Wednesday, December 26, 2018

पर जीने की वजह बदल गई

बस यूं ही 
जीने की कोई न कोई वजह तो होती है, वजह ही न हो तो फिर जीवन कैसा? हां वजह सदा एक जैसी नहीं रहती, यह अक्सर बदल जाया करती हैं। कभी परिस्थितिवश तो कभी मजबूरी में। वजह सुखद और दुखद भी होती है। खैर, वजह कैसी भी हो, इस पर इंसान का बस नहीं चलता। इंसान वजह के द्वंद्व में जीवन भर फंसा रहता है। मैं भी इन दिनों कुछ ऐसे ही द्वंद्व में फंसा हूं। मां के जाने के बाद जीवन की दशा व दिशा अचानक से बदल गई। रोजमर्रा की जो दिनचर्या भी वह प्रभावित हो गई। ' मां', यह एक ऐसा शब्द है, जिसके बोलने भर से ही मुंह भर जाता है। सुखद अनुभूति होती है। खुद के बच्चे बने रहने का एहसास होता है। यह शब्द अब केवल बातों में रह गया है। और जब भी इस शब्द का जिक्र या ख्याल आता है तो आंखें नम हो उठती हैं। वैसे ख्याल का कोई समय निश्चित नहीं होता। वह रात या दिन नहीं देखता है। करीब डेढ़ माह में ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब मां की याद में आंखें नम न हुई हों। कभी फूट-फूट के भी रोया हूं। यह शाश्वत सच है। यह कड़वी हकीकत है कि मां सदा सदा के लिए चली गई लेकिन उसकी यादें रह-रहकर कचोटती हैं। खुद को व्यस्त रखने का खूब प्रयत्न करता हूं पर कुछ अच्छा नहीं लगता। लाख कोशिश करता हूं चित को एकाग्र रखने की लेकिन मन उचट जाता है। पता नहीं यह कैसी अवस्था है और कब तक ऐसा होगा। सच यह कि इन दिनों मन कहीं नहीं लगता। खुशी जैसे रुठ गई है। खाली-खाली सा लगता है। यह हालात घर, आफिस, बाहर, बाजार सब जगह कमोबेश एक जैसे हैं। व्यवहार में हास , परिहास, उमंग आदि की जगह नैराश्य हावी हो गया है। उमंग, उल्लास व उत्साह पर नीरसता ने जैसे जबरन कब्जा कर लिया है। एक अजीब सी खामोशी। अंदर ही अंदर डरा देने वाला सन्नाटा और इस तरह के हालात के बीच बेहद गमगीन व गुमशुम पापा को देखकर सच में बेहद व्यथित व विचलित हो उठता हूं। सिर्फ डेढ़ माह में क्या से क्या हो गया। खुशी की जगह खामोशी तो उमंग की जगह उदासी का आलम हो गया। इस तरह के हालात मुझे डराते हैं। चिंतित करते हैं। सवाल और जवाब का दौर खुद से ही होता है। जेहन में विचारों का आवेग बड़ी तीव्र गति से होकर गुजरता है। यकीनन इस आवेग के गुजरने के बाद अक्सर अफसोस, अवसाद व आशंकाएं ही हाथ आती हैं। अपने इस बदलाव से हालांकि मैं हतप्रभ हूं, इससे उबरने की मन ही मन सोचता भी हूं लेकिन फिर कोई ख्याल आकर उसी अवस्था में फिर ले जाता है। पता नहीं यह क्यों हो रहा है और कब तक होगा?

जीत और हार के फेर में सोशल मीडिया अकाउंट को भूले 'नेताजी'

कई मंत्रियों व विधायकों के फेसबुक पेज व टवीटर अकाउंट नहीं हुए अपडेट, चल रहा है पुराना पदनाम
श्रीगंगानगर। विधानसभा चुनाव परिणाम आए सप्ताह भर होने को है लेकिन कुछ प्रत्याशियों पर जीत का जोश छाया हुआ है तो कुछ हार के गम में सब कुछ भूल गए हैं। जीत व हार के फेर में उलझे नेताओं की हालत का अंदाजा सोशल मीडिया पर उनकी गतिविधियों से आसानी से लगाया जा सकता है। आलम यह है कि सरकार बदलने के बावजूद कई पूर्व मंत्रियों व विधायकों ने अपने फेसबुक अकाउंट/ पेज व ट्वीटर अकाउंट अपडेट ही नहीं किए हैं। रविवार शाम तक कुछ मंत्रियों व विधायकों को पेज व अकाउंट टटोले तो कुछ इसी तरह के हालात मिले। हालांकि मुख्यमंत्री का पेज जरूर अपडेट कर दिया गया है, जिस पर एक्स चीफ मिनिस्टर लिखा हुआ आ रहा है।
स्वास्थ्य व चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ का फेसबुक अकाउंट अभी भी उनको मंत्री ही दिखा रहा है। इसी तरह पंचायत राज मंत्री राजेन्द्र राठौड़ का पेज भी अपडेट नहीं किया है। हालांकि सर्राफ व राठौड़ खुद चुनाव जीत चुके हैं लेकिन पेज पर मंत्री पद कायम है। इतना ही नहीं ट्रांसपोर्ट व पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान टोंक से चुनाव हार चुके हैं लेकिन उनका पेज उनको अभी भी मंत्री बनाए हुए हैं। केबिनेट मंत्री गजेन्द्रसिंह खींवसर व डा. रामप्रताप दोनों ही चुनाव हार चुके हैं लेकिन दोनों के पेज पर उनका मंत्री पद बरकरार है। कुछ यही हाल संसदीय सचिव रहे डा. विश्वनाथ का है। वे खाजूवाला से चुनाव हार गए हैं लेकिन अपने पेज पर वह भी एमएलए बने हुए हैं।
जमींदारा पार्टी से पाला बदलकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ी और जमानत जब्त करवाने वाली सोनादेवी को उनका टवीटर अकाउंट अभी भी रायसिंहनगर विधायक दिखा रहा है। इसी तरह शिमलादेवी बावरी का पेज भी उनको अनूपगढ़ विधायक बता रहा है जबकि वो इस बार चुनाव मैदान में ही नहीं थी। समूचे राजस्थान में सर्वाधिक धनवान तथा पूर्व मंत्री राधेश्याम को बड़े अंतर से पराजित करने वाली जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल इस बार न केवल चुनाव हारी बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई लेकिन उनका अकाउंट उनको भी विधायक दर्शा रहा है। कमोबेश एेसा ही हाल नोहर से अभिषेक मटोरिया व भादरा से संजीव बेनीवाल का है। यह दोनों नेता भाजपा की टिकट से मैदान में थे और हार गए लेकिन दोनों पेजों पर अभी भी एमएलए बने हुए हैं।

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 राजस्थान पत्रिका के  17 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

हार गए पर भर गए सरकारी खजाना

श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव मैदान में जमानत जब्त करवाने वाले उम्मीदवारों ने सरकारी खजाना भरने का काम जरूर किया है। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में जमानत जब्त करवाकर हारने वालों के कारण सरकारी खजाने में लाखों रुपए जमा हुए हैं। दरअसल, सभी प्रत्याशियों को चुनाव लडऩे के लिए जमानत के रूप में चुनाव आयोग के पास एक निश्चित रकम जमा करनी होती है। जब प्रत्याशी निश्चित प्रतिशत मत हासिल नहीं कर पाता, तो उसकी जमानत जब्त हो जाती है यानी यह राशि आयोग की हो जाती है। श्रीगंगानगर जिले में 69 तो हनुमानगढ़ जिले में 42 प्रत्याशियों की जमानत राशि जब्त हुई है। सामान्य व्यक्ति के लिए जमानत राशि दस हजार है तो एससी/ एसटी के उम्मीदवारों के लिए पांच हजार रुपए होती है। लोकसभा चुनाव में सामान्य के लिए 25 हजार तो एससी/ एसटी के लिए 12 हजार पांच सौ रुपए है। 
इस तरह जब्त होती है जमानत
ऐसे हारे हुए प्रत्याशी की जमानत जब्त हो जाती है, जो अपने निर्वाचन क्षेत्र में डाले गए कुल विधि सम्मत मतों की संख्या के छठे भाग से ज्यादा मत प्राप्त नहीं कर पाता। उदाहरण के लिए अगर किसी विधानसभा सीट पर यदि एक लाख वोटिंग हुई तो जमानत बचाने के लिए प्रत्येक प्रत्याशी को छठे भाग से अधिक यानि करीब 16 हजार 666 वोटों से अधिक वोट प्राप्त करने होंगे। इससे कम पाने वालों की जमानत जब्त हो जाती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

श्रीगंगानगर में 69, हनुमानगढ़ में 42 की जमानत जब्त

दोनों जिलों की 11 सीटों पर थे 139 उम्मीदवार 
श्रीगंगानगर. 15वीं विधानसभा के लिए चुनाव में श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले से चुनाव मैदान में डटे 139 प्रत्याशियों में से मात्र 28 ही जमानत बचाने में सफल हुए हैं, शेष 111 की जमानत राशि जब्त हो गई। 
श्रीगंगानगर जिले में सर्वाधिक प्रत्याशी गंगानगर विधानसभा से थे जबकि सबसे कम अनूपगढ़ विधानसभा से थे। श्रीगंगानगर की छह विधानसभाओं में 86 प्रत्याशी मैदान में थे तो हनुमानगढ़ की पांचों विधानसभाओं में 53 उम्मीदवारों ने भाग्य आजमाया। दोनों जिलों की 11 सीटों में से पांच सीटों पर विजयी उम्मीदवार के अलावा दूसरे नंबर पर रहे प्रत्याशियों ने जमानत बचाई जबकि सात सीटों पर विजयी उम्मीदवारों के अलावा दो-दो उम्मीदवार जमानत बचाने में सफल हो गए। इसी तरह दोनों जिले में 11 विजयी प्रत्याशियों के अलावा 17 उम्मीदवारों ने जमानत राशि बचाने में सफलता हासिल की।
श्रीगंगानगर जिला 
विधानसभा कुल जमानत
उम्मीदवार जब्त
श्रीगंगानगर 22 19
अनूपगढ़ 7 5
श्रीकरणपुर 16 13
रायसिंहनगर 15 12 
सादुलशहर 11 8
सूरतगढ़ 15 12 
हनुमानगढ़ जिला
हनुमानगढ़ 14 12
भादरा 12 9
संगरिया 9 7
नोहर 9 7
पीलीबंगा 9 7
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

डाक मत पत्रों में भी हुआ नोटा का इस्तेमाल

श्रीगंगागनगर. नोटा का उपयोग न केवल इवीएम बल्कि डाक मत पत्रों में भी हुआ है। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की सभी 11 विधानसभाओं में डाक मत पत्रों के जरिए मतदान करने वाले मतदाताओं ने भी नोटा का इस्तेमाल किया है। डाक मतों में सर्वाधिक नोटा का इस्तेमाल श्रीगंगानगर विधानसभा में हुआ है जबकि हनुमानगढ़ विधानसभा दूसरे नंबर पर है। डाक मत पत्रों में नोटा का सबसे कम इस्तेमाल भादरा विधानसभा में हुआ है। श्रीगंगानगर की छह सीटों पर कुल 73 डाक मत पत्रों में नोटा का इस्तेमाल हुआ है जबकि हनुमानगढ़ जिले की पांचों विधानसभाओं में यह आंकड़ा 51 है। 
कहां कितना इस्तेमाल 
विधानसभा कुल नोटा 
पोस्टल पर
मत
अनूपगढ़ 925 13 
सूरतगढ़ 1443 8
रायसिंहनगर 1483 6
श्रीकरणपुर 1688 10
गंगानगर 2198 22
सादुलशहर 1747 14
हनुमानगढ़ 1760 21
संगरिया 1530 13
नोहर 1916 4
भादरा 2178 3
पीलीबंगा 1415 10
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

