Wednesday, December 26, 2018

जीत और हार के फेर में सोशल मीडिया अकाउंट को भूले 'नेताजी'

कई मंत्रियों व विधायकों के फेसबुक पेज व टवीटर अकाउंट नहीं हुए अपडेट, चल रहा है पुराना पदनाम
श्रीगंगानगर। विधानसभा चुनाव परिणाम आए सप्ताह भर होने को है लेकिन कुछ प्रत्याशियों पर जीत का जोश छाया हुआ है तो कुछ हार के गम में सब कुछ भूल गए हैं। जीत व हार के फेर में उलझे नेताओं की हालत का अंदाजा सोशल मीडिया पर उनकी गतिविधियों से आसानी से लगाया जा सकता है। आलम यह है कि सरकार बदलने के बावजूद कई पूर्व मंत्रियों व विधायकों ने अपने फेसबुक अकाउंट/ पेज व ट्वीटर अकाउंट अपडेट ही नहीं किए हैं। रविवार शाम तक कुछ मंत्रियों व विधायकों को पेज व अकाउंट टटोले तो कुछ इसी तरह के हालात मिले। हालांकि मुख्यमंत्री का पेज जरूर अपडेट कर दिया गया है, जिस पर एक्स चीफ मिनिस्टर लिखा हुआ आ रहा है।
स्वास्थ्य व चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ का फेसबुक अकाउंट अभी भी उनको मंत्री ही दिखा रहा है। इसी तरह पंचायत राज मंत्री राजेन्द्र राठौड़ का पेज भी अपडेट नहीं किया है। हालांकि सर्राफ व राठौड़ खुद चुनाव जीत चुके हैं लेकिन पेज पर मंत्री पद कायम है। इतना ही नहीं ट्रांसपोर्ट व पीडब्ल्यूडी मंत्री यूनुस खान टोंक से चुनाव हार चुके हैं लेकिन उनका पेज उनको अभी भी मंत्री बनाए हुए हैं। केबिनेट मंत्री गजेन्द्रसिंह खींवसर व डा. रामप्रताप दोनों ही चुनाव हार चुके हैं लेकिन दोनों के पेज पर उनका मंत्री पद बरकरार है। कुछ यही हाल संसदीय सचिव रहे डा. विश्वनाथ का है। वे खाजूवाला से चुनाव हार गए हैं लेकिन अपने पेज पर वह भी एमएलए बने हुए हैं।
जमींदारा पार्टी से पाला बदलकर कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ी और जमानत जब्त करवाने वाली सोनादेवी को उनका टवीटर अकाउंट अभी भी रायसिंहनगर विधायक दिखा रहा है। इसी तरह शिमलादेवी बावरी का पेज भी उनको अनूपगढ़ विधायक बता रहा है जबकि वो इस बार चुनाव मैदान में ही नहीं थी। समूचे राजस्थान में सर्वाधिक धनवान तथा पूर्व मंत्री राधेश्याम को बड़े अंतर से पराजित करने वाली जमींदारा पार्टी की कामिनी जिंदल इस बार न केवल चुनाव हारी बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई लेकिन उनका अकाउंट उनको भी विधायक दर्शा रहा है। कमोबेश एेसा ही हाल नोहर से अभिषेक मटोरिया व भादरा से संजीव बेनीवाल का है। यह दोनों नेता भाजपा की टिकट से मैदान में थे और हार गए लेकिन दोनों पेजों पर अभी भी एमएलए बने हुए हैं।

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 राजस्थान पत्रिका के  17 दिसंबर 18 के अंक में प्रकाशित।

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