Saturday, August 20, 2011

कायम रहे यह जज्बा

टिप्पणी
सियासत के भंवर में उलझे, विकास कार्यों में उपेक्षित तथा कदम-कदम पर भ्रष्टाचार का दंश झेलने वाले बिलासपुर में लम्बे समय से चुप्पी साधकर बैठे लोगों का सामाजिक कार्यकर्ता  अन्ना हजारे के समर्थन में सड़कों पर उतरना न केवल काबिलेगौर है बल्कि एक सुखद एहसास की तरह भी है। हजारे के बहाने से ही सही शहर के लोगों को एकजुट होने का मंच तो मिला है। शासन-प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों से नाउम्मीद हो चुके शहरवासियों की एकजुटता से अब कुछ तो उम्मीद बंधी है। यह कहना अभी जल्दबाजी है लेकिन उनकी इस एकजुटता में उज्ज्वल भविष्य का अक्स भी दिखाई देने लगा है। वैसे तो देशभर में अन्ना का समर्थन करने वालों की फेहरिस्त बेहद लम्बी है लेकिन बिलासपुर में इसके अर्थ दूसरे हैं। यहां के लोगों में आक्रोश है, लोग गुस्से में हैं, उनमें कुछ कर गुजरने का जज्बा है, तो मान लेना चाहिए कि इन सब के पीछे अन्ना के अलावा और भी कई ठोस कारण हैं। विकास की मुख्यधारा से कटकर बदहाली के कगार पर पहुंच चुके शहर का दर्द भी लोगों को लम्बे समय से अंदर ही अंदर कचोट रहा है। व्यवस्था के प्रति गुस्सा सभी के मन में है लेकिन वह बाहर आने का बहाना ढूंढ रहा था। खैर, देर आयद दुरुस्त आयद। अब हालत यह है कि शहर का हर आम से लेकर खास तक, जाति, धर्म एवं पार्टी से ऊपर उठकर सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद कर रहा है। इसमें लेशमात्र भी राजनीति दिखाई नहीं दे रही है।
शहरवासियों के मौजूदा जोश, जुनून एवं जज्बे को देखकर कहीं से भी नहीं लगता है कि यह वही लोग हैं, जो कल तक खामोश थे। शहर के प्रति उनका क्या सरोकार है? जिम्मेदार नागरिक होने की वजह से वे शहर के लिए क्या कर सकते हैं? जैसी सामान्य बातों का अर्थ भी वे लगभग बिसरा चुके थे। तभी तो जिसके जैसे मन में आया, उसने शहर को बदहाली के कगार तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब ऐसा लगता है कि रेल जोनल कार्यालय के आंदोलन के बाद शांत, सुस्त एवं उदासीन बैठे लोग अन्ना के बहाने यकायक पुनर्जीवित हो उठे हैं। उनको जीने का मकसद मिल गया है। जाहिर है जनता जनार्दन की एकजुटता एवं जागरुकता से उन सब नेताओं एवं नौकरशाहों को अब अपना सिंहासन हिलता हुआ नजर आ रहा है, जो अब तक जनता की उदासीनता की फायदा उठाते आए हैं। कोई बड़ी बात नहीं कि सिंहासन को खतरे में जान कर जनता व विकास से दूरी बनाए रखने वाले अब उनको गले भी लगा लें।
बहरहाल, बिलासपुर में भ्रष्टाचार की लड़ाई के मायने कई हैं। उम्मीद की जानी चाहिए अन्ना के एक आह्वान पर एकजुट होने वाले न्यायधानी के लोग शहर के विकास में सियायत करने तथा शहर की उपेक्षा करने वालों के खिलाफ भी प्रभावी तरीके से आवाज बुलंद करेंगे। जरूरत है तो बस मौजूदा जज्बे को कायम रखने की।

साभार : पत्रिका बिलासपुर के 20 अगस्त 11 के अंक में प्रकाशित।