Wednesday, May 20, 2015

तंत्र पर तमाचा



टिप्पणी

बीकानेर के केन्द्रीय जेल में दो गुटों के बीच हुए खूनी संघर्ष में तीन कैदियों के मारे जाने के बाद न केवल बीकानेर बल्कि समूचे प्रदेश की जेलों में अब उस तरह की कवायद हो रही है, जो सुरक्षा व्यवस्था के लिए बेहद जरूरी है। आनन-फानन में जेलों में तलाशी अभियान चलाए जा रहे हैं। नए सिरे से दिशा-निर्देश जारी हो रहे हैं। गैंगवार के कारण तलाशे जा रहे हैं। गरमागरम बहसों के बीच कानून व्यवस्था की समीक्षा हो रही है। इन सब सवालों के मूल में घूम-फिर कर एक ही बात आती है, यह सब अब ही क्यों? तीन कैदियों की हत्या के बाद हरकतस्वरूप जितने हाथ-पांव अब चलाए जा रहे हैं, उतने पहले चला लिए जाते तो शायद ही इतना बड़ा घटनाक्रम होता। जितने जतन अब हो रहे हैं, वह सब ईमानदारी एवं गंभीरता के साथ समय-समय पर नियमित अंतराल पर कर लिए जाते तो संभवत: इस गैंगवार से बचा जा सकता था।
खैर, इतना कुछ होने के बाद भी पुलिस व प्रशासन की भूमिका तो 'कुल्हड़ में गुड़ फोडऩे ' जैसी रही। वारदात होने के सात-आठ घंटे बाद तक जेल की चारदीवारी में एकत्रित अधिकारियों में कोई भी 'सच' बताने का साहस दिखाने की सूरत में नहीं था। पता नहीं ऐसा कौनसा 'डर' था, जिसने अधिकारियों के मुंह पर ताले लगा दिए। सब एक दूसरे का हवाला देकर कुछ भी कहने या बताने से बचते रहे। जाहिर सी बात है कि इस तरह का रवैया और हालात भी तो कई सवालों को जन्म देते हैं। संदेह के बादलों को गहरा करते हैं। जितने सवाल इस घटनाक्रम को लेकर हैं, कमोबेश उतने ही इसके होने के बाद भी पैदा हुए हैं। मामले की जानकारी 'छिपाने' और 'दबाने' के पीछे भी पुलिस-प्रशासन की किसी सुनियोजित रणनीति से इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन इस तरह का व्यवहार चौंकाने वाला जरूर है।
बहरहाल, जेल में कैदियों के बीच हुई गैंगवार समूचे तंत्र पर तमाचा है। यह नए सिरे से सोचने को मजबूर भी करती है। इस गैंगवार ने साबित भी कर दिया है कि यह सब पूर्व में हुई घटनाओं को हल्के में लेने का ही परिणाम है। अब भी अगर बीकानेर के घटनाक्रम से कोई सबक नहीं लिया गया तो यकीन मानिए इस प्रकार की गैंगवार पर प्रभावी अंकुश नहीं लग सकता। दो चार 'जिम्मेदारों' पर गाज गिराने की बजाय सियासत और अपराध की 'जुगलबंदी ' के कारण तलाशे जाएं और उन पर प्रभावी रोक के प्रयास किए जाएं। सिस्टम को सुधारने के लिए 'सरकारी संरक्षण' और 'सियासत की सरपरस्ती' पर रोक भी बेहद जरूरी है, अन्यथा इस प्रकार के वाकये हमको डराते रहेंगे।

राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 26 जुलाई 14 के अंक में प्रकाशित  टिप्पणी...

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