सजग मतदाताओं में हनुमानगढ़ सबसे आगे

अनूपगढ़ का रहा दूसरा स्थान
श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव में वैसे तो हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिले के मतदाताओं ने उत्साहपूवज़्क भाग लिया लेकिन डाक मत पत्रों में सजगता बरतने के मामले में हनुमानगढ़ विधानसभा के मतदाता सबसे आगे रहे। डाक मतों में सबसे कम वोट निरस्त हनुमानगढ़ विधानसभा में हुए हैं। इसके बाद अनूपगढ़ में हुए हैं। सवाज़्धिक डाक मत पत्र निरस्त संगरिया विधानसभा में हुए हैं, कमोबेश इतने ही श्रीगंगानगर विधानसभा में हुए हैं। श्रीगंगानगर की छह विधानसभा में कुल 9484 डाक मत प्राप्त हुए इनमें 965 मत निरस्त हो गए। इसी प्रकार हनुमानगढ़ जिले की पांचों विधानसभाओं में 8799 डाक मत पत्र आए, इनमें से 919 निरस्त हो गए। सर्वाधिक डाक मत पत्र श्रीगंगानगर विधानसभा में आए जबकि सबसे कम अनूपगढ़ विधानसभा में आए। विदित रहे कि सरकारी कर्मचारी सेना या अर्द्धसैनिक बलों में कार्यरत लोग आदि डाक मत पत्र के माध्यम से मतदान करते हैं। 
श्रीगंगानगर जिला
विधानसभा कुल निरस्त
डाक मत
मत
अनूपगढ़ 925 74
श्रीगंगानगर 2198 255
श्रीकरणपुर 1688 163
रायसिंहनगर 1483 151
सादुलशहर 1747 217
सूरतगढ़ 1443 116
हनुमानगढ़ जिला
विधानसभा कुल निरस्त
डाक मत
मत
हनुमानगढ़ 1760 30
भादरा 2178 258
संगरिया 1916 249
पीलीबंगा 1530 128
नोहर 1415 154
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

कांग्रेस ने दस तो भाजपा ने सात क्षेत्रों में जनाधार बढ़ाया

वोट बैंक बढऩे से भाजपा को नुकसान तो कांग्रेस को फायदा
श्रीगंगानगर. 15वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में दोनों ही दलों ने पिछले चुनाव के मुकाबले अपना जनाधार बढ़ाया। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ की 11 सीटों में से कांग्रेस ने दस तो भाजपा का सात सीटों पर जनाधार बढ़ा है। वोट बैंक बढऩे से भाजपा को जहां चार सीटों का नुकसान हुआ है, वहीं कांग्रेस को चार सीटों का फायदा हो गया। खास बात यह है कि सूरतगढ़, अनूपगढ़, श्रीगंगानगर, संगरिया, भादरा, पीलीबंगा विधानसभा सीट पर कांग्रेस हार गई लेकिन गत चुनाव के मुकाबले उसका वोट बैंक बढ़ा है। सूरतगढ़ में वह पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर थी, इस बार वह दूसरे नंबर पर रही। इसी तरह श्रीगंगानगर में भी तीसरे से दूसरे स्थान पर पहुंचने में सफल रही। भादरा और अनूपगढ़ में भी कांग्रेस ने वोट बैंक बढ़ाने के साथ प्रदशज़्न में भी सुधार किया है। पिछले चुनाव में अनूपगढ़ में कांग्रेस चौथे स्थान पर व भादरा में पांचवें स्थान पर थी। इस बार क्रमश: वह दूसरे व तीसरे स्थान पर रही है। पीलीबंगा और संगरिया में कांग्रेस हार गई लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले वोट बैंक बढ़ाया है। रायसिंहनगर में जरूर कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। यहां पार्टी प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाई और चौथे स्थान पर रही। पिछली बार कांग्रेस यहां तीसरे स्थान पर थी।
पिछले चुनाव के मुकाबले चार सीटों का नुकसान उठाने वाली भाजपा को जहां हार हुई हैं वहां तो कम मत मिले हैं लेकिन सादुलशहर व हनुमानगढ़ में भाजपा प्रत्याशियों ने पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा मत हासिल किए फिर भी जीत नहीं सके। श्रीगंगानगर और श्रीकरणपुर में भाजपा का प्रदशज़्न कमजोर रहा। श्रीगंगानगर में पाटीज़् पिछले चुनाव जैसा प्रदर्शन नहीं कर पाई और दूसरे से तीसरे स्थान पर खिसक गई। इसी तरह श्रीकरणपुर में पा़र्टी प्रत्याशी न केवल हारा बल्कि तीसरे स्थान पर खिसक गया। जिन पांच सीटों पर भाजपा जीती है, वहां उसको गत चुनाव के मुकाबले ज्यादा मत मिले हैं।
श्रीगंगानगर जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
सादुलशहर 42376 73153 +30777
श्रीकरणपुर 66294 73896 +7602
रायसिंहनगर 44229 31294 -12935
गंगानगर 22915 35818 +12903
सूरतगढ़ 34173 58797 +24624
अनूपगढ 12305 58259 +45954
श्रीगंगानगर जिले में भाजपा का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
सादुलशहर 47184 63087 +15903
श्रीकरणपुर 70147 44099 -26048
रायसिंहनगर 44544 76935 +32391
गंगानगर 40792 29686 -11106
सूरतगढ़ 66766 69032 +2266
अनूपगढ 51145 79383 +28238
हनुमानगढ़ जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
हनुमानगढ 57380 111207 +53827
संगरिया 44034 92526 +48492
पीलीबंगा 53647 106136 +52489
नोहर 69686 93851 +24165
भादरा 11680 37574 +25894
हनुमानगढ़ जिले में भाजपा का प्रदर्शन
विस 2013 2018 अंतर
हनुमानगढ़ 87475 95685 +8210
संगरिया 55635 99064 +43429
पीलीबंगा 63845 106414 +42569
नोहर 96637 80124 -16513
भादरा 65040 59051 -5989
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण में 14 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

अर्श से फर्श पर आई जमींदारा पार्टी

श्रीगंगानगर. कहते हैं जो जिस गति से ऊपर उठता है उससे कहीं ज्यादा गति से नीचे भी गिर जाता है। कुछ ऐसा ही हश्र जमींदारा पार्टी का हुआ। मेडिकल कॉलेज सहित कई लोकलुभावन वादों के दम पर इस पार्टी ने 2013 के चुनाव में दमदार प्रदर्शन कर सबको चौंका दिया था। पार्टी ने श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ की सभी 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए और दो जगह श्रीगंगानगर व रायसिंहनगर में जीत भी दर्ज की। अनूपगढ़ में वह दूसरे स्थान रही। सादुलशहर, श्रीकरणपुर व सूरतगढ़ में जमींदारा पार्टी के प्रत्याशियों ने अच्छे खासे वोट लेकर अपनी शक्ति का एहसास करवाया। पड़ोसी जिले हनुमानगढ़ में भी जमींदारा पार्टी ने संगरिया व पीलीबंगा में अच्छा प्रदर्शन किया। मात्र पांच साल में यह पार्टी मतदाताओं की नजर से उतर गई। इतना ही नहीं पार्टी को श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले में प्रत्याशी ही नहीं मिले। इससे भी शर्मनाक स्थिति तो पार्टी के दोनों विधायकों की हुई। रायसिंहनगर विधानसभा में पिछले चुनाव में जमींदारा की सोनादेवी ने 65 हजार 782 मत लेकर जीत दर्ज की लेकिन सोना देवी ने कार्यकाल के अंतिम समय में जमींदारा पार्टी छोडकऱ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। पार्टी ने इस बार यहां राजेश सिकरवाल को प्रत्याशी बनाया लेकिन वे केवल 1036 मत प्राप्त कर सके। हालत यह थी कि उनको नोटा से भी कम मत मिले। कुछ ऐसा ही हश्र जमींदारा पार्टी की टिकट पर श्रीगंगानगर विधानसभा से 77,860 मत प्राप्त कर बड़ी जीत दर्ज करने वाली कामिनी जिंदल का हुआ। कामिनी प्रदेश में सबसे युवा व सबसे अधिक चल-अचल संपत्ति के मामले में चर्चा में रहीं। कामिनी ने इस चुनाव में भी भाग्य आजमाया लेकिन उनका जादू नहीं चला। उनको महज 4887 मत ही मिले। वे छठे स्थान पर रहीं।
जमींदारा पार्टी का प्रदर्शन
विधानसभा 2013 में प्राप्त मत 2018 में प्राप्त मत
श्रीगंगानगर 77860 4887
रायसिंहनगर 65782 1036
श्रीकरणपुर 18275 इस बार प्रत्याशी नहीं
अनूपगढ़ 39999 इस बार प्रत्याशी नहीं
सादुलशहर 28022 इस बार प्रत्याशी नहीं
सूरतगढ़ 18275 इस बार प्रत्याशी नहीं
हनुमानगढ़ 8132 इस बार प्रत्याशी नहीं
संगरिया 18067 इस बार प्रत्याशी नहीं
नोहर 2463 इस बार प्रत्याशी नहीं
पीलीबंगा 22850 इस बार प्रत्याशी नहीं
भादरा 904 इस बार प्रत्याशी नहीं
इनका कहना है
- प्रदेश में पार्टी ने आठ प्रत्याशी उतारे थे। सभी जगह पार्टी की विचारधारा के प्रत्याशी नहीं मिले थे। दोनों बड़े दलों के नेता नहीं चाहते थे कि थर्ड फ्रंट तैयार हो जाए। इसलिए मेडिकल कॉलेज व ग्वार के भाव आदि को लेकर लोगों में अफवाह फैला दी थी, जिससे पार्टी को इस हार का सामना करना पड़ा है।
उदयलपाल झाझडिय़ा, प्रदेशाध्यक्ष जमींदारा पार्टी श्रीगंगानगर
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित....

श्रीगंगानगर व भादरा में चौथी बार भी नहीं जीत पाई कांग्रेस

श्रीगंगानगर. राजस्थान में भले ही कांग्रेस ने सर्वाधिक सीट जीतने में कामयाब हासिल की हो लेकिन श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की दो सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस लगातार चार बार हार चुकी है। एक सीट पर कांग्रेस ने तीन चुनाव हारने के बाद जीत दर्ज की है। लगातार चार हारने वाली सीटों में एक श्रीगंगानगर विधानसभा सीट है जबकि दूसरी भादरा विधानसभा सीट। श्रीगंगानगर से 1998 में कांग्रेस से राधेश्याम से जीते थे लेकिन इसके बाद पार्टी यहां से जीत दर्ज नहीं कर पाई। हालांकि, राधेश्याम पाला बदलकर 2008 में भाजपा की टिकट से जरूर जीते लेकिन कांग्रेस को यहां जीत का इंतजार है। इसी तरह भादरा से 1998 में कांग्रेस से संजीव बेनीवाल जीते। इसके बाद वहां किसी एक दल का प्रभाव नहीं रहा। हालांकि पाला बदलकर संजीव बेनीवाल 2013 में भाजपा की टिकट से जीते लेकिन कांग्रेस अभी जीत की आस लगाए बैठी है। इधर, नोहर में 2003, 2008 व 2013 के चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने वापसी की है। परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई अनूपगढ़ सीट पर अब तक तीन चुनाव हो चुके हैं लेकिन कांगे्रस का यहां अभी तक खाता नहीं खुला। अनूपगढ़, सूरतगढ़, संगरिया, पीलीबंगा में भाजपा लगातार दूसरी बार जीतने में सफल रही है जबकि श्रीकरणपुर, सादुलशहर, रायसिंहनगर, हनुमानगढ़ में जीत के बाद हार का क्रम बना हुआ है।
कांग्रेस कहां से कब से वंचित है
विधानसभा 2003 2008 2013 2015
भादरा निर्दलीय निर्दलीय भाजपा सीपीएम
श्रीगंगानगर भाजपा भाजपा जमींदारा निर्दलीय
अनूपगढ़ ------ सीपीएम भाजपा भाजपा
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित

