Wednesday, May 20, 2015

व्यवहार के मायने


बस यूं ही

पिछले सप्ताह की ही तो बात है। कार्यालय के काम से तीन दिन के लिए जयपुर जाना हुआ। संयोग देखिए जाते वक्त भी राजस्थान रोडवेज की बस मिली और आते समय भी। दोनों ही बसें बीकानेर आगार की थी। जाते वक्त शाम को बस मिली बीकानेर से सांगानेर। परिचालक महोदय अपनी सीट पर अपने बैग के साथ पसरे हुए थे। कोई भूल से भी बैठता भी तो खड़ा कर देते गोया पूरी सीट पर उनका ही एकाधिकार हो। व्यवहार इतना रुखा जैसे घर से लड़ के आए हो या कोई जबरस्ती यह काम करवा रहा हो। पूरे रास्ते अकेले ही बैठे रहे। बैग को भी ऊपर नहीं रखा। रतनगढ़ से फतेहपुर के बीच एक युवक जरूर पता नहीं कैसे बैठ गया। बाकी किसी को बैठने नहीं दिया। सामान कोई बीच में रखता तो टोक देते। रींगस में बस रोककर चालक-परिचालक भोजन करने चले गए। आधा पौन घंटे तक सवारियां उनके आने का इंतजार करती रहीं। परिचालक महोदय कंजूस इतने कि गुटखा भी मांगकर खा रहे थे। आखिरकार फतेहपुर उतरे एक युवक ने उनको पूरा पाउच ही थमा दिया। खुल्ले पैसे किसी ने दे दिए ठीक वरना उन्होंने पलट कर वापस नहीं किए। मैंने भी पांच सौ का नोट थमाया तो टिकट के पीछे लिख दिया और कहा बाद में ले लेना। रींगस से जैसे ही बस रवाना हुई मैंने परिचालक के हाथ में खुल्ले पैसे देखे तो सोचा क्यों ना अब बकाया पैसे का हिसाब कर लिया जाए। मैंने टिकट थमाया तो ऐसे चौंक गए जैसे सारा हिसाब-किताब किए हुए बैठे हो। कुछ देर तो मेरे तरफ ताकते रहे फिर बोले, आपको वापस नहीं दिए क्या। मैंने ना में सिर हिलाया तो बुझे मन से 220 रुपए थमा दिए। बीकानेर से जयपुर का किराया 274 रुपए है लेकिन परिचालक महोदय ने छह रूपए वापस नहीं लौटाए। उनके हाथ में मैंने चिल्लर देखी लेकिन पता नहीं क्यों व क्या सोचकर उन्होंने देना उचित नहीं समझा। मैं चुपचाप उनको देखता रहा। चौमूं से आगे निकले तो उन्होंने अपने बैग से कम्बल निकाली और खाली बैग ऊपर ठूंस दिया। सीट पर पसर कर जल्द की खर्राटे मारने लगे। मैं अपने गंतव्य स्थान पर उतरने के लिए खड़ा हुआ लेकिन उन्होंने एक स्टैण्ड आगे ले जाकर बस रोकी।
दो दिन जयपुर में रुकने के बाद सुबह मैं चौमूं पुलिया आया तो स्टैण्ड पर जयपुर से बीकानेर बस खड़ी थी। मैंने परिचालक की तरफ सवालिया निगाहों से देखा तो वो मेरा आशय समझ गए। बोले, बीकानेर जाना है, मैंने स्वीकृति में सिर हिलाया तो बोले, जल्दी से टिकट ले लो। बस में जगह नहीं मिले तो आप मेरी सीट पर बैठ जाना। मैं बस में चढ़ा तो परिचालक की सीट पर दो जने बैठे थे। वो मेरे पीछे-पीछे आए और एक युवक को खड़ा करने लगे। इतने में आगे की सीट उनको खाली दिखाई दी तो बोले आप उस पर बैठ जाओ खाली पड़ी है। मैँ अपना बैग में बगल में रखकर बैठ गया। थोड़ी देर में वो आए और जो भी सामान नीचे रखा था उठा उठाकर ऊपर रैक में रखने लगे। यात्रियों से बिलकुल मित्रवत व्यवहार। अपनी सीट पर बैठे ही नहीं। कभी महिला को कभी किसी वृद्ध सीट देते रहे। चिल्लर को लेकर भी किसी से नहीं उलझे। उल्टे एक तो वृद्ध महिलाओं को एक रुपया ज्यादा ही दे दिया। मैं परिचालक की एक-एक गतिविधि बड़ी बारीकी से देख रहा था। एक ही आगार के कर्मचारियों में इतना परिवर्तन मेरे को सोचने पर मजबूर कर रहा था। परिचालक महोदय, केबिन के पास जुगाड़ के रुप में बैठे थे। मेरे से रहा नहीं गया। आखिरकार मैंने अपनी सीट बदली और थोड़ा उनके पास गया। राम-रमी के करने के बाद मैंने उनसे परिचय पूछा तो बोले मेरा नाम शिवकरण डेलू है। मैं बिश्नोई हूं। निवास तो बोले नोखा से आगे गांव है फिलहाल बीकानेर में ठिकाना है। परिचय के बाद बातों का सिलसिला चल निकला। चूूंकि मैं उनके व्यवहार से प्रभावित था। उन्होंने बताना शुरू किया तो मैं चौंक गया। बोले। एक बार हृदयाघात हो चुका है। उच्च रक्तचाप से पीडि़त हूं। दो बार आंखों का आपरेशन हो चुका है। डिस्क की समस्या भी है सात माह बिस्तर पर रहा। इतनी सारी बीमारियां और फिर भी सीट नहीं तो बोले.. यह तो ऊपर वाले का आशीर्वाद है। पता नहीं कब मंैने किसी का बुरा किया तब ऐसा हुआ। भगवान से कोई शिकायत नहीं वह तो अच्छा ही करता है।
जीवन के प्रति इतना सकारात्मक दर्शन कम ही लोगों में दिखाई देता है। बातों ही बातों में बात आगे बढ़ी तो बोले जीव रक्षा समिति से भी जुड़ा हूं। सामाजिक काम कर लेता हूं जब जब भी फुर्सत मिलती है। गुटखा-बीडी-सिगरेट से बचपन से दूरी है। अब तक करीब 200 लोगों का गुटखा छुड़ा चुका हूं।
हमारे वार्तालाप के दौरान एक सवारी ने सीट पर उल्टी कर दी। वहां बैठे यात्री खड़े होकर इधर-उधर बैठ गए। शिवकरण उठे और जयपुर-बीकानेर लिखी लोहे की प्लेट निकाली। बस रुकवाकर उतरे और दो बार मिट्टी लाकर सीट के नीचे डाली। बस फिर चल पड़ी। बावन साल की उम्र में युवाओं जैसी फुर्ती और व्यवहार का तो कोई जवाब नहीं। राजस्थान रोडवेज की बस में तीन दिन में दो तरह के अनुभव देखकर मैं चकित था। सोच रहा था, शिवकरण जैसे लोग सब जगह हो जाएं तो संभव है हमारी दूसरों पर निर्भरता कम हो जाए। धन्य हैं ऐसे लोग जो मानव सेवा को सर्वोपरि रखते हंैं। वास्तव में मैं बहुत प्रभावित हुआ शिवकरण जी से। भगवान उनको स्वस्थ्य रखे और लम्बी आयु दे।

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