप्ति जारी कर वाहन चालकों को चेतावनी पर चेतावनी दी जा रही है। चेतावनी का असर वाहन चालकों पर कितना हो रहा है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। अगर चेतावनी के माध्यम से ही बदहाल यातायात व्यवस्था पटरी पर आ जाती तो बार-बार माननीय हाईकोर्ट से फटकार नहीं लगती। हालत यह हैकि  करीब तीन माह से ज्यादा समय से लगातार फटकार लग रही हैलेकिन यातायात व्यवस्था में सुधार दिखाईनहीं दे रहा है। तभी तो माननीय हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लिया और आरटीओ एवं यातायात डीएसपी को अवमानना नोटिस जारी करते हुए कहा हैकि दो हफ्ते में व्यवस्था सुधरनी चाहिए नहीं तो दोनों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाईहोगी।
आलम देखिए कल तक हाथ पर हाथ धरे बैठे अधिकारियों को अब वह सब याद आ रहा है, जो रोजमर्रा की कार्रवाई की हिस्सा है। एक ही नम्बर की कईगाड़ियां शहर में दौड़ रही हैं। अधिकतर ऑटो रिक्शा का बिना परमिट के संचालन हो रहा है। कृषि कार्य में उपयोग किए जाने वाली ट्रैक्टर-ट्रालियां भी बेखौफ चल रही हैं। टाटा मैजिक वाहन शहर के अंदर न केवल आसानी से आ जा रहे हैं बल्कि सवारियां भी ढो रहे हैं। एक ही नम्बर के वाहन मिलने के मामले में कार्रवाई के नाम पर आरटीओ ने वाहन डीलरों को चेतावनी जारी कर औपचारिकता निभा दी। इतना ही नहीं बसों में किराया सूची लगाने की बात भी जागरूक लोग समय-समय पर उठाते रहे हैं लेकिन कार्रवाईनहीं हुई। अब परमिट क्रमांक, वैधता, मार्ग का नाम, समय सारिणी, फिटनेस प्रमाण पत्र की वैधता के लिए दिशा-निर्देश जारी हो रहे हैं। बसों में  किराया सूची चस्पा करने, शिकायत पुस्तिका रखने, बस स्टैण्ड पर अनावश्यक रूप से बसें खड़े ना करने, परमिट में दर्जसमय से आधे घंटे से पूर्व ही स्टैण्ड पर खड़ी करने तथा नो पार्किंग में बसें न खडी करने जैसी बातें भी अब याद आ रही हैं।
बहरहाल, यातायात व्यवस्था को पटरी पर लाने में जोर इसलिए भी आ रहा हैक्योंकि इस प्रकार के हालात पैदा होने के पीछे वाहन चालकों के साथ-साथ दोनों विभाग भी जिम्मेदार हैं। जितनी तत्परता अब दिखाईजा रही है, उतनी शुरू से दिखाई जाती तो यह हालात ही नहीं बनते। कानून तोड़ने वालों पर चेतावनी का असर इसलिए भी नहीं हो रहा है, क्योंकि बचाव के रास्ते भी इन विभागों के द्वारा ही तैयार किए गए हैं। इसीलिए तो विभागों की सरपरस्ती पाए लोग चेतावनी को महज गीदड़ भभकी ही मान रहे हैं। ऐसे लोग तभी लाइन पर आएंगे जब कार्रवाई का डंडा समान रूप से सख्ती के साथ चलेगा। चेतावनी देने तथा दिशा-निर्देश जारी करने का खेल बहुत हो चुका है। इनका हश्र भी सबने देखा है। अब चेतावनी से बात नहीं बनने वाली। मानननीय हाईकोर्टका आशय भी शायद यही है कि दोनों विभाग कार्रवाई के परम्परागत ढर्रे को तोड़ते हुए कुछ ऐतिहासिक काम करें, तभी कुछ हो सकता है। देखा यह गया हैकि शहर में समस्या के समाधान के लिए बैठकें तो खूब होती हैं। सुझाव लिए जाते हैं। कार्रवाई के नाम पर दिशा-निर्देश भी जारी हो जाते हैं लेकिन बात इससे आगे नहीं बढती। ऐसे कईउदाहरण हैं। मौजूदा हालात में यह जरूरी हो गया हैकि बात चेतावनी से आगे बढ़े। दोनों विभाग ऐसा कुछ कर पाए तो ही व्यवस्था में सुधार होगा।

साभार : पत्रिका बिलासपुर के 24 फरवरी 12  के अंक में प्रकाशित