Friday, October 19, 2018

नहरी पानी की छीजत

 प्रसंगवश
हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर की आजीविका व अर्थव्यवस्था नहरी पानी पर ही निर्भर है। इन दो जिलों सहित प्रदेश के करीब दस जिलों में इंदिरा गांधी नहर का पानी लोगों के हलक तर करने के साथ सिंचाई के भी काम आता है। इस तथ्य के साथ एक कटु सत्य यह भी जुड़ा है कि हर सप्ताह या पखवाड़े में किसी न किसी हिस्से का किसान पानी की कमी से परेशान होकर सडक़ों पर उतरता है। नहरों में पानी कम होने के मुख्य कारण छीजत, चोरी व नहर कमजोर होने के कारण क्षमता के अनुसार पानी न ले पाना है। कई बार असमान वितरण के मामले भी सामने आए हैं, जब नहर के हैड वाले किसान बागबाग हो लेकिन आखिरी छोर यानी टेल वाले किसान पानी को तरसते रह गए। तमाम प्रयासों के बावजूद जल संसाधन विभाग पानी चोरी व छीजत पर अंकुश नहीं लगा पाया है। यही कारण है कि पानी चोरों के हौसले बुलंद हैं। श्रीगंगानगर शहर के बीचोबीच गुजरने वाले एक छोटी-सी माइनर से रोज पानी चोरी होता है। यह चोरी ऐसी जगह होती है जहां सारा प्रशासनिक अमला बैठता है। जिला मुख्यालय के ठीक पास साधुवाली में आए दिन पानी के लिए टैंकरों की कतार लगती है। इसकी जानकारी विभाग के अधिकारियों को नहीं हो, यह संभव नहीं।
इसे विभाग की उदासीनता कहें या शह लेकिन पानी चोरी करने वाले इसका बेजा फायदा उठाकर पात्र किसानों के हक पर सरेआम डाका डालते रहे हैं। यह पानी चोरी का ही परिणाम था कि पिछले दिनों गंगनहर,पंजाब में क्षतिग्रस्त हो गई। इससे नहर में करीब 80 फीट का कटाव आया। इससे काफी पानी व्यर्थ बह गया। बाद में किसानों ने मौका देखा तो वहां पानी चोरी के बहुत से मामले मिले। वैसे विभाग ने भी नहर टूटने का कारण पानी चोरी ही बताया था। किसान संगठनों के तात्कालिक विरोध के कारण जरूर कुछ दिशा-निर्देश जारी करने में तत्परता दिखाई जाती है लेकिन बाद में हालात वही ढाक के तीन पात हो जाते हैं। किसान संगठन समय-समय पर मांग करते रहे हैं कि पंजाब व राजस्थान के अधिकारी सामूहिक रूप से माह में दो या तीन बार संयुक्त गश्त करें। पानी चोरी पर मुकदमा दर्ज करें तो उनमें भय होगा। नहरों से जुड़ी विडम्बना यह है कि लाखों-करोड़ों रुपए नहरों के जीर्णोद्धार में खर्च होने के बावजूद उसका पूरा लाभ किसानों को नहीं मिलता।

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राजस्थान पत्रिका के 13 अक्टूबर 18 के अंक में राजस्थान के तमाम संस्करणों में.संपादकीय पेज पर प्रकाशित..

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