Saturday, December 16, 2017

अपने तो यह समझ नहीं आया

बस यूं ही
जीएसटी को लेकर समूचे देश में बवाल मचा था। अब भी गाहे-बगाहे कोई कोई न कोई मामला सामने आ ही जाता है। वैसे हकीकत यह है कि संबंधित विभाग भी इसके नियम-कायदों को समझ नहीं पाया है। सही बात तो यह है कि अपने को भी समझ नहीं आया है। दरअसल कल बाजार से वेटिंग मशीन (वजन तौलने की मशीन) खरीदने गया। पहली दुकान पर माथापच्ची करने के बाद दूसरी दुकान से आखिरकार मशीन खरीद ली। अब विस्तार से बताता हूं। श्रीगंगानगर के गोलबाजार पब्लिक पार्क स्थित खेल के सामान की दुकान है। सिल्वर स्पोटर्स। यहां भाव ताव कम ही होता है। मतलब फीक्स रेट है। लेना है तो लेओ अन्यथा दूसरी दुकान देखो वाला मामला है। मैंने यहा वेटिंग मशीन दिखाने को कहा। सेल्समैन मशीन लाया। प्रिंट रेट 25 सौ रुपए से अधिक थी। मैंने कीमत पूछी तो बताया कि 790 की पड़ेगी। मैंने कहा कोई गारंटी-वारंटी है क्या तो दुकानदार ने साफ तौर पर मना कर दिया। इस के बाद पैकेट से मशीन निकालकर देखी तो उसमें वारंटी कार्ड निकला। मैंने दुकानदार को कहा कि आप तो मना रहे थे, यह क्या है? तो उसने कहा कि सर्विस श्रीगंगानगर में तो होती नहीं है। मशीन को जालंधर भेजना होता है। भेजने का खर्चा ही इतना हो जाता है कि इससे अच्छा तो नई खरीद लो। मैंने फिर सवाल दागा फिर एेसी मशीन बेचते ही क्यों हो? बिना वारंटी वाली ही बेचा करो। इस पर उसने दलील दी कि हम प्रिंट रेट से कम ले रहे हैं, यह क्या कम है। आप दूसरे बाजार में जाआेगे तो आपको प्रिंट रेट ही देनी पड़ेगी। यहां मामला जमा नहीं तो मैं पड़ोस की दूसरी दुकान पर आ गया। इसका नाम है न्यू सिल्वर स्पोटर्स। यहां मशीन देखी तो उसने 550 रुपए बताए। प्रिंट रेट 1370 रुपए लिखे थे। आखिरकार मशीन ले ली गई। उसने बाकायदा कम्प्यूटर में डाटा फीड करके प्रिंटर से प्रिंट निकाला। उसने अपने हस्ताक्षर किए और बिल दे दिया। मैंने बिल पर देखा तो मशीन का मूल्य 466 रुपए दस पैसे लिखा था। इसके बाद नौ प्रतिशत सीजीएसटी के 41 रुपए 95 पैसे तथा नौ प्रतिशत ही एसजीएसटी के 41 रुपए 95 पैसे काटे गए थे। दोनों को मिलाकर 83 रुपए 90 पैसे हो गए। बस बिल देखने के बाद सवालों का सिलसिला शुरू हो गया। मैं समझ नहीं पाया कि यह कटौती कैसे व कौनसे मूल्य को आधार मानकर की गई? जीएसटी का नाम तो सुना पर यह सीजीएसटी व एसजीएसटी क्या हैं? प्रिंट रेट व वास्तविक मूल्य में अंतर क्यों व कैसे आ रहा है। टैक्स कितना कटता है? कैसे कटता है? प्रिंट रेट पर कटता है? या दुकानदार अपनी मर्जी से मूल्य मानकर अंदाजे से काटता है? क्या वाकई उसने एक नंबर में सामान बेचा? क्या कोई कर चोरी नहीं की? सवाल जेहन में आए तो फिर आते ही चले गए लेकिन जवाब नहीं मिला। यह सब इसलिए लिख रहा हूं ताकि कोई जानकार यह बताए कि यह कैसे होता है। इसका तरीका क्या है।

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