Saturday, July 14, 2012

तबादले पर उठते सवाल

प्रसंगवश
 
आखिकार वही हुआ, जिसका अंदेशा था। जिला शिक्षा अधिकारी बीएल कुर्रे का तबादला हो गया। नई जिम्मेदारी के तहत उनको धमतरी डाइट का प्राचार्य बनाया गया है। वैसे कुर्रे के तबादले के कयास उसी दिन से लगने शुरू हो गए थे, जिस दिन उन्होंने भिलाई के दो बड़े स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की थी। यह ऐसी कार्रवाई थी,जो न केवल अनूठी थी बल्कि ऐतिहासिक भी रही। निजी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई कर बड़े पैमाने पर जुर्माना लगाने का छत्तीसगढ़ प्रदेश का संभवतः यह इकलौता एवं पहला मामला था। आमजन ने इस कार्रवाई का तहेदिल से स्वागत भी किया था। इस कार्रवाई के बाद अभिभावकों में यह उम्मीद जगी थी कि आखिकार उनकी पीड़ा को समझने वाला कोई अधिकारी तो है। तभी तो प्रदेश के बाकी जिलों में भी इसी तर्ज पर कार्रवाई की मांग उठने लगी थी। खैर, कुर्रे की इस कार्रवाई का भले ही अभिभावकों एवं आम लोगों ने स्वागत किया हो लेकिन नियमों का पालन न करने वाले तथा राजनीतिक पहुंच रखने वाले कतिपय शिक्षण संस्थानों की आंखों की किरकिरी भी वे उसी दिन से बन गए थे। उनको भय सताने लगा था कि अगर कुर्रे कुछ समय और रह गए तो अगला नम्बर कहीं उन्हीं का न जाए। कहा भी जा रहा है कि दो बड़े स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई से उत्साहित कुर्रे करीब दर्जन भर स्कूलों के खिलाफ तैयारी में थे, लेकिन इससे पहले उनका तबादला हो गया। कुर्रे के तबादले के पीछे तरह-तरह की चर्चाएं सुनने को मिल रही हैं लेकिन सबसे अहम कारण यही माना जा रहा है कि निजी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करना उनको भारी पड़ गया।
बहरहाल, अगर कुर्रे के तबादले के पीछे राजनीतिक कारण हैं तो यह किसी योग्य एवं ईमानदारी अधिकारी के लिए शुभ संकेत नहीं है। ऐसे माहौल एवं दबाव में भला कोई कैसे तटस्थ रहकर निष्पक्षता के साथ काम कर पाएगा। ईमानदारी के साथ काम करने की सजा अगर तबादला ही है तो फिर योग्य अधिकारियों एवं पारदर्शी काम की उम्मीद करना भी बेमानी है। कुर्रे के तबादले से तो इस बात को बल मिलता है कि राज्य सरकार भी गड़बड़ी करने वाले निजी स्कूलों के न केवल दबाव में है अपितु उनकी हां में हां भी मिला रही है। और अगर तबादला सामान्य प्रक्रिया है तो नए शिक्षा अधिकारी से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे कुर्रे के अधूरे कार्यों को अंजाम तक पहुंचाएंगे। 

साभार - पत्रिका छत्तीसगढ़ के 14 जुलाई 12  के अंक में प्रकाशित।