Monday, April 15, 2013

बिल, बयान और बवाल-10


बस यूं ही 

 
लगता है रुबाई पढ़कर आप भी उलझ गए हैं, क्योंकि विषय ही कुछ ऐसा था। बात अब निर्णायक एवं अंतिम दौर में है लिहाजा थोड़ी सी गुस्ताखी तो बनती है ना। वैसे भी आजकल इसी विषय पर लिख रहा हूं, इस कारण सपनों में भी आइडियाज मिलते रहते हैं। वैसे अपुन को सपने कम ही आते हैं, लेकिन आज दोपहर को अखबार पढ़ते-पढ़ते जरा सी आंख लगने की ही देर थी कि सपना शुरू हो गया। सपने में नजारा किसी कस्बे का था। अपुन को सपने में दो तीन दुकानों पर जबरदस्त भीड़ दिखाई दी। कस्बे में इतनी भीड़ देखकर अपुन चौंक गए। जिज्ञासावश पहली दुकान के पास गए तो वह किसी तथाकथित तांत्रिक की थी। वह ताबीज बनाने में तल्लीन था। भीड़ को धकियाते हुए अपुन किसी तरह उस तांत्रिक के पास पहुंच गए। वहां का नजारा देखकर अपुन भूल गए कि यह सपना है या हकीकत। अपुन तो बस हकीकत समझकर उस तांत्रिक से सवाल पूछने में जुट गए। चूंकि एक ही सवाल में कई सवाल पूछ लिए इसलिए तांत्रिक कुछ देर तो सकुचाया, फिर अपुन को ऊपर से नीचे देखकर बोला, आप थोड़ा बैठिए, सभी सवालों का जवाब मिलेगा। करीब आधा घंटे बाद तांत्रिक ने भीड़ से दस मिनट की अनुमति ली और मेरे से मुखातिब हुआ। चूंकि सवाल अपुन पहले ही पूछ चुके थी इसलिए तांत्रिक ने प्वाइंट टू प्वाइंट बोलना शुरू किया। वह बोला मैं पहले बुरी नजर से बचाने का ताबीज बनाता था लेकिन धंधा मंदा हो गया था। एक-एक ग्राहक के लिए दिन भर तरसना पड़ता था। कोई भूला भटका या ग्रामीण ही आ जाए तो गनीमत है वरना दिन भर मक्खी मारने के अलावा कोई चारा नहीं था। बिलकुल फटेहाल एवं तंगहाल हो गया था।
इसी बीच एक दिन चमत्कार हो गया। अचानक सुबह-सुबह दुकान पर भीड़ लग गई। मैं समझ नहीं पाया कि यह सब क्या हो गया। लोगों से पता चला कि वे सब नजर का ताबीज मांग रहे थे। मैं अंदर ही अंदर सकपकाया कि ताबीज का क्रेज रातोरात कैसे बढ़ गया। तत्काल कुछ परिचितों से फोन पर बात करके पता किया तो जानकारी मिली कि अब किसी को घूरना या ताकना भी अपराध की श्रेणी में आता है। मतलब वह बुरी नजर मानी जाएगी। तांत्रिक लगातार बताता जा रहा था और अपुन बड़े गौर से उसकी बातों को सुन रहे थे। वह फिर बोला कि भीड़ देखकर मेरा मन ललचा गया। मैं हाथ आए मौके को खोना नहीं चाहता है। मैं ताबीज बुरी नजर से बचाने का बनाता था, और भीड़ में शामिल लोग भी वही चाहते थे। अपना धंधा चल निकला। अपुन ने बीच में उसकी बात काटते हुए उससे पूछा कि लोग आपके ताबीज पर इतना विश्वास क्यों करने लगे। इस पर वह बोला मैंने यह प्रचारित करवा रखा है कि ताबीज पहनने वालों को कोई खतरा नहीं है। और अगर कोई बुरी नजर से देखेगा भी तो उसका शर्तिया अहित होगा वह भी निर्धारित समय सीमा में। अपुन ने फिर टोका, इससे क्या फर्क पड़ा। वह बोला दरअसल यह निर्धारित समय सीमा में अहित होने वाली बात ही लोगों को ज्यादा पंसद आ रही है। लोगों का कहना है कि किसी ने बुरी नजर से देखा तो पहले तो पुलिस के पास जाओ। वह तरह-तरह के सवाल इस उम्मीद में पूछेगी ताकि जवाबों पर चटखारे लगाए जा सके हैं। घूरने से ज्यादा पीड़ा तो कई तरह के अजीबोगरीब सवालों से ही हो जाती है। और किसी तरह मान-मनौव्वल से अपराध दर्ज भी कर लिया तो फैसला आने में वक्त लग जाता है। लोगों से जब फैसलों में देरी की बात सुनी तो मैंने अवसर भुनाया और संजय दत्त का उदाहरण बता दिया। बस लोगों के दिमाग में एकदम फिट बैठ गया। और अपनी दुकान चल निकली।
