Saturday, January 28, 2017

बस एक माह के लिए बसता और उजड़ जाता है यह गांव!

श्रीगंगानगर. इस गांव की कहानी भी बड़ी अजीब है। यह विशुद्ध रूप से अस्थायी गांव है। यह केवल एक माह के लिए ही बसता है और फिर उजड़ भी जाता है। इतना ही नहीं बसने एवं उजडऩे की यह कहानी हर साल दोहराई जाती है। हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील के गोगामेड़ी में इस साल यह नया गांव बस चुका है। 

हर तरफ सैकड़ों की संख्या में तंबू और शामियाने तन गए हैं। कदम-कदम पर दुकानें खुल गई हैं। नोहर-भादरा मार्ग पर भी दोनों तरफ चार किलोमीटर तक कई तरह की दुकानें सजीं हैं। चारों ओर चहल-पहल और गहमागहमी का आलम है। कहीं भजन गूंज रहे हैं तो कहीं जयकारे लग रहे हैं। कहीं झूले लग रहे हैं तो कहीं मनोरंजन का साजोसामान। दरअसल, गोगामेड़ी में यह नया गांव (अस्थायी गांव) प्रसिद्ध लोकदेवता गोगाजी महाराज के वार्षिक मेले के दौरान बसता है। मेले के समापन के साथ ही यह अस्थायी गांव भी यहां से उठ जाता है। नए गांव के कारण गोगामेड़ी इन दिनों गुलजार है। मेला हिन्दी कलेण्डर के श्रावण माह की पूर्णिमा से शुरू होकर पूरे भाद्रपद मास चलता है। उत्तर भारत में संभवत: यह एकमात्र ऐसा मेला है, जो इतना लंबा चलता है। महीनेभर में यहां देशभर के पन्द्रह से बीस लाख तक श्रद्धालु आते हैं।  विदित रहे कि गोगामेड़ी में गोगाजी महाराज की मेड़ी (समाधि स्थल) तथा गोरक्षनाथ महाराज का प्राचीन टीला है। श्रद्धालु गोरक्षनाथ के धूणे के समक्ष शीश नवाने के बाद गोगामेड़ी के दर्शन करते हैं। बताया जाता है कि इस टीले पर नाथ संप्रदाय के गोरक्षनाथ महाराज ने धूणा रमाया था। 
एक हजार से ऊपर दुकानें
गोगामेड़ी में मेले में अधिकृत दुकानों की संख्या तो चार सौ से ऊपर हैं। यह दुकानें बकायदा आवंटित की गई हैं, इसके अलावा सड़क किनारे अस्थायी दुकानें तथा फेरी लगा कर सामान बेचने वाले भी कई हैं। इन सबको मिलाकर आंकड़ा एक हजार से उपर पहुंच जाता है। दुकानों का आवंटन यहां दो तरह से होता है। गोगामेड़ी क्षेत्र की दुकानें देवस्थान विभाग के अधीन हैं जबकि गोरक्षटीले की दुकानें गोरक्षटीला प्रन्यास (गोगाणा) देखता है। देवस्थान विभाग ने करीब 325 तथा गोगाणा ने करीब सौ दुकानों का आवंटन किया है। इसके अलावा खेतों एवं सड़क किनारे भी बड़ी संख्या में तंबू लग गए हैं। ये सब देखकर गोगामेड़ी में एेसा लगता है कि जैसे नया गांव बस गया हो। 

पॉलीथिन थैलियां नष्ट करने से होती मनोकामना पूरी!