चार पूर्व विधायक तो छह मौजूदा विधायक हारे हारने वालों में दो मंत्री भी

श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले की चुनावी तस्वीर
श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव परिणाम से एक रोचक जानकारी निकल कर आई है। इस चुनाव में चार पूर्व विधायक तो छह मौजूदा विधायक चुनाव हार गए। इन छह में दो तो मंत्री भी थे। श्रीगंगानगर विधानसभा से पिछले चुनाव में रेकार्ड मतों से जीत दर्ज करने वाली जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल की शर्मनाक हार हुई है। उनकी जमानत भी जब्त हो गई। वो छठे स्थान पर रहीं। इसी तरहए रासिंहनगर से जमींदारा पार्टी से जीतकर विधायक बनने वाली सोनादेवी भी इस बार हार गई। सोनादेवी इस बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव मैदान में थी लेकिन जमानत जब्त करवा बैठीं। वो चौथे स्थान पर रहीं। मौजूदा विधायक व मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी भी लगातार चुनाव नहीं जीत पाए। पार्टी ने दुबारा उनमें ही विश्वास जताया लेकिन हार गए। टीटी तीसरे स्थान पर रहे। हनुमानगढ़ जिले में तीन मौजूदा विधायक भी चुनाव हारे हैं। इनमें भादरा से संजीव बेनीवाल, नोहर से अभिषेक मटोरिया तथा हनुमानगढ़ से डॉ. रामप्रताप हैं। रामप्रताप मंत्री भी थे।
ये हैं चार पूर्व विधायक
चुनाव हारने वालों में चार विधायक भी हैं। इनमें सबसे बड़ा नाम कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे तथा बाद में भाजपा का दामन थामने वाले राधेश्याम
गंगानगर का है। राधेश्याम इस बार निर्दलीय मैदान में थे लेकिन हार गए। राधेश्याम को मात्र 2318 मत मिले। इसी तरह रायसिंनगर से पूर्व विधायक सोहन नायक इस बार निर्दलीय मैदान में थे लेकिन जीत नहीं पाए। हालांकि वो कांग्रेस प्रत्याशी सोनादेवी से ज्यादा वोट लेने
तथा जमानत बचाने में सफल रहे। हारने वाले पूर्व विधायकों में तीसरा नाम माकपा के पवन दुग्गल का है। उनका
मतदान प्रतिशत भी लगातार गिर रहा है। इस बार वह चौथे स्थान पर रहे। इसी तरह, भादरा विधानसभा से पूर्व विधायक
डॉ. सुरेश चौधरी इस कांग्रेस की टिकट पर मैदान में थे लेकिन हार गए।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण में 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित...

पहले हारे लेकिन इस बार जीतने में हुए कामयाब

श्रीगंगानगर. चुनावी रण में हार-जीत होती रहती है। जो हारता है वह कभी जीत भी जाता है। श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले में दोनों ही दलों में ऐसे प्रत्याशी हैं, जो पिछला चुनाव हारे लेकिन इस बार जीतने में सफल रहे। रायसिंहनगर से पिछला चुनाव हारने वाले भाजपा के बलवीर लूथरा इस बार चुनाव जीत गए। वहीं, सादुलशहर से कांग्रेस प्रत्याशी जगदीश जांगिड़ भी जीतने में सफल रहे। वे पिछला चुनाव हार गए थे। इसी तरह, 2008 के चुनाव में कांग्रेस की टिकट से श्रीगंगानगर से चुनाव लडऩे वाले राजकुमार गौड़ इस बार निर्दलीय लड़े और जीतने में कामयाब हुए। हनुमानगढ़ जिले की संगरिया विधानसभा से भाजपा के टिकट पर जीते गुरदीपसिंह शाहपीनी भी दो बार बतौर निर्दलीय भाग्य आजमा चुके हैं लेकिन सफलता इस बार हाथ लगी। इसी तरह, भादरा से सीपीएम प्रत्याशी बलवान पूनिया पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे लेकिन इस बार जीत का सेहरा उनके सिर बंधा। धर्मेन्द्र मोची वैसे तो दूसरी बार विधायक बने हैं लेकिन पीलीबंगा से पहली बार बने हैं। पिछले दो चुनाव वे यहां से हार गए थे।
पहली बार ही चुनाव लड़ा और जीत गए
हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर में दो ऐसे चेहरे हैं, जिन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा और जीतने में सफल रहे। अनूपगढ़ से संतोष बावरी पहली बार भाजपा की टिकट से खड़ी हुई और जीतने में सफल हो गई। इसी तरह, हनुमानगढ़ जिले की नोहर विधानसभा से कांग्रेस के अमित चाचाण पहली बार खड़े हुए और जीत गए।
लगातार दूसरी बार हारे
श्रीगंगानगर में लगातार दूसरी बार हारने वालों में सूरतगढ़ से बसपा के डूंगरराम गेदर हैं। पिछले चुनाव में वह दूसरे स्थान पर रहे जबकि इस बार वे तीसरे स्थान पर खिसक गए। रायसिंहनगर से सोहन नायक ने पिछला चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा और तीसरे स्थान पर रहे थे। वे इस बार निर्दलीय मैदान में थे, लेकिन चुनाव हार गए। हालांकि, नायक जमानत बचाने में सफल रहे। अनूपगढ़ विधानसभा से 2008 में पहली बार विधायक बने माकपा के पवन दुग्गल भी लगातार दूसरा चुनाव हार गए। श्रीगंगानगर से पिछला चुनाव भाजपा की टिकट पर लडऩे वाले राधेश्याम गंगानगर इस बार निर्दलीय मैदान में थे। उनको भी लगातार दूसरी बार हार का सामना करना पड़ा। हनुमानगढ़ जिले की संगरिया सीट से कांग्रेस प्रत्याशी शबनम गोदारा लगातार दूसरी बार हार गईं। पीलीबंगा से कांग्रेस प्रत्याशी विनोद कुमार भी लगातार दूसरी बार चुनाव हारे हैं।
यह पहले भी जीते
दोनों जिले के 11 विधायकों में ऐसे भी हैं जो पहले भी जीत चुके हैं। सूरतगढ़ से भाजपा की टिकट पर जीते रामप्रताप कासनिया पीलीबंगा से विधायक रह चुके हैं। 2008 में परिसीमन के बाद पीलीबंगा की सीट सुरक्षित हो गई। इस कारण उन्होंने इस बार सूरतगढ़ से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। श्रीकरणपुर से जीते कांग्रेस के गुरमीत कुन्नर इससे पहले 1998 व 2008 में भी जीत चुके हैं। वे तीसरी बार विधायक बने हैं। पीलीबंगा से जीते धर्मेन्द्र मोची दूसरी बार विधायक बने हैं। वे 2003 में टिब्बी से विधायक बने थे लेकिन बाद में परिसीमन के कारण टिब्बी विधानसभा खत्म हो गई। मोची को लगातार दो चुनाव में हार के बाद तीसरे चुनाव में सफलता मिली है। इसी तरह हनुमानगढ़ से जीते कांग्रेस के विनोद कुमार ने चौथी बार जीत दर्ज की है।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 13 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

टिकटों की रणनीति : कितनी सफल कितनी विफल

श्रीगंगानगर. विधानसभा चुनाव में मौजूदा विधायकों के टिकट काटना तथा हारे हुए प्रत्याशियों पर फिर से विश्वास जताना दलों के लिए मिला-जुला सौदा रहा। भाजपा ने अनूपगढ़ में मौजूदा विधायक शिमला बावरी की टिकट काट इस बार नए चेहरे संतोष बावरी पर यकीन जताया। पार्टी की यह रणनीति कामयाब रही और संतोष जीत गईं। इसी तरह सूरतगढ़ से मौजूदा विधायक राजेन्द्र भादू का टिकट काट कर पूर्व मंत्री रामप्रताप कासनिया को टिकट देना भाजपा के लिए फायदे का सौदा रहा। इधर, सादुलशहर में मौजूदा विधायक गुरजंट सिंह बराड़ के बदले उनके पोते को उतारने का फैसला सही साबित नहीं हुआ जबकि पिछले चुनाव में रायसिंहनगर में हारे हुए प्रत्याशी पर फिर से दांव खेलना कारगर रहा।
श्रीकरणपुर में खान मंत्री सुरेन्द्रपाल सिंह को टिकट का फैसला फिट नहीं बैठा। यहां न केवल टीटी हारे बल्कि तीसरे स्थान पर रहे। श्रीगंगानगर में भाजपा ने इस बार नए चेहरे को मौका देकर चौंकाया लेकिन यहां भी जीत हासिल नहीं हुई। इस तरह जिले की छह सीटों में चार पर प्रत्याशी बदले जिनमें दो में जीत और दो पर हार का सामना करना पड़ा। खास बात यह है कि चार में तीन तो नए चेहरे थे। इसी तरह कांग्रेस ने भी इस बार टिकटों में बदलाव किया। अनूपगढ़ में उसने इस बार फिर से कुलदीप इंदौरा को मौका दिया। इंदौरा को 2008 में भी टिकट मिली थी लेकिन वो तब नहीं जीत पाए और इस बार भी हार गए। सूरतगढ़ में कांग्रेस ने पिछले बार गंगाजल मील को मौका दिया था, लेकिन सफलता नहीं मिली। इस बार कांग्रेस ने मील परिवार के ही लेकिन नए चेहरे हनुमान मील को टिकट दिया लेकिन वह रामप्रताप कासनिया के सामने उन्नीस ही साबित हुए।
रायसिंहनगर में जमींदारा पार्टी से जीत कर विधायक बनी सोनादेवी ने चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। कांग्रेस ने इस सीट पर अपने पुराने नेताओं का टिकट काटकर सोना देवी को टिकट थमाई लेकिन उनकी जमानत जब्त हो गई।
श्रीकरणपुर में कांग्रेस ने अपने परम्परागत चेहरे गुरमीत सिंह कुन्नर पर विश्वास जताया और वो जीतने में सफल रहे। श्रीगंगानगर में भी कांग्रेस ने अशोक चांडक को टिकट थमाई। चांडक भी ऐसे प्रत्याशी थे, जिन्होंने कुछ समय पहले ही कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। कांग्रेस के लिए यह संतोष की बात रही है पिछले चुनाव में उसका प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा जबकि इस बार दूसरे स्थान पाने में कामयाब रहे। सादुलशहर में कांग्रेस ने पिछला चुनाव हारे जगदीशचंद्र पर ही विश्वास जताया और पार्टी का फैसला सही साबित हुआ। इस तरह कांगे्रस ने भी छह में चार जगह चेहरे बदले लेकिन चारों जगह ही हार का सामना करना पड़ा। यही हाल पड़ोसी जिले हनुमानगढ़ का रहा, हालांकि भाजपा ने यहां पांच में से दो जगह ही चेहरे बदले और सफलता मिली लेकिन जहां पुराने चेहरों पर विश्वास किया। वहां पार्टी के हाथ निराशा हाथ लगी। संगरिया व पीलीबंगा में मौजूदा विधायकों का टिकट काटना भाजपा के लिए फायदेमंद रहा लेकिन भादरा, नोहर व हनुमानगढ़ में उसने पुराने विधायकों में विश्वास जताया लेकिन वे विश्वास पर खरा नहीं उतर पए। नोहर से अभिषेक मटोरिया, भादरा से संजीव बेनीवाल व हनुमानगढ़ से डॉ.रामप्रताप अपनी सफलता बरकरार नहीं रख सके जबकि पिछला चुनाव निर्दलीय लडऩे वाले धर्मेन्द्र मोची इस बार टिकट मिलने पर भाजपा के लिए जीतने में सफल हो गए। इसी तरह पिछला चुनाव निर्दलीय लडकऱ दूसरे स्थान पर रहने वाले गुरदीप सिंह शाहपीनी भी टिकट मिलने पर जीतने में कामयाब हो गए। कांग्रेस ने इस बार तीन जगह भादरा, नोहर व पीलीबंगा में चेहरे बदले लेकिन सफलता नोहर में हाथ लगी जहां अमित चाचाण ने जीत दर्ज की।
भादरा से डॉ.सुरेश चौधरी और पीलीबंगा से विनोद गोठवाल पार्टी को जीत नहीं दिला सके। संगरिया में कांग्रेस ने पुराने प्रत्याशी पर ही भरोसा किया लेकिन वहां भी जीत नसीब नहीं हुई। हनुमानगढ़ में कांग्रेस के परम्परागत प्रत्याशी विनोद कुमार इस बार जीतने में सफल रहे।
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राजस्थान.पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 12 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित 
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Wednesday, October 31, 2018

