Wednesday, October 31, 2018

दोनों दलों को राजनीति की बिसात पर जिताऊ चेहरों की तलाश

श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ : कांग्रेस और भाजपा दोनों का पहला मुकाबला अंदरूनी लड़ाई से
सरहदी और नहरी क्षेत्र में राजनीति की बिसात पर जिताऊ मोहरों की तलाश जोरों पर है। फिलवक्त दोनों बड़ी पार्टियों ने उम्मीदवारी के पत्ते नहीं खोले हैं। पिछले चुनाव में श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ की सभी 11 सीटों पर हार का रेकॉर्ड बनाने वाली कांग्रेस को इस बार सत्ता-विरोधी मतों और बदलाव की बयार से आस है। इसी तरह 2013 में मोदी लहर पर सवार भाजपा ऐसे चेहरे चाहती है, जिनसे उसकी प्रतिष्ठा बची रहीे। कांग्रेस के पास खोने को कुछ नहीं है तो भाजपा के लिए पुरानी सफलता को बरकरार रखना बड़ी चुनौती है। खास बात यह कि दोनों जिलों के मतदाता कुछ सीटों पर पार्टियों से ज्यादा पसंदीदा चेहरों पर भी दांव लगाते रहे हैं। पिछले तीन चुनाव के परिणाम यही साबित करते हैं।
श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों ने अब तक दो दर्जन से ज्यादा मंत्री दिए हैं। भाजपा-कांग्रेस के अलावा इन चेहरों में निर्दलीय भी शामिल हैं। इन्होंने न सिर्फ सरकार बनाने/बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि मंत्रिमंडल में जगह भी बनाई। दोनों जिलों से जनप्रतिनिधियों को कृषि, सिंचाई, गृह, खान और श्रम जैसे महत्वपूर्ण विभाग मिले हैं। इस प्रतिनिधित्व के बावजूद किसानों की कुछ समस्याएं जस की तस हैं। चुनाव को लेकर अभी यहां किसी बड़े नेता का आगमन नहीं हुआ है। संभाग मुख्यालय पर जरूर भाजपा व कांग्रेस अध्यक्षों की सभाएं हो चुकी हैं। दोनों जिलों में ओवरऑल एससी मतदाता ज्यादा हैं। संगरिया, श्रीगंगानगर, सादुलशहर और श्रीकरणपुर में सिख और पंजाबी मतदाता खासा दखल रखते हैं, जबकि नोहर और भादरा में जाट मतदाताओं का परचम बुलंद है।
मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने दोनों जिलों की 11 में से 10 विधानसभाओं में गौरव यात्रा निकालकर कार्यकर्ताओं में जोश फूंकने का काम किया। भाजपा ने रायशुमारी का चरण पूरा कर लिया है। कांग्रेस अंदरखाने जीतने वाले चेहरों पर मंथन कर रही है। प्रचार की समरभूमि पर भाजपा और रणनीतिक कौशल में कांग्रेस कुछ आगे है। गुटबाजी व धड़ेबंदी दोनों ही दलों में है। दावेदारों की संख्या को देखते हुए टिकट चयन का काम दोनों दलों के लिए आसान काम नहीं है। पिछले चुनाव में कांग्रेस की हार भी बड़ी थी क्योंकि श्रीगंगानगर की छह सीटों में से मात्र दो पर ही मुकाबले में रही। अनपूगढ़ में तो वह चौथे स्थान पर खिसक गई। इसी तरह हनुमानगढ़ जिले की पांच सीटों में से चार पर कांग्रेस मुकाबले पर रही लेकिन भादरा में वह पांचवें स्थान पर रही।
