Friday, May 25, 2018

पड़ोसी धर्म निभाए पंजाब

टिप्पणी
एक अच्छे पड़ोसी का दायित्व होता है कि वह दुख-दर्द में काम आए, लेकिन राजस्थान के पड़ोसी प्रदेश पंजाब ने पड़ोसी धर्म शायद ही निभाया हो। बात चाहे नहरों में प्रदू्िरषत पानी की हो या फिर गाहे-बगाहे पानी रोकने या कम करने की। पंजाब ने हमेशा मनमानी कर अपनी बात ही ऊपर रखी है। ताजा मामला नहरों में काला व बदबूदार पाने आने का है। यह पानी इतना जहरीला है कि जलदाय विभाग ने इसके डिग्गियों मंे भंडारण तक रोक लगा रखी है। वैसे पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में प्रदूषित पानी आने का यह कोई पहला मामला नहीं है। पंजाब की औद्योगिक इकाइयों व शहरों का रासायनिक अपशिष्ट सतलुज और व्यास नदियों में डाला जाता रहा है। नहरों में दूषित पानी आने का यह सिलसिला सदियों से चल रहा है लेकिन आज तक न तो किसी के खिलाफ कार्रवाई हुई और न ही इस समस्या का समाधान हुआ। इस नहरी का पानी का उपयोग खेती के साथ-साथ पीने के लिए भी किया जाता है। इस नहरी पर पानी श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ सहित प्रदेश के दस जिले निर्भर हैं। सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि श्रीगंगानगर में दूषित पानी की जांच करने वाली प्रयोगशाला में पूरी एवं सघन जांच नहीं हो पाती। क्षेत्र के लोग लंबे समय से यहां विशेष प्रयोगशाला की मांग करते आ रहे हैं लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही। नहरों की मरम्मत के नाम पर अरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं लेकिन पानी शुद्ध व स्वच्छ मिले इसके लिए गंभीरता से प्रयास नहीं हो रहे हैं। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिलों में कैंसर रोगियों के बढ़ते आंकड़ों के बावजूद सरकार जाग नहीं रही है। जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं खोजा गया तो प्रदेश के दस जिलों के करीब तीन करोड़ लोगों की नस्ल विकृत हो सकती है। इसलिए स्वास्थ्य से सरेआम हो रहा यह खिलवाड़ अब स्थायी समाधान चाहता है। वरना परिणाम भयावह हो सकते हैं।
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 राजस्थान पत्रिका के जयपुर संस्करण में 23 मई 18 के अंक में प्रकाशित

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