Tuesday, May 22, 2018

हार के बहाने

बस यूं ही
जैसा कि मैंने कहा था कि शाम होते-होते सन्नाटा टूटेगा। पस्त पार्टी की आईटी विंग हार को सम्मानजनक व खूबसूरत मोड़ देने के लिए कोई न कोई जुमले जरूर लाएगी। शाम होते-होते एेसा हो भी गया। पोस्ट आई कि 'यह कनार्टक का दुर्भाग्य है। फस्र्ट डिवीजन विपक्ष में बैठेगा जबकि थर्ड डिवीजन सरकार चलाएगा। इसके नीचे लिखा है , कांग्रेस को अब लोकतंत्र खतरे में नजर नहीं आएगा।' खैर यह तो बानगी भर है। अभी तो हार के गम को कम करने को कई जुमले ईजाद होंगे। कई उदाहरण दिए जाएंगे तो कई तुलनाएं भी होने लगेंगी। कुछ अति उत्साही भक्तों ने तो येदियुरप्पा की तुलना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से करने में भी गुरेज नहीं किया। फ्लोर टेस्ट में संभावित हार देखते हुए येदि को वाजपेयी की तरह प्रचारित करना भी संभवत: पहले से तय हो चुका था। तभी तो वैसा ही भावुकता भरा भाषण और सहानुभूति की लहर पर सवार.होकर त्यागपत्र। प्रयास पूरा था कि दो दिन की नौटंकी की इतिश्री पर भरपूर सहानुभूति बटोरी जाए। हालांकि येद्दि व वाजपेयी में तुलना या समानता केवल इस की बात की जरूर हो सकती है कि दोनों भाजपा के हैं, बाकी किसी भी स्तर पर येदि, वाजपेयी के समकक्ष नहीं हैं। कद, पद, योग्यता, व्यक्तित्व, खासियत के मामले में येद्दि ही क्या वर्तमान दौर के किसी भी नेता में अटल जी का अक्स नजर नहीं आता। अटल जी के साथ तुलना करना एक तरह से हार के गम को कम करने का नायाब तरीका ही है।
खैर, कर्नाटक के सियासी ड्रामे पर समूचे देश की नजर लगी थी। उत्सुकता इस बात की थी कि इस राजनीतिक नौटंकी का समापन कैसे होगा। भक्तों को इस बात का अंदेशा कतई नहीं था कि येद्दि की विदाई इस अंदाज में होगी। वैसे राज्यपाल के भाजपा को मौका देने के फैसले को लेकर कांग्रेस ने आपत्ति भी जताई। इतना ही नहीं कांग्रेस ने कर्नाटक फार्मूले की तर्ज पर बिहार, गोवा, मणिपुर व मेघालय में सरकार बनाने का मौका भी मांगा। कांग्रेस का एेसा करना गलत भी नहीं था, क्योंकि बिहार को छोड़कर तीन राज्यों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन भाजपा ने दूसरे दलों से गठबंधन कर कांग्रेस को सत्ता से पदच्युत कर दिया। तीन चार बार भाजपा की रणनीति से पिटी कांग्रेस ने भी इस बार भाजपा को भाजपा के ही अंदाज में जवाब दिया। उसने जेडीएस को आगे कर दिया। लेकिन इस बार राज्यपाल ने पूर्व के फैसलों से इतर सबसे बड़े दल को न्यौतने की परंपरा निभाते हुए भाजपा को मौका दे दिया। यही विरोधाभास कांग्रेस को अखरा और वह कोर्ट चली गई। देर रात कोर्ट बैठा। साढ़े तीन घंटे तक सुनवाई हुई लेकिन फैसला मिला जुला आया। कांग्रेस दरअसल शपथ ग्रहण को ही रुकवाना चाह रही थी लेकिन कोर्ट ने शपथ ग्रहण समारेाह पर रोक नहीं लगाई। इतना ही नहीं बहुमत का फैसला जब कोर्ट ने विधानसभा में करने को कहा तो इसे प्रचारित किया गया कि कोर्ट में मुंह की खाने वाले विधानसभा में भी मात खाएंगे, लेकिन एेसा हुआ नहीं। वैसे सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया मौटे तौर.पर वही भाजपा सरकार की विदाई का कारण बना। यह सही है कि कोर्ट के फैसले ने पहले भाजपा को खुशी दी जब उसने राज्यपाल के शपथ ग्रहण के निर्णय को यथावत रखा। दूसरा निर्णय जरूर खिलाफ जाता दिखाई दिया। कोर्ट ने दो दिन में फ्लोर टेस्ट करने तथा इसका प्रसारण लाइव करने को कहा जबकि राज्यपाल ने बहुमत सिद्ध करने के लिए पन्द्रह दिन का समय दिया था। प्रसारण लाइव तथा बहुमत का समय कम होने के कारण भाजपा खेमे में हलचल जरूर दिखाई दी। फिर भी जोड़तोड़ व खरीद फरोख्त की चर्चाओं के चलते इस बात की उत्सुकता जरूर थी कि आखिर कर्नाटक में होगा क्या?
कांग्रेस के दो विधायक शुरूआती सत्र में अनुपस्थित रहे तो लगा भी कि शायद जोड़तोड़ का गणित कारगर बैठ जाए लेकिन जब खबरें आने लगी कि वाजपेयी की तर्ज पर कुछ होगा तो यह लगने लगा था कि भाजपा अब बैकफुट पर है। हुआ भी वही येदि ने अपना भाषण पढऩे के बाद फ्लोर टेस्ट होने से पहले ही इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। उनको संभावित हार का एहसास हो चुका था। जैसे ही समीकरण बदले कांग्रेसी खेमी में खुशी की लहर दौड़ गई। गोवा, मणिपुर, मेघालय में ज्यादा सीटें हासिल करने के बाद सरकार न बना पाने के कारण कांग्रेस में जो निराशा का माहौल था, उसको भी इस फैसले ने निसंदेह कम किया है। गठजोड़ की सरकार कैसे चलेगी, यह अभी देखना बाकी है। चर्चा इस बात की है कि जिस तरह से जेडीएस व कांग्रेस ने दो दिन के लिए विधायकों की मजबूत किलेबंदी की वैसी कब तक रखेंगे। मतलब साफ जाहिर है कि बाजार खुला है। भाव लगने व बिकने के विकल्प बरकरार है। गठबंधन अगर मजबूती के साथ डटा रहा तो बात अलग है वरना खरीद फरोख्त की आशंकाएं व चर्चाएं थोड़ी बहुत भी सही साबित हुई तो गठबंधन सरकार का कार्यकाल पूरा करना मुश्किल होगा। मतलब तय है कर्नाटक में सियासी कमशकश खत्म नहीं होने वाली...। चुनौती दोनों तरफ है। देखना है शह व मात के इस खेल में बाजी किसके हाथ लगेगी। हार से तमतमाई भाजपा चुप नहीं बैठने वाली...वह पलटवार जरूर करेगी इतना तय है।

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