भाजपा : श्रीगंगानगर की सभी छह सीटों पर अभी द्वंद्व है। टिकट वितरण के बाद स्थिति स्पष्ट होगी। जिले से सुरेन्द्रपाल सिंह टीटी एकमात्र मंत्री बने, लेकिन विरोध के सुर उनके खुद के विधानसभा क्षेत्र में ही हैं। पिछले चुनाव में वह कम अंतर से जीत पाए थे। रायसिंहनगर में सांसद या उनके परिजनों को टिकट देने की चर्चा है। सादुलशहर में मौजूदा भाजपा विधायक अपने पोते को राजनीतिक विरासत सौंपने की घोषणा कर चुके हैं। श्रीगंगानगर में भाजपा को टिकट फाइनल करने में जोर आएगा। जनता यहां भैरोसिंह शेखावत जैसे कद्दावर नेता को हरा चुकी है। अनपूगढ़ में नाम पट्टिका को लेकर हुए विवाद पर भाजपा का दो धड़ों में बंटना पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है। सूरतगढ़ में पूर्व विधायक सक्रिय हैं, उससे भाजपा की नींद उड़ी है। उधर, हनुमानगढ़ जिले में नोहर सीट पर घमासान की उम्मीद है। रावतसर पालिका अध्यक्ष के पति की हत्या यहां के चुनाव को प्रभावित कर सकती है। भादरा में पिछली बार भाजपा जीत गई लेकिन इस सीट का इतिहास अलग ही रहा है। यहां मतदाता उम्मीदवार को रिपीट करने में कम विश्वास करते हैं। हनुमानगढ़ में मुकाबला रह सकता है। पीलीबंगा में इस बार टिकट कटने की चर्चा है। हालांकि पिछले चुनाव में यहां जीत का अंतर दस हजार से ऊपर था। संगरिया में भी भाजपा में कई दावेदार हैं।
कांग्रेस : सत्ता विरोधी मतों की आस में कांग्रेस उत्साह से लबरेज है। इसने दावेदार बढ़ा दिए हैं। पायलट व गहलोत धड़े यहां भी हैं। श्रीगंगानगर में नगर परिषद के सभापति के बड़े भाई ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर हलचल मचा दी। यहां कई दावेदार हैं। करणपुर में पार्टी पिछले चुनाव ज्यादा अंतर से नहीं हारी। इस बार पूरा जोर लगाने के मूड में है। सादुलशहर में भी कांग्रेस कम अंतर से हारी, लेकिन अब दावेदार कई हैं। वर्तमान विधायक अगर पोते को टिकट दिलवाने में कामयाब होते हैं तो मुकाबला दिलचस्प होगा। यहां मुख्यमंत्री की गौरव यात्रा के दौरान अन्य दावेदारों ने एकजुटता से शक्ति प्रदर्शन किया था। सूरतगढ़ में पार्टी पूर्व विधायक पर ही दांव खेल सकती है। रायसिंहनगर से दावेदार कई हैं। जमींदारा पार्टी से जीती वर्तमान विधायक भी कांग्रेस में शामिल हो चुकी हैं। अनूपगढ़ में कांग्रेस अभी तक पैर नहीं जमा पाई है। हनुमानगढ़ में कांग्रेस पुराने चेहरे पर दांव खेल सकती है। संगरिया में पूर्व मंत्री व पूर्व विधायक दावेदार हैं।
तीसरा मोर्चा व अन्य : श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में अन्य दलों या निर्दलीय ने उपस्थिति दर्ज करवाई है। पिछले चुनाव में जमींदारा पार्टी ने दो सीटें निकाली थीं। 2013 में माकपा प्रत्याशी अनूपगढ़ में तीसरे तथा भादरा में दूसरे स्थान पर रहे। यह दोनों प्रत्याशी फिर तैयार हैं। चर्चा है श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले की दो सीटों पर माकपा का कांग्रेस के साथ गठबंधन हो सकता है। बसपा हालांकि कमजोर है, लेकिन सूरतगढ़ में पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रही। दोनों ही जिलो में निर्दलीय ने भी अच्छे वोट लिए। पिछले चुनाव में संगरिया, हनुमानगढ़, नोहर व पीलीबंगा में निर्दलीय तीसरे स्थान पर रहे।
चुनाव के प्रमख मुद्दे
नहरी पानी की कमी
नहरों का जीर्णोद्धार
कानून व्यवस्था
नशा और रोजगार
चिकित्सा व्यवस्था
मेडिकल कॉलेज और कृषि विवि
दलीय स्थिति
2013
भाजपा- 9, जमींदारा पार्टी- 2
2008
भाजपा- 2, कांग्रेस- 6, अन्य- 3
2003
भाजपा-7, कांग्रेस-1, अन्य-3
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 22 अक्टूबर 18 को राजस्थान पत्रिका के राजस्थान के तमाम अंकों में प्रकाशित विशेष रिपोर्ट।

विडम्बना : सत्ता में सदा सहभागी फिर भी सरकारों से सौतेलेपन की शिकायत

