Wednesday, May 20, 2015

मंत्रीजी का कुत्ता

पहली लघु कथा
वो बिलकुल तनाव में थे। झुर्रियां होने के बावजूद उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी। पिछले 15 दिन से उनके दिन का चैन एवं रातों की नींद उड़ी हुई थी। वजह थी वह मोटरसाइकिल, जो चोरी हो गई। बैंक से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने यह मोटरसाइकिल खरीदी थी। पूरे एक सप्ताह तक चक्कर लगवाने के बाद पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली लेकिन मोटरसाइकिल का कोई सुराग नहीं लगा। वो बार-बार पुलिस थाने इस उम्मीद से जाते कि शायद कोई खुशखबर मिल जाए लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगती। एक दिन तो पुलिसवाले नेझिड़क भी दिया। कहने लगा, रोजाना आने की जरूरत नहीं है, जब मिलेगी तो आपको फोन पर सूचित कर देंगे। वह मन मसोस कर रह गया। जिंदगी भर की कमाई से जो पैसा शेष बचा था, उसी तो बेटे के लिए मोटरसाइकिल खरीदी थी। थक हारकर उन्होंने सोचा क्यों ना अखबार में यह खबर दे दी जाए। इस उम्मीद के साथ कि खबर पढ़कर हो सकता है कोई मोटरसाइकिल की जानकारी दे दे। आखिरकार हिम्मत जुटाकर वह बेटे के साथ अखबार के दफ्तर पहुंचा। चेहरे पर चिंता के साथ आग्रह के कुछ भाव थे। पत्रकार ने जब उनसे आने की वजह पूछी तो उन्होंने एक प्रार्थना पत्र एवं पुलिस एफआईआर की कॉपी टेबल पर रख दी। पत्रकार ने पढऩे के बाद पूछा.. बताइए क्या करना है?। सज्जन बोले, पन्द्रह दिन हो गए मोटरसाइकिल खोए हुए कोई सुराग नहीं मिल रहा है। इस उम्मीद से आया हूं कि आपकी खबर से शायद काम बन जाए। पत्रकार थोड़ा मुस्कुराया फिर बोला, आप भी बड़े आशावान हैं, जब पुलिस ही नहीं तलाश पाई तो खबर से कैसे पता चलेगा। अचानक वो शख्स कुछ आवेश में आए और कहने लगे, भाईसाहब आपकी कलम में ही ताकत है, आप कुछ लिखेंगे, तभी यह पुलिसवाले कुछ हरकत में आएंगे। इनके लिए मोटरसाइकिल तलाशना कोई मुश्किल काम नहीं है। जब यह मंत्रीजी का कुत्ता तलाशने के लिए दिनरात एक कर सकते हैं तो फिर हमारे लिए क्यों नहीं? पत्रकार निरुतर था और वो सज्जन अपना प्रार्थना पत्र टेबल पर छोड़कर जा चुके थे।

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