Saturday, December 16, 2017

इक बंजारा गाए-11

🔺रेहडिय़ों का राज
शहर में वैसे तो रेहडिय़ां (हाथ ठेले) कई जगह खड़े होते हैं। दिन ढलने के साथ ही रेहड़ीवाले अपनी दुकानदारी समेटकर घर चले जाते हैं लेकिन इन दिनों शिव चौक व अग्रसेन चौक के पास तथा चहल चौक से आगे हनुमानगढ़ रोड पर देर रात कई रेहडिय़ां खड़ी रहती हैं। अधिकतर रेहडिय़ों पर आमलेट व नमकीन आदि की बिक्री होती है। कई बार तो पुलिस की गाड़ी भी इन रेहडिय़ों के पास से गुजर जाती है, लेकिन इतनी देर रात को बिक्री करने तथा उन पर आने वाले ग्राहकों के बारे में पड़ताल नहीं होती है। वैसे रेहड़ी खड़ी होने की मूल वजह वालों पर ही जब कोई कार्रवाई नहंी होती है तो इन पर कार्रवाई कैसे हो भला। देखा जाए तो श्रीगंगानगर जिले में हर जगह मंथली का शोर सुनाई देता है। देर रात रेहड़ी खड़े होने के पीछे भी कहीं कोई मंथली का चक्कर तो नहीं?
🔺सम्मान की चिंता
इसे मानवीय कमजोरी भी कहा जा सकता है, क्योंकि सम्मान की भूख पात्र व अपात्र सभी लोगों में होती है। कुछ करके सम्मान पाने की बात तो समझ में आती है, लेकिन बिना कोई काम किए या मुकाम हासिल किए ही सम्मान की घोषणा कर दी जाए तो कैसा लगेगा। जिले में कन्या भू्रण हत्या की रोकथाम व जनजागृति विषयक कार्यक्रमों के लिए हाल में नियुक्त किए लोगों ने अभी ठीक से प्रशिक्षण भी नहीं लिया था लेकिन विभाग प्रमुख ने बाकायदा प्रेस नोट भी जारी कर दिया कि सभी का सम्मान किया जाएगा। बाकायदा सम्मानित होने वालों की सूची भी जारी कर दी। लाडो बचेगी या नहीं, परिणाम आशानुकूल आएंगे या नहीं, यह तय नहीं है लेकिन सम्मान होगा, यह तय हो गया। सम्मान के लिए जुगाड़ करने या सिफारिश करवाने के उदाहरण तो कई मिल जाएंगे लेकिन बिना कुछ किए ही सम्मान की घोषणा अपने आप में अनूठी है।
🔺इनकार की वजह
श्रीगंगानगर जिले में डेंगू फैला हुआ है। यह बात जगजाहिर है। बाकायदा इसके आंकड़े भी दर्ज हैं। रोगियों के नाम भी नोट किए जा रहे हैं। रोज नए रोगी भी आ रहे हैं। जहां डेंगू के रोगी मिलते हैं, वहां फोगिंग, स्प्रे आदि का काम भी किया जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग डेंगू होने की बात को मान रहा है लेकिन डेंगू से कथित मौतों पर साफ इनकार कर रहा है। जिला प्रशासन व ऊपर जो रिपोर्ट भेजी जा रही है, इसमें बाकायदा हर स्तर पर यह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है कि एक भी मौत डेंगू से नहीं हुई। अब विभाग को कौन समझाए कि क्या रोग फैलना शर्मनाक नहीं है। वह भी हर साल। जितनी कवायद इन कथित मौतों से इनकार करने में की जा रही है, जितनी ऊर्जा यह आंकड़े जुटाने में खर्च हो रही है, उतनी अगर रोकथाम के लिए कर ली जाए तो इस तरह के रोग फैले ही नहीं।
🔺वाह रे इंजीनियरों
बड़े बुजुर्ग अक्सर यह कहते मिल जाएंगे कि आप पढ़े हो अभी गुणे नहीं हो। मतलब अभी केवल पढ़ाई की है, अनुभव की कमी है। वैसे हकीकत में पढ़ाई और अनुभव हैं भी तो अलग-अलग बातें। कई बार अनुभव के आगे पढ़ाई भी फैल हो जाती है। श्रीगंगानगर शहर के कई हिस्सों में इन दिनों नई पेजयल पाइप लाइन बिछाई जा रही है। संबंधित निर्माण कंपनी ने इसमें पानी के प्रेशर को चैक करने के लिए बाकायदा इंजीनियर नियुक्त किए हैं। यह नए नवेले इंजीनियर पाइप लाइन देखने तो आ गए लेकिन मर्ज का इलाज ठीक से नहीं कर पाए हैं। यूआईटी की बगल वाली गली में बिछाई गई पाइप लाइन का लीकेज इन इंजीनियरों को छठी का दूध याद दिला रहा है। वह एक लीकेज ठीक करते नहीं हैं, उससे पहले नया लीकेज हो जाता है। बहरहाल, अनुभवहीन इंजीनियरों की इस कार्यप्रणाली का खमियाजा आमजन भुगत रहे हैं।

राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 30 नवंबर 17 के अंक में प्रकाशित

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