Friday, November 25, 2011

स्टेशन ही नहीं रेल में भी हो कार्रवाई

टिप्पणी
अधिकारियों के सामने कर्मचारियों का काम करने का तरीका व रवैया कैसे बदलता है, इसका ताजा उदाहरण बिलासपुर रेलवे स्टेशन है। बीते तीन दिन में यहां दो घटनाएं हुईं हैं, जिनको आरपीएफ के जवानों ने रेलवे अधिकारियों की मौजूदगी में अंजाम दिया। मंगलवार को रेलवे स्टेशन पर दूध बिखेरा गया, वहीं गुरुवार को लोकल ट्रेन में गुटखा बेचने के आरोप में एक युवक को पिटाई कर दी गई। दोनों ही  घटनाओं के बाद रेलवे का स्पष्टीकरण भी आया। ऐसे में सवाल उठता है कि जब कार्रवाई वैध है तो फिर सफाई देने की जरूरत ही क्या है। दरअसल, जिन कर्मचारियों ने 'दबंगई' दिखाते हुए इन कार्रवाइयों को अंजाम दिया वे अधिकारियों को दिखाना चाह रहे थे कि वाकई वे काम करते हैं और जरा सी गफलत भी उनको बर्दाश्त नहीं होती। वे अपना काम ईमानदारी से साथ अंजाम देते हैं, जबकि हकीकत इससे विपरीत है। अगर आरपीएफ के जवान तत्परता एवं ईमानदारी से काम करते तो न तो इस प्रकार के निर्णय लेने की जरूरत पड़ती और ना ही व्यवस्था में खलल डालने वाली घटनाएं दरपेश आती। युवक से मारपीट के बाद आरपीएफ थाना प्रभारी की ओर से दिया गया बयान ही सारी कहानी बयां कर देता है। आरपीएफ थाना प्रभारी को कौन बताए कि प्रतिबंधित चीजें विक्रय करना न केवल रेलवे परिसर बल्कि रेल के डिब्बों में  भी प्रतिबंधित है। बिलासपुर से किसी भी दिशा में जाने वाली ट्रेन में बैठ जाएं आपको डिब्बों में गुटखे बेचने वाले मिल ही जाएंगे। भिखारियों एवं खाद्य सामग्री बेचने वालों की तो बात ही छोड़िए। एक के बाद एक की लाइन लगी रहती है। बेचारे यात्रियों के इनकी आवाज सुन-सुनकर कान पक जाते हैं।
क्या यह सब वैध है? लेकिन आरपीएफ के जवान उनको पकड़ना तो दूर रोकते या टोकते भी नहीं है। डिब्बों के अंदर ऊंची आवाज लगाकर गुटखा बेचना या भीख मांगना क्या व्यवस्था में व्यवधान नहीं है? लेकिन इनकी आवाज आरपीएफ के जवानों को सुनाई नहीं देती है। सुनता सब है, कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं होता। वे केवल अधिकारियों के सामने ही इस प्रकार की कार्रवाई कर यह साबित करना चाहते हैं कि वास्तव में वे अपनी ड्‌यूटी के प्रति सजग हैं। आरोप तो यहां तक लगते हैं कि यह काम आरपीएफ जवानों के संरक्षण में ही होता है। सुविधा शुल्क लेकर वे अपनी आंखें मूंद लेते हैं। 
बहरहाल, किसी का दूध बिखरने से या गुटखे बेचने से रोकने से व्यवस्था नहीं सुधरने वाली। जब तक आरपीएफ के जवान मुस्तैदी एवं ईमानदारी के साथ अपनी ड्‌यूटी नहीं करेंगे तब तक यात्रियों का रेलवे में आरामदायक एवं सुरक्षित सफर का सपना  बेमानी है। आजकल तो रेल में रात को सोते हुए यात्रियों का सामान भी गायब होने लगा है। आरपीएफ के जवानों की कार्यप्रणाली जानने के लिए अचानक किसी ट्रेन का निरीक्षण किया जा सकता है। दिन या रात में किन्ही दो स्टेशनों के बीच यात्रा भी की जा सकती है। सच सामने आते देर नहीं लगेगी। उम्मीद की जानी चाहिए रेलवे अधिकारी इस दिशा में कोई कदम उठाएंगे ताकि यात्री आरामदायक सफर निश्चिंत होकर कर सकें।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 25 नवम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।

2 comments:

  1. ........aur yatriyon ko heejre bhi kaafi pareshan karte hai...aur ashlilta bhi karte hai......

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  2. बिलकुल सही फरमाया आपने भंवर सा।

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