दोनों दलों को राजनीति की बिसात पर जिताऊ चेहरों की तलाश

श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ : कांग्रेस और भाजपा दोनों का पहला मुकाबला अंदरूनी लड़ाई से
सरहदी और नहरी क्षेत्र में राजनीति की बिसात पर जिताऊ मोहरों की तलाश जोरों पर है। फिलवक्त दोनों बड़ी पार्टियों ने उम्मीदवारी के पत्ते नहीं खोले हैं। पिछले चुनाव में श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ की सभी 11 सीटों पर हार का रेकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस को इस बार सत्ता-विरोधी मतों और बदलाव की बयार से आस है। इसी तरह 2013 में मोदी लहर पर सवार भाजपा ऐसे चेहरे चाहती है, जिनसे उसकी प्रतिष्ठा बची रहीे। कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है तो भाजपा के लिए पुरानी सफलता को बरकरार रखना बड़ी चुनौती है। खास बात यह कि दोनों जिलों के मतदाता कुछ सीटों पर पार्टियों से ज्यादा पसंदीदा चेहरों पर भी दांव लगाते रहे हैं। पिछले तीन चुनाव के परिणाम यही साबित करते हैं।
श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों ने अब तक दो दर्जन से ज्यादा मंत्री दिए हैं। भाजपा-कांग्रेस के अलावा इन चेहरों में निर्दलीय भी शामिल हैं। इन्होंने न सिर्फ सरकार बनाने/बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि मंत्रिमंडल में जगह भी बनाई। दोनों जिलों से जनप्रतिनिधियों को कृषि, सिंचाई, गृह, खान और श्रम जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिले हैं। इस प्रतिनिधित्व के बावजूद किसानों की कुछ समस्याएं जस की तस हैं। चुनाव को लेकर अभी यहां किसी बड़े नेता का आगमन नहीं हुआ है। संभाग मुख्यालय पर जरूर भाजपा व कांग्रेस अध्यक्षों की सभाएं हो चुकी हैं। दोनों जिलों में ओवरऑल एससी मतदाता ज्यादा हैं। संगरिया, श्रीगंगानगर, सादुलशहर और श्रीकरणपुर में सिख और पंजाबी मतदाता खासा दखल रखते हैं, जबकि नोहर और भादरा में जाट मतदाताओं का परचम बुलंद है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दोनों जिलों की 11 में से 10 विधानसभाओं में गौरव यात्रा निकालकर कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने का काम किया। भाजपा ने रायशुमारी का चरण पूरा कर लिया है। कांग्रेस अंदरखाने जीतने वाले चेहरों पर मंथन कर रही है। प्रचार की समरभूमि पर भाजपा और रणनीतिक कौशल में कांग्रेस कुछ आगे है। गुटबाजी व धड़ेबंदी दोनों ही दलों में है। दावेदारों की संख्या को देखते हुए टिकट चयन का काम दोनों दलों के लिए आसान काम नहीं है। पिछले चुनाव में कांग्रेस की हार भी बड़ी थी क्योंकि श्रीगंगानगर की छह सीटों में से मात्र दो पर ही मुकाबले में रही। अनपूगढ़ में तो वह चौथे स्थान पर खिसक गई। इसी तरह हनुमानगढ़ जिले की पांच सीटों में से चार पर कांग्रेस मुकाबले पर रही लेकिन भादरा में वह पांचवें स्थान पर रही।
भाजपा : श्रीगंगानगर की सभी छह सीटों पर अभी द्वंद्व है। टिकट वितरण के बाद स्थिति स्पष्ट होगी। जिले से सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी एकमात्र मंत्री बने, लेकिन विरोध के सुर उनके खुद के विधानसभा क्षेत्र में ही हैं। पिछले चुनाव में वह कम अंतर से जीत पाए थे। रायसिंहनगर में सांसद या उनके परिजनों को टिकट देने की चर्चा है। सादुलशहर में मौजूदा भाजपा विधायक अपने पोते को राजनीतिक विरासत सौंपने की घोषणा कर चुके हैं। श्रीगंगानगर में भाजपा को टिकट फाइनल करने में जोर आएगा। जनता यहां भैरोसिंह शेखावत जैसे कद्दावर नेता को हरा चुकी है। अनपूगढ़ में नाम पट्टिका को लेकर हुए विवाद पर भाजपा का दो धड़ों में बंटना पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। सूरतगढ़ में पूर्व विधायक सक्रिय हैं, उससे भाजपा की नींद उड़ी है। उधर, हनुमानगढ़ जिले में नोहर सीट पर घमासान की उम्मीद है। रावतसर पालिका अध्यक्ष के पति की हत्या यहां के चुनाव को प्रभावित कर सकती है। भादरा में पिछली बार भाजपा जीत गई लेकिन इस सीट का इतिहास अलग ही रहा है। यहां मतदाता उम्मीदवार को रिपीट करने में कम विश्वास करते हैं। हनुमानगढ़ में मुकाबला रह सकता है। पीलीबंगा में इस बार टिकट कटने की चर्चा है। हालांकि पिछले चुनाव में यहां जीत का अंतर दस हजार से ऊपर था। संगरिया में भी भाजपा में कई दावेदार हैं।
कांग्रेस : सत्ता विरोधी मतों की आस में कांग्रेस उत्साह से लबरेज है। इसने दावेदार बढ़ा दिए हैं। पायलट व गहलोत धड़े यहां भी हैं। श्रीगंगानगर में नगर परिषद के सभापति के बड़े भाई ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर हलचल मचा दी। यहां कई दावेदार हैं। करणपुर में पार्टी पिछले चुनाव ज्यादा अंतर से नहीं हारी। इस बार पूरा जोर लगाने के मूड में है। सादुलशहर में भी कांग्रेस कम अंतर से हारी, लेकिन अब दावेदार कई हैं। वर्तमान विधायक अगर पोते को टिकट दिलवाने में कामयाब होते हैं तो मुकाबला दिलचस्प होगा। यहां मुख्यमंत्री की गौरव यात्रा के दौरान अन्य दावेदारों ने एकजुटता से शक्ति प्रदर्शन किया था। सूरतगढ़ में पार्टी पूर्व विधायक पर ही दांव खेल सकती है। रायसिंहनगर से दावेदार कई हैं। जमींदारा पार्टी से जीती वर्तमान विधायक भी कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं। अनूपगढ़ में कांग्रेस अभी तक पैर नहीं जमा पाई है। हनुमानगढ़ में कांग्रेस पुराने चेहरे पर दांव खेल सकती है। संगरिया में पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक दावेदार हैं।
तीसरा मोर्चा व अन्य : श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में अन्य दलों या निर्दलीय ने उपस्थिति दर्ज करवाई है। पिछले चुनाव में जमींदारा पार्टी ने दो सीटें निकाली थीं। 2013 में माकपा प्रत्याशी अनूपगढ़ में तीसरे तथा भादरा में दूसरे स्थान पर रहे। यह दोनों प्रत्याशी फिर तैयार हैं। चर्चा है श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की दो सीटों पर माकपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो सकता है। बसपा हालांकि कमजोर है, लेकिन सूरतगढ़ में पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रही। दोनों ही जिलो में निर्दलीय ने भी अच्छे वोट लिए। पिछले चुनाव में संगरिया, हनुमानगढ़, नोहर व पीलीबंगा में निर्दलीय तीसरे स्थान पर रहे।
चुनाव के प्रमख मुद्दे
नहरी पानी की कमी
नहरों का जीर्णोद्धार
कानून व्यवस्था
नशा और रोजगार
चिकित्सा व्यवस्था
मेडिकल कॉलेज और कृषि विवि
दलीय स्थिति
2013
भाजपा- 9, जमींदारा पार्टी- 2
2008
भाजपा- 2, कांग्रेस- 6, अन्य- 3
2003
भाजपा-7, कांग्रेस-1, अन्य-3
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 22 अक्टूबर 18 को राजस्थान पत्रिका के राजस्थान के तमाम अंकों में प्रकाशित विशेष रिपोर्ट।

