Saturday, December 29, 2012

...हमको जगा गई दामिनी


बस यूं ही

 
शर्मिन्दा तो हम उसी दिन हो गए थे लेकिन आज शोकाकुल हैं। दामिनी के दर्द से हम इतने गमगीन हैं कि गुस्सा भी एक बार इस पहाड़ जैसे गम में गुम हो गया है। हम स्तब्ध भी हैं और निशब्द भी। आज हमारा आक्रोश, अफसोस में बदलकर आंसुओं तक पहुंच गया है। संवेदनाओं के सैलाब की तो कोई सीमा ही नहीं है। कल तक जिन होठों पर प्रार्थनाएं थी, आज उन पर पछतावा है। दरिंदगी की शिकार हुई दामिनी की सलामती के लिए मांगी गई दुआएं भी एक-एक कर दम तोड़ गई। उम्मीदें तो पहले दिन से ही आशंकाओं से घिरी थी, लिहाजा तेरह दिन बाद वे भी साथ छोड़ गई। वैसे जिंदगी की जंग के परिणाम आशाओं के अनुरूप नहीं आए, लेकिन सही मायनों में जंग अब शुरू हुई है। दीपक खुद चलता है लेकिन दूसरों को राह दिखाता है। वह पथ प्रदर्शक का काम करता है। दामिनी का दर्जा तो दीपक से भी बड़ा है। वह तो बिजली है। एक बार 'कौंधकर' हकीकत बता गई। हमको आइना दिखा गई, औकात बता गई। जाते-जाते एक नई राह और दिशा भी दिखा गई। पखवाड़े भर पहले तक न तो उसको कोई जानता था, लेकिन आज हर दिल में दामिनी के लिए दर्द है। हर दिल दुखी है। फर्क फकत इतना है कि अब दुआओं की जगह आहें हैं। ऐसे आहें, जो हर ओर से और हर आदमी के दिल से उठ रही है। खुद चिरनिद्रा में सोकर हम सबको जगा गई है दामिनी।
समूचा देश दामिनी के दर्द से दुखी है। लोगों ने जिस जज्बे एवं हौसले के साथ दुष्कर्म के विरोध में जो आवाज उठाई है, निसंदेह उसके दूरगामी परिणाम होंगे, इसमें कोई दोराय नहीं होनी चाहिए। वैसे देश में कदम-कदम पर प्रताडि़त होने वाली दामिनियों की कमी नहीं है। सोचिए हम उनके समर्थन में कितना आगे आते हैं। दामिनी जैसी हमदर्दी और हिम्मत अगर हम हर बार और हर मामलो में दिखाएं तो यकीन मानिए ऐसा दु:साहस कोई सपने में भी नहीं करेगा। सिर्फ संवेदना जताने, जज्बाजी स्लोगन लिखने या मोमबत्ती जलाने से हमारी फितरत नहीं बदलने वाली। हमको अब संवेदनाओं को सब्र देने का कोई सबब चाहिए। वह किसी संकल्प के रूप में भी हो सकता है। दूसरों से उम्मीद न करते हुए शुरुआत खुद से कीजिए। परिवार से कीजिए। बच्चों को संस्कार दीजिए। दामिनी ने चेतना की जो नई लौ प्रज्वलित की है, वह निरंतर और अनवरत जलती रहे, यही उसको सच्ची श्रद्धांजलि होगी। नए साल की शुरुआत इसी संकल्प के साथ करेंगे तो सचमुच सोने पे सुहागा होगा।