Friday, September 16, 2011

अपनी सुरक्षा स्वयं ही करें

टिप्पणी
बिलासपुर में इन दिनों जो घटित हो रहा है, वह किसी भी सूरत में उचित नहीं है। विशेषकर महिलाओं पर अत्याचार से जुड़ी जो खबरें आ रही हैं, वे सुरक्षा व्यवस्था के लिए किसी चुनौती से कम नहीं। सोमवार को टोनही के शक में एक वृद्धा की सरेराह तलवार से हमला कर हत्या कर दी गई। इसी वारदात के ठीक दो दिन बाद बुधवार को मामूली विवाद को लेकर एक महिला को जलाने का प्रयास किया गया। इस मामले में आरोपियों का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया कि उन्होंने तोरवा थाने के सामने ही महिला की पिटार्इ कर दी। इस वारदात में पुलिस की आंख उस वक्त खुली जब मौके पर काफी लोग जमा हो गए। इसी दिन देर रात रेलवे स्टेशन से एक नाबालिग बालिका को न केवल बलपूर्वक अगवा किया गया बल्कि उससे सामूहिक बलात्कार भी किया गया। उसलापुर रेलवे स्टेशन से गायब हुए भाई-बहन की हत्या का मामला भी अभी पहेली बना हुआ है। टोनही के शक में महिला की हत्या तथा अपहरण के बाद किशोरी से सामूहिक बलात्कार के मामले इसलिए गंभीर हैं, क्योंकि जहां पर इन वारदातों को अंजाम दिया गया वे दोनों ही सार्वजनिक स्थान हैं और यहां पर लोगों की आवाजाही लगातार बनी रहती है। तेलीपारा शहर का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र है और जिस दिन वृद्ध महिला की हत्या हुई, उस दिन गणेश विसर्जन की झांकियां निकल रही थी। रेलवे स्टेशन की घटना तो जीआरपी एवं आरपीएफ के मुंह पर करारा तमाचा है।
बात यहीं तक खत्म नहीं होती, जिस एम्बुलेंस से बालिका का अपहरण किया गया, वह रेलवे के अस्पताल में ठेके पर चलती है। मामला सामने आने के बाद कार्रवाई के नाम पर रेलवे प्रबंधन ने एम्बुलेंस का ठेका निरस्त जरूर कर दिया लेकिन जिनके भरोसे सुरक्षा का जिम्मा है, उनको बख्श दिया गया। देखा जाए तो रेलवे स्टेशन पर होने वाली तमाम आपराधिक एवं संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखने एवं रोकने की जिम्मेदारी जीआरपी एवं आरपीएफ की ही बनती है। रेल में सफर अब कितना सुरक्षित है, इस बात की पोल भी गाहे-बगाहे होने वाली घटनाएं खोल देती हैं। वैसे भी बिलासपुर रेलवे स्टेशन पर आपराधिक गतिविधियां होने के आरोप नए नहीं हैं। इस प्रकार के मामलों में अक्सर देखा गया है कि रेलवे प्रबंधन यात्रियों की सुरक्षा से संबंधित स्लोगन जारी कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता हैं। मसलन, 'अनजान व्यक्ति का दिया खाना न खाएं', 'जहरखुरानी से बचें ' व 'लावारिस वस्तु होने पर तत्काल सूचित करें' आदि। बेहतर होगा रेलवे प्रबंधन 'यात्री अपने सामान की रक्षा स्वयं करे' जैसे स्लोगन के साथ 'यात्री अपनी सुरक्षा स्वयं करें' भी जारी कर दे, ताकि यात्री सावचेत रहें और रेलवे के सुरक्षा बलों से उम्मीद की 'गलतफहमी ' भी न पालें।
बहरहाल, सावर्जनिक स्थानों पर हुई उक्त वारदातें न केवल सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं बल्कि कानून की पालना करवाने वालों को भी कठघरे में खड़ा करती हैं। कानून के रखवाले अगर जनता की आवाजाही वाले सार्वजनिक स्थानों तथा थानों के आसपास ही अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक प्रकार से नहीं कर रहे तो फिर आम आदमी की सुरक्षा की बात करना बेमानी है।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 16  सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।

उदासीनता उचित नहीं

पत्रिका तत्काल
शहर की लोगों की गणेश महोत्सव की खुमारी ठीक से उतरी भी नहीं थी कि सोमवार को दो बड़ी वारदातों से शहर सहम गया। पहली वारदात में लालखदान रेलवे फाटक के पास एक अधेड़ की सरेराह गोली मारकर हत्या कर दी गर्इ जबकि दूसरी वारदात में शहर के व्यस्तम इलाके तेलीपारा में अपने घर के बाहर गणेश विसर्जन की झांकी देख रही एक महिला की तलवार मारकर नृशंस हत्या कर दी गर्इ। दोनों ही वारदातों के पीछे जो कारण सामने आ रहे हैं, उनमें एक प्रमुख कारण पुलिस की उदासीनता भी माना जा रहा है। लालखदान में लम्बे समय से थाने की मांग की जा रही है, क्योंकि यहां बाहरी लोगों की बसावट होने के कारण आपराधिक गतिविधियों की आशंका ज्यादा रहती है। तेलीपारा में महिला की हत्या के बाद पुलिस पर  इस बात को लेकर अंगुली उठार्इ जा रही है कि उसने इस मामले में लगातार मिल रही शिकायतों को नजरअंदाज किया।
बहरहाल, दोनों की मामलों में पुलिस आरोपियों की सरगर्मी से तलाश कर रही है, लेकिन एक ही दिन हुर्इ इन दोनों वारदातों से इतना तो तय है कि पुलिस अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन भली भांति से करती तो शायद दो जिंदगियों को यूं सरेराह शांत नहीं किया जाता। देखा गया है कि रिकॉर्ड दुरुस्त रखने के चक्कर में पुलिस अक्सर छोटी-मोटी घटनाओं को गंभीरता से नहीं लेती और थाने में आने वाले परिवादियों को ऐसे ही टरका दिया जाता है जबकि इन घटनाओं में से ही कुछ कालांतर में बड़े हादसे में तब्दील हो जाती हैं। पुलिस को इस प्रकार की वारदातों को हल्के में कतर्इ नहीं लेना चाहिए। उसे प्रकार की वारदातों से न केवल सबक लेना चाहिए बल्कि चुनौती मानकर काम करना चाहिए। तभी तो वह थानों में आने वाले परिवादियों की भावनाओं को समझ कर उनके साथ न्याय कर पाएगी। पीडि़तों की शिकायतों का  निराकरण समय पर पाएगी। शिकायतों पर शुरुआती दौर में अगर गंभीरता नहीं बरती गई तो अपराधी पुलिस की उदासीनता का फायदा उठाकर आपराधिक वारदातों को इसी प्रकार अंजाम देते रहेंगे।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 13  सितम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।