Monday, January 2, 2012

दूसरों से सीख लेने की जरूरत


टिप्पणी
हाईकोर्ट की फटकार के बाद बिलासपुर की यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने की कवायद में जुटी पुलिस के लिए सड़क सुरक्षा सप्ताह किसी चुनौती से कम नहीं हैं। वैसे तो यातायात नियमों की पालना करवाने तथा नियमों की जानकारी देने का काम हर साल होता है। इसके बावजूद व्यवस्था पटरी पर दिखाई नहीं देती। पुलिस पर तो अक्सर यह आरोप लगते रहे हैं कि उनका ध्यान व्यवस्था बनाने की बजाय वसूली पर ज्यादा रहता है। यह बात दीगर है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण सड़कों पर यातायात बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन हर राज्य में यातायात व्यवस्था को लेकर गंभीरता बरती जा रही है। कई राज्यों में तो यातायात संबंधी कानून व नियमों की पालना इतनी कड़ाई से करवाई जा रही है कि उसके सकारात्मक परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं।
कर्नाटक जाने वाला वहां की यातायात व्यवस्था की बड़ाई करने से नहीं चूकता।  कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु में इंटेलिजेंट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम लागू है। इसके तहत यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहन चालकों के घर पर ई-चालान पहुंचता है। इससे न तो भ्रष्टाचार की गुंजाइश रहती है और न ही बीच सड़क पर यातायात पुलिसकर्मी व वाहन चालकों के बीच नोकझोंक होती है। कुछ इसी प्रकार का सिस्टम मध्यप्रदेश के भोपाल एवं इंदौर में लागू करने की कवायद चल रही है। इतना ही नहीं  मध्यप्रदेश सरकार तो स्कूलों में बच्चों को ट्रैफिक नियमों की शिक्षा देने जा रही है। यातायात विशेषज्ञों की ओर से दिए गए सुझावों को पाठ्‌यपुस्तक में शामिल किया गया है। इसको अच्छी पहल के रूप में देखा जा सकता है।
राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने की दिशा में अभूतपूर्व काम हुआ। वहां दु़पहिया वाहन के पीछे बैठने वालों को भी हेलमेट लगाना अनिवार्य है। कमोबेश ऐसा ही फैसला भोपाल में लागू किया गया। वहां पम्पों से दुपहिया वाहन चालकों को पेट्रोल या डीजल तभी मिलता है जब उनके पास हेलमेट हो। इसी कड़ी में हरियाणा राज्य का नाम भी आता है। दिल्ली से सटे गुड़गांव शहर की बदहाल यातायात व्यवस्था को ठीक करने के लिए वहां की पुलिस ने अनूठा तरीका अपनाया है। वहां यातायात नियमों की पालना न करने वाले वाहन चालकों का पहले तो चालान काटा जाता है। इसके बाद भविष्य में ऐसी गलती न करने के लिए गीता या कुरान की शपथ दिलाई जाती है। हरियाणा के ही दूसरे शहर फरीदाबाद में भी यातायात नियमों की पालना के लिए  रोचक तरीका अपनाया गया। पिछले दिनों वहां यातायात की पालना करने वाले वाहन चालकों को बीच सड़क पर रोककर बाकायदा गुलदस्ता भेंट कर उनका स्वागत किया गया।
उक्त सभी उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि हर समस्या का हल है। साथ ही इस बात की सीख भी मिलती है कि बढ़ते यातायात को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है। छत्तीसगढ़ में यातायात नियमों को लेकर किसी भी स्तर पर गंभीरता नहीं बरती जा रही है। दुपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट अनिवार्य करवाना तो पुलिस के लिए दिवास्वप्न बना हुआ है।
बहरहाल, यातायात व्यवस्था दुरुस्त करने तथा हादसों में कमी लाने के लिए दूसरे राज्यों में लागू किए गए कानून एवं नियम छत्तीसगढ़ और विशेषकर बिलासपुर के लिए बेहतर उदाहरण साबित हो सकते हैं, बशर्ते शासन-प्रशासन इनके प्रति गंभीर हो। सड़क सुरक्षा सप्ताह में हर साल लकीर ही पीटी जाती रही है।  इस बार कुछ नया काम हो तो न केवल आमजन की समस्या कम होगी बल्कि यातायात पुलिस का काम भी कुछ हल्का हो जाएगा।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 02 जनवरी 12  के अंक में प्रकाशित।