लगभग हर मंत्रिमंडल में मिला है श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले को प्रतिनिधित्व
श्रीकरणपुर से जीतने वालों को मिला है सर्वाधिक मौका, अब तक छह मंत्री
श्रीगंगानगर. विडम्बना देखिए, सरहदी क्षेत्र के जिले श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ (1952 से 1993 तक चुनाव में श्रीगंगानगर जिला) के लोगों को सत्ता से सौतेलापन करने की हमेशा शिकायत रहती आई है, जबकि यहां से जीते जनप्रतिनिधियों को हर बार सत्ता में सहभागिता निभाने का मौका मिला है। इतना ही नहीं यहां के जनप्रतिनिधियों को मंत्रिमंडल में कृषि, सिंचाई, राजस्व, श्रम, खान, गृह जैसे महत्वपूर्ण विभाग भी मिले हैं। पहली विधानसभा से मौजूदा विधानसभा तक अविभाजित श्रीगंगानगर (1994 में हनुमानगढ़ अलग हुआ) के जनप्रतिनिधियों को मंत्री बनने का मौका मिलता रहा है। इनमें भी सर्वाधिक मौका श्रीकरणपुर से जीतने वालों को मिला है। इसके बावजूद क्षेत्र की एक बड़ी शिकायत पानी को लेकर हमेशा रहती आई। वैसे तो सभी विधानसभाओं को किसी न किसी कार्यकाल में सत्ता में भागीदारी का मौका मिल चुका है लेकिन अविभाजित श्रीगंगानगर का हिस्सा रहे सूरतगढ़ व नोहर विधानसभा क्षेत्र को अभी तक कोई मंत्री नहीं मिला। कुछ ऐसे नेता भी हैं जो पूरे पांच साल मंत्री नहीं रहे।
इनको भी मिली जिम्मेदारी
नोहर से लक्ष्मीनारायण भांभू को 1985 में तथा सूरतगढ़ से विजयलक्ष्मी बिश्नोई को 1998 में संसदीय सचिव बनाया। यह दोनों कांग्रेस सरकार में रहे। 2003 में केसरीङ्क्षसहपुर से ओपी महेन्द्र मुख्य उप सचेतक बनाया जबकि 2008 में भादरा से निर्दलीय जीते जयदीप डूडी संसदीय सचिव बने।
निर्दलीयों को भी मिला है मौका
मंत्री केवल कांग्रेस या भाजपा में ही नहीं बने बल्कि निर्दलीय भी खूब बने हैं। 1990 में पीलीबंगा से निर्दलीय जीते रामप्रताप कासनिया, 1993 में टिब्बी से निर्दलीय शशिदत्ता, संगरिया से निर्दलीय गुरजंटसिंह तथा भादरा से निर्दलीय जीते चौधरी ज्ञानसिंह चौधरी को मंत्रिमंडल में जगह मिली। इस प्रकार 2008 में भादरा से निर्दलीय जीते जयदीप डूडी कांग्रेस सरकार में संसदीय सचिव बने। श्रीकरणपुर से जीते गुरमीत कुन्नर भी निर्दलीय जीतकर मंत्री बने तथा बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।
किस विधानसभा से कितनी बार मंत्री
श्रीकरणपुर छह बार
हनुमानगढ़ पांच बार
संगरिया चार
गंगानगर तीन बार
भादरा तीन बार
टिब्बी दो बार
केसरीसिंहपुर एक
पीलीबंगा एक
रायसिंहनगर एक
सादुलगढ़ एक
नोट - वर्तमान में सादुलगढ़, केसरीसिंहपुर, टिब्बी विधानसभा का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। 2008 को अस्तित्व में आई सादुलशहर व अनूपगढ़ से दो चुनाव में किसी को मौका नहीं मिला है।
दो या इससे अधिक बार मंत्री व उनका दल
नाम दल
चौधरी रामंचद कांग्रेस
केदार शर्मा जनता पार्टी/ जनता दल
केसी बिश्नोई कांग्रेस
सुरेन्द्रपालसिंह भाजपा
डॉ. रामप्रताप भाजपा
लालचंद डूडी जनता पार्टी/ जनता दल
हीरालाल इंदौरा कांग्रेस
नोट - इनमें चौधरी रामचंद्र तीन बार तथा बाकी सभी दो-दो बार मंत्री बने। यह एक बार रहे मंत्री
कौनसे कार्यकाल में कितने मंत्री
1967-72 में दो मंत्री
1977-80 में तीन मंत्री
1980-85 में दो मंत्री
1985-90 में दो मंत्री
