Thursday, November 10, 2011

औपचारिकता नहीं, कार्रवाई की जरूरत

टिप्पणी
बेशक यातायात नियमों की पालना करवाना  यातायात पुलिस के रोजमर्रा के कामों में शामिल है, लेकिन बिलासपुर में यातायात पुलिस का अभियान कब शुरू होता है तथा कब खत्म होता है,  पता ही नहीं चलता। तभी तो यातायात नियमों की जितनी धज्जियां बिलासपुर में उड़ती दिखाई देती हैं, शायद की कहीं दूसरी जगह दिखाई दे। शहर के किसी भी हिस्से में चले जाएं, सभी जगह कमोबेश एक जैसे ही हालात मिलेंगे। जो जैसे जी में आया वाहन चला रहा है लेकिन किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है। मतलब साफ है किसी में भी कानून का भय नहीं है। हो भी कैसे? यातायात पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई करने या यातायात नियमों की पालना करवाने की बजाय जबरिया वसूली करने के आरोप ज्यादा लगते हैं। लगातार होने वाली बड़ी दुर्घटनाओं से इन आरोपों को बल भी मिलता है। बुधवार सुबह हुआ हादसा भी इसी का नतीजा है। प्रतिबंधित इलाकों में भारी वाहनों का प्रवेश अब भी बिना किसी रोक टोक के बदस्तूर हो रहा है, जबकि पिछले माह 21 अक्टूबर को हुए सडक़ हादसे के बाद जिला प्रशासन ने सुरक्षा समिति की बैठक ब़ुलाई थी। इस बैठक में  भारी वाहनों के शहर से आवाजाही पर पूर्णतः प्रतिबंधित लगाकर इनको बार्इपास से बाहर निकालने का निर्णय लिया गया था। इस निर्णय की एक दिन भी पालना नहीं हुई। भले ही बचाव के लिए यातायात पुलिस के पास अपनी दलीलें हों, लेकिन शहर में जो कुछ हो रहा है,  वह यातायात पुलिस की उदासीनता का ही नतीजा है।
अगर यातायात पुलिस गंभीर होती तो शहर की सड़कों पर नाबालिग बच्चे बेखौफ दुपहिया दौड़ाते नजर नहीं आते। दुपहिया वाहनों पर तीन-तीन, चार-चार लोग बैठे दिखाई नहीं देते। यह पुलिस की उदासीनता एवं कर्तव्यविमुखता का ही परिणाम है कि वाहन चालक यातायात नियमों का सरेआम मखौल उड़ा रहे हैं। गति पर कोई नियंत्रण नहीं है। हेलमेट अनिवार्य करने की बात तो यातायात पुलिस के लिए दूर की कौड़ी है। यह  सही है कि यातायात नियमों की पालना करवाने से संबंधी अभियान की शुरुआत में जागरुकता विषयक कार्यक्रम करवाए जाते हैं। इसके बाद समझाइश दी जाती है और इन सब के बाद नियमों की कड़ाई से पालना करवाई जाती है। बिलासपुर की यातायात पुलिस  जागरुकता एवं समझाइश का काम तो जैसे-तैसे कर लेती है लेकिन कार्रवाई के नाम पर उसके हाथ हिचकिचा जाते हैं, जबकि मुख्य काम तो कार्रवाई का ही है। कार्रवाई में कड़ाई नहीं होगी तो फिर परिणाम भी आशा के अनुकूल नहीं आएंगे।
 बहरहाल, शहर में कई हादसे हो चुके हैं। इनकी फेहरिस्त लम्बी न हो तथा इन पर प्रभावी नियंत्रण हो, इसके लिए जरूरी है कि यातायात पुलिस अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी के साथ निभाएं। यातायात जागरुकता अभियान बाकायदा सुनियोजित एवं कारगर तरीके से चले। बिना किसी भेदभाव एवं राजनीतिक हस्तक्षेप के सभी दोषियों पर समान रूप से कार्रवाई हो। महज कागजी आंकड़ों को दुरुस्त करने के लिए चलाए जाने वाले अभियानों से किसी प्रकार की राहत की उम्मीद करना बेमानी है। क्योंकि इस प्रकार के कागजी अभियानों में कार्रवाई के नाम पर सिर्फ औपचारिकता ही निभाई जाती है।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 10 नवम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।