Sunday, August 28, 2011

न्यायिक जांच हो

टिप्पणी
बिलासपुर बीएसएनएल महाप्रबंधक कार्यालय में लगे अग्निशमन यंत्र लम्बे समय से शोपीस बने हुए हैं। इन यंत्रों को रिफिल करने की निर्धारित अवधि को गुजरे पांच साल से ज्यादा समय हो चुका है। कार्यालय भवन में लगे फायर अलार्म की हालत भी कमोबेश ऐसी ही है। सुरक्षा के लिहाज से कार्यालय भवन में लगाए गए अन्य उपकरण भी देखरेख के अभाव में धूल फांक रहे हैं। ऐसे में कार्यालय में अगर आगजनी जैसी कोई अनहोनी हो जाए तो सुरक्षा फिर रामभरोसे ही है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीएसएनएल अधिकारी-कर्मचारी जब खुद के कार्यालय या यूं कहें कि खुद की सुरक्षा के प्रति ही गंभीर नहीं है तो उस कंपनी की सेवा फिर कैसी होगी। उसके उपभोक्ता किस हाल में होंगे। इतना समय गुजरने के बाद  उपकरणों के संबंध में ध्यान दिलाने पर बीएसएसएल के आला अधिकारियों के बयान बेहद ही हास्यास्पद हैं। बड़े अधिकारी यंत्रों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करने की कह रहे हैं तो उनके अधीनस्थ अधिकारी को अभी तक पूरी जानकारी ही नहीं है। वे जानकारी जुटाकर यंत्रों का नवीनीकरण करवाने की बोल रही हैं।
खैर, यंत्रों की उपेक्षा तथा अधिकारियों के बयान से इतना तो तय है कि कार्यालय की सुरक्षा को लेकर कोई भी गंभीर नहीं हैं। गनीमत तो यह है कि अब तक कोई अनहोनी नहीं हुई। दबे स्वर में तो यह भी सुनने को मिल रहा है कि बीएसएनल के आला अधिकारियों एवं कर्मचारियों में समन्वय तक नहीं है। जाहिर है जब समन्वय ही नहीं होगा तो फिर कामकाज की गति क्या होगी, सोचा जा सकता है। तीन मंजिला बीएसएनएल भवन में कर्मचारी बिना मुंह खोले, जान हथेली पर रखकर अगर काम रहे हैं तो, इसके पीछे के अंकगणित को भी आसानी से समझा जा सकता है। जरूर कहीं न कहीं कोई दबाव या डर है, जो कर्मचारियों को मुंह खोलने से रोक रहा है।
बहरहाल, पांच साल से अधिक समय से सुरक्षा संबंधी उपकरणों की उपेक्षा या अनदेखी सरासर लापरवाही की श्रेणी में आती है। ऐसा हो नहीं सकता कि अधिकारियों एवं कर्मचारियों को इस मामले की जानकारी नहीं हो। जिनके जिम्मे  इन सुरक्षा उपकरणों की सारसंभाल की जिम्मेदारी है, वे पांच साल से क्या  कर रहे थे। उम्मीद की जानी चाहिए बीएसएनएल प्रबंधन इस लापरवाही को दूर करने के लिए आवश्यक एवं कारगर कदम उठाएगा। बस शर्त इतनी है कि मामला गंभीर है, लिहाजा इसकी जांच में लेटलतीफी नहीं होनी चाहिए। जांच भी ऐसी-वैसी नहीं बल्कि न्यायिक हो, तभी दूध का दूध और पानी का पानी होगा।

साभार-पत्रिका बिलासपुर के 28 अगस्त 11 के अंक में प्रकाशित