Friday, October 19, 2018

यह रिश्ता कुछ खास है....

बस यूं.ही
कुछ रिश्ते खास होते हैं। एेसे रिश्ते मुलाकात के मोहताज भी नहीं होते। इन रिश्तों की बुनियाद विश्वास पर टिकी होती है। इन रिश्तों में जाति धर्म कहीं आड़े नहीं आते। हां कभी वक्त इजाजत देता है तो फिर रिश्ते बड़ी शिद्दत से निभते हुए महसूस किए जा सकते हैं। बीते सात दिनों में मैंने ऐसे ही एक रिश्ते को न केवल प्रत्यक्ष देखा है बल्कि महज दो मुलाकातों में लगाव व स्नेह को अनुभूत कर लगा जैसे यह कोई पूर्व जन्म का नाता है। दरअसल, पहली मुलाकात ने ही दूसरी मुलाकात का रास्ता खोला लेकिन दोनों मुलाकातों की परिस्थितियां एक जैसी थीं। अपनेपन को प्रदर्शित करने वाली यह मुलाकातें श्रीगंगानगर में ही हुई हैं। वह भी घर पर। मां पिछले पन्द्रह दिन से बीमार है, हालांकि इन दिनों तबीयत में थोड़ा सुधार हैं। उनकी तबीयत की सुनकर कुछ परिचित घर आए। इनमें पूर्व जनसंपर्क अधिकारी फरीद खानजी व उनकी धर्मपत्नी सईदा खान जी भी शामिल हैं। फरीद खान जी का जिक्र मैं एक बार पहले पिछले साल होली पर कर चुका हूं। उनकी जिंदादिली और उत्सवधर्मिता के बारे में तब विस्तार से लिखा था। उनसे परिचय इतना ही है कि डेढ़ दशक पूर्व जब श्रीगंगानगर था तब वो यहां बतौर जनसंपर्क अधिकारी कार्यरत थे। बाद में सेवानिवृत्त हुए और यही बस गए, वैसे बीकानेर के हैं। बीते ढाई साल के श्रीगंगानगर प्रवास में मेरा सिर्फ एक बार फरीद खान जी के घर जाना हुआ। हां बड़े वाला बेटा योगराज इनके घर रोज जाता है। वह फरीद खान जी की पुत्रवधु से ट्यूशन करता है।
मां की तबीयत की सुनकर दोनों मियां बीवी करीब सप्ताह भर पहले घर आए। बाहर चर्चा करने के बाद दोनों ने मां से मिलने की इच्छा जताई। दोनों मां के पास चले गए। फरीद खान जी की पत्नी सईदा खान जी मां के बिलकुल पास बैठ गई। मैं अंदर गया तो उनकी आंखों से आंसू टप-टप गिर रहे थे। मां का हाथ उन्होंने अपने हाथ में.थाम रखा था। यह सब देखकर मैं चौंका। उनका गला रुंध गया था। वो इतना ही बोल पाई कि यह तो बिलकुल मेरी मां जैसी लगती है। इधर, पीआरओ साहब का भी यही हाल था। अपनी पत्नी की तरफ इशारा.करके कहने लगे, इसने मां की खूब सेवा की है, बहुत सेवा की है। यह कहते-कहते पीआरओ साहब भी रोने लगे। उनकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बहने लगी। कहने लगे महेन्द्रजी, मेरी मां तो मैं जब पांच साल का था तभी चल बसी। आप खुशकिस्मत हो जो मां की सेवा का सौभाग्य मिल रहा है। काफी देर बाद दोनों मियां बीवी सहज हुए। मां भी इनको देखकर बेहद खुश थी। मां की बैठकर दोनों.से बातें करने और उनकी सुनने की इच्छा थी लेकिन शरीर साथ नहीं दे पाया, लिहाजा मां को बिस्तर पर लिटा दिया। 
आज शुक्रवार को दोपहर बाद फरीद खान जी की धर्मपत्नी ऑटो से घर आ गई। आज वो अकेली थीं। इधर मां भी आज कुछ अनमनी सी थी। दोनों दुबारा मिली तो ठीक वैसा ही नजारा आज फिर था। आज तो मां भी गमगीन थी, दोनों तरफ आंसू थे। मैं लेट कर उठा तो दोनों का यह अपनापन देखकर मुस्कुराए बिन नहीं रहा सका। वो देर तक मां के पास बैठी रही। हां आफिस निकलने से पहले मां और सईदा जी का एक फोटो खींचने के लिए निर्मल को कह दिया था। मैं आफिस के लिए निकला तब दिमाग में विचारों का द्वंद्व जारी था। आखिर यह कौनसा रिश्ता है, जो महज दो मुलाकात में इतना प्रगाढ हो गया। दोनों ने कभी एक दूसरे को देखा तक नहीं फिर भी इतना गहरा लगाव और जुड़ाव। यह मानवीयता, इंसानियत व भाईचारे जैसे शब्द इसी तरह के उदाहरणों से ही तो जिंदा हैं। मैं सोचते सोचते इतना गहराई में चला गया। इतना गहरा कि जहां जात, धर्म के नाम पर बांटने की बातें, सम्प्रदाय के नाम पर सियासत करने की बातें बेमानी नजर आई। वाकई आदमी का आदमी से प्यार का रिश्ता धर्म, मजहब, जाति, स्थान आदि की परिधियों से अलग है, अलहदा है, अनूठा है, प्यारा है, निश्छल है। गंगाजल की तरह पवित्र , बिलकुल स्वार्थहीन।यह रिश्ता कायम रहे... आमीन।

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