विडम्बना : सत्ता में सदा सहभागी फिर भी सरकारों से सौतेलेपन की शिकायत

लगभग हर मंत्रिमंडल में मिला है श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले को प्रतिनिधित्व
श्रीकरणपुर से जीतने वालों को मिला है सर्वाधिक मौका, अब तक छह मंत्री
श्रीगंगानगर. विडम्बना देखिए, सरहदी क्षेत्र के जिले श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ (1952 से 1993 तक चुनाव में श्रीगंगानगर जिला) के लोगों को सत्ता से सौतेलापन करने की हमेशा शिकायत रहती आई है, जबकि यहां से जीते जनप्रतिनिधियों को हर बार सत्ता में सहभागिता निभाने का मौका मिला है। इतना ही नहीं यहां के जनप्रतिनिधियों को मंत्रिमंडल में कृषि, सिंचाई, राजस्व, श्रम, खान, गृह जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी मिले हैं। पहली विधानसभा से मौजूदा विधानसभा तक अविभाजित श्रीगंगानगर (1994 में हनुमानगढ़ अलग हुआ) के जनप्रतिनिधियों को मंत्री बनने का मौका मिलता रहा है। इनमें भी सर्वाधिक मौका श्रीकरणपुर से जीतने वालों को मिला है। इसके बावजूद क्षेत्र की एक बड़ी शिकायत पानी को लेकर हमेशा रहती आई। वैसे तो सभी विधानसभाओं को किसी न किसी कार्यकाल में सत्ता में भागीदारी का मौका मिल चुका है लेकिन अविभाजित श्रीगंगानगर का हिस्सा रहे सूरतगढ़ व नोहर विधानसभा क्षेत्र को अभी तक कोई मंत्री नहीं मिला। कुछ ऐसे नेता भी हैं जो पूरे पांच साल मंत्री नहीं रहे।
इनको भी मिली जिम्मेदारी
नोहर से लक्ष्मीनारायण भांभू को 1985 में तथा सूरतगढ़ से विजयलक्ष्मी बिश्नोई को 1998 में संसदीय सचिव बनाया। यह दोनों कांग्रेस सरकार में रहे। 2003 में केसरीङ्क्षसहपुर से ओपी महेन्द्र मुख्य उप सचेतक बनाया जबकि 2008 में भादरा से निर्दलीय जीते जयदीप डूडी संसदीय सचिव बने।
निर्दलीयों को भी मिला है मौका
मंत्री केवल कांग्रेस या भाजपा में ही नहीं बने बल्कि निर्दलीय भी खूब बने हैं। 1990 में पीलीबंगा से निर्दलीय जीते रामप्रताप कासनिया, 1993 में टिब्बी से निर्दलीय शशिदत्ता, संगरिया से निर्दलीय गुरजंटसिंह तथा भादरा से निर्दलीय जीते चौधरी ज्ञानसिंह चौधरी को मंत्रिमंडल में जगह मिली। इस प्रकार 2008 में भादरा से निर्दलीय जीते जयदीप डूडी कांग्रेस सरकार में संसदीय सचिव बने। श्रीकरणपुर से जीते गुरमीत कुन्नर भी निर्दलीय जीतकर मंत्री बने तथा बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
किस विधानसभा से कितनी बार मंत्री
श्रीकरणपुर छह बार
हनुमानगढ़ पांच बार
संगरिया चार
गंगानगर तीन बार
भादरा तीन बार
टिब्बी दो बार
केसरीसिंहपुर एक
पीलीबंगा एक
रायसिंहनगर एक
सादुलगढ़ एक
नोट - वर्तमान में सादुलगढ़, केसरीसिंहपुर, टिब्बी विधानसभा का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। 2008 को अस्तित्व में आई सादुलशहर व अनूपगढ़ से दो चुनाव में किसी को मौका नहीं मिला है।
दो या इससे अधिक बार मंत्री व उनका दल
नाम दल
चौधरी रामंचद कांग्रेस
केदार शर्मा जनता पार्टी/ जनता दल
केसी बिश्नोई कांग्रेस
सुरेन्द्रपालसिंह भाजपा
डॉ. रामप्रताप भाजपा
लालचंद डूडी जनता पार्टी/ जनता दल
हीरालाल इंदौरा कांग्रेस
नोट - इनमें चौधरी रामचंद्र तीन बार तथा बाकी सभी दो-दो बार मंत्री बने। यह एक बार रहे मंत्री
कौनसे कार्यकाल में कितने मंत्री
1967-72 में दो मंत्री
1977-80 में तीन मंत्री
1980-85 में दो मंत्री
1985-90 में दो मंत्री
1990-92 में चार मंत्री
1993-98 में चार मंत्री
1998-2003 में तीन मंत्री
2008-13 में दो मंत्री
2013-18 में दो मंत्री
1952-57, 1957-62, 1972-77 तथा 2003-08 के कार्यकाल वाली सरकारों में एक-एक मंत्री रहा जबकि 1962 -67 में कोई मंत्री नहीं रहा।
यह एक बार रहे मंत्री
नाम दल
बृजप्रकाश गोयल कांग्रेस
विनोद कुमार कांग्रेस
डूंगरराम पंवार जनता पार्टी
शशिदत्ता निर्दलीय
रामप्रताप कासनिया निर्दलीय
चौधरी ज्ञानसिंह निर्दलीय
गुरजंटसिंह निर्दलीय
दुलाराम कांग्रेस
राधेश्याम कांग्रेस
गुरदीपङ्क्षसह कांग्रेस
कुंदन मिगलानी भाजपा
जगतारङ्क्षसह कंग कांग्रेस
गुरमीत कुन्नर निर्दलीय
नोट - गुरजंट सिंह संगरिया से निर्दलीय जीते बाद में भाजपा में शामिल हुए। इसी तरह, गुरमीत कुन्नर श्रीकरणपुर से निर्दलीय जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए। पीलीबंगा से निर्दलीय जीतकर मंत्री बने रामप्रताप कासनिया ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की।
सत्ता से शिकायत की वजह
इलाके का दुर्भाग्य रहा कि जन नेताओं को सरकार में शामिल होने का मौका ही नहीं मिला। हकीकत में टिकट खरीद-फरोख्त करने वाले नेता ही सरकार में शामिल हुए। ऐसे मंत्री सरकार को बचाने में ज्यादा लगे रहे, इन नेताओं ने किसानों को बचाने का प्रयास ही नहीं किया। तभी तो किसानों से जुड़ी समस्याएं आज तक यथावत है।
बलवान पूनिया, किसान नेता, हनुमानगढ़
&मंत्रिमंडल में पूरा प्रतिनिधित्व मिलने के बावजूद किसानों से जुड़ी समस्याएं अब तक यथावत है। जो मंत्री बने उनका व्यक्तिगत स्वार्थ, सामूहिक हित पर हावी रहा। वर्ष 1993 में तो हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर में मंत्रियों की बहार आ गई, लेकिन किसानों की किस्मत चमकाने के लिए किसी ने प्रयास नहीं किए। नए उद्योग धंधे लगाने की बजाय जिले की एकमात्र सहकारी स्पिनिंग मिल भी मंत्रियों की वजह से बंद हो गई।
ओम जांगू, किसान नेता, हनुमानगढ़
&जब विधानसभा चुनाव होता है तब कांग्रेस-भाजपा सहित अन्य नेता किसानों की आवाज उठाने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। सिंचाई पानी, कृषि भूमि जोत, कृषि जिन्सों के भाव आदि दिलवाने का वादें करते हैं। जीत कर विधानसभा में पहुंचते हैं और मंत्री बन जाते हैं तब किसानों के मुद्दों को भूल जाते हैं और पार्टी के गुणगान करने लग जाते हैं। इस स्थिति में फिर किसान संगठनों को किसानों की आवाज उठाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
एडवोकेट सुभाष सहगल, प्रवक्ता किसान संघर्ष, समिति श्रीगंगानगर।
&चुनाव में नेता किसानों के लिए सिंचाई पानी दिलवाने, कृषि जिन्सों के भाव, पूरी खरीद और गंगनहर के रखरखाव सहित हर वादा करते हैं। किसानों के बीच जाकर बड़े वादें करते हैं लेकिन जब चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंच जाते हैं तब किसान के लिए कुछ नहीं करते। किसानों की आवाज विधानसभा में नहीं उठाते हैं। जब ऐसा नहीं करते हैं तब मजबूरी में किसान संगठनों को आंदोलन करना पड़ता है।
रणजीत सिंह राजू, संयोजक, गंगानगर किसान संघर्ष समिति।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण 23 अक्टूबर 18 के अंक में  में प्रकाशित ।

किसानों का कर्ज माफ करने से नहीं होगा समस्या का हल

सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र : खेती के भले के लिए नीति-नियमों में बदलाव जरूरी
श्रीगंगानगर जिले की पहचान सरसब्ज जिले की रूप में होती है लेकिन इस जिले के सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र का काफी हिस्सा बारानी है। इसे स्थानीय लोग टिब्बा क्षेत्र भी कहते हैं। इसी विधानसभा क्षेत्र का एक बड़ा गांव बीरमाना है। सूरतगढ़ से बीरमाना की यात्रा के दौरान किसान खेत में नरमा चुगाई में व्यस्त नजर आए। बीरमाना के स्टैंड पर कुछ ग्रामीण और महिलाएं बस के इंतजार में खड़े हैं। पास ही एक चाय की दुकान व पेस्टीसाइड की दुकान पर ग्रामीण जमा हैं। पानी और किसानों की चर्चा की तो फिर सभी बेबाकी से बोलने लगे। खेती किसानी वाला इलाका है, इसलिए चिंता व चर्चा भी उसी की है। पूर्व सरपंच ओमप्रकाश गेदर व पंचायत समिति सदस्य कृष्ण कुमार स्वामी कहते हैं कि किसान का भला जिस दिन हो जाएगा। सारी समस्याएं ही खत्म हो जाएंगी। नियमों में इतनी विसंगति हैं कि किसान को लाभ नहीं मिल पाता। वे कहते हैं कि सरकारें किसानों का कर्जा माफ करती हैं, लेकिन इससे किसानों की समस्या खत्म नहीं होनी वाली। सरकारों को किसानों की वास्तविक समस्या का हल खोजना होगा। इनका कहना था कि कृषि के लिए बजट अलग से होना चाहिए। कृषि जिन्सों की खरीद घोषणा होते ही शुरू हो जाए और इसका भुगतान हाथों हाथ हो तो भी किसानों को राहत मिलेगी। खरीद व भुगतान देरी से होने के कारण किसान अपनी जिन्स बाजार में बेचने को मजबूर होता है। सरकार को इस व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। पास बैठे हरीश कुमार मंगलाव, जगदीश शर्मा, रामकुमार शर्मा, चेतराम टाक, काशीराम टाक, भागीरथ बरोड़ व हीरालाल टाक आदि भी सहमति में सिर हिलाते हैं। फिर कहते हैं फसल बीमा की विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए। 
पांच साल हो गए नरमे में अजीब तरह की बीमारी लग रही है। जितना खर्चा हो रही है उतनी आमदनी होती नहीं है। बीमा की विसंगति दूर होने से भी किसानों को फायदा होगा। ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा कि सरकार को पेट्रोल व डीजल पर भी जीएसटी लागू करना चाहिए तथा किसानों को डीजल पर सब्सिडी देनी चाहिए। ग्रामीणों को यकीन है कि सरकारें चाहें तो सब कुछ संभव हैं लेकिन उनकी कथनी और करनी में अंतर के कारण किसानों को लाभ नहीं मिल पाता।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 20 अक्टूबर के अंक में ग्राउंड जीरो के तहत लगी। 

कई बार बनी, बदली और बिगड़ी है इन सीटों की तस्वीर

पांच से 11 विधानसभा क्षेत्र होने की रोचक कहानी
श्रीगंगानगर. यह कहानी बड़ी रोचक है। इसमें बनने, बदलने और बिगडऩे के कई उदाहरण है। यह कहानी है अविभाजित श्रीगंगानगर के पांच विधानसभा क्षेत्र की जिनकी संख्या अब 11 हो चुकी है। इसके अलावा हनुमानगढ़ अलग से जिला भी बन चुका है। इस घटत-बढ़त में कुछ नाम नए अस्तित्व में आए तो कुछ सदा के लिए अतीत के पन्नों में दफन हो गए। इतना ही नहीं सुरक्षित सीटों के स्थान बदलते रहे हैं। कई सुरक्षित से सामान्य बन गई तो कुछ सीटें सामान्य से सुरक्षित हो गई। राजस्थानप विधानसभा के पहले चुनाव 1952 में अविभाजित श्रीगंगानगर में कुछ पांच सीटें थी। भादरा, नोहर, सादुलगढ़, श्रीगंगानगर व रायसिंहनगर-करणपुर। रायसिंहनगर व करणपुर दोनों को एक मिलाकर एक सीट थे पर दो विधायक चुने गए। 1957 के चुनाव में श्रीकरणपुर व रायसिंहनगर अलग-अलग विधाानसभा हो गए लेकिन भादरा को नोहर में मर्ज कर दिया तब नोहर में भी एक सीट पर दो विधायक चुने गए। इस कार्यकाल में सूरतगढ़ नई विधानसभा बनी। सादुलगढ का नाम बदलकर हनुमानगढ़ भी इसी दौरान हुआ। दूसरे चुनाव में सीटों की संख्या पांंच से छह हो गई। के चुनाव में रावतसर नई विधानसभा बनी और कुल विधानसभा सात हो गई। इसके बाद 1967 के चुनाव में संगरिया व केसरीसिंहपुर बनी। रावतसर खत्म हो गई और भादरा सीट फिर से अस्तित्व में आ गई। कुल संख्या नौ हो गई। 1972 के चुनाव में भी इतनी ही सीटें रही। 1977 के चुनाव में टिब्बी व पीलीबंगा दो नई विधानसभा और बनी और संख्या 11 हो गई। इसके बाद 2008 के चुनाव में संख्या तो 11 ही रही लेकिन टिब्बी व केसरीसिंहपुर सीटों के बदले सादुलशहर व अनूपगढ़ नई विधानसभाएं बनीं।
सुरक्षित सीटों का भी रोचक इतिहास
1951 के चुनाव में श्रीगंगानगर जिले में कोई सीट सुरक्षित नहीं थी। 1957 में नोहर को सुरक्षित सीट बनाया गया। इसके बाद 1962 के चुनाव में नोहर सामान्य हो गई और नए सीट रावतसर को सुरक्षित बनाया गया। 1967 के चुनाव में रावतसर खत्म हो गई जबकि रायसिंहनगर को सुरक्षित सीट घोषित किया गया। रायसिंहनगर तब से सुरक्षित सीट है। इसी तरह संगरिया 1967 व 1972 के चुनाव में सुरक्षित सीट रही। 1967 में बनी सीट केसरीसिंहपुर भी सुरक्षित सीट रही। 1997 के चुनाव में रायसिंहनगर के साथ टिब्बी व केसरीसिंहपुर सुरक्षित सीटें रही। 2008 के चुनाव में केसरीसिंपुर व टिब्बी का अस्तित्व खत्म हो गया। इसके बाद पीलीबंगा व अनूपगढ़ को सुरक्षित सीट घोषित किया गया जबकि रायसिंहनगर पूर्व की तरह सुरक्षित चलती रही।
अतीत का हिस्सा बन गई यह विधानसभाएं
राज्य के पहले चुनाव में सादुलगढ़ विधानसभा क्षेत्र था लेकिन इसके बाद इस नाम की सीट खत्म कर दूसरे नाम से बनाई है। इसी तरह रावतसर विधानसभा केवल 1962 के चुनाव में सामने आई बाद में यह क्षेत्र लोप हो गया। केसरीसिंहपुर व टिब्बी 1967 से अस्तित्व में आए लेकिन 2008 में इनका नाम भी हट गया।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमान संस्करण के 20 अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित। 

