बस यूं ही
वैसे तो मूंछों की शान में अनगिनत कशीदे पढ़े गए हैं। तभी तो मूंछों को
आन, बान, शान और स्वाभिमान का प्रतीक माना जाता है। विशेषकर राजस्थान जैसे
परम्परावादी राज्य में तो मूंछों को लेकर काफी कुछ कहा गया है। देखा जाए तो मूंछें
प्राचीनकाल से ही लोगों को लुभाती रही हैं और वर्तमान में भी इनकी
प्रासंगिकता बरकरार है। मूंछों को लेकर कई किस्से, कहानियां, लोकोक्तियां
एवं मुहावरे भी प्रचलन में है। मैं भी कई दिनों से मूंछों पर कुछ लिखने की
सोच रहा था लेकिन न तो समय निकाल पाया और ना ही लिखने की कोई बड़ी वजह
मिली।
आज बैठे-बैठे अचानक ब्लॉग पढऩे का मन किया। सबसे पहले नजर श्री
रतनसिंह जी भाईसाहब के ब्लॉग ज्ञान दर्पण में हाल में लिखी गई रचना ठाकुर
साहब की अकड़ और मूंछ की मरोड़ का राज पढ़ा तो फिर मूंछों की याद आ गई।
हालांकि मूंछों से वाबस्ता फिल्मी जुमला मूंछे हों तो नत्थूलाल जैसी तो
बचपन में ही सुन लिया था, लेकिन तब यह बात समझ में नहीं आई थी कि आखिर
नत्थूलाल की मूंछों में ऐसा क्या है। बाद में फिल्म में देखी तो जिज्ञासा
शांत हुई। मूंछों संबंधी जिज्ञासा तो शांत हो गई लेकिन फिल्मों का चस्का
ऐसा लगा कि एक तरह की लत ही लग गई । यह फिल्मों का ही असर था कि एक बार
अपने भी तोते उड़ गए थे। तोते उडऩे का यह डायलॉग भी अजय देवगन की प्यार तो
होना ही था, फिल्म में सुना था। सैलून में मूंछें सेट करवाते हुए नाई जब
बातों-बातों में अजय देवगन की एक तरफ की मूंछ साफ कर देता है, और फिर डर के
मारे वह जोर-जोर से चिल्लाता है, उस्ताद तोते उड़ गए, उस्ताद तोते उड़ गए।
हकीकत जानने पर अजय देवगन ने थोड़ा गुस्सा होने के बाद दूसरी तरफ की मूंछ
भी साफ करवा ली थी।
खैर, तीन साल के लिए मैंने भी मूंछें
साफ करवाई थी। कोई
वजह पूछता तो अपने पास भी वही परम्परागत बहाना तैयार था। कह देते कि मूंछें
सेट करते समय एक तरफ की कुछ ज्यादा छोटी हो गई। देखने में बुरी लग रही थी,
इसलिए साफ ही कर दी। अधिकतर लोग तो इस तर्क से संतुष्ट हो जाते। कोई
ज्यादा समझदार जब मानने को तैयार नहीं होता तो फिर उसे राजेश खन्ना की
फिल्म का डायलॉग सुना देते और कह देते..अरे भई यह तो मर्दों की खेती है, जब
चाहे उगा ली और जब चाहे काट ली, इसमें आपका क्या? वैसे चिकना बनने का यह
बुखार कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही चढ़ा था और पत्रकारिता की
एबीसीडी सीख कर जब मैदान में उतरे तो बाकायदा मूंछें साथ थी। मतलब तीन साल
तक बिना मूंछों के रहने का अनुभव भी अपुन के साथ चस्पा हो गया। वैसे
ईमानदारी की बात यह है कि अपनी गुडबुक में मूंछ वाले हीरो ही ज्यादा रहे
हैं, मसलन, राजकपूर, अनिल कपूर, राकेश रोशन आदि, हालांकि अनिल कपूर भी एक
बार लम्हे में बिना मूंछों के नजर आए। राकेश रोशन ने भी एक-दो फिल्मों में
अपनी मूंछे कटवाईं। यह बात दीगर है कि फिल्मों में कथानक के अनुसार कई
नायकों ने मूंछे रखी हैं, भले ही असली जिंदगी में उन्होंने मूंछों से परहेज
किया हो। ऐसे नायकों की फेहरिस्त बेहद लम्बी है। खैर, खलनायक तो
अपवादस्वरूप ही किसी फिल्म में बिना मूंछों का नजर आया, वरना मूंछों के
साथ दाढ़ी तो कई फिल्मों में खलनायक की पहचान बन गई।
खैर फिल्मी
दुनिया से इतर भी मूंछों का महत्त्व रहा है। मूंछें चेहरे का रौब बढ़ा देती