1990-92 में चार मंत्री
1993-98 में चार मंत्री
1998-2003 में तीन मंत्री
2008-13 में दो मंत्री
2013-18 में दो मंत्री
1952-57, 1957-62, 1972-77 तथा 2003-08 के कार्यकाल वाली सरकारों में एक-एक मंत्री रहा जबकि 1962 -67 में कोई मंत्री नहीं रहा।
यह एक बार रहे मंत्री
नाम दल
बृजप्रकाश गोयल कांग्रेस
विनोद कुमार कांग्रेस
डूंगरराम पंवार जनता पार्टी
शशिदत्ता निर्दलीय
रामप्रताप कासनिया निर्दलीय
चौधरी ज्ञानसिंह निर्दलीय
गुरजंटसिंह निर्दलीय
दुलाराम कांग्रेस
राधेश्याम कांग्रेस
गुरदीपङ्क्षसह कांग्रेस
कुंदन मिगलानी भाजपा
जगतारङ्क्षसह कंग कांग्रेस
गुरमीत कुन्नर निर्दलीय
नोट - गुरजंट सिंह संगरिया से निर्दलीय जीते बाद में भाजपा में शामिल हुए। इसी तरह, गुरमीत कुन्नर श्रीकरणपुर से निर्दलीय जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए। पीलीबंगा से निर्दलीय जीतकर मंत्री बने रामप्रताप कासनिया ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की।
सत्ता से शिकायत की वजह
इलाके का दुर्भाग्य रहा कि जन नेताओं को सरकार में शामिल होने का मौका ही नहीं मिला। हकीकत में टिकट खरीद-फरोख्त करने वाले नेता ही सरकार में शामिल हुए। ऐसे मंत्री सरकार को बचाने में ज्यादा लगे रहे, इन नेताओं ने किसानों को बचाने का प्रयास ही नहीं किया। तभी तो किसानों से जुड़ी समस्याएं आज तक यथावत है।
बलवान पूनिया, किसान नेता, हनुमानगढ़
&मंत्रिमंडल में पूरा प्रतिनिधित्व मिलने के बावजूद किसानों से जुड़ी समस्याएं अब तक यथावत है। जो मंत्री बने उनका व्यक्तिगत स्वार्थ, सामूहिक हित पर हावी रहा। वर्ष 1993 में तो हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर में मंत्रियों की बहार आ गई, लेकिन किसानों की किस्मत चमकाने के लिए किसी ने प्रयास नहीं किए। नए उद्योग धंधे लगाने की बजाय जिले की एकमात्र सहकारी स्पिनिंग मिल भी मंत्रियों की वजह से बंद हो गई।
ओम जांगू, किसान नेता, हनुमानगढ़
&जब विधानसभा चुनाव होता है तब कांग्रेस-भाजपा सहित अन्य नेता किसानों की आवाज उठाने की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। सिंचाई पानी, कृषि भूमि जोत, कृषि जिन्सों के भाव आदि दिलवाने का वादें करते हैं। जीत कर विधानसभा में पहुंचते हैं और मंत्री बन जाते हैं तब किसानों के मुद्दों को भूल जाते हैं और पार्टी के गुणगान करने लग जाते हैं। इस स्थिति में फिर किसान संगठनों को किसानों की आवाज उठाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
एडवोकेट सुभाष सहगल, प्रवक्ता किसान संघर्ष, समिति श्रीगंगानगर।
&चुनाव में नेता किसानों के लिए सिंचाई पानी दिलवाने, कृषि जिन्सों के भाव, पूरी खरीद और गंगनहर के रखरखाव सहित हर वादा करते हैं। किसानों के बीच जाकर बड़े वादें करते हैं लेकिन जब चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंच जाते हैं तब किसान के लिए कुछ नहीं करते। किसानों की आवाज विधानसभा में नहीं उठाते हैं। जब ऐसा नहीं करते हैं तब मजबूरी में किसान संगठनों को आंदोलन करना पड़ता है।
रणजीत सिंह राजू, संयोजक, गंगानगर किसान संघर्ष समिति।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ संस्करण 23 अक्टूबर 18 के अंक में  में प्रकाशित ।

किसानों का कर्ज माफ करने से नहीं होगा समस्या का हल

सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र : खेती के भले के लिए नीति-नियमों में बदलाव जरूरी
श्रीगंगानगर जिले की पहचान सरसब्ज जिले की रूप में होती है लेकिन इस जिले के सूरतगढ़ विधानसभा क्षेत्र का काफी हिस्सा बारानी है। इसे स्थानीय लोग टिब्बा क्षेत्र भी कहते हैं। इसी विधानसभा क्षेत्र का एक बड़ा गांव बीरमाना है। सूरतगढ़ से बीरमाना की यात्रा के दौरान किसान खेत में नरमा चुगाई में व्यस्त नजर आए। बीरमाना के स्टैंड पर कुछ ग्रामीण और महिलाएं बस के इंतजार में खड़े हैं। पास ही एक चाय की दुकान व पेस्टीसाइड की दुकान पर ग्रामीण जमा हैं। पानी और किसानों की चर्चा की तो फिर सभी बेबाकी से बोलने लगे। खेती किसानी वाला इलाका है, इसलिए चिंता व चर्चा भी उसी की है। पूर्व सरपंच ओमप्रकाश गेदर व पंचायत समिति सदस्य कृष्ण कुमार स्वामी कहते हैं कि किसान का भला जिस दिन हो जाएगा। सारी समस्याएं ही खत्म हो जाएंगी। नियमों में इतनी विसंगति हैं कि किसान को लाभ नहीं मिल पाता। वे कहते हैं कि सरकारें किसानों का कर्जा माफ करती हैं, लेकिन इससे किसानों की समस्या खत्म नहीं होनी वाली। सरकारों को किसानों की वास्तविक समस्या का हल खोजना होगा। इनका कहना था कि कृषि के लिए बजट अलग से होना चाहिए। कृषि जिन्सों की खरीद घोषणा होते ही शुरू हो जाए और इसका भुगतान हाथों हाथ हो तो भी किसानों को राहत मिलेगी। खरीद व भुगतान देरी से होने के कारण किसान अपनी जिन्स बाजार में बेचने को मजबूर होता है। सरकार को इस व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। पास बैठे हरीश कुमार मंगलाव, जगदीश शर्मा, रामकुमार शर्मा, चेतराम टाक, काशीराम टाक, भागीरथ बरोड़ व हीरालाल टाक आदि भी सहमति में सिर हिलाते हैं। फिर कहते हैं फसल बीमा की विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिए। 
पांच साल हो गए नरमे में अजीब तरह की बीमारी लग रही है। जितना खर्चा हो रही है उतनी आमदनी होती नहीं है। बीमा की विसंगति दूर होने से भी किसानों को फायदा होगा। ग्रामीणों ने एक स्वर में कहा कि सरकार को पेट्रोल व डीजल पर भी जीएसटी लागू करना चाहिए तथा किसानों को डीजल पर सब्सिडी देनी चाहिए। ग्रामीणों को यकीन है कि सरकारें चाहें तो सब कुछ संभव हैं लेकिन उनकी कथनी और करनी में अंतर के कारण किसानों को लाभ नहीं मिल पाता।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 20 अक्टूबर के अंक में ग्राउंड जीरो के तहत लगी। 

कई बार बनी, बदली और बिगड़ी है इन सीटों की तस्वीर

पांच से 11 विधानसभा क्षेत्र होने की रोचक कहानी
श्रीगंगानगर. यह कहानी बड़ी रोचक है। इसमें बनने, बदलने और बिगडऩे के कई उदाहरण है। यह कहानी है अविभाजित श्रीगंगानगर के पांच विधानसभा क्षेत्र की जिनकी संख्या अब 11 हो चुकी है। इसके अलावा हनुमानगढ़ अलग से जिला भी बन चुका है। इस घटत-बढ़त में कुछ नाम नए अस्तित्व में आए तो कुछ सदा के लिए अतीत के पन्नों में दफन हो गए। इतना ही नहीं सुरक्षित सीटों के स्थान बदलते रहे हैं। कई सुरक्षित से सामान्य बन गई तो कुछ सीटें सामान्य से सुरक्षित हो गई। राजस्थानप विधानसभा के पहले चुनाव 1952 में अविभाजित श्रीगंगानगर में कुछ पांच सीटें थी। भादरा, नोहर, सादुलगढ़, श्रीगंगानगर व रायसिंहनगर-करणपुर। रायसिंहनगर व करणपुर दोनों को एक मिलाकर एक सीट थे पर दो विधायक चुने गए। 