श्रीगंगानगर. अगर आपने 21 पॉलीथिन थैलियां एकत्रित कर उनको नष्ट कर दिया तो आपकी मनोकामना पूरी होगी। अगर थैलियों की संख्या 51 हुई तो आपका धन दुगना हो जाएगा। इतना ही नहीं अगर आपने 101 या इससे अधिक थैलियां नष्ट की तो आपको संतान की प्राप्त होगी। चौंकिए मत। यह कोई घोषणा या दावा नहीं है बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए की गई एक तरह की अनूठी अपील है। हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील के गोगामेड़ी में चल रहे लोकदेवता गोगाजी महाराज के मेले में इस तरह की अपील लिखे बोर्ड आपको दिखाई दे जाएंगे।
विशेष रूप से गोगाणा में इस तरह के बोर्ड ज्यादा लगे हैं। यह बोर्ड तैयार करवाए हैं गोरक्षटीला प्रन्यास (गोगाणा) के महंत रूपनाथ महाराज ने। दरअसल, यह सारी कवायद पर्यावरण और गायों पर केन्द्रित है। 
बोर्ड में बकायदा यह भी लिखा गया है कि गोरक्षनाथ जी महाराज एवं गोगाजी महाराज दोनों ने ही गायों के लिए काफी कुछ किया है। इनकी पावन नगरी में पॉलीथिन न डालें क्योंकि पॉलीथिन थैलियां पर्यावरण प्रदूषण के साथ गायों की मौत का कारण बन रही हैं। विदित रहे कि गोमामेड़ी में पॉलीथिन का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। पर्यावरण प्रदूषण की वाहक बन रही इन थैलियों पर प्रशासनिक स्तर पर रोक के कोई प्रबंध नहीं हो रहे।
तैयार हो रही कपड़े की थैलियां
पर्यावरण संरक्षण को लेकर गोगाणा में एक नया काम भी शुरू किया गया है। यहां श्रद्धालुओं को कपड़े की थैली उपयोग करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इस काम के लिए बकायदा एक टेलर भी लगाया गया है। गोगाणा में चढ़ावे के रूप में आने वाले कपड़े से ही यह थैलियां तैयार की जा रही हैं। इन थैलियों का वितरण स्थाई रूप से दुकान चलाने वाले दुकानदारों को नि:शुल्क किया जाता है।
फिर भी धड़ल्ले से बिक रही है पॉलीथिन
इस तरह की अपील जारी करने के बावजूद गोगाणा एवं गोमामेड़ी में पॉलीथिन का इस्तेमला धड़ल्ले से हो रहा है। दुकानों पर प्रसाद पॉलीथिन में रखकर दिया जाता है। गोगामेड़ी के पास के इलाके में तो जिधर नजर फैलाओ इधर पॉलीथिन की थैलियां दिखाई देती हैं। इस संबंध में बालयोगी महंत रूपनाथ महाराज बताते हैं कि वे श्रद्धालुओं को पॉलीथिन का उपयोग नहीं करने के लिए कहते भी हैं और जागरूक करने के लिए बोर्ड भी लगवाए गए हैं लेकिन जब तक प्रशासन की जब तक सख्ती नहीं होगी इस पर पर प्रभावी रूप से रोक संभव नहीं है।

यहां प्रसाद के रूप में चढ़ते हैं प्याज और दाल

 

श्रीगंगानगर. 

अमूमन मंदिरों में प्रसाद के रूप में कहीं मिठाई तो कहीं फल या नारियल का भोग लगाया जाता है लेकिन एक स्थान ऐसा भी है, जहां प्रसाद के रूप में प्याज, दाल एवं भुने हुए चावल को प्राथमिकता दी जाती है। सुनने में यह अजीब लगता है लेकिन हकीकत यही है। अपने आप में अनूठे प्रसाद का यह मामला हनुमानगढ़ जिले की नोहर तहसील में स्थित गोगामेड़ी से जुड़ा है।
उत्तर भारत के प्रसिद्ध लोकदेवता गोगाजी महाराज के प्रसाद में प्राथमिकता प्याज, दाल एवं भुने हुए चावल (खील) को दी जाती हैं। गोरक्षनाथ टीले पर भी पर यही तीनों चीजें प्रमुखता से चढ़ाई जाती हैं। लंबे समय से इस परम्परा का निर्वहन हो रहा है, हालांकि समय के साथ इसमें कुछ परिर्वतन जरूर हो गए हैं। अब नारियल, मखाणे व बताशे आदि भी प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने लगे हैं। विदित रहे कि गोगाजी का महाराज का मेला पूरे भाद्रपद मास चलता है।
दाल पर महंगाई की मार
महंगाई का असर दाल पर भी पड़ा है। इस कारण श्रद्धालु दाल की बजाय प्याज व भुने हुए चावलों को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। पिछले साल के मुकाबले इस बार दाल का चढ़ावा लगभग आधा है, हालांकि मेला अभी शुरुआती दौर में है। इधर प्याज इस बार सस्ते हैं, इस कारण इनके चढ़ावे में किसी तरह की कटौती फिलहाल नजर नहीं आ रही।