हैं। दुबारा मूंछे रखने के बाद मैं अपने कई मूंछ ना रखने वाले दोस्तों से
मजाक-मजाक में पूछ बैठता कि बिना बात किए आपको किस आधार पर पहचाना जाए कि
आप पुरुष हो। वैसे भी मौजूदा पहनावा एवं लाइफ स्टाइल ऐसे हैं कि पुरुष एवं
महिलाओं में भेद तक करना मुश्किल हो रहा है। दोस्तों से संतोषजनक जवाब ना
मिलने पर विजयी मुस्कान के साथ मैं कहता, मूंछों से ही इंसान की पहचान होती
है। हो भी कैसे नहीं। मूंछों को लेकर दर्जनों मुहावरें हैं, जो अलग-अलग
संदर्भों में प्रयुक्त किए जाते हैं। मुहावरों की बानगी देखिए...। मूंछ
मरोडऩा, मूंछें फरकाना, मूंछों पर ताव देना। मूंछों को बल देना। मूंछें
ऊंची होना। मूंछें नीची होना। मूंछ लम्बी होना। मूंछ का बाल। मूंछ ही लड़ाई। मूंछ का सवाल
आदि आदि। इन मुहावरों का भावार्थ देखा जाए तो मूंछों को इज्जत से जोड़कर
देखा गया है। मूंछे ऊंची होना जहां सम्मान की बात है, वहीं मूंछें नीची
होने का मतलब बेइज्जत होना है। इसी तरह मूंछों को ताव देने से आशय चुनौती
देना है तो मूंछ का सवाल का अर्थ प्रतिष्ठा का सवाल है। इन मुहावरों से साफ
होता है कि मूंछों की दर्जा काफी ऊंचा हैं और मूंछों के साथ इज्जत को
जोड़कर देखा जाता रहा है।
खैर, मेरे विचारों से कोई यह ना समझ लें
कि मैं मूंछ ना रखने वालों का विरोधी हूं, ऐसा नहीं है। बस बात की बात है
और विषयवस्तु प्रासंगिक है, लिहाजा लिखने को मन कर गया। वैसे भी मैं तो
पहले ही स्पष्ट कर चुका हूं कि मेरे पास भी बिना मूंछ रहने का तीन साल का
अनुभव है। फिर भी फिल्मी नायकों को देखकर या उन जैसा बनने की हसरत रखने
वाले जरूर मूंछें साफ करवाने में विश्वास रखते हैं लेकिन पिछले दो तीन
सालों में फिल्मवालों का मूंछ प्रेम भी यकायक बढ़ गया है। हाल ही में आधा
दर्जन से ज्यादा फिल्मी आई हैं, जिनमें नायक बाकायदा बड़ी-बड़ी मूंछों के
साथ अवतरित हुए हैं। उदाहरण के लिए राउडी राठौड़ में अक्षय कुमार, दबंग व
दबंग-2 में सलमान खान, बोल बच्चन में अजय देवगन, तलाश में आमिर खान, मटरू की बिजली का मन डोला में इमरान खान, जिला
गाजियाबाद में संजय दत्त को देखा जा सकता है। राजस्थान के मंडावा में
फिल्माई गई फिल्म पीके में भी संजय दत्त ने मूंछों में किरदार निभाया है।
लब्बोलुआब यह है कि फिलहाल मूंछों का बोलबाला है और जमाना कहें तो भी कोई
अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। अपन तो मूंछ पहले से ही रखे हुए हैं, लिहाजा
आजकल मूंछें छोटी या बड़ी रखने की वजह बताने में कोई दिक्कत नहीं है। कई
बहाने मिल गए हैं। ना रखी थी तब भी और सामान्य से कुछ बड़ी कर ली तब भी।
वैसे अपुन की मूंछें भी आजकल कुछ ज्यादा ही बढ़ गई हैं। यह जानकारी भी तब
लगी जब कुछ परिचितों ने हाल की एक फोटो को फेसबुक पर देखकर चेहरे की बजाय
मूंछों पर ही टिप्पणी कर दी। किसी ने साउथ का फिल्मी हीरो बता दिया तो किसी
ने मूंछों को भारी बता दिया। किसी ने सिंघम तक कह दिया तो कोई बोला मूंछ
मोटी कर ली। एक दोस्त ने तो यहां तक कह दिया कि मूंछ है तो सब कुछ है। फोटो
पर आई इन टिप्पणियों से इतना तो तय है कि चेहरा देखते समय सर्वप्रथम ध्यान
मूंछों पर ही जाता है। इसलिए एक बार मूंछ रखने का अनुभव भी तो लिया ही जा
सकता है। और फिर बकौल राजेश खन्ना, यह तो मर्दों की खेती है। जमी तो रख
ली, ना जमी तो साफ।