Wednesday, May 20, 2015

उम्मीद की किरण

टिप्पणी.

विधि विवि के वे दोनों छात्र बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने बीकानेर की बदहाली के लिए प्रशासन को न्यायालय तक खींचा। फड़बाजार, कोटगेट, सांखला फाटक आदि स्थानों पर प्रशासनिक अमले की जो हलचल इन दिनों दिखाई दे रही है, उसके मूल में यह दोनों युवक ही हैं। दोनों छात्रों ने शहर के प्रमुख स्थानों की सफाई व अतिक्रमण को लेकर न्यायालय में जनहित याचिका दायर की थी। इस मामले में आखिरी फैसला अभी आना बाकी है लेकिन न्यायालय ने अब तक हुई सुनवाई में प्रशासन की कार्रवाई को उचित नहीं माना है।
वैसे भी युवा वर्ग कुछ करने की ठान ले तो फिर उनके हौसले के आगे मुश्किलें, हल होते देर नहीं लगती। उनकी सोच, जोश, जज्बा और जुनून को अगर सकारात्मक दिशा मिल जाए तो फिर परिणाम शर्तिया अनुकूल ही आते हैं। कुछ इसी जोश एवं जज्बे के साथ बीकानेर की बदहाल एवं बेपटरी हो चुकी व्यवस्था को पटरी पर लाने का बीड़ा इन दोनों उत्साही युवकों ने उठाया है। संख्या की दृष्टि से भले ही ये दो हों लेकिन इनकी सोच उम्मीद की किरण जगाती हैं। जड़ हो चुकी व्यवस्था को झकझोरने तथा सुषुप्त लोगों में चेतना जागृत करने को प्रेरित करती है। उनका यह प्रयास दिशा दिखाता है। धारा के विपरीत बहने का हौसला भी बंधाता है।
दरअसल, समूचा शहर मूलभूत समस्याओं को जूझ रहा है। कोई भी वर्ग इन समस्याओं से अछूता नहीं है। अव्यवस्थाओं के खिलाफ कहने को थोड़ा-बहुत विरोध कभी-कभार जरूर होता है लेकिन वह रस्मी और स्तही ज्यादा होता है। उसमें शहरहित कम स्वहित ज्यादा जुड़ा है। फिलवक्त निगम चुनाव के मद्देनजर कई समाजसेवी और जागरूक लोग अचानक व अकस्मात ही पैदा हो गए हैं। इनका विरोध कैसा है? क्यों व किसलिए है, कहने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे लोग तात्कालिक कार्रवाई करवा अपना स्वार्थ जरूर साथ लेते हैं, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो पाता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इन अव्यवस्थाओं के खिलाफ कभी संगठित रूप से आवाज उठी ही नहीं। कभी दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचा ही नहीं गया। समस्याओं के स्थायी निराकरण के बजाय फौरी तौर पर समाधान ढूंढा गया।
बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि लम्बे इंतजार और बड़ी मुश्किल से प्रज्वलित हुई उम्मीद की यह छोटी सी लौ कालांतर में जागरुकता की बड़ी ज्वाला बनेगी। ऐसा होना जरूरी भी है क्योंकि अब तक जनप्रतिनिधियों व प्रशासनिक अधिकारियों के आश्वासनों की रेवडिय़ों पर संतोष करते आए लोगों के हिस्से कुछ नहीं आया। अगर अब भी नहीं जागे तो फिर शहर के हालात और अधिक भयावह होंगे। हमको ऐसे युवाओं से न केवल सीख लेनी चाहिए बल्कि खुद के साथ-साथ अपने आसपास के युवाओं को भी शहरहित व समाज हित में काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। अगर शहर के लोग भी इन युवाओं की तरह जागरूक होकर आगे आएं तो निसंदेह शहर की सूरत एवं सीरत बदलते देर नहीं लगेगी।

राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 16 सितम्बर 14 के अंक में प्रकाशित .

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