इसलिए चढ़ता है यह प्रसाद
गोगाजी महाराज की जब मोहम्मद गजनवी से लड़ाई तय हो गई थी, तब उन्होंने अपने सगे-संबंधियों और मददगारों को रसद सामग्री के साथ युद्ध में आने का निमंत्रण दिया था। जानकार बताते हैं कि लड़ाई समय से पूर्व शुरू हो गई और धोखे से गोगाजी को घेर लिया गया। इसके बाद गोगाजी ने घोड़े सहित समाधि ले ली। युद्ध समाप्ति के बाद पहुंचे उनके सगे संबंधियों एवं मददगारों ने रसद सामग्री के रूप में साथ लाए गए प्याज, दाल एवं भुने हुए चावल उनकी समाधि पर अर्पित कर दिए। तभी से यह परम्परा चली आ रही है। रेगिस्तानी इलाके में प्याज एवं दाल का महत्व इसीलिए भी है क्योंकि यह दोनों लंबे समय तक खराब नहीं होते। 

यहां न ढोल बजता है और न ही कोई टॉर्च दिखाने वाला

श्रीगंगानगर. 

अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है। खुले में शौच जाने वालों को रोकने के लिए प्रदेश स्तर पर कई तरह के अभियान चले थे। मसलन, किसी ने ढोल बजाया तो किसी ने टॉर्च की रोशनी दिखाई। कहीं सिटी बजाई गई तो कहीं मानव शंृखला बनाई गई। दरअसल, यह सारी कवायद खुले में शौच जाने वालों को शर्मसार कर उनको ऐसा करने से रोकने के लिए थी। इन अनूठे प्रयोगों के सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले लेकिन हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में गोगाजी महाराज के वार्षिक मेले के चलते बसे अस्थायी गांव में खुले में शौच जाने पर किसी तरह की पाबंदी नहीं है। यहां न तो कोई ढोल बजाता है और न ही कोई टॉर्च दिखाने वाला है। 

प्रशासनिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से संचालित शौचालय भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में है लेकिन शौचालयों की संख्या अंगुलियों पर गिनने जितनी है। ऐसे में यहां संक्रमण का खतरा मंडरा रहा है। स्वच्छ भारत अभियान की धज्ज्यिां उड़ रही हैं, सौ अलग।
हो सकता  है समाधान 
मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शौचालय की व्यवस्था हो सकती है। हाल ही स्वच्छता के मामले में राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार पाने वाले बीकानेर जिले के स्वच्छता समन्वयक महेन्द्र सिंह शेखावत बताते हंै कि मेले के दौरान खुले में शौच जाने वालों को रोकना चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन इसका समाधान भी है। हाल ही मध्यप्रदेश के उज्जैन में कुंभ के मेले में बड़ी संख्या में अस्थायी शौचालय बनाए गए थे जबकि वहां तो गोगामेड़ी से ज्यादा श्रद्धालु आए थे। ऐसी व्यवस्था यहां भी हो सकती है।
हरी झंडी मिले तो तैयार है संस्था 
गोगामेड़ी में स्वच्छता बनाए रखने की दिशा में काम करने के लिए हरियाणा के सजग भारत फाउंडेशन ने पहल की है। फिलहाल इस संस्था के पचास कार्यकर्ता गोगामेड़ी के रेलवे स्टेशन पर सेवा दे रहे हैं। संस्था की ओर से रेलवे स्टेशन पर 24 स्नानघर एवं 48 शौचालय जल्द संचालित किए जाएंगे। यह अस्थायी होंगे। संस्थान से जुड़े आनंद आर्य कहते हैं कि उनकी संस्था नि:शुल्क रूप से यह काम करती है। अगर प्रशासन की तरफ से उनको बिजली एवं पानी की मदद मिल जाए तो वे मेले में श्रद्धालुओं के लिए शौचालय की वैकल्पिक व्यवस्था कर सकते हैं। आर्य कहते हैं कि इस काम के लिए उन्होंने प्रशासन से संपर्क भी किया लेकिन वहां से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई जबकि रेलवे ने उनको फटाफट स्वीकृति दे दी।  रेलवे के अधिकारियों का सहयोग भी उनको मिल रहा है।
खुले में शौच जाने के दुष्परिणाम
व्यक्ति के एक ग्राम मल से एक करोड़ वायरस फैलते हैं। 
 एक व्यक्ति से मल से तीन किलोमीटर का क्षेत्र संक्रमित 
होता है। 
मल से रोटा वायरस फैलता है, जिससे गंभीर बीमारियां पैदा होती हैं। -अगर बारिश आ जाए तो संक्रमण फैलने की गति चौगुनी हो जाती है।
इस वायरस के पीडि़तों में डायरिया, उल्टी-दस्त, हैजे की आशंका बढ़ जाती है। 
 डायरिया से भारत में हर साल चार लाख बच्चों की मौत हो जाती है।
गोगामेड़ी में कहां कितने शौचालय 
गोगाणा-450
धर्मशालाओं में -400
नोहर रिलीफ सोसायटी में-350
अस्थाई-250
सुलभ शौचालय-200
बस स्टैंड-40
रेलवे स्टेशन -12
ग्राम पंचायत-50

