Friday, October 19, 2018

श्रीगंगानगर की हर विधानसभा सीट के नाम में छिपा है राज

श्रीगंगानगर. आम बोलचाल में अक्सर एक जुमला चलता है ‘नाम में क्या रखा है।’ लेकिन यहां आकर यह जुमला बेमानी हो जाता है। यहां नाम बहुत मायने रखता है। यहां न केवल नाम की प्रतिष्ठा है बल्कि नाम के आगे कई जगह आदरसूचक शब्द ‘श्री’ लगाने की परम्परा भी है। 
संभवत: यह सिर्फ प्रदेश ही नहीं वरन देश का इकलौता उदाहरण है। अनूठी खासियतों के धनी इस जिले का नाम है श्रीगंगानगर। श्रीगंगानगर जिला मुख्यालय सहित सभी विधानसभा क्षेत्रों के नाम के पीछे एक राज छिपा है। यह राज है उनके नाम का।
श्रीगंगानगर विधानसभा
नामकरण बीकानेर के पूर्व शासक गंगासिंह के नाम पर हुआ। पहले इसको रामनगर या रामू की ढाणी कहा जाता था। श्रीगंगानगर में नहर लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। नहर के साथ साथ श्रीगंगानगर जिले को रेल सेवा से जोडऩे में भी पूर्व शासक का ही योगदान रहा है। पूर्व शासक की याद में श्रीगंगानगर कलक्ट्रेट के पास उनकी अश्वारूढ़ प्रतिमा भी लगी है।
श्रीकरणपुर विधानसभा
भारत-पाक सीमा पर लगता विस क्षेत्र। मुख्यालय श्रीकरणपुर का नाम कभी रत्तीथेड़ी था। यह नाम 1922 में यहां आकर बसे दो परिवारों के मुखिया हाकमराम व मोहरीराम रस्सेवट ने दिया। बाद में महाराजा गंगासिंह के प्रयासों से 1927 में गंगनहर आने से यहां की कायापलट हुई। इस दौरान महाराजा गंगासिंह के पौत्र व सरदूल सिंह के पुत्र करणीसिंह के नाम पर श्रीकरणपुर की स्थापना हुई। इसी विधानसभा में कस्बे गजसिंहपुर का नाम बीकानेर रियासत के शासकों में एक शासक गजसिंह व पदमपुर का नाम राजा करण सिंह के पुत्र पदमसिंह के नाम पर रखा गया। पदमपुर का पुराना नाम बैरां था। केसरीसिंहपुर का पुराना नाम फरीदसर था। सन 1926-27 में जब क्षेत्र में नहर व रेल लाइन आई तब यहां रेलवे स्टेशन का नाम महाराजा गंगासिंह के पारिवारिक सदस्य केसरी सिंह के नाम से रखा गया।
सूरतगढ़ विधानसभा
वर्ष 1787 में सोढ़ल नाम से बसे इस क्षेत्र को बीकानेर के महाराजा सूरतसिंह ने नियंत्रण में लिया था। महाराजा सूरत सिंह ने सोढ़ल नगर से रियासती व्यवस्थाओं के संचालन के लिए वर्ष 1799 में एक बड़े किले का निर्माण करवाया। जिसे सूरतगढ़ का गढ़ कहा गया। इसी के नाम पर आगे चलकर शहर का नाम सूरतगढ़ पड़ा। बीकानेर रियासत की चार निजामतों (जिलों) में सूरतगढ़ भी जिला था। वर्ष 1884 से 64 साल तक यह जिला रहा।
सादुलशहर विधानसभा
कालान्तर में एक छोटा-सा गांव हुक्मपुरा था फिर मटीली बना। सन् 1927 में सादुलशहर को वाया कैनाल लूप रेलवे लाइन से जोड़ा गया। मटीली रेलवे स्टेशन की स्थापना महाराजा गंगा सिंह के छोटे पुत्र सार्दुल सिंह के नाम से हुई। इस मण्डी का नाम सादुलशहर बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह के पुत्र सार्दुल के नाम पर सादुलशहर रखा गया।
रायसिंहनगर विधानसभा
कस्बे का नाम बीकानेर के छठे महाराजा रायसिंह के नाम पर रायसिंहनगर रखा गया। कस्बे की स्थापना 1927-28 में बीकानेर रियासत के मुख्य अभियंता रिचर्डसन की देखरेख में हुई थी। गंगासिंह के शासन में नहरों पर बनी कोठियां आज भी उस समय की याद दिलाती है।
अनूपगढ़ विधानसभा
पुराना नाम चुघेर था। चुघेर और उसके आस पास का क्षेत्रों पर भाटियों का कब्जा था। सन 1677-78 में मुगल शासक औरंगजेब ने महाराजा अनूप सिंह को औरंगाबाद का शासक नियुक्त किया। अनूप सिंह की सेना ने भाटियों को हराकर गढ़ पर कब्जा कर लिया। अनूप सिंह ने गढ़ का निर्माण किया, जिसका नाम अनूपगढ़ रखा गया।
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राजस्थान पत्रिका के चुनावी पेज राजस्थान का रण पर आज 11अक्टूबर 18 के अंक में प्रकाशित।

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