1957 के चुनाव में श्रीकरणपुर व रायसिंहनगर अलग-अलग विधाानसभा हो गए लेकिन भादरा को नोहर में मर्ज कर दिया तब नोहर में भी एक सीट पर दो विधायक चुने गए। इस कार्यकाल में सूरतगढ़ नई विधानसभा बनी। सादुलगढ का नाम बदलकर हनुमानगढ़ भी इसी दौरान हुआ। दूसरे चुनाव में सीटों की संख्या पांंच से छह हो गई। के चुनाव में रावतसर नई विधानसभा बनी और कुल विधानसभा सात हो गई। इसके बाद 1967 के चुनाव में संगरिया व केसरीसिंहपुर बनी। रावतसर खत्म हो गई और भादरा सीट फिर से अस्तित्व में आ गई। कुल संख्या नौ हो गई। 1972 के चुनाव में भी इतनी ही सीटें रही। 1977 के चुनाव में टिब्बी व पीलीबंगा दो नई विधानसभा और बनी और संख्या 11 हो गई। इसके बाद 2008 के चुनाव में संख्या तो 11 ही रही लेकिन टिब्बी व केसरीसिंहपुर सीटों के बदले सादुलशहर व अनूपगढ़ नई विधानसभाएं बनीं।
सुरक्षित सीटों का भी रोचक इतिहास
1951 के चुनाव में श्रीगंगानगर जिले में कोई सीट सुरक्षित नहीं थी। 1957 में नोहर को सुरक्षित सीट बनाया गया। इसके बाद 1962 के चुनाव में नोहर सामान्य हो गई और नए सीट रावतसर को सुरक्षित बनाया गया। 1967 के चुनाव में रावतसर खत्म हो गई जबकि रायसिंहनगर को सुरक्षित सीट घोषित किया गया। रायसिंहनगर तब से सुरक्षित सीट है। इसी तरह संगरिया 1967 व 1972 के चुनाव में सुरक्षित सीट रही। 1967 में बनी सीट केसरीसिंहपुर भी सुरक्षित सीट रही। 1997 के चुनाव में रायसिंहनगर के साथ टिब्बी व केसरीसिंहपुर सुरक्षित सीटें रही। 2008 के चुनाव में केसरीसिंपुर व टिब्बी का अस्तित्व खत्म हो गया। इसके बाद पीलीबंगा व अनूपगढ़ को सुरक्षित सीट घोषित किया गया जबकि रायसिंहनगर पूर्व की तरह सुरक्षित चलती रही।
अतीत का हिस्सा बन गई यह विधानसभाएं
राज्य के पहले चुनाव में सादुलगढ़ विधानसभा क्षेत्र था लेकिन इसके बाद इस नाम की सीट खत्म कर दूसरे नाम से बनाई है। इसी तरह रावतसर विधानसभा केवल 1962 के चुनाव में सामने आई बाद में यह क्षेत्र लोप हो गया। केसरीसिंहपुर व टिब्बी 1967 से अस्तित्व में आए लेकिन 2008 में इनका नाम भी हट गया।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर व हनुमान संस्करण के 20 अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित। 

वोटों की फसल : राजे और गहलोत का पेशा राजनीति, अधिकांश विधायक करते हैं खेती

सिर्फ दो का पेशा सियासत
बाकी 40 % किसान
श्रीगंगानगर. यह सुनकर आप चौंक सकते हैं कि 14 वीं विधानसभा में प्रदेश के मात्र दो विधायकों का ही पेशा राजनीति है। और ये दो विधायक हैं वर्तमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत। दिलचस्प पहलू यह है कि कई विधायकों को राजनीति विरासत में मिली है तो कई तीन-तीन, चार-चार बार लगातार जीत चुके हैं, फिर भी उनका मूल पेशा राजनीति नहीं है। राजस्थान विधानसभा के पोर्टल पर 14वीं विधानसभा के लिए चुने विधायकों का जो व्यक्तिगत विवरण दिया गया था (अभी पोर्टल से इसे हटा दिया गया है) उसमें 40 फीसदी से अधिक का एकल पेशा खेती है। करीब बारह या तेरह फीसदी का पेशा कृषि के साथ-साथ दूसरा है।