वोटों की फसल : राजे और गहलोत का पेशा राजनीति, अधिकांश विधायक करते हैं खेती

सिर्फ दो का पेशा सियासत
बाकी 40 % किसान
श्रीगंगानगर. यह सुनकर आप चौंक सकते हैं कि 14 वीं विधानसभा में प्रदेश के मात्र दो विधायकों का ही पेशा राजनीति है। और ये दो विधायक हैं वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। दिलचस्प पहलू यह है कि कई विधायकों को राजनीति विरासत में मिली है तो कई तीन-तीन, चार-चार बार लगातार जीत चुके हैं, फिर भी उनका मूल पेशा राजनीति नहीं है। राजस्थान विधानसभा के पोर्टल पर 14वीं विधानसभा के लिए चुने विधायकों का जो व्यक्तिगत विवरण दिया गया था (अभी पोर्टल से इसे हटा दिया गया है) उसमें 40 फीसदी से अधिक का एकल पेशा खेती है। करीब बारह या तेरह फीसदी का पेशा कृषि के साथ-साथ दूसरा है।
197 विधायकों में से 80 का पेशा खेती है, जबकि 27 विधायक ऐसे हैं, जिनका कृषि के साथ दूसरा पेशा भी है। इस तरह 107 विधायकों का पेशा परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से खेती है। मजे की बात यह है जिन विधायकों का पेशा खेती है, उनमें कई तो शहरी क्षेत्र में निवास करते हैं।
वसुंधरा-गहलोत ने खुद को बताया सोशल वर्कर
जिन दो विधायकों का पेशा राजनीति है उनमें एक नाम मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है जबकि दूसरा नाम पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का है। यह भी एक संयोग है इन दोनों ही नेताओं का राजनीति के साथ-साथ जो दूसरा पेशा दिया गया है वह भी एक जैसा ही है। राजनीति के साथ दोनों नेताओं ने खुद को सोशल वर्कर बताया है।
और ये भी शामिल
14वीं विधानसभा में चार पूर्व कर्मचारी या अधिकारी भी चुन कर आए। इनमें तीन जोधपुर संभाग से हैं जबकि एक जयपुर संभाग से।
दो विधायक बीमा अभिकर्ता रहे हैं।
एक विधायक का पेशा पत्रकारिता, एक ने मुख्य पुजारी का बताया है।
विधायकों के बाकी पेशे में व्यवसाय, होटल, उद्योग आदि भी है।
विधायकों में कुछ का पेशा वकालत, सीए, डाक्टर आदि भी है।
कुछ विधायकों ने अपना पेशा समाजसेवा भी बताया हुआ है।
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राजस्थान पत्रिका के 20 अक्टूबर के अंक में चुनावी पेज 'राजस्थान का रण' पर राजस्थान में प्रकाशित। 

वाया फुलेरा भी जयपुर से जुड़े श्रीगंगानगर तो होगी समय की बचत

श्रीगंगानगर. रेलवे चाहे तो श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ को जयपुर से बीकानेर के रास्ते के बजाय नए रूट से जोड़ सकता है। इस नए रूट से समय की बचत भी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि सीकर से रींगस के बीच ब्रॉडगेज का ट्रायल पूरा हो चुका है। अब रींगस से जयपुर के बीच 57 किलोमीटर का काम बाकी रहा है। इस तरह श्रीगंगानगर से रींगस तक ब्रॉडगेज रेल लाइन का काम पूरा हो चुका है। वर्तमान में श्रीगंगानगर से सादुलपुर के बीच रेलों का संचालन हो रहा है। 
बीकानेर से दिल्ली जाने वाली रेलगाडिय़ां वाया चूरू-सादुलपुर होकर चल रही हैं। सीकर से चूरू के बीच भी रेलों का संचालन होता है। इतना ही नहीं रींगस से फुलेरा के बीच भी संचालन हो रहा है। फिलहाल श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ के यात्रियों वास्ते जयपुर जाने के लिए एकमात्र, जो ट्रेन है वह वाया बीकानेर-नागौर होकर जाती है। इस मार्ग की दूरी करीब 680 किलोमीटर है। इधर, श्रीगंगानगर से रींगस की दूरी 441 किलोमीटर है। रींगस से फुलेरा 66 किमी है तथा फुलेरा से जयपुर 54 किलोमीटर है। इन सबको जोड़ दिया तो यह दूरी 561 किलोमीटर होती है, जोकि बीकानेर-नागौर वाले रूट से 119 किलोमीटर कम है।
जयपुर-श्रीगंगानगर के बीच चलने वाले इंटरसिटी की औसत स्पीड 56.55 किमी प्रति घंटा है और यह श्रीगंगानगर से जयपुर पहुंचने में बारह घंटे लेती है। नए रूट पर रेल इसी स्पीड से चले तो कम से कम दो से ढाई घंटे की बचत होगी। इतना ही नहीं भविष्य में रींगस व जयपुर के ट्रैक का काम पूरा होगा तो श्रीगंगानगर से जयपुर वाया सीकर-चूरू-सादुलपुर की दूरी 498 किलोमीटर रह जाएगी।
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राजस्थान.पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 19 अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित। 

Friday, October 19, 2018

इक बंजारा गाए -51

फिर भी दावेदारी
चुनावी मौसम है और इसके लिए मैदान तैयार हो चुका है लेकिन अभी योद्धाओं के नाम तय होने बाकी हैं। हां, रण में शामिल होने के लिए संभावित योद्धाओं में जबरदस्त होड़ मची है। सभी अपने लाव-लश्कर के साथ दावा मजबूत करने में जुटे हैं। इन संभावित योद्धाओं में कुछ नाम तो चिर-परिचित हैं लेकिन कुछ नए नवेले तो कुछ अचानक से प्रकट हो गए हैं। राजनीतिक रूप से इन नामों का कद या पद भी नहीं है। हां, उनको इस बात की तसल्ली तो हो सकती है कि भले ही चुनाव में टिकट न मिले लेकिन तब तक चर्चाओं में नाम तो आ रहा है, वह भी क्या कम है।
परिचय से गुरेज
चुनाव में भाजपा के संभावित उम्मीदवार तय करने के लिए अभी रायशुमारी की गई थी। इसमें श्रीगंगानगर जिले की सभी छह विधानसभाओं से संभावित दावेदारों के नाम आए हैं। चर्चाओं में सुनने को आया है कि रायशुमारी के वक्त जिले के एक मौजूदा विधायक ने दावेदारी से खुद को अलग कर लिया। दावेदारी के लिए संभावितों से जब हाथ खड़े करवाए गए तो विधायक ने हाथ नहीं उठाया। बताते हैं जब परिचय की बारी आई तो विधायक ने वर्तमान पद के बजाय संगठन से जोडकऱ अतीत का परिचय दिया। इस तरह के परिचय के राजनीतिक गलियारों में अलग-अलग कयास लग रहे हैं।
पूछ परख नहीं
चुनाव मौसम में मतदाताओं की पूछ परख बढ़ती है। रुठों को मनाया जाता है। उनकी आवभगत व मान मनौव्वल की जाती है। कोई किसी कारणवश पार्टी से इधर-उधर चला जाता है तो उसकी घर वापसी के भी पूरे प्रयास किए जाते हैं। इन दिनों एक पुराने नेताजी भी चुनावी समर में कूदने की तैयारी करके बैठे हैं लेकिन पार्टी उनको पूछ नहीं रही है। नेताजी ध्यान खींचने का पूरा प्रयास कर रहे हैं लेकिन अभी पार्टी ने भाव नहीं दिया है। चुनाव के समय शायद पार्टी को नेताजी की याद आ जाए लेकिन फिलहाल तो दूरी बनी हुई है।
आयोजकों की मजबूरी
शहर में इन दिनों धार्मिक आयोजन खूब हो रहे हैं और लगातार हो रहे हैं। जाहिर सी बात है इन आयोजनों में अतिथि भी बनाए जाते हैं। वैसे अतिथि बनाने के पीछे आयोजकों का लालच कहीं न कहीं यह भी रहता है कि अतिथियों से किसी प्रकार की मदद मिल जाएगी। इस मदद की आस में आयोजकों को अतिथियों के नखरे भी उठाने पड़ते हैं। ऐसा करना उनकी मजबूरी भी है। यहां तक कि कई अतिथि समय सीमा का भी ख्याल नहीं रखते। और जब तक अतिथि नहीं आते आयोजक कार्यक्रम को रोके रखते हैं। आयोजक का धर्मसंकट भला दूर हो तो हो कैसे।
संहिता का असर
चुनाव की घोषणा होने के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है। घोषणा से पहले जो प्रचार व पोस्टर लगाने का जोर था वह थम गया। अब तो एकदम सन्नाटा सा पसरा हुआ है। अभी चुनाव मैदान के संभावित चेहरे सामने नहीं आए हैं लेकिन जो घोषणा होने से पहले दावेदारी जताकर प्रचार में जुटे थे अब चुपचाप प्रचार कर रहे हैं। होर्डिंग्स, बैनर, पोस्टर आदि भी गायब हैं लेकिन कारों के पीछे शीशों पर संभावित दावेदारों के नाम व फोटो के पोस्टर जरूर लगे हैं और खूब लगे हैं। इस कार वाले प्रचार पर फिलहाल संहिता का असर दिखाई नहंी दे रहा।
बयान से हलचल
चुनावी मौसम में बयानों का बड़ा महत्व है। पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष का बीकानेर में दौरा था। उस दौरान उनका दिया गया बयान फिलहाल नई-नई इंट्री मारने वालों के लिए एक बार परेशानी का सबब बन गया। उन्होंने कहा था पांच साल काम करने वालों को टिकट दी जाएगी। खैर चुनाव के समय टिकट मिलने न मिलने के पीछे बहुत सारे समीकरण काम करते हैं लेकिन फिलहाल बयान से सांसें थमी हुई है। विशेषकर श्रीगंगानगर में कांग्रेस के दामन थामने वाले नए नवेले नेताजी व रायसिहंगर में अपनी पार्टी छोड़ कर कांग्रेस राह पकडऩे वालों के समर्थकों में इस बयान से कुछ बैचेनी है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 18 अक्टूबर 18 को प्रकाशित...

