Tuesday, September 17, 2013

सपनों की सियासत...4


बस यूं ही

 
सपनों की सियायत कम होने का नाम नहीं ले रही है। गाहे-बगाहे सपनों से जुड़ा कोई न कोई बयान आ ही जाता है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जाएंगे, वैसे-वैसे सपनों की फेहरिस्त और भी लम्बी होती जाएगी। ऐसे-ऐसे सपने जो आजादी के बाद से लगभग हर छोटे-बड़े चुनाव में दिखाए जाते रहे हैं। सपनों की इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए मंगलवार को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी राजस्थान के बारां में सपने दिखाए। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि वे चाहते हैं कि देश का सबसे बड़ा सपना देश के गरीब को देखना चाहिए। वे चाहते हैं कि मजूदर का बेटा हवाई जहाज में चढऩे का सपना देखे। वैसे, सपना तो हर कोई देखता है, उस पर न तो कोई टैक्स लगता है और ना ही किसी तरह की पाबंदी है, लेकिन सपने गरीब ही देखे और वह भी सबसे बड़ा सपना.. यह तो सोचने वाली बात है। उनका यह बड़ा सपना पूरा होगा या नहीं यह तो बाद की बात है, लेकिन मेरा अनुभव तो यही कहता है कि मजदूर या गरीब व्यक्ति के हवाई जहाज में चढऩे से उन पर कर्जा जरूर चढ़ जाता है। यकीन नहीं है तो शेखावाटी के उन लोगों से पूछिए जिनके परिजन रोजगार की तलाश में अरब देशों में गए हुए हैं। अगर हवाई जहाज में चढऩे व उतरने मात्र से ही सपना साकार हो जाता तो फिर क्यों वे अपने वतन से दूर जाने को मजबूर होते। क्या यहीं पर कमा खा नहीं लेते? हां इतना जरूर है कि केवल हवाई जहाज में चढ़कर, उतरने का ही सपना है तो, मेरे हिसाब से उसे पूरा करना कोई मुश्किल काम नहीं है। वैसे भी देश में कई जगह संग्रहालयों में पुराने हवाई जहाज खड़े हैं। राहुल के निर्देश पर पार्टी गरीबों को यह सुअवसर उपलब्ध करवा सकती है। दरअसल, यहां हवाई जहाज में चढऩे से तात्पर्य प्रत्येक आदमी को रोजगार मिलने से है। रोजगार से आदमी इतना सक्षम और समर्थ हो जाएगा कि हवाई जहाज में बैठना उसके लिए मुश्किल काम नहीं होगा। तभी तो राहुल ने कहा भी कि उनकी पार्टी हर आदमी को रोजगार मुहैया करानी चाहती है। अरे भई, करवाओ ना.. किसने रोका है। स्वागत है। लेकिन सिर्फ कह भर देने से ही रोजगार नहीं मिलने वाला। यह देश आजादी से लेकर आज तक कई तरह के संकटों से जूझता रहा है। उनमें बेरोजगारी भी बड़ी समस्या है। हर साल शिक्षित व प्रशिक्षित बेरोजगारी की फौज बढ़ती ही जा रही है। यह सब सपने दिखाने का कमाल नहीं तो क्या है? आजादी के समय से ही रोजगार देने और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की दिशा में सोच लिया जाता तो आज ऐसे हालात शायद पैदा ही नहीं होते। बहरहाल, किसी गरीब और मजबूर का सपना पूरा होता है तो हम सब के लिए इससे बड़ी गर्व और गौरव की बात कोई और हो ही नहीं सकती। लेकिन सपने पूरे होने में संशय इसलिए है, क्योंकि देश में अगर गरीब और मजूदर रहेंगे ही नहीं तो फिर सपने देखेगा कौन? देश में वो ही तो एकमात्र ऐसा वर्ग है, जिसको सर्वाधिक सपने आज तक दिखाए गए हैं। भले ही इस वर्ग को दो जून की रोटी ठीक से मय्यसर ना हो लेकिन सपने तो देखे ही जा सकते हैं ना।                                                                                           जारी है..।