ऐसा तालाब जिसके पानी से दूर होते हैं चर्मरोग

श्रीगंगानगर. 

भला तालाब के पानी से कभी रोग दूर हो सकते हैं? यह बात सुनने में अजीब लगे है लेकिन जिले के ढाबां झलार गांव के लोगों के लिए हकीकत है। गांव और आसपास के लोगों के लिए पड़पाटा धाम के तालाब का पानी  किसी चमत्कार से कम नहीं है। गांववालों के अनुसार दैवीय चमत्कार से फटी धरती के कारण यह तालाब बना, इसलिए यह अपने आप में अनूठा है। 

गांव के लोग हर माह अमावस्या को यहां आते हैं लेकिन भाद्रपद अमावस्या को यहां आस्था का सैलाब उमड़ता है। विशेषकर महिलाओं की संख्या यहां ज्यादा होती है। यहां आने वाले लोग झाडू लेकर आते हैं। इसके बाद तालाब के किनारे बैठकर हाथ-पैर धोते हैं। मान्यता है तालाब का पानी शरीर पर लगाने से चर्मरोग दूर हो जाते हैं। श्रद्धालु साथ लाई झाडू यही अर्पित करके जाते हैं। इसके बाद तालाब के ठीक सामने बने शिव मंदिर में जाते हैं। यहां अनाज एवं चावल की खिल्ली चढ़ाई जाती है। शिव मंदिर के पास श्रद्धालु गुरुद्वारे में शीश नवाते हैं। ढाबां झलार के लोगों की पड़पाटा धाम के प्रति गहरी आस्था है और हर सम्प्रदाय के लोग पड़पाटा धाम समिति से जुड़े हुए हैं। मेले में समिति के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता हर तरह की व्यवस्था बनाने में सहयोग करते हैं। 

मेले में सजती हैं दुकानें
पड़पाटा धाम पर लगने वाले मेले में दुकानें भी सजने लगी है। विशेषकर इन दुकानों पर मनिहारी का सामान सस्ती दर पर सुलभ हो जाता है। इसके अलावा मनोरंजन के लिए यहां झूले भी लगने लगे हैं। इस बार तो यहां मोटरसाइकिल बिक्री की स्टॉल भी लगी थी। मेले में न केवल ढाबां झलार बल्कि आसपास के गावों के लोग भी आते हैं और दिन भर चलने वाले सत्संग का आंनद लेते हैं। 

अचानक से फटी धरती और समा गया सारा पानी, ढाबां झलार गांव में आज भी हैं निशां बाकी

श्रीगंगानगर.

