Sunday, November 27, 2011

फिर जिंदा हुआ शौक...


कॉलेज लाइफ में मुझे शेरो-शायरी का शौक खूब रहा है। हालत यह थी कि बाहर कहीं पर भी जाता तो रास्ते में पढ़ने के लिए बुक स्टॉल से शेरो-शायरी की किताबें ही खरीदता। इसके अलावा समाचार-पत्रों में प्रकाशित गजलों एवं रुबाइयों की कतरन काट कर सहेज कर रख लेता। इन्हीं कतरनों को याद कर अपने सहपाठियों को सुना दिया करता और बदले में उनकी वाहवाही बटोर लेता। मेरे इसी शौक के चलते मुझे कॉलेज में सभी शायर कहने लगे थे। बीए फाइनल ईयर के छात्रों को जब विदाई दी जा रही थी तो प्रत्येक छात्र को एक टाइटल दिया गया था। मुझे भी कभी-कभी फिल्म के चर्चित गीत, मैं पल दो पल का शायर हूं... का टाइटल दिया गया। कॉलेज छूटने के साथ ही शेरो-शायरी का शौक धीरे-धीरे कम होता है। क्योंकि डिग्री हासिल करने के बाद नौकरी की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया। करीब तीन साल मशक्कत करने के बाद भी जब कहीं सफलता नहीं मिली तो पत्रकारिता में भाग्य आजमाया। किस्मत से पत्रकारिता में प्रवेश की परीक्षा में पास हो गया। इतना ही नहीं परीक्षा के बाद लिए गए दोनों साक्षात्कार में सफलता हाथ लग गई। इसके बाद मेरा पत्रकारिता के क्षेत्र में आना तय हो गया। नया-नया काम था, इसलिए सीखने का जुनून कुछ ज्यादा ही था। रोजाना 15-16 घंटे तो काम करता ही। कभी-कभी तो 18-18, 20-20 घंटे भी काम किया। इस प्रकार पत्रकारिता में आने के बाद शेरो-शायरी का शौक लगभग छूट गया। करीब पांच साल बाद होली पर पत्रकाार साथियों को टाइटल देने का ख्याल आया, फिर क्या था, सभी पर तुकबंदी कर चार-चार लाइन लिख डाली। इसके बाद तो यह एक तरह की परम्परा सी बन गई। हर होली पर यही कहानी दोहराई जाने लगी। बाद में स्थानांतरण दूसरी जगह होने के कारण इस काम पर फिर विराम लग गया।
अभी दीपावली पर पत्नी एवं बच्चों के साथ गांव गया था। मां एवं पापा ने बताया कि आंखों से धुंधला दिखाई देता है। इस पर मैंने दोनों का नेत्र विशेषज्ञ के यहां चैकअप कराया। चिकित्सक ने बताया कि दोनों की आंखों का ऑपरेशन करना जरूरी है। अब धर्मसंकट खड़ा हो गया क्या किया जाए। आखिरकार धर्मपत्नी ने हिम्मत करके कहा कि वह एक माह के लिए गांव ही रुक जाएगी। मैंने भी उसके निर्णय पर हां भरकर मोहर लगा दी। अब मामला बच्चों की पढ़ाई पर अटका था कि आखिर एक माह तक बच्चे क्या करेंगे। इस पर धर्मपत्नी ने ही सुझाव दिया कि बच्चे अभी छोटी कक्षाओं में हैं, एक माह में कोई बड़ा नुकसान नहीं होगा। मैं धर्मपत्नी की बात मानकर ड्‌यूटी पर अकेला ही चला आया। एक नवम्बर को घर से रवाना हुआ तथा दो नवम्बर को गंतव्य पर पहुंच गया। पहले ही दिन मैंने धर्मपत्नी को तुकबंदी करके चार लाइन की रुबाई लिखी। दूसरे दिन उसने रुबाई की प्रशंसा कर दी। फिर क्या था, बड़ाई सुनकर अंदर का शायर फिर जाग उठा और निर्णय किया कि हर रात को एक रुबाई बनाकर मोबाइल पर कम्पोज कर धर्मपत्नी को मैसेज करूंगा। यह सिलसिला चल पड़ा। दिन-प्रतिदिन तुकबंदी में सुधार आने लगा। पति-पत्नी के बीच बातें बेहद गोपनीय होती हैं लेकिन मैं इतनी अंतरंगता से भी बातें नहीं करता कि किसी को बताने में संकोच हो। तभी तो धर्मपत्नी को लिखी गई वे तमाम रुबाइयां मैं ब्लॉग के माध्यम से आप सभी से साझा कर रहा हूं। मेरा यह प्रयास आपको कैसा लगा, मुझे आपके कीमती सुझावों एवं प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।  हालांकि मेरा गांव पहुंचना दो दिसम्बर को प्रस्तावित है। मैं यहां से एक दिसम्बर को रवाना होऊंगा। मतलब साफ है दो नवम्बर से शुरू हुए सिलसिले पर एक दिसम्बर को विराम लग जाएगा, हालांकि धर्मपत्नी ने यह काम जारी रखने का सुझाव दिया है। खैर, अब तक लिखी गई सारी रुबाइयां सार्वजनिक कर रहा हूं।

क्रमश.........

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