197 विधायकों में से 80 का पेशा खेती है, जबकि 27 विधायक ऐसे हैं, जिनका कृषि के साथ दूसरा पेशा भी है। इस तरह 107 विधायकों का पेशा परोक्ष व प्रत्यक्ष रूप से खेती है। मजे की बात यह है जिन विधायकों का पेशा खेती है, उनमें कई तो शहरी क्षेत्र में निवास करते हैं।
वसुंधरा-गहलोत ने खुद को बताया सोशल वर्कर
जिन दो विधायकों का पेशा राजनीति है उनमें एक नाम मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है जबकि दूसरा नाम पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का है। यह भी एक संयोग है इन दोनों ही नेताओं का राजनीति के साथ-साथ जो दूसरा पेशा दिया गया है वह भी एक जैसा ही है। राजनीति के साथ दोनों नेताओं ने खुद को सोशल वर्कर बताया है।
और ये भी शामिल
14वीं विधानसभा में चार पूर्व कर्मचारी या अधिकारी भी चुन कर आए। इनमें तीन जोधपुर संभाग से हैं जबकि एक जयपुर संभाग से।
दो विधायक बीमा अभिकर्ता रहे हैं।
एक विधायक का पेशा पत्रकारिता, एक ने मुख्य पुजारी का बताया है।
विधायकों के बाकी पेशे में व्यवसाय, होटल, उद्योग आदि भी है।
विधायकों में कुछ का पेशा वकालत, सीए, डाक्टर आदि भी है।
कुछ विधायकों ने अपना पेशा समाजसेवा भी बताया हुआ है।
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राजस्थान पत्रिका के 20 अक्टूबर के अंक में चुनावी पेज 'राजस्थान का रण' पर राजस्थान में प्रकाशित। 

वाया फुलेरा भी जयपुर से जुड़े श्रीगंगानगर तो होगी समय की बचत

श्रीगंगानगर. रेलवे चाहे तो श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ को जयपुर से बीकानेर के रास्ते के बजाय नए रूट से जोड़ सकता है। इस नए रूट से समय की बचत भी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि सीकर से रींगस के बीच ब्रॉडगेज का ट्रायल पूरा हो चुका है। अब रींगस से जयपुर के बीच 57 किलोमीटर का काम बाकी रहा है। इस तरह श्रीगंगानगर से रींगस तक ब्रॉडगेज रेल लाइन का काम पूरा हो चुका है। वर्तमान में श्रीगंगानगर से सादुलपुर के बीच रेलों का संचालन हो रहा है। 
बीकानेर से दिल्ली जाने वाली रेलगाडिय़ां वाया चूरू-सादुलपुर होकर चल रही हैं। सीकर से चूरू के बीच भी रेलों का संचालन होता है। इतना ही नहीं रींगस से फुलेरा के बीच भी संचालन हो रहा है। फिलहाल श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ के यात्रियों वास्ते जयपुर जाने के लिए एकमात्र, जो ट्रेन है वह वाया बीकानेर-नागौर होकर जाती है। इस मार्ग की दूरी करीब 680 किलोमीटर है। इधर, श्रीगंगानगर से रींगस की दूरी 441 किलोमीटर है। रींगस से फुलेरा 66 किमी है तथा फुलेरा से जयपुर 54 किलोमीटर है। इन सबको जोड़ दिया तो यह दूरी 561 किलोमीटर होती है, जोकि बीकानेर-नागौर वाले रूट से 119 किलोमीटर कम है।
जयपुर-श्रीगंगानगर के बीच चलने वाले इंटरसिटी की औसत स्पीड 56.55 किमी प्रति घंटा है और यह श्रीगंगानगर से जयपुर पहुंचने में बारह घंटे लेती है। नए रूट पर रेल इसी स्पीड से चले तो कम से कम दो से ढाई घंटे की बचत होगी। इतना ही नहीं भविष्य में रींगस व जयपुर के ट्रैक का काम पूरा होगा तो श्रीगंगानगर से जयपुर वाया सीकर-चूरू-सादुलपुर की दूरी 498 किलोमीटर रह जाएगी।
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राजस्थान.पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 19 अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित।