Wednesday, December 26, 2018

पर जीने की वजह बदल गई

बस यूं ही 
जीने की कोई न कोई वजह तो होती है, वजह ही न हो तो फिर जीवन कैसा? हां वजह सदा एक जैसी नहीं रहती, यह अक्सर बदल जाया करती हैं। कभी परिस्थितिवश तो कभी मजबूरी में। वजह सुखद और दुखद भी होती है। खैर, वजह कैसी भी हो, इस पर इंसान का बस नहीं चलता। इंसान वजह के द्वंद्व में जीवन भर फंसा रहता है। मैं भी इन दिनों कुछ ऐसे ही द्वंद्व में फंसा हूं। मां के जाने के बाद जीवन की दशा व दिशा अचानक से बदल गई। रोजमर्रा की जो दिनचर्या भी वह प्रभावित हो गई। ' मां', यह एक ऐसा शब्द है, जिसके बोलने भर से ही मुंह भर जाता है। सुखद अनुभूति होती है। खुद के बच्चे बने रहने का एहसास होता है। यह शब्द अब केवल बातों में रह गया है। और जब भी इस शब्द का जिक्र या ख्याल आता है तो आंखें नम हो उठती हैं। वैसे ख्याल का कोई समय निश्चित नहीं होता। वह रात या दिन नहीं देखता है। करीब डेढ़ माह में ऐसा कोई दिन नहीं बीता जब मां की याद में आंखें नम न हुई हों। कभी फूट-फूट के भी रोया हूं। यह शाश्वत सच है। यह कड़वी हकीकत है कि मां सदा सदा के लिए चली गई लेकिन उसकी यादें रह-रहकर कचोटती हैं। खुद को व्यस्त रखने का खूब प्रयत्न करता हूं पर कुछ अच्छा नहीं लगता। लाख कोशिश करता हूं चित को एकाग्र रखने की लेकिन मन उचट जाता है। पता नहीं यह कैसी अवस्था है और कब तक ऐसा होगा। सच यह कि इन दिनों मन कहीं नहीं लगता। खुशी जैसे रुठ गई है। खाली-खाली सा लगता है। यह हालात घर, आफिस, बाहर, बाजार सब जगह कमोबेश एक जैसे हैं। व्यवहार में हास , परिहास, उमंग आदि की जगह नैराश्य हावी हो गया है। उमंग, उल्लास व उत्साह पर नीरसता ने जैसे जबरन कब्जा कर लिया है। एक अजीब सी खामोशी। अंदर ही अंदर डरा देने वाला सन्नाटा और इस तरह के हालात के बीच बेहद गमगीन व गुमशुम पापा को देखकर सच में बेहद व्यथित व विचलित हो उठता हूं। सिर्फ डेढ़ माह में क्या से क्या हो गया। खुशी की जगह खामोशी तो उमंग की जगह उदासी का आलम हो गया। इस तरह के हालात मुझे डराते हैं। चिंतित करते हैं। सवाल और जवाब का दौर खुद से ही होता है। जेहन में विचारों का आवेग बड़ी तीव्र गति से होकर गुजरता है। यकीनन इस आवेग के गुजरने के बाद अक्सर अफसोस, अवसाद व आशंकाएं ही हाथ आती हैं। अपने इस बदलाव से हालांकि मैं हतप्रभ हूं, इससे उबरने की मन ही मन सोचता भी हूं लेकिन फिर कोई ख्याल आकर उसी अवस्था में फिर ले जाता है। पता नहीं यह क्यों हो रहा है और कब तक होगा?

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