अठारह से प्रेम है मुझे

बस यूं ही
अठारह शब्द दिमाग में आते ही कई खूबसूरत ख्याल आने लगते हैं। पहला ख्याल तो अठारह साल की कमसिन उम्र, जहां सतरंगी सपने और उडऩे की ख्वाहिश होती है। अठारह की उम्र जिसमें मत डालने का अधिकार मिलता है। अपना भी इस अठारह से गहरा नाता है। वैसे बचपन से जवानी की दहलीज पर कदम रखने तथा अठारहवें साल को जिए जीवन के लगभग ढाई दशक गुजर गए। अपना अठारहवां लगा था तब बारहवीं उत्तीर्ण कर कॉलेज में आ चुके थे। खैर, अभी भी इस अठारह से गहरा लगाव है और जिंदगी भर रहेगा। अब देखिए ना थोड़ी देर बाद 18 तारीख लग जाएगी। मामला रोचक इसीलिए भी है इस बार साल भी अठारह का चल रहा है। चूंकि 18 से लगाव है तो लगे हाथ इससे संबंधित बातों पर भी चर्चा हो जाए। महाभारत का युद्ध तो आपको याद ही होगा। इस महाभारत कथा में 18 (अठारह) संख्या का बड़ा महत्त्व है। महाभारत का युद्ध कुल अठारह दिन तक चला था। कौरवों (11 अक्षोहिनी) और पांडवों (9 अक्षोहिनी) की सेना भी कुल 18 अक्षोहिनी थी। इसी तरह महाभारत में कुल 18 पर्व हैं। इनके नाम हैं, आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, अश्वमेधिक पर्व, महाप्रस्थानिक पर्व, सौप्तिक पर्व, स्त्री पर्व, शांति पर्व, अनुशासन पर्व, मौसल पर्व, कर्ण पर्व, शल्य पर्व, स्वगारज़ेहण पर्व तथा आश्रम्वासिक पर्व। इससे थोड़ा आगे चलें तो गीता उपदेश में भी कुल 18 अध्याय ही हैं। इतना ही नहीं इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इनके नाम ध्रतराष्ट्र, दुर्योधन, दुशासन, कर्ण, शकुनी, भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, अश्वस्थामा, कृतवमात, श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी एवं विदुर।
इसके साथ एक संयोग और जुड़ा है। महाभारत के युद्ध के पश्चात् कौरवों के तरफ से तीन और पांडवों के तरफ से 15 यानि कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। और सुनिए महाभारत को पुराणों के जितना सम्मान दिया जाता है और पुराणों की संख्या भी 18 है। श्रीमद् भागवत में कुल अठारह हजार श्लोक हैं। मां भवानी के भी अठारह ही स्वरूप हैं। काली, तारा, छिन्नमस्ता, षोडशी, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कुष्मांडा, कात्यायनी, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गायत्री, पार्वती, श्रीराधा, सिद्धिदात्री और शैलपुत्री। इसी क्रम में श्रीविष्णु, शिव, ब्रह्मा, इंद्र, आदि देवताओं के अंश से प्रकट हुई भगवती दुर्गा अठारह भुजाओं से सुशोभित हैं। चर्चा और आगे बढ़ाए तो सिद्धियां भी अठारह ही हैं। अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, सिद्धि, ईशित्व या वाशित्व, सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञात्व, दूरश्रवण, सृष्टि, परकायप्रवेशन, वाकसिद्धि, कल्पवृक्षत्व, संहराकरणसामथ्र्य, भावना और सर्वन्यायकत्व। इसके अलावा सांख्य दर्शन में पुरुष, प्रकृति, मन, पांच महाभूतों ( पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) पांच ज्ञानेंद्रियां (श्रोत, त्वचा, चक्षु, नासिका एवं रसना) और पांच कमेंद्रियां( वाक्, पाणि, पाद, पायु एवं उपस्थ) इन अठारह तत्वों का विवरण मिलता है। छह वेदांग, चार वेद, मीमांसा, न्यायशास्त्र, पुराण, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, आयुर्वेद, धनुर्वेद और गंधर्ववेद अठारह तरह की विद्याएं हैं। इसी तरह एक संवत्सर, पांच ऋतुएं और बारह महीने ये मिलाकर काल के अठारह भेदों को प्रकट करते हैं।
थोड़ी और जानकारी जुटाई तो पता चला केरल में ओणम पर दुग्ध से 18 तरह के पकवान बनते हैं। शंकर-पार्वती की पूजा का पर्व गणगौर भी अठारह दिन चलता है। हिन्दू धर्म में 18 मुखी रूद्राक्ष भी होता है।.यह बेहद दुर्लभ होता है, और 18 वनस्पतियों मतलब औषधियों का प्रतीक माना गया है। वैसे तो साल में बारह बार 18 तारीख आती है लेकिन 18 अक्टूबर की बात ही कुछ और है। धर्म और दर्शन की बाद नजर इतिहास पर डाली जाए तो ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन की स्थापना 18 अक्टूबर 1922 को हुई थी। इसी दिन 1972 में भारत के पहले बहुद्देशीय हेलिकॉप्टर एस ए 315 का बैंगलोर में परीक्षण किया। प्रसिद्ध अभिनेता ओमपुरी का जन्म भी इसी दिन हुआ था। 18 अक्टूबर का इतिहास लंबा है, चर्चा चले तो कई पृष्ठ भर जाएं। अठारह साल के साथ साथ गौर करने की बात यह है कि हमको पत्रकारिता में भी अठारह साल पूरे हो चुके हैं। हां इस पत्रकारिता के कारण गांव छूटा। उसको छोड़े हुए भी 18 साल हो गए। अभी थोड़ी देर पहले टीवी ऑन किया तो सुहाग फिल्म का गाना चल रहा था। अमिताभ व रेखा मस्ती में गा रहे थे। गाने के बोल थे। अठरहा बरस की तू होने को आई रे...वाकई जवां होते दिलों की खूबसूरत नोकझोंक है इस गाने में हैं। अब अठारह की प्रशंसा में इतने कशीदे गढ़ ही दिए हैं तो इतना बता दूं कि चार अठारह के संंयोग के साथ पांचवां अठारह और जोड़ दीजिए। यह पांच अठारह का संयोग जिंदगी में पहली बार आया है, इसलिए एेतिहासिक है, अगले साल से तो फिर एक ही अठारह रहना है मरते दम तक। तो अब रहस्य से पर्दा उठा देता हूं। 18 अक्टूबर अवतरण दिवस है। यही वह दिन था जब मेरा जन्म हुआ। बोले तो 18 अक्टूबर 1976...और इसी के साथ जिंदगी के 42 बसंत भी पूरे किए।

सबसे ज्यादा और सबसे कम संपत्ति वाले विधायक श्रीगंगानगर में

दोनों ही महिलाएं और दोनों एक ही पार्टी से जीती थीं
श्रीगंगानगर. यह अजीब संयोग है कि मौजूदा विधानसभा सदस्यों में प्रदेश का सर्वाधिक धनवान विधायक श्रीगंगानगर से है और सबसे कम संपत्ति वाला विधायक भी श्रीगंगागर जिले से ही है। संपत्ति के अर्श और फर्श के इस संयोग के साथ एक संयोग यह भी जुड़ा है कि दोनों विधायक महिलाएं हैं और दोनों ही जमींदारा पार्टी से जीती। प्रदेश विधानसभा के मौजूदा 197 विधायकों में संपत्ति के मामले में श्रीगंगानगर विधानसभा से विधायक जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल पहले स्थान पर हैं। उनकी चल व अचल संपत्ति दो अरब के करीब है जबकि सबसे कम संपत्ति श्रीगंगानगर जिले की रायसिंहनगर विधानसभा से विधायक सोनादेवी के पास है। संयोग यह है भी कि सोनादेवी भी जमींदारा पार्टी से ही जीती। यह बात अलग है कि हाल में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। चल व अचल संपत्ति के मामले में एक यह भी संयोग जुड़ा है कि प्रदेश में पांच विधायकों के पास अचल संपत्ति नहीं हैं। इनमें भी दो श्रीगंगानगर से हैं। रायसिंहनगर विधायक सोनादेवी व अनूपगढ़ विधायक शिमला देवी के पास अचल संपत्ति नहीं हैं। इसके अलावा सिरोही विधायक ओटाराम, बायतू विधायक कैलाश चौधरी तथा भीलवाड़ा विधायक धीरज गुर्जर के पास भी अचल संपत्ति नहीं है। शिमला देवी के अलावा शेष सभी विधायकों के पास चल-अचल संपत्ति करोड़ों व लाखों में है जबकि उसके पास चल संपत्ति लाख से भी नीचे मतलब हजारों रुपए में है। यह भी प्रदेश का इकलौता उदाहरण है।
विदित रहे कि राजस्थान इलेक्शन वाच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोम्र्स ने राजस्थान विधानसभा सचिवालय से विधायकों के बारे में आरटीआई दाखिल की थी। यह जानकारी वहीं से ली गई है।
श्रीगंगानगर विधानसभा
विधायक नाम पार्टी चल संपत्ति अचल संपत्ति कुल संपत्ति विधानसभा
कामिनी जिंदल जमींदारा पार्टी 27060802 1947200000 1974260802 श्रीगंगानगर
सोना देवी जमींदारा पार्टी 61357 कोई नहीं 61357 रायसिंहनगर
[ सोना देवी ने अब कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है ]
हनुमानगढ़ के सभी विधायक करोड़पति
चल-अचल संपत्ति के मामले में हनुमानगढ़ के पांचों विधायक करोड़पति हैं। सर्वाधिक संपत्ति हनुमानगढ़ विधायक व मंत्री डॉ. रामप्रताप के पास है। जबकि आखिरी नंबर पीलीबंगा विधायक द्रोपती मेघवाल का आता है।
किसके पास कितनी संपत्ति
(हनुमानगढ़ जिला)
नाम विधायक चल संपत्ति अचल संपत्ति कुल संपत्ति विधानसभा क्षेत्र
डॉ. रामप्रताप 16267754 248000000 264267754 हनुमानगढ़
कृष्ण कड़वा 6224215 85385000 91609215 संगरिया
अभिषेक मटोरिया 17880356 64460000 82340356 नोहर
संजीव बेनीवाल 1050951 42100000 40665000 भादरा
द्रोपती 2020343 9700000 11720343 पीलीबंगा
किसके पास कितनी संपत्ति
(श्रीगंगानगर जिला)
राजेन्द्र भादू 10634266 17000000 27634266 सूरतगढ़
गुरजंटसिंह 2626906 1547500 18101096 सादुलशहर
सुरेन्द्रपालसिंह टीटी 4246795 1364000 17886795 श्रीकरणपुर
शिमला देवी 917885 ------- 917885 अनूपगढ़
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 17 अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित।

दोनों मंत्रियों की विधानसभा में उपस्थिति रही कम

भादरा व रायसिंहनगर विधायक ने पूछे सर्वाधिक सवाल
श्रीगंगानगर. नई विधानसभा के चुनाव की तैयारियों का दौर जोर पकड़ रहा है। पुराने जनप्रतिनिधि अपने कार्यकाल की उपलब्धियों और कामों को मतदाताओं के समक्ष रख रहे हैं। हाल में एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफोम्सज़्) ने विधायकों का रिपोटज़् कार्ड जारी किया है। इसमें श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ के सभी जनप्रतिनिधियों की विधानसभा में उपस्थिति व उनके द्वारा पूछे गए सवालों का विवरण है। सवाल पूछने के मामले में हनुमानगढ़ जिले में भादरा विधायक संजीव बेनीवाल अव्वल रहे जबकि सदन में सर्वाधि उपस्थिति देने के मामले में संगरिया विधायक कृष्ण कड़वा पहले स्थान पर रहे। इसी तरह श्रीगंगानगर जिले में सर्वाधिक सवाल रायसिंहनगर विधायक सोनादेवी ने पूछे जबकि सर्वाधिक उपस्थिति सादुलशहर विधायक गुरजंटसिंह की रही। सुरेन्द्रपाल टीटी सदन में 30 दिन उपस्थित हुए और 53 सवाल पूछे जबकि डॉ. राप्रताप 18 दिन उपस्थित हुए और कोई सवाल नहीं पूछा। काबिलगौर है पांच साल में विधानसभा 139 दिन लगी। सर्वाधिक उपस्थिति 137 दिन की भाजपा के झाबरसिंह खर्रा के नाम रही है जबकि सर्वाधिक सवाल 678 कांग्रेस के रमेश ने पूछे।
विधायकों का रिपोर्ट कार्ड
हनुमानगढ़ जिला
विधायक उपस्थिति सवाल
कृष्ण कड़वा 134 64
डॉ. रामप्रताप 18 00
संजीव बेनीवाल 110 462
अभिषेक मटोरिया 101 232
द्रोपती 128 374
श्रीगंगानगर जिला
कामिनी जिंदल 75 370
सुरेन्द्रपालसिंह टीटी 30 53
गुरजंटसिंह 125 57
शिमला देवी 124 120
सोना देवी 120 452
राजेन्द्र भादू 121 111
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 17 अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित। 