 बरसात जोरों से बरस रही थी। पानी इतना बरसा कि घरों में चार-चार फीट पानी भर गया। पूरा गांव डूबने की कगार पर था। परेशान लोग भगवान से बारिश थमने की फरियाद कर रहे थे। अचानक तेज धमाका हुआ और गांव का पानी उतरने लगा। थोड़ी ही देर में गांव का सारा पानी गायब हो गया। गांव वालों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, क्योंकि उनके लिए यह नजारा किसी चमत्कार से कम नहंी था।  यह कोई फिल्मी कहानी नहीं बल्कि हकीकत की घटना है। जिले के ढाबां झलार गांव में 58 साल पहले सितम्बर माह में इस तरह का चौंकाने वाला वाकया घटित हुआ था। तेज बारिश के कारण गांव डूबने की कगार पर पहुंच गया था। गांव की पूर्व दिशा में अचानक से तेज धमाका हुआ और करीब चार बीघा में धरती फट गई और सारा पानी उसमें समा गया। इसे दैवीय चमत्कार मान ग्रामीण उस स्थान की पूजा करने लगे, तब से हर साल भाद्रपद अमावस्या को मेला लगता है और दिन भर धार्मिक आयोजन व संत्सग होते रहते हैं। इस समूचे आयोजन के लिए गांव पड़पाटा धाम समिति व्यवस्था करती है। साल दर साल यहां सुविधाओं का विस्तार होता जा रहा है। मेले में आसपास के गांवों के हजारों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। 
साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल
जहां जमीन फटी थी, उस जगह का नाम पड़पाटा धाम है। पड़पाटा धाम साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल है। वैसे भी ढाबां झलार में हर सम्प्रदाय के लोग हैं और सभी की पड़पाटा धाम में गहरी आस्था है। धाम में शिव मंदिर है तथा गुरुद्वारा भी है। इसके अलावा फटी जमीन के निशां बाकी है जो अब एक जोहडनुमा छोटे तालाब का रूप अख्तियार कर चुकी है। इसमें बरसाती पानी भरा रहता है। श्रद्धालु यहां झाडू चढ़ाते हैं। 

कमाल की आस्था, यहां चढ़ते हैं झाडू और नमक

श्रीगंगानगर. 

आस्था के कई रूप हैं तो आराध्य को प्रसन्न करने के विविध तरीके। हर जगह की अपनी विशेषता एवं इतिहास होता है। कहीं अनूठा तो कहीं परम्परागत। कहीं पूजा की विधि चौंकाने वाली होती है तो आराध्य को चढऩे वाला प्रसाद। जिले की सूरतगढ़ तहसील के अधीन आने वाले गांव ढाबां झलार का पड़पाटा धाम भी कई तरह की अनूठी विशेषताएं समेटे हुए हैं। धाम के तालाब के बनने की कहानी तो रोचक है ही। इस तालाब के पानी से चर्मरोग दूर होने की मान्यता भी किसी अचूबे से कम नहीं। इन सबके अलावा यहां एक और खास बात है जो चौंकाती है, वह है यहां चढऩे वाला प्रसाद। 

तालाब में हाथ-पैर धोने से पहले श्रद्धालु यहां प्रसाद के रूप में नमक, झाडू और अनाज चढ़ाते हैं। वैसे तो हर माह प्रत्येक अमावस्या को श्रद्धालु उमड़ते हैं लेकिन भाद्रपद अमावस्या को यहां हजारों लोग जुटते हैं। ऐसे में तालाब के पास झाडू, नमक एवं अनाज का ढेर लग जाता है।  पड़पाटा धाम के तालाब के बारे में मान्यता है कि इसके पानी से हाथ-पैर धोने से चर्म रोग दूर होते हैं। श्रद्धालु इस तालाब के पानी को बोतलों में भरकर अपने घर भी ले जाते हैं। झाडू एवं नमक के चढ़ावे के पीछे वजह ग्रामीण नहीं बता पाते। उनका कहना है  यह परम्परा लंबे समय से चली आ रही है। 

ढाई से तीन हजार झाडू 
पड़पाटा धाम की तमाम व्यवस्थाओं की देखरेख करने वाली पड़पाटा धाम सेवा समिति के अध्यक्ष सेवाराम धतरवाल बताते हैं कि भाद्रपद अमावस्या को तालाब के किनारे झाडुओं का ढेर लग जाता है। करीब दो क्विंटल झाडू एक ही दिन में एकत्रित हो जाती है। इनकी संख्या ढाई से तीन हजार के बीच होती है। नमक व अनाज भी बड़ी मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं। इसके अलावा हर माह अमावस्या को भी यहां डेढ सौ के करीब झाडू चढावे के रूप में आते हैं।

स्कूलों व मंदिरों में दे देते हैं झाडू
पड़पाटा धाम पर आने वाली झाडुओं को स्कूलों एव मंदिरों में वितरित कर दिया जाता है। इसके अलावा नमक को गोशालाओं में भिजवा दिया जाता है। चढ़ावे के रूप में आने वाले चढावे का समिति बेचान कर उस राशि को धाम के रखरखाव के नाम पर होने वाले कार्यों में खर्च करती है।