तथाकथित तांत्रिक से अपनी जिज्ञासा शांत कर अपुन भीड़ वाली दूसरी दुकान पर पहुंचा। यहां दूसरे पक्ष के लोगों की भीड़ लगी थी। यह दुकान सीसी कैमरों की थी। सब दुकानें नई-नई खुली थी। दुकानदार को बात करने की भी फुर्सत ही नहीं थी। अपुन ने एक सैल्समैन को पटाया और भीड़ से अलग एक तरफ ले जाकर पूछा कि यह सब अचानक कैसे हो गया। उसने पलटवार करते हुए अपुन से कहा कि क्यों मजे ले रहो हो, आपको सब पता है, वह घूरने वाला कानून बना है ना, बस उसी से हमारे को रोजगार मिल गया है। अपुन के बिना पूछ ही वह बोला नया कानून तो बन गया है। अब दुनिया में सभी तरह के लोग हैं। जरूरी तो नहीं सभी कानून का सम्मान करें- उसका पालन करें। बहुत से ऐसे भी हैं जो इसका दुरुपयोग भी करेंगे। कई निर्दोष भी चपेट में आ सकते हैं। बस यही डर और अपनी सुरक्षा के लिए लोग सीसी कैमरे खरीद रहे हैं। विशेषकर स्कूलों एवं कॉलेजों में, आंखों के चिकित्सकों के यहां। सरकारी व निजी दफ्तरों तथा विशेष एकल उद्बोधन वाले कार्यक्रमों के लिए सीसी कैमरों की भारी डिमांड है।
ताबीज एवं सीसी कैमरों की दुकान देखकर अपुन ने मन ही मन धारणा बना ली कि कानून चाहे कैसा भी लेकिन इससे कई लोगों को रोजगार तो मिला है। रोजगार के नए-नए अवसर सृजित हो रहे हैं। अपुन यह सोचते-सोचते हुए आगे बढ़ ही रहे थे कि दो तीन धूप के चश्मे बेचने वाले मिल गए। बेचारे संकट में फंसे थे। रो तो नहीं रहे थे लेकिन रोने से कम भी नहीं थे। दुकानों के आगे सन्नाटा पसरा था। अपुन ने जरा कुरेदा तो फूट पड़े बोले भाईसाहब गर्मी के सीजन को देखते हुए लाखों रुपए का चश्मे मंगवा लिए। वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की थी कि इस बार बारिश देर से आएगी। हमने सोचा कि धूप देर तक पड़ेगी तो धंधा भी अच्छा चलेगा। लोग काले चश्मे खरीदेंगे। अपुन उनकी बात फिर भी नहीं समझे। तो बोले, वो कानून बना है ना घूरने वाला। सारी गड़बड़ उसके बाद से ही शुरू हो गई। इक्का-दुक्का ग्राहक आते थे लेकिन अब काले चश्मों का विरोध शुरू हो गया। कुछ संगठन मांग कर रहे हैं कि गाडिय़ों पर जब काला शीशा प्रतिबंधित है तो फिर चश्मे का काला शीशा उचित नहीं है। सच में प्रतिबंधित लग गया तो हम बर्बाद हो जाएंगे। सड़क पर आ जाएंगे। अपुन उनकी पीड़ा सुन ही रहे थे कि अचानक शोर सुनकर आंख खुल गई। देखा तो बच्चे बैड पर उछलकूद कर रहे थे। बच्चों की मौज मस्ती में अपुन को अखबार के पन्ने बिखरे हुए दिखाई दिए। अचानक नजर एक कार्टून पर पड़ी। कार्टून में तीन महिलाएं पुलिस को शिकायत करती दिखाई गई थी। वे बोल रही थी। चश्मे के शीशे काले हैं। इसलिए पता नहीं चल रहा है कि घूर रहा है या देख रहा है। अपुन यकायक हड़बड़ा गए। जो सपने में देखा वह हकीकत में भी होने जा रहा है। और ऐसा हो गया तो फिर काले शीशे के चश्मों को भी इतिहास बनने में देर नहीं लगेगी। ऐसे में काले शीशे का चश्मा लगाने वाली वह सलाह भी बेमानी ही समझो।


 इतिश्री।