नहरी पानी की छीजत

 प्रसंगवश
हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर की आजीविका व अर्थव्यवस्था नहरी पानी पर ही निर्भर है। इन दो जिलों सहित प्रदेश के करीब दस जिलों में इंदिरा गांधी नहर का पानी लोगों के हलक तर करने के साथ सिंचाई के भी काम आता है। इस तथ्य के साथ एक कटु सत्य यह भी जुड़ा है कि हर सप्ताह या पखवाड़े में किसी न किसी हिस्से का किसान पानी की कमी से परेशान होकर सडक़ों पर उतरता है। नहरों में पानी कम होने के मुख्य कारण छीजत, चोरी व नहर कमजोर होने के कारण क्षमता के अनुसार पानी न ले पाना है। कई बार असमान वितरण के मामले भी सामने आए हैं, जब नहर के हैड वाले किसान बागबाग हो लेकिन आखिरी छोर यानी टेल वाले किसान पानी को तरसते रह गए। तमाम प्रयासों के बावजूद जल संसाधन विभाग पानी चोरी व छीजत पर अंकुश नहीं लगा पाया है। यही कारण है कि पानी चोरों के हौसले बुलंद हैं। श्रीगंगानगर शहर के बीचोबीच गुजरने वाले एक छोटी-सी माइनर से रोज पानी चोरी होता है। यह चोरी ऐसी जगह होती है जहां सारा प्रशासनिक अमला बैठता है। जिला मुख्यालय के ठीक पास साधुवाली में आए दिन पानी के लिए टैंकरों की कतार लगती है। इसकी जानकारी विभाग के अधिकारियों को नहीं हो, यह संभव नहीं।
इसे विभाग की उदासीनता कहें या शह लेकिन पानी चोरी करने वाले इसका बेजा फायदा उठाकर पात्र किसानों के हक पर सरेआम डाका डालते रहे हैं। यह पानी चोरी का ही परिणाम था कि पिछले दिनों गंगनहर,पंजाब में क्षतिग्रस्त हो गई। इससे नहर में करीब 80 फीट का कटाव आया। इससे काफी पानी व्यर्थ बह गया। बाद में किसानों ने मौका देखा तो वहां पानी चोरी के बहुत से मामले मिले। वैसे विभाग ने भी नहर टूटने का कारण पानी चोरी ही बताया था। किसान संगठनों के तात्कालिक विरोध के कारण जरूर कुछ दिशा-निर्देश जारी करने में तत्परता दिखाई जाती है लेकिन बाद में हालात वही ढाक के तीन पात हो जाते हैं। किसान संगठन समय-समय पर मांग करते रहे हैं कि पंजाब व राजस्थान के अधिकारी सामूहिक रूप से माह में दो या तीन बार संयुक्त गश्त करें। पानी चोरी पर मुकदमा दर्ज करें तो उनमें भय होगा। नहरों से जुड़ी विडम्बना यह है कि लाखों-करोड़ों रुपए नहरों के जीर्णोद्धार में खर्च होने के बावजूद उसका पूरा लाभ किसानों को नहीं मिलता।

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राजस्थान पत्रिका के 13 अक्टूबर 18 के अंक में राजस्थान के तमाम संस्करणों में.संपादकीय पेज पर प्रकाशित..

यह रिश्ता कुछ खास है....

बस यूं.ही
कुछ रिश्ते खास होते हैं। एेसे रिश्ते मुलाकात के मोहताज भी नहीं होते। इन रिश्तों की बुनियाद विश्वास पर टिकी होती है। इन रिश्तों में जाति धर्म कहीं आड़े नहीं आते। हां कभी वक्त इजाजत देता है तो फिर रिश्ते बड़ी शिद्दत से निभते हुए महसूस किए जा सकते हैं। बीते सात दिनों में मैंने ऐसे ही एक रिश्ते को न केवल प्रत्यक्ष देखा है बल्कि महज दो मुलाकातों में लगाव व स्नेह को अनुभूत कर लगा जैसे यह कोई पूर्व जन्म का नाता है। दरअसल, पहली मुलाकात ने ही दूसरी मुलाकात का रास्ता खोला लेकिन दोनों मुलाकातों की परिस्थितियां एक जैसी थीं। अपनेपन को प्रदर्शित करने वाली यह मुलाकातें श्रीगंगानगर में ही हुई हैं। वह भी घर पर। मां पिछले पन्द्रह दिन से बीमार है, हालांकि इन दिनों तबीयत में थोड़ा सुधार हैं। उनकी तबीयत की सुनकर कुछ परिचित घर आए। इनमें पूर्व जनसंपर्क अधिकारी फरीद खानजी व उनकी धर्मपत्नी सईदा खान जी भी शामिल हैं। फरीद खान जी का जिक्र मैं एक बार पहले पिछले साल होली पर कर चुका हूं। उनकी जिंदादिली और उत्सवधर्मिता के बारे में तब विस्तार से लिखा था। उनसे परिचय इतना ही है कि डेढ़ दशक पूर्व जब श्रीगंगानगर था तब वो यहां बतौर जनसंपर्क अधिकारी कार्यरत थे। बाद में सेवानिवृत्त हुए और यही बस गए, वैसे बीकानेर के हैं। बीते ढाई साल के श्रीगंगानगर प्रवास में मेरा सिर्फ एक बार फरीद खान जी के घर जाना हुआ। हां बड़े वाला बेटा योगराज इनके घर रोज जाता है। वह फरीद खान जी की पुत्रवधु से ट्यूशन करता है।
मां की तबीयत की सुनकर दोनों मियां बीवी करीब सप्ताह भर पहले घर आए। बाहर चर्चा करने के बाद दोनों ने मां से मिलने की इच्छा जताई। दोनों मां के पास चले गए। फरीद खान जी की पत्नी सईदा खान जी मां के बिलकुल पास बैठ गई। मैं अंदर गया तो उनकी आंखों से आंसू टप-टप गिर रहे थे। मां का हाथ उन्होंने अपने हाथ में.थाम रखा था। यह सब देखकर मैं चौंका। उनका गला रुंध गया था। वो इतना ही बोल पाई कि यह तो बिलकुल मेरी मां जैसी लगती है। इधर, पीआरओ साहब का भी यही हाल था। अपनी पत्नी की तरफ इशारा.करके कहने लगे, इसने मां की खूब सेवा की है, बहुत सेवा की है। यह कहते-कहते पीआरओ साहब भी रोने लगे। उनकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी। कहने लगे महेन्द्रजी, मेरी मां तो मैं जब पांच साल का था तभी चल बसी। आप खुशकिस्मत हो जो मां की सेवा का सौभाग्य मिल रहा है। काफी देर बाद दोनों मियां बीवी सहज हुए। मां भी इनको देखकर बेहद खुश थी। मां की बैठकर दोनों.से बातें करने और उनकी सुनने की इच्छा थी लेकिन शरीर साथ नहीं दे पाया, लिहाजा मां को बिस्तर पर लिटा दिया। 
आज शुक्रवार को दोपहर बाद फरीद खान जी की धर्मपत्नी ऑटो से घर आ गई। आज वो अकेली थीं। इधर मां भी आज कुछ अनमनी सी थी। दोनों दुबारा मिली तो ठीक वैसा ही नजारा आज फिर था। आज तो मां भी गमगीन थी, दोनों तरफ आंसू थे। मैं लेट कर उठा तो दोनों का यह अपनापन देखकर मुस्कुराए बिन नहीं रहा सका। वो देर तक मां के पास बैठी रही। हां आफिस निकलने से पहले मां और सईदा जी का एक फोटो खींचने के लिए निर्मल को कह दिया था। मैं आफिस के लिए निकला तब दिमाग में विचारों का द्वंद्व जारी था। आखिर यह कौनसा रिश्ता है, जो महज दो मुलाकात में इतना प्रगाढ हो गया। दोनों ने कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं फिर भी इतना गहरा लगाव और जुड़ाव। यह मानवीयता, इंसानियत व भाईचारे जैसे शब्द इसी तरह के उदाहरणों से ही तो जिंदा हैं। मैं सोचते सोचते इतना गहराई में चला गया। इतना गहरा कि जहां जात, धर्म के नाम पर बांटने की बातें, सम्प्रदाय के नाम पर सियासत करने की बातें बेमानी नजर आई। वाकई आदमी का आदमी से प्यार का रिश्ता धर्म, मजहब, जाति, स्थान आदि की परिधियों से अलग है, अलहदा है, अनूठा है, प्यारा है, निश्छल है। गंगाजल की तरह पवित्र , बिलकुल स्वार्थहीन।यह रिश्ता कायम रहे... आमीन।

श्रीगंगानगर की हर विधानसभा सीट के नाम में छिपा है राज

श्रीगंगानगर. आम बोलचाल में अक्सर एक जुमला चलता है ‘नाम में क्या रखा है।’ लेकिन यहां आकर यह जुमला बेमानी हो जाता है। यहां नाम बहुत मायने रखता है। यहां न केवल नाम की प्रतिष्ठा है बल्कि नाम के आगे कई जगह आदरसूचक शब्द ‘श्री’ लगाने की परम्परा भी है। 
संभवत: यह सिर्फ प्रदेश ही नहीं वरन देश का इकलौता उदाहरण है। अनूठी खासियतों के धनी इस जिले का नाम है श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय सहित सभी विधानसभा क्षेत्रों के नाम के पीछे एक राज छिपा है। यह राज है उनके नाम का।
श्रीगंगानगर विधानसभा
नामकरण बीकानेर के पूर्व शासक गंगासिंह के नाम पर हुआ। पहले इसको रामनगर या रामू की ढाणी कहा जाता था। श्रीगंगानगर में नहर लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। नहर के साथ साथ श्रीगंगानगर जिले को रेल सेवा से जोडऩे में भी पूर्व शासक का ही योगदान रहा है। पूर्व शासक की याद में श्रीगंगानगर कलक्ट्रेट के पास उनकी अश्वारूढ़ प्रतिमा भी लगी है।
श्रीकरणपुर विधानसभा
भारत-पाक सीमा पर लगता विस क्षेत्र। मुख्यालय श्रीकरणपुर का नाम कभी रत्तीथेड़ी था। यह नाम 1922 में यहां आकर बसे दो परिवारों के मुखिया हाकमराम व मोहरीराम रस्सेवट ने दिया। बाद में महाराजा गंगासिंह के प्रयासों से 1927 में गंगनहर आने से यहां की कायापलट हुई। इस दौरान महाराजा गंगासिंह के पौत्र व सरदूल सिंह के पुत्र करणीसिंह के नाम पर श्रीकरणपुर की स्थापना हुई। इसी विधानसभा में कस्बे गजसिंहपुर का नाम बीकानेर रियासत के शासकों में एक शासक गजसिंह व पदमपुर का नाम राजा करण सिंह के पुत्र पदमसिंह के नाम पर रखा गया। पदमपुर का पुराना नाम बैरां था। केसरीसिंहपुर का पुराना नाम फरीदसर था। सन 1926-27 में जब क्षेत्र में नहर व रेल लाइन आई तब यहां रेलवे स्टेशन का नाम महाराजा गंगासिंह के पारिवारिक सदस्य केसरी सिंह के नाम से रखा गया।
सूरतगढ़ विधानसभा
वर्ष 1787 में सोढ़ल नाम से बसे इस क्षेत्र को बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह ने नियंत्रण में लिया था। महाराजा सूरत सिंह ने सोढ़ल नगर से रियासती व्यवस्थाओं के संचालन के लिए वर्ष 1799 में एक बड़े किले का निर्माण करवाया। जिसे सूरतगढ़ का गढ़ कहा गया। इसी के नाम पर आगे चलकर शहर का नाम सूरतगढ़ पड़ा। बीकानेर रियासत की चार निजामतों (जिलों) में सूरतगढ़ भी जिला था। वर्ष 1884 से 64 साल तक यह जिला रहा।
सादुलशहर विधानसभा
कालान्तर में एक छोटा-सा गांव हुक्मपुरा था फिर मटीली बना। सन् 1927 में सादुलशहर को वाया कैनाल लूप रेलवे लाइन से जोड़ा गया। मटीली रेलवे स्टेशन की स्थापना महाराजा गंगा सिंह के छोटे पुत्र सार्दुल सिंह के नाम से हुई। इस मण्डी का नाम सादुलशहर बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह के पुत्र सार्दुल के नाम पर सादुलशहर रखा गया।
रायसिंहनगर विधानसभा
कस्बे का नाम बीकानेर के छठे महाराजा रायसिंह के नाम पर रायसिंहनगर रखा गया। कस्बे की स्थापना 1927-28 में बीकानेर रियासत के मुख्य अभियंता रिचर्डसन की देखरेख में हुई थी। गंगासिंह के शासन में नहरों पर बनी कोठियां आज भी उस समय की याद दिलाती है।
अनूपगढ़ विधानसभा
पुराना नाम चुघेर था। चुघेर और उसके आस पास का क्षेत्रों पर भाटियों का कब्जा था। सन 1677-78 में मुगल शासक औरंगजेब ने महाराजा अनूप सिंह को औरंगाबाद का शासक नियुक्त किया। अनूप सिंह की सेना ने भाटियों को हराकर गढ़ पर कब्जा कर लिया। अनूप सिंह ने गढ़ का निर्माण किया, जिसका नाम अनूपगढ़ रखा गया।
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राजस्थान पत्रिका के चुनावी पेज राजस्थान का रण पर आज 11अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित।