Monday, May 28, 2018

सरासर नाइंसाफी


टिप्पणी
राजस्थान रोडवेज के घाटे में होने के कारणों की पड़ताल की जाए तो इसमें बड़ी वजह तो प्राइवेट बस सर्विस की तुलना में ज्यादा किराया ही सामने आता है। समय और यात्रियों के लिए बसों में कम्फर्ट जोन भी घाटे के बड़े कारणों में शुमार हैं। रोडवेज बसों की हालत किसी से छिपी नहीं है। कहीं सीट फटी, तो कहीं खिड़कियों की आवाज। प्राइवेट बसें कम किराये में तथा रोडवेज से कम समय में गंतव्य पर पहुंचाती हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि सुरक्षा की दृष्टि से रोडवेज बसों में की जाने वाली यात्रा ज्यादा सुरक्षित रहती है। फिर भी किसी भी रूट पर चले जाओ, प्राइवेट बसों में सवारियों की संख्या रोडवेज के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है।  कम किराया लेकर भी प्राइवेट बस वाले कमाई कर रहे हैं जबकि अधिक किराया लेकर और लंबा-चौड़ा स्टाफ होते हुए भी रोडवेज घाटे में हैं। एेसा नहीं है कि घाटे के प्रमुख कारण रोडवेज प्रबंधन की जानकारी में न हो। सब कुछ पता होने के बावजूद रोडवेज प्रबंधन इस तरह के फैसले ले रहा है जो यात्रियों को रोडवेज से दूर करते हैं। छोटी दूरी के यात्रियों के लालच में रोडवेज प्रबंधन लंबी दूरी के यात्रियों को दूर कर रहा है। राजस्थान रोडवेज में श्रीगंगानगर से जयपुर की यात्रा करने वालों के साथ तो लंबे समय से नाइंसाफी हो रही है। इस मार्ग पर यत्रियों से किराया तो एक्सप्रेस सेवा का वसूला जा रहा है, लेकिन सेवा लोकल की उपलब्ध करवाई जा रही है। हनुमानगढ़ जिले के पल्लू से चूरू जिले के सरदारशहर के बीच जितने भी स्टॉपेज हैं, उन सभी पर रोडवेज की एक्सप्रेस बसें रुकती हैं। करीब 65 किलोमीटर की इस दूरी में 11 स्टॉपेज हैं। इस मार्ग पर लोकल बसें भी संचालित होती हैं, लेकिन ज्यादा सवारियों का हवाला देकर रोडवेज प्रबंधन एक्सप्रेस बसों को भी लोकल की तरह ही चला रहा है। सभी बसों को एक जैसा बनाने की व्यवस्था से इस रूट के लोग जरूर खुश हो सकते हैं, लेकिन एक्सप्रेस सेवा का किराया देने वालों के साथ यह नाइंसाफी है। ज्यादा किराया देने के बावजूद समय ज्यादा लगता है, फिर एक्सप्रेस सेवा में यात्रा करने का मतलब ही क्या रहा जाता है? एक्सप्रेस सेवा को लोकल बनाने का संभवत: इस तरह का प्रयोग कहीं नहीं होता होगा। अगर रोडवेज प्रबंधन को उम्मीद है कि इस मार्ग पर ज्यादा सवारियां मिलती हैं तो वह लोकल बसों के फेरे बढ़ा सकता है, लेकिन एक्सप्रेस सेवा को ही लोकल बना देना हास्यापस्द फैसला है।
वैसे भी श्रीगंगानगर-जयपुर मार्ग पर सरदारशहर, रतनगढ़, फतेहपुर आदि बस स्टैंड शहर के अंदर होने के कारण रोडवेज बसों को ज्यादा समय लगता है। प्राइवेट बस ऑपरेटरर्स से रोडवेज प्रबंधन किराये के मामले में मुकाबला नहीं कर सकता तो इस तरह के रास्ते तो खोजने चाहिए जिससे पैसे की तो नहीं, कम से कम समय की बचत तो हो। रोडवेज को यात्रियों को बेहतर सेवा देने के प्रयास होने चाहिए न कि यात्रियों को प्राइवेट की तरफ जाने को मजबूर करना चाहिए।

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 27 मई 18 के अंक में प्रकाशित

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