Friday, October 19, 2018

इक बंजारा गाए -51

फिर भी दावेदारी
चुनावी मौसम है और इसके लिए मैदान तैयार हो चुका है लेकिन अभी योद्धाओं के नाम तय होने बाकी हैं। हां, रण में शामिल होने के लिए संभावित योद्धाओं में जबरदस्त होड़ मची है। सभी अपने लाव-लश्कर के साथ दावा मजबूत करने में जुटे हैं। इन संभावित योद्धाओं में कुछ नाम तो चिर-परिचित हैं लेकिन कुछ नए नवेले तो कुछ अचानक से प्रकट हो गए हैं। राजनीतिक रूप से इन नामों का कद या पद भी नहीं है। हां, उनको इस बात की तसल्ली तो हो सकती है कि भले ही चुनाव में टिकट न मिले लेकिन तब तक चर्चाओं में नाम तो आ रहा है, वह भी क्या कम है।
परिचय से गुरेज
चुनाव में भाजपा के संभावित उम्मीदवार तय करने के लिए अभी रायशुमारी की गई थी। इसमें श्रीगंगानगर जिले की सभी छह विधानसभाओं से संभावित दावेदारों के नाम आए हैं। चर्चाओं में सुनने को आया है कि रायशुमारी के वक्त जिले के एक मौजूदा विधायक ने दावेदारी से खुद को अलग कर लिया। दावेदारी के लिए संभावितों से जब हाथ खड़े करवाए गए तो विधायक ने हाथ नहीं उठाया। बताते हैं जब परिचय की बारी आई तो विधायक ने वर्तमान पद के बजाय संगठन से जोडकऱ अतीत का परिचय दिया। इस तरह के परिचय के राजनीतिक गलियारों में अलग-अलग कयास लग रहे हैं।
पूछ परख नहीं
चुनाव मौसम में मतदाताओं की पूछ परख बढ़ती है। रुठों को मनाया जाता है। उनकी आवभगत व मान मनौव्वल की जाती है। कोई किसी कारणवश पार्टी से इधर-उधर चला जाता है तो उसकी घर वापसी के भी पूरे प्रयास किए जाते हैं। इन दिनों एक पुराने नेताजी भी चुनावी समर में कूदने की तैयारी करके बैठे हैं लेकिन पार्टी उनको पूछ नहीं रही है। नेताजी ध्यान खींचने का पूरा प्रयास कर रहे हैं लेकिन अभी पार्टी ने भाव नहीं दिया है। चुनाव के समय शायद पार्टी को नेताजी की याद आ जाए लेकिन फिलहाल तो दूरी बनी हुई है।
आयोजकों की मजबूरी
शहर में इन दिनों धार्मिक आयोजन खूब हो रहे हैं और लगातार हो रहे हैं। जाहिर सी बात है इन आयोजनों में अतिथि भी बनाए जाते हैं। वैसे अतिथि बनाने के पीछे आयोजकों का लालच कहीं न कहीं यह भी रहता है कि अतिथियों से किसी प्रकार की मदद मिल जाएगी। इस मदद की आस में आयोजकों को अतिथियों के नखरे भी उठाने पड़ते हैं। ऐसा करना उनकी मजबूरी भी है। यहां तक कि कई अतिथि समय सीमा का भी ख्याल नहीं रखते। और जब तक अतिथि नहीं आते आयोजक कार्यक्रम को रोके रखते हैं। आयोजक का धर्मसंकट भला दूर हो तो हो कैसे।
संहिता का असर
चुनाव की घोषणा होने के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है। घोषणा से पहले जो प्रचार व पोस्टर लगाने का जोर था वह थम गया। अब तो एकदम सन्नाटा सा पसरा हुआ है। अभी चुनाव मैदान के संभावित चेहरे सामने नहीं आए हैं लेकिन जो घोषणा होने से पहले दावेदारी जताकर प्रचार में जुटे थे अब चुपचाप प्रचार कर रहे हैं। होर्डिंग्स, बैनर, पोस्टर आदि भी गायब हैं लेकिन कारों के पीछे शीशों पर संभावित दावेदारों के नाम व फोटो के पोस्टर जरूर लगे हैं और खूब लगे हैं। इस कार वाले प्रचार पर फिलहाल संहिता का असर दिखाई नहंी दे रहा।
बयान से हलचल
चुनावी मौसम में बयानों का बड़ा महत्व है। पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष का बीकानेर में दौरा था। उस दौरान उनका दिया गया बयान फिलहाल नई-नई इंट्री मारने वालों के लिए एक बार परेशानी का सबब बन गया। उन्होंने कहा था पांच साल काम करने वालों को टिकट दी जाएगी। खैर चुनाव के समय टिकट मिलने न मिलने के पीछे बहुत सारे समीकरण काम करते हैं लेकिन फिलहाल बयान से सांसें थमी हुई है। विशेषकर श्रीगंगानगर में कांग्रेस के दामन थामने वाले नए नवेले नेताजी व रायसिहंगर में अपनी पार्टी छोड़ कर कांग्रेस राह पकडऩे वालों के समर्थकों में इस बयान से कुछ बैचेनी है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 18 अक्टूबर 18 को प्रकाशित...

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