Wednesday, May 20, 2015

शुरुआत तो हो


टिप्पणी

बीकानेर के लोगों ने जिस भरोसे एवं उम्मीद के साथ निकाय चुनाव में बहुमत के साथ भाजपा को जिताया तो लगा कि अच्छे दिन आने वाले हैं। इसकी एक और वजह यह भी थी कि निकाय से लेकर प्रदेश एवं देश में एक ही दल की सरकार होना। खैर, निगम में सत्ता एवं चेहरा बदलने से भले ही संबंधित पार्टी व उसके समर्थक प्रफुल्लित हों लेकिन आमजन को शहर की व्यवस्था में अभी तक किसी तरह का कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा है। तभी तो निगम की सरकार बनने के करीब एक माह बाद शहरवासियों का भरोसा कुछ डगमगाने सा लगा है। शहर के हालात भी कमोबेश वैसे ही हैं, जैसे पिछली सरकार में थे। व्यवस्था सावन सूखा न भादो हरा वाले ढर्रे पर ही चलती प्रतीत हो रही है। और तो और नए महापौर ने कार्यभार ग्रहण करते ही कुछ प्राथमिकताएं बताई थीं। उनकी प्राथमिकताओं में वैसे तो कोई लम्बा चौड़ा विषय नहीं था लेकिन प्रमुख रूप से एक माह तक शहर में सफाई अभियान चलाने, आवारा पशुओं के लिए शहर से बाहर व्यवस्था करने, यातायात व्यवस्था में सुधार, सूरसागर एवं गंगाशहर में पानी भराव की समस्या से निजात तथा फड़ बाजार में सीवरेज समस्या का निराकरण आदि शामिल थे, लेकिन इन समस्याओं को दूर करने के लिए अभी तक कोई हलचल होती दिखाई नहीं दे रही अलबत्ता स्वागत सत्कार व अभिनंदन का दौर चरम पर जरूर है। इन सब के बीच कई पार्षदों ने साधारण सभा की बैठक बुलाने की मांग भी कर डाली है। काबिलगौर है कि करीब साल भर से यह बैठक नहीं हो पाई है। इस कारण शहर के विकास से जुड़े मुद्दों पर चर्चा ही नहीं हो पा रही है। इतना ही नहीं मंगलवार को तो कुछ पार्षदों ने शहरहित से जुड़े मुद्दों को लेकर महापौर का घेराव तक कर डाला। पार्षदों की पीड़ा थी कि उनके वार्ड के लोग उनको काम को लेकर टोक रहे हैं। वैसे पार्षदों ने जो बताया वह देखा जाए तो गलत भी नहीं है। काम न होने के कारण लोग अब जनप्रतिनिधियों को उलाहने देने लगे हैं।
बहरहाल, पांच साल के कार्यकाल में एक माह का समय कोई अहमियत नहीं रखता है लेकिन इससे अंदाजा तो ही जाता है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं। अक्सर देखा गया है कि नवनियुक्त अधिकारी हो या नवनिर्वाचित प्रतिनिधि शहरवासी बिना किसी उल्लेखनीय उपलब्धि के उनका अभिनंदन एवं स्वागत करने को लालायित रहते हैं। कितना अच्छा हो जनप्रतिधि पहले शहर के लिए कुछ करके दिखाएं। बाद में जनता भले ही उनका अभिनंदन करे। निगम में सतारूढ़ पार्टी व उसके मुखिया को इस दिशा में सोचना चाहिए। अभी भी देर नहीं हुई विकास से जुड़े कामों की शुरुआत तो हो ही सकती है। बड़े नहीं तो कम से कम छोटे स्तर पर ही हो, लेकिन शुरुआत जरूरी है।

राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 31 दिसम्बर 14 के अंक में प्रकाशित

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