Thursday, February 28, 2013

ये लिफ्ट ठीक करवा दीजिए!


टिप्पणी

श्रीमान, जिला कलक्टर, दुर्ग।
विडम्बना देखिए, जिले के लोग दूर-दूर से हर सप्ताह जनदर्शन में अपनी फरियाद इस उम्मीद से लेकर आपके पास आते हैं कि उसका निर्धारित समय अवधि में निराकरण होगा। उनके साथ न्याय होगा, उनको राहत मिलेगी। खैर, फरियादियों की समस्याओं का निराकरण कितना होता है, यह अलग विषय है लेकिन आपके कार्यालय परिसर में ही एक समस्या पिछले आठ माह से बनी हुई है। बार-बार आपके संज्ञान में लाने के बावजूद यह समस्या यथावत है। करीब तेरह लाख रुपए खर्च करके जिस उद्देश्य की पूर्ति तथा जिन लोगों की सुविधा के लिए यह लिफ्ट लगाई गई थी, उसमें न तो यह कारगर साबित हुई और ना ही संबंधित लोगों को इसका लाभ मिल पाया। लिफ्ट के अभाव में निशक्त, बुजुर्ग एवं असहाय लोग मशक्कत करते हुए किस प्रकार आपके कक्ष तक पहुंचते हैं, यह आपसे भी छिपा हुआ नहीं है। एक-एक सीढ़ी चढ़ते, गिरते-संभलते किसी तरह आपके कक्ष तक यह लोग पहुंच तो जाते हैं लेकिन सीढिय़ों का यह सफर उनके लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।
वैसे जिले के लोगों ने देखा है कि आप जिले के मुखिया होने के साथ-साथ संवदेनशील इंसान भी हैं और मातहतों की बातों पर विश्वास न करके आंखों देखी पर ज्यादा यकीन रखते हैं। तभी तो गाहे-बगाहे कार्यालय का काम छोड़कर आप किसी भी विभाग का निरीक्षण करने निकल जाते हैं। इससे इतना तो जाहिर हैं कि आप जमीन से जुड़े हुए हैं। सोचनीय विषय यह है कि जब आपके व्यक्तित्व के साथ यह खूबी और खासियत जुड़ी है तो फिर लिफ्ट को ठीक करने की दिशा में अब तक कोई पहल क्यों नहीं हो पाई। यह सही है कि लिफ्ट के मामले में आपने ,मातहतों को निर्देश भी जारी किए लेकिन उन्होंने इसको कितनी गंभीरता से लिया, सबसे बेहतर आप ही जानते हैं। अगर मातहत आंखों के सामने ही आपके आदेशों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं तो जिले की बात करना बेमानी है। इतना ही नहीं  पंचायत एवं समाज कल्याण विभाग ने आठ माह के दौरान पीडब्ल्यूडी को छह पत्र लिख दिए हैं फिर भी समस्या जस की तस है।
बहरहाल, जनदर्शन का मतलब और मकसद लोगों को राहत पहुंचाना है तो लिफ्ट ठीक करना भी उसी दायरे में आता है। उसको ठीक करने से भी संबंधितों को राहत ही मिलेगी। और यदि जनदर्शन का मतलब कार्यालय बुलाकर सिर्फ जन का दर्शन ही करना है तो फिर कुछ कहना या ना कहना एक समान है और चिराग तले अंधेरा वाली कहावत से आप भी अछूते नहीं है। आप जिले के मुखिया हैं इसलिए आपसे उम्मीदें ज्यादा हैं। यकीन मानिए निशक्तोंं बुजुर्गों की समस्या का निराकरण भले हो या न हो लेकिन सीढिय़ों के कष्टदायी सफर से मुक्ति तो मिल ही जाएगी। अगर आपने यह करवा दिया तो ये लोग आपको दुआ देंगे। वैसे भी आपके लिए यह कोई बड़ा काम नहीं है।


साभार - पत्रिका भिलाई के 28  फरवरी 13 के अंक में प्रकाशित।