Saturday, October 13, 2012

जांच के नाम पर लीपापोती

प्रसंगवश 

अविभाजित दुर्ग जिले के सुदूर ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग की व्यवस्था बेहद ही लचर एवं बदहाल स्थिति में है। इन स्थानों पर विभाग की लापरवाही एवं कारगुजारियों के किस्से अक्सर उजागर होते रहते हैं। बालोद नेत्रकांड तथा इसके बाद डौंडीलोहारा में रिकॉर्ड नसबंदी ऑपरेशन के मामले अभी चर्चा में ही हैं कि कुछ इसी तरह का एक और प्रकरण सामने आया है। बेमेतरा जिले के अमोरा गांव में शिवनाथ नदी पर बने पुल के नीचे ग्रामीणों को दवाइयों का बड़ा जखीरा मिला। इस मामले का पर्दाफाश पानी से उठी दवा की गंध के कारण हुआ। ग्रामीणों ने गंध की वजह टटोली तो बोरों में भरे दवा के पैकेट दिखाई दिए। पानी में बहाए गए दवाओं के पैकेट पर जो जानकारी लिखी गई है, उसके मुताबिक यह दवा बाजार में बिक्री के लिए नहीं थी और यह अवधिपार भी नहीं है। इसको सन्‌ 2013 व 2014 तक उपयोग किया जा सकता था। पैकेट्‌स को देखते हुए इनको यहां डाले भी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। जाहिर
सी बात है कि जिम्मेदारों ने इस दवा को पात्र व्यक्तियों को वितरित करने के बजाय पानी में बहाना बेहतर समझा। खैर, इस तरह से नदी के पास दवा मिलना तो अपने में अजूबा है ही। दवा मिलने के बाद स्वास्थ्य विभाग की भूमिका उससे भी बड़ा अजूबा है। अधिकारियों का रवैया तो निहायत ही गैर -जिम्मेदाराना रहा। शुरुआत में तो उन्होंने दवा मिलने की बात को सिरे से ही नकार दिया। अधिकारियों के बयानों की बानगी भी ऐसी थी कि लोगों ने आश्चर्य से दांतों तले अंगुली दबा ली। सीएमएचओ एवं बीएमओ दोनों के ही बयान न केवल विरोधाभासी थे, बल्कि सच से भी कोसों दूर दिखाई दिए। सीएमएचओ ने नदी के पास मिली दवा को नष्ट करवाने की बात कही, तो बीएमओ तो उनसे चार कदम आगे निकले। उनका कहना था कि वहां ऐसा कुछ मिला ही नहीं है। इस तरह बिना सोचे समझे बयान देना तथा गलती स्वीकारने या जांच का आश्वासन देने के बजाय सरासर झूठ बोलना बेशर्मी की हद है। स्वास्थ्य जैसे संवदेनशील विषय पर लगातार लापरवाही उजागर हो रही है, लेकिन सरकारी एवं प्रशासनिक स्तर पर कोई हलचल दिखाई नहीं दे रही हैं। गंभीर एवं विचारनीय विषय तो यह है कि सरकार एवं उसके नुमाइंदे तो हमेशा की तरह इस मामले में भी नींद में गाफिल हैं। दवा मिलना तथा इसके बाद गलत बयानबाजी के बावजूद मामले को बेहद हल्के से लेना यह साबित कर रहा है कि सरकार को स्वास्थ्य से कोई सरोकार नहीं है। जब इस तरह से सरेआम सफेद झूठ बोलने वालों के हाथों में स्वास्थ्य सेवा की डोर हो तो सोचा जा सकता है कि लोग किस हाल में जी रहे हैं। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा से जुड़ी गफलतों को देखकर इतना तो तय है कि जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर गलत बयानबाजी करने वालों को शासन का कोई डर नहीं है। पीड़ितों को राहत देने तथा दोषियों पर कार्रवाई के नाम पर राज्य सरकार एवं उसके प्रतिनिधि महज मूकदर्शक की भूमिका ही निभा रहे हैं। सरकार की भूमिका से तो ऐसा लग भी रहा है कि यह सब उसके संरक्षण में ही चल रहा है। जैसे कि सरकार ने कुछ भी करने की अघोषित छूट दे रखी हो।
 
साभार - पत्रिका छत्तीसगढ़ के 13  अक्टूबर 12 के अंक में प्रकाशित।