Saturday, December 16, 2017

लाइलाज खिलवाड़!

टिप्पणी
बंदर के हाथ अगर उस्तरा लग जाए तो फिर क्या होगा, सहज ही अंदाजा लगाया सकता है। कुछ इसी तरह का अनुभव सीवरेज लाइन बिछाने के दौरान हो रहा है। हालात यह हैं कि लाइन बिछाने के नाम पर रोजाना नए-नए प्रयोग हो रहे हैं। एक तरह से शहर को प्रयोगशाला बना रखा है। ठेका कंपनी की ब्रांडिंग करती पीली टोपी और हाफ जैकेट पहने कंपनी के नुमाइंदों में कौन मजदूर है और कौन इंजीनियर, शहरवासी आज तक इस पहेली को नहीं सुलझा सके। 'नौसिखिए' कभी गली को दायीं तरफ से खोद देते हैं तो कभी बायीं तरफ से। कहीं किसी गली में गड्ढे लंबे समय से खुदे ही पड़े हैं तो कहीं मिट्टी के गुबार लोगों का जीना हराम कर रहे हैं। कहीं चैंबर नालियों के बीच आ गए हैं तो कहीं अचानक ही खुदाई शुरू कर दी जाती है। इन तमाम हालात को देखकर लगता है कि ये महत्वपूर्ण काम न तो किसी कार्य योजना के तहत हो रहा है और न ही कोई प्रशासनिक अधिकारी इसे देखने वाला है। कुछ दिन पहले प्रशासन ने खुद स्वीकार किया कि सीवरेज लाइन बिछा रही कंपनी के इंजीनियरों का अनुभव कम है। वे जानते हैं कि जोड़-तोड़ के काम का खामियाजा भविष्य में शहरवासी भुगतेंगे, इसके बावजूद प्रयोगों के नाम पर लोगों को हो रही परेशानी का स्थायी हल नहीं खोजा जा रहा। सीवरेज काम में जुटे अमले की बेतरतीब कार्यशैली को देखकर लगता है जैसे शहर में 'अनाडिय़ों का कुनबा' इकट्ठा हो गया हो।
अकेले मॉडल टाउन में काम काज की बानगी देखिए। जिस सड़क को सबसे पहले तोड़ा गया, वहां आज तक सड़क नहीं बनी, जबकि जिनको बाद में तोड़ा गया वहां सभी काम हो गए और सड़क भी बन गई। खुदाई की गई कई जगहों पर हाथो-हाथ कंकरीट बिछा दी गई, तो कहीं पर मिट्टी डाल दी गई। यह मिट्टी तीन माह से वाहनों की आवाजाही से उड़ती रही। कंपनी की मर्जी हुई तब पानी छिड़कवा दिया अन्यथा लोग धूल फांकते रहे। काम में अनाड़ीपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मॉडल टाउन की एक गली में पहले चैंबर बना दिए गए। बाद में नाली बनाई तो चैंबर नाली के बीच में आ गए। ऐसे में नाली निर्माण अधूरा छोड़ दिया गया है। अब चैंबर्स को उखाड़कर फिर से लगाया जाएगा तभी नाली का काम पूरा होगा। समूचे कामकाज में एक बात यह भी है कि इसे चरणबद्ध तरीके से होना बताया जा रहा है, लेकिन काम का प्रबंधन सही नहीं है। एक जगह काम पूरा होता नहीं है उससे पहले अगली गली में शुरू कर दिया जाता है।
बहरहाल, सीवरेज लाइन बिछाने वाली कंपनी मनमर्जी से काम कर रही है। मौजूदा हालात व परिस्थितियां देखते हुए उसकी मनमर्जी पर अंकुश लगाने की हिम्मत प्रशासन में भी दिखाई नहीं देती। प्रशासन के हाथ क्यों बंधे हैं, इसकी वजह जानने की भी जरूरत है। लोग परेशान हैं। धूल फांक रहे हैं। जन सेवकों ने जनता को उसके हाल पर छोड़ रखा है। 'अंधेर नगरी चौपट राजा' के हालात बने हुए हैं। व्यवस्था में लग रहा जंग समय रहते हटाना बेहद जरूरी है। काम कैसा भी हो, पूरा होते ही कंपनी को भुगतान कर दिया जाएगा। सरकारी टेंडरों में परम्परागत तय हिस्सा पाने के लिए स्थानीय कार्यकारी एजेंसी के अधिकारी भी चुप्पी साधे काम पूरा होने की राह देख रहे हैं। शांति बनाए रखने के लिए शुभचिंतकों को भी कंपनी की ओर से 'धन्यवाद' किया जाएगा, लेकिन इस 'खिलवाड़' के खिलाफ शहरवासियों को तो जागना चाहिए। समय रहते जख्म का इलाज हो जाए तो अच्छा, अन्यथा वह नासूर बन जाता है। काम व्यवस्था के हिसाब से हो और प्रबंधन प्रभावी तरीके से हो। प्रशासन को भी समय-समय पर निरीक्षण कर कंपनी की कार्यकुशलता को जांच लेना चाहिए।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 10 दिसंबर 17 के अंक में प्रकाशित

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