Saturday, November 12, 2011

काश! आप बिलासपुर घूम लेते...

खुली पाती

आदरणीय, मुख्यमंत्री जी,
करीब छह माह के लम्बे समय के बाद आपका बिलासपुर आगमन का कार्यक्रम बना है। आप तखतपुर के अलावा बिलासपुर में भी दो कार्यक्रमों में भाग लेंगे। इस दौरान करीब 35 मिनट आपका छत्तीगसढ़ भवन में रुकना भी प्रस्तावित है। कितना अच्छा होता आप इस अवधि में शहर का भ्रमण कर लेते। इस बहाने आप 'बीमार' शहर की नब्ज भी पहचान लेते। क्योंकि जिस रास्ते से आप गुजरेंगे तथा जो आपको दिखाया जाएगा, आप उसी को सच मान लेंगे, जबकि हकीकत इससे अलग है। आपकी राह में आने वाली रुकावटें मसलन, सडक़ें चकाचक हो रही हैं। धूल हटा कर सफाई की जा रही है। गड्‌ढे ठीक किए जा रहे हैं। आवारा मवेशियों का तो कहीं नामोनिशान तक दिखाई नहीं दे रहा है। इनके अलावा उन तमाम समस्याओं का 'निराकरण' भी युद्धस्तर पर हो रहा है, जो आपकी राह में परेशानी पैदा कर सकती हैं। बिलासपुर में ऐसा अक्सर होता आया है। विशिष्ट लोगों की आवभगत कैसे होती है तथा सड़कों की दशा 'चमत्कारिक रूप से' रातोरात कैसे सुधरती है, इस बात का साक्षी यह शहर रहा है। आमजन की तो बिसात ही क्या? वह बेचारा रोता रहे, बिलखता रहे या आंदोलन करे, गांधीगिरी दिखाए, लेकिन उसकी पीड़ा पर गौर करना न तो आपके नुमाइंदों की फितरत में है और ना ही उनके पास फुर्सत है। पता नहीं किस काम में व्यस्त हैं। आपके मंत्री और अफसर तो माशाअल्लाह इतना बढ़-चढ़कर बोलते हैं कि उनको 'बयानवीर' की उपाधि से नवाजा जाए तो कोई बड़ी बात नहीं। शहर में सड़कों की दशा सुधारने के लिए क्या-क्या बयान नहीं दिए। ऐसा हो जाएगा, वैसा हो जाएगा। लेकिन हुआ कुछ नहीं। यह तो माननीय हाईकोर्ट की फटकार काम आई वरना आपके 'बयानवीर' तो यूं ही सब्जबाग दिखाते रहते।
सबसे हैरत की बात तो यह है कि आप जिस ओवरब्रिज का लोकार्पण करने आ रहे हैं, वह भी अपने आप में ऐतिहासिक है। एक दशक से ज्यादा समय से इस ब्रिज के बनने एवं बिगड़ने की कहानी चल रही है। हालात यह हैं कि ब्रिज अभी भी पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाया है। आनन-फानन में कमियों को रंगरोगन करके छिपाया जा रहा है। अगर इतनी जल्दी पहले दिखाई जाती तो लोगों को राहत मिलने में देर नहीं होती। जब दस साल से ज्यादा समय इसको बनने में लग गए  तो फिर इसे पूरी तरह से पूर्ण करवाकर ही लोकार्पण करवाना चाहिए था। इस प्रकार के कामों में भी प्रमुख भूमिका आपके 'बयानवीरों' की ही है। वैसे भी इस प्रकार कामों को पूर्ण करवाने से पहले उनका लोकार्पण करवाने या बीच में अधूरा छोड़ने की बिलासपुर में परंपरा रही है। खैर, सभी कार्यक्रमों में शिरकत करने के बाद जहां से आपका हेलीकॉप्टर रायपुर के लिए उड़ेगा, वह वही बस स्टैण्ड है, जिसका लोकार्पण आप इसी साल जनवरी माह  में कर चुके हैं। हाइटेक सुविधाओं से सुसज्जित यह बस स्टैण्ड भी शुरू होने के इंतजार में बदहाल हो रहा है। यह तो आपको भी पता ही है कि आधी-अधूरी तैयारियों  तथा  तमाम औपचारिकताओं को पूर्ण किए बिना लोकार्पित किए जाने वाले काम सस्ती लोकप्रियता हासिल करने से ज्यादा कुछ भी नहीं। इससे आमजन आहत ही ज्यादा होता है।
आप निजाम के मुखिया हैं। इस कारण आपकी व्यस्तता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है लेकिन अवाम की खैर-खबर लेना भी आपकी नैतिक जिम्मेदारी में आता है। आपका दौरा इतना भी थकाऊ या उबाऊ नहीं है कि बदहाल शहर की हकीकत जानने के लिए आपके पास समय ही न हो। चुनावों के समय भी तो आप दिन-रात एक कर देते हो, नहाने-धोने  तक की सुध नहीं रहती। ऐसे में इस बात की गुंजाइश तो लेशमात्र भी नहीं है कि आप इस प्रकार के कामों के अभ्यस्त नहीं हैं।  यकीन मानिए, आपके छोटे से फैसले से तथा केवल आधा एक-घंटा खर्च करने से इस शहर की तस्वीर बदल सकती है। लगे हाथ आपको पता भी चल जाएगा कि बेमिसाल एवं बेनजीर बिलासपुर को बदहाली के कगार पर पहुंचाने वाले कारण कौन से हैं। 'दूध का दूध' और 'पानी का पानी' होते देर नहीं लगेगी। पानी बहुत गुजर चुका है।आम आदमी हताश एवं निराश है। आपके  'बयानवीरों'  से उसने उम्मीद करना लगभग छोड़ दिया है। आप राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ डाक्टर भी हैं लिहाजा, दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लाइलाज मर्ज की ओर बढ़ रहे शहर की सुध लीजिए। यकीन मानिए इलाज में अब जरा सी देरी या लापरवाही किसी भी कीमत पर उचित नहीं है। अगर आपने 'आज' बिलासपुर से मुंह फेरा तो त्रस्त लोग 'कल' आपसे भी मुंह मोड़ सकते